कन्नूर में एक बूढ़ी महिला राजनीति के फेर में मारे गए अपने पति और बेटे का शोक मना रही है

केसी नारायणी का परिवार राजनीतिक हिंसा में खत्म हो चुका है. वह अब कभी वोट नहीं डालेंगी.

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अब वोट नहीं करेंगे

धर्म डोम चुनाव क्षेत्र में जहां से मुख्यमंत्री विजयन चुनाव लड़ रहे हैं नारायणी के घर के बाहर मिजाज बिल्कुल अलग है.

हर तरफ मुख्यमंत्री के पोस्टर और चित्र लगे हुए हैं जिसमें से एक 20 फुट का फ्लेक्स पोस्टर नारायणी के घर के सामने दूसरी तरफ लगा है. रोजाना उनके घर के बाहर से लाउडस्पीकर पर बजते सीपीआईएम के चुनावी गाने और भाषण गुजरते हैं.

यह पूछने पर क्या वे वोट डालेंगी, उन्होंने तुरंत इंकार कर दिया. उन्होंने कहा, "मेरी अब राजनीति और जीवन में ही कोई रुचि नहीं है. मैं इन जानवरों को सत्ता में लाने के लिए और वोट नहीं करूंगी."

नारायणी के दिल में केवल पीड़ा ही नहीं है, वह एक बड़े असमंजस में भी हैं. वह बार-बार पुराने और नए समय को याद करती हैं, और स्मृति से ताना-बाना बुनने की कोशिश करती हैं की चीजें पहले कैसी थी और अब कैसी हो गई हैं.

वह याद करती हैं कि जब वह एक छोटी लड़की थीं, उनकी छोटी बहन और विजयन साथ ही में स्कूल में पढ़ते थे और भविष्य का वह राजनेता अक्सर ही नारायणी के परिवार के बच्चों के साथ खाता और खेलता था. उनका कहना है, "एक कुत्ता जिसे आपने खाना खिलाया हो उसके मन में भी आपके लिए कृतज्ञता होती है. लेकिन यह आदमी, मैं आपको बता नहीं सकती कि मैं उससे कितना गुस्सा हूं और उसने इस पार्टी को किस तरह से बदल दिया है."

अपने पति और बेटे की मृत्यु के बाद नारायणी ने कभी इस घर को छोड़कर जाने के बारे में नहीं सोचा. उन्होंने इतना समय अकेले रहकर ही बिताया है. क्या उन्हें कभी डर लगा?

नारायणी इस सवाल के जवाब में कहती हैं, "किसका डर? मौत का? मुझे अब केवल मौत ही बचा सकती है. तब कम-से-कम मैं अपने बेटे और पति के पास स्वर्ग में तो जा पाऊंगी. कम से कम अब तो हम फिर से परिवार बन पाएंगे."

चुनाव प्रचार, मामले से जुड़े दस्तावेज, अदालत, वकील उनके लिए कोई मायने नहीं रखते. वह कहती हैं, "मैंने सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया है. केवल ईश्वर की अदालत में ही मुझे कुछ चैन मिलने की उम्मीद है."

तस्वीरें: आदित्य वारियर.

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