इशरत जहां एनकाउंटर: कोर्ट के फैसले पर मीडिया की सनसनीखेज कलाबाजी

यह याचिका तीन आरोपी पुलिस वालों को बरी करने से जुड़ी थी, लेकिन सनसनीपसंद मीडिया ने इसे इशरत जहां को आतंकी साबित करने से जोड़ दिया.

Article image

स्पर्श कहते हैं, “वैसे भी इशरत जहां की मां ने कोर्ट के इन फैसलों को ऊपरी कोर्ट में चुनौती नहीं दी है.” वह आगे कहते है, “सत्ता में रहने वाली सरकार के लिए यह बहुत आसान है कि वह अपने खिलाफ दर्ज किसी भी फैसले को वापस ले सकती है, जिसका ताजा और अच्छा उदाहरण उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ हैं. उन्होंने भी अपने ऊपर दर्ज केसों को वापस ले लिया है.”

वरिष्ठ पत्रकार महताब आलम जो इस मामले को काफी समय से फॉलो कर रहे हैं, वह कोर्ट के फैसले को गलत तरीके से तोड़ मरोड़ कर मीडिया में लिखने पर न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहते हैं, “मुझे आज के फैसले के बारे में तो जानकारी नहीं है, लेकिन काफी बार यह होता है कि मीडिया कोर्ट के फैसले को तोड़ मरोड़ कर लिख देता है. जो की गलत है और वह नहीं होना चाहिए. ”

महताब, बाटला हाउस एनकाउंटर मामले का एक किस्सा बताते हुए कहते हैं, “कोर्ट ने किसी को सजा सुनाई थी, लेकिन कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा था कि हम यह नहीं कह सकते कि यह इंडियन मुजाहिदीन का आतंकी है. लेकिन अगले दिन के सभी अखबारों ने उस आरोपी को इंडियन मुजाहिदीन का आतंकी बता दिया था. जिसके बाद मैंने द हिंदू के एडिटर को कोर्ट के फैसले की कॉपी भेजकर बताया था कि आप के अखबार ने गलत लिखा है. जिसके बाद अखबार ने उसे सही किया.”

क्या हैं पूरा मामला

इशरत जहां का एनकाउंटर देशभर में चर्चित मामला रहा है. साल 2004 में 14 जून को अहमदाबाद के बाहरी इलाके में गुजरात पुलिस की क्राइम ब्रांच ने इशरत जहां, प्राणेश पिल्लई, अमजद अली राणा और जीशान जौहर को मुठभेड़ में मार गिराया था. गुजरात पुलिस ने कहा कि यह सभी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रच रहे थे. इस टीम को पूर्व आईपीएस अधिकारी डीजी वंजारा लीड कर रहे थे.

इसके बाद मामले में वंजारा के साथ 6 अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ सीबीआई ने फर्जी एनकाउंटर करने को लेकर साल 2013 में चार्जशीट दाखिल की थी.

इस मामले में सीबीआई कोर्ट ने साल 2018 में गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक पीपी पांडे, साल 2019 में पूर्व आईपीएस अधिकारी डीजी वंजारा और पुलिस अधिकारी एनके आमीन को बरी कर दिया था. इसके बाद पुलिस अधिकारी जेजी परमार, तरुण बरोट, जीएल सिंघल और अनाजु चौधरी पर केस चल रहा था. सितंबर 2020 में जेजी परमार की मौत हो गई.

कोर्ट का पूरा फैसला आप यहां पढ़ सकते हैं.

Also see
article imageतमिलनाडु में एक न्यूज चैनल ने मीडिया की आजादी को लेकर चुनाव आयोग को लिखा पत्र
article imageगिर में शेर मर रहे, कूनो में इंतजार है, और गुजरात सरकार जिद पर अड़ी है

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like