कोरोना वैक्सीन: हर दिन फैल रही अफवाहें, उनका सच और उनसे बचाव

यदि इस आपदा की कोई संजीवनी है, तो वह कोरोना की वैक्सीन है. इसलिए इससे जुड़े किसी भी संदेहजनक ​मैसेज को आगे न भेजे और अपनी बारी आने पर तुरंत वैक्सीन लगवा लें.

WrittenBy:रौनक बोराना
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कोरोना वैक्सीन लेने से इंसान नपुंसक नहीं बनेगा

वैक्सीन के खिलाफ अफ़वाहें फैलाने वालों में, यह अफवाह सबसे लोकप्रिय है. MMR वैक्सीन हो या पोलियो वैक्सीन, हर समय यह दावा किया जाता है की वैक्सीन लेने से इंसान की बच्चा पैदा करने की क्षमता ख़त्म हो जाएगी, या वो नपुंसक बन जायेगा. यह दावा शत प्रतिशत झूठा है. भारत और वैक्सीन का रिश्ता बहुत पुराना है. पिछले 220 साल से हमारे देश में बच्चों और बड़ों को बहुत सी बीमारियों के लिए वैक्सीन दिया जा रहा है. आज से 110 साल पहले, कॉलरा (हैजा) और प्लेग महामारी से लड़ने में भी वैक्सीन ने भारत का हाथ बंटाया था. 1985 में हर बच्चे को 6 बीमारियों और आज हर बच्चों को 12 बीमारियों के लिए वैक्सीन दिया जाता है. बच्चों के अलावा, गर्भवती महिला, बुजुर्गों और बड़ों, सबको अलग अलग बीमारियों के लिए वैक्सीन दिया जाता है.आप भारत की आबादी से इस अफवाह की सच्चाई का अंदाजा लगा सकते है.

अनेक अनुसंधानों के अनुसार, इन वैक्सीनों में और नपुंसकता में कोई संबंध नहीं है. पुराने किस्सों को देखा जाये तो ऐसी अफवाह फैलाने वाले डॉक्टर और वैज्ञानिक अक्सर फर्जी और पाखंडी निकले हैं.

कोरोना वैक्सीन में सूअर के मांस का इस्तेमाल नहीं किया गया है

इस्लाम के मानने वाले कुछ लोग वैक्सीन लेने में हिचहिचा रहे हैं क्योंकि ऐसी अफ़वाहें फ़ैल रही हैं कि वैक्सीन में मौजूद एक सामग्री को सूअर के मांस से बनाया गया है. Porcine Gelatine नाम के एक पदार्थ का उपयोग कुछ दवाइयों में स्थिरक के रूप में किया जाता है. Porcine Gelatine को सूअर की हड्डियों से बनाया जाता है. पर भारत में मौजूद दोनों कोरोना वैक्सीन- सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया की कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवाक्सिन में इस Porcine Gelatine का इस्तेमाल नहीं किया गया है.

कोरोना वैक्सीन के शोध के लिए जानवरों पर अत्याचार नहीं किया गया है

फेसबुक और व्हाट्सएप पर ऐसे कई वीडियो भेजे जा रहे हैं जहां कुछ व्यक्ति जानवरों पर अत्याचार कर रहे हैं. ऐसा बताया जा रहा है कि इन जानवरों को कोरोना वैक्सीन के अनुसंधान के लिए तड़पाया जा रहा है. ऐसे सभी वीडियों और उनके दावे गलत हैं.

यह बात सही है की कोरोना वैक्सीन का शोध जानवरों पर किया जा रहा है. पर किसी भी दवाई को इंसानों पर जांचने से पहले उसे जानवरों पर जांचना आम प्रक्रिया है. भारतीय कानून के हिसाब से, भारत में बिकने वाली सभी दवाई और वैक्सीन को कम से कम दो जानवरों की जातियों पर परखना अनिवार्य है. भले वो बदन दर्द की गोली हो या कैंसर की दवाई, सबको भारत में बेचने से पहले जानवरों पर शोध करना ही पड़ता है. इसी तरह कोरोना वैक्सीन की हानिकारक क्षमता की जांच भी जानवरों पर की गई है.

प्रयोगशाला में जानवरों के उपयोग के लिए देश में सख्त कानून मौजूद हैं. इन कानून के तहत, वैज्ञानिक और दवा कंपनी सभी जानवरों का बेहद अच्छे से देखभाल करने के लिए बाध्य हैं. सरकार ऐसी सभी प्रयोगशाला को नियमित निरीक्षण भी करती हैं.

इसलिए कोरोना वैक्सीन को बनाने में जानवरों का सहारा लिया गया है लेकिन इन जानवरों पर कोई यंत्रणा नहीं की गई है.

इन अफवाहों के अलावा और भी कई झूठ इंटरनेट पर फैलाए जा रहे हैं. जैसे की एक सूची भेजी जा रही है जिसमें अलग अलग देशों में कोरोना वैक्सीन के दाम दिए गए है और उस सूची में भारत में वैक्सीन सबसे सस्ती है- 250 रुपए में दी जा रही है, ऐसा दिखाया गया है. पर उस सूची में मौजूद सभी देश अपने अपने नागरिको को कोरोना वैक्सीन मुफ्त में दे रहे हैं. इसके बारे में और जानने के लिए Alt News हिंदी का यह लेख जरूर पढ़ें.

और भी कई विचित्र अफ़वाहैं हैं, जैसे की कोरोना वैक्सीन में इलेक्ट्रिक चिप होने का भी दावा किया जा रहा है, जो बिलकुल गलत है. ऐसी सभी अफवाहों पर थोड़ा भी भरोसा ना करें.

कोरोना वैक्सीन न सिर्फ आपको बीमारी से बचाएगी बल्कि आपके परिजनों को आप से कोरोना वायरस का संक्रमण न फैले इसकी भी आशंका को कम करेगी.

आज भारत में सिर्फ 4 प्रतिशत लोगों को कोरोना वैक्सीन मिली है. इजराइल ने कोरोना के मामलों को घटाने के लिए लगभग 60% आबादी को वैक्सीन दिया है. हम आज उस आकंड़े से बहुत दूर हैं. यहां दूरी व्हाट्सएप की अफवाहों से और ज्यादा दूर हो जाएगी.

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यदि इस आपदा की कोई संजीवनी है, तो वह कोरोना की वैक्सीन है. इसलिए इससे जुड़े किसी भी संदेहजनक ​मैसेज को आगे न भेजे और अपनी बारी आने पर तुरंत वैक्सीन लगवा लें, याद रखें, वैक्सीन सुरक्षित भी है और प्रभावशाली भी.

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