दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
इस हफ्ते की टिप्पणी में धृतराष्ट्र और संजय के बीच डंकापति के छोटे भाई निर्दोष कुमार की कहानी. एक के बाद एक ऐसे कारनामे निर्दोष कुमार के राज में अंजाम दिए जा रहे हैं जिनसे लोकतंत्र का बाजा बज गया है. इसके अलावा बीते हफ्ते मुंबई पुलिस के कुछ ऐसे कारनामे सामने आए जिसने न सिर्फ वहां के पुलिस प्रशासन की बल्कि महाराष्ट्र सरकार और वहां के सबसे बड़े नेता शरद पवार की फजीहत करवा दी. मामला उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के बाहर फर्जी बम रखवाने का है. इस मामले में मुंबई पुलिस के एक अधिकारी सचिन वाझे गिरफ्तार हो चुके हैं और मुंबई के पुलिस कमिश्नर रहे परमबीर सिंह का तबादला हो चुका है. इस घटना ने मुंबई पुलिस की कार्यप्रणाली पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं. ऐसे गंभीर मौके पर जब रिपब्लिक वाले अर्णब गोस्वामी गहराई से रिपोर्टिंग करके इस मामले की परतें खोल सकते थे तब वो सिर्फ लफ्फाजी और कान्सपिरेसी की कहानियां सुना रहे थे. कान्सपिरेसी भी ऐसा वैसी नहीं बल्कि सीधे अर्णब गोस्वामी की हत्या की कान्सपिरेसी.
साजिश और षडयंत्र के अलावा इस हफ्ते चैनलों पर मुर्गाखाना भी सजा. खबरिया चैनलों के डिबेट शो यानी मुर्गा लड़ाने का अड्डा. यत्र तत्र सर्वत्र मुर्गे लड़ाए जा रहे हैं. ज्यादातर मुर्गे एक ही वक्त पर, एक ही सुर में, भोर होते ही बाग देते हैं उसी तरह खबरिया चैनलों पर आने वाले तथाकथित विशेषज्ञ मुर्गे एक ही सुर में बाग लगाते हैं.
खबरिया चैनलों पर डिबेट शो की जहरीली संस्कृति ने सिर्फ धर्मांध विशेषज्ञों को मौका दिया है बल्कि अच्छे भले, पढ़े लिखे, संतुलित लोगों को भी असंतुलित कर दिया है. ऐसा ही एक नाम है कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत का. इनका टीवी वाला रूप देखकर इनके पुराने रूप पर लोग भरोसा ही नहीं कर पाते. इसी दौरान इतिहास के अंड बंड संस्करण एक ब्रांड न्यू इतिहासकार ने एंट्री मारी है. उनका नाम है दीपक चौरसिया. दीपक तले अंधेरा तो आपने पढ़ा-सुना होगा लेकिन इनके तले से लेकर सिर तक अंधेरा ही अंधेरा है.
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