शेखर पाठक की यह पुस्तक हिमालय के कई पहलुओं को एक छत के नीचे समेटने की कोशिश है.
हिमालय: विविधता का सागर
‘दास्तान-ए-हिमालय’ का सबसे मज़बूत पक्ष यही है कि अध्येताओं के लिये यह विविधताओं का ख़ज़ाना और कई संदर्भ उपलब्ध कराती है. पहले अध्याय में ही हिमालय की सृष्टि से लेकर उसमें मौजूद भ्रंश और दुनिया के तमाम पहाड़ों के भूगर्भशास्त्र का ही ज़िक्र नहीं होता बल्कि एशियाई समाज से हिमालय का रिश्ता यहां की काष्ठकला और मनुष्य केंद्रित परिवहन प्रणाली भी दिखती है. इसी सिलसिले में शेखर पाठक यात्रा लोलुप लेखक राहुल सांकृत्यायन से लेकर पेशावर प्रतिरोध के नायक रहे चन्द्र सिंह गढ़वाली और फिर महात्मा गांधी की शिष्या रही कैथरीन मेरी हाइलामन- जिन्हें भारत में सरला बहन के नाम से जाना जाता है, की कहानी और उनका हिमालय से रिश्ता बताते हैं.
ये सारी जानकारियां पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन की नज़र से हिमालय को समझने वाले जिज्ञासु को समृद्ध करती हैं. दस्तावेज़ के दूसरे भाग में अन्य पहलुओं के अलावा आंदोलनों का इतिहास और हिमालयी क्षेत्र कृषि के अलावा 200 साल की आपदाओं का वर्णन है जो हिमालय की संवेदनशीलता को समझने में मदद करती है.
संकट के प्रति चेतावनी
दो हिस्सों में लिखी गई और कुल 700 पन्नों में फैली ‘दास्तान-ए-हिमालय’ को बेहतर संपादित किया जा सकता था और कुछ जगह दोहराव टाले जा सकते थे. फिर भी हिमालय के इतने पहलू एक ही जगह पर पढ़ने को मिलना काफी उपयोगी है. किसी पर्यावरण पत्रकार, चिन्तक या कार्यकर्ता के लिये यह जानने का मौका है कि राजनीति में आई गिरावट कैसे पर्यावरण के प्रति लापरवाही और क्षति के लिये ज़िम्मेदार है. कुछ वक्त पहले ही शेखर पाठक की किताब हरी भरी उम्मीद प्रकाशित हुई जो सत्तर के दशक में हुये चिपको आंदोलन का वृत्तांत है. आज हिमालय से हो रहा पलायन जहां संस्कृति और पारिस्थितिकी के लिये ख़तरा है वहीं संवेदनशील ढलानों पर विकास के नाम पर किये जा रहे विस्फोट और पहाड़ों का कटान भी बड़ी चुनौती है. इसके बावजूद इस पर न तो चिपको जैसी सामाजिक चेतना दिखती है और न ही राजनीतिक प्रतिरोध दिखता है.
पिछले कुछ दशकों में हिमालय की नदियों, जंगलों और ग्लेशियरों पर लगातार हमले हो रहे हैं और आम पहाड़ी के लिये हिमालय में जीविका के साधन नहीं हैं. एक सतत विकास के लिये ज़रूरी है कि पहाड़ के मिज़ाज के हिसाब से कृषि, पशुपालन, बागवानी, पर्यटन और वानिकी को विकसित किया जाये लेकिन अभी हिमालय में एक टिकाऊ विकास के बजाय ग्रोथरेट की अंधी दौड़ ही दिखती है.
(साभार- कार्बन कॉपी)