विश्व जल दिवस: क्या भारत में इतना पानी है कि शहरी और ग्रामीण आबादी की जरूरतें पूरी की जा सकें?

आबादी में इजाफा होने के साथ देश में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता घट रही है.

Article image

शहरी आबादी की प्यास बुझाने के लिए अब दूर के जलस्रोतों से पानी लाया जा रहा है. दिल्ली शहर के लिए 300 किलोमीटर दूर हिमालय के टिहरी बांध से पानी लाया जाता है. सॉफ्टवेयर की राजधानी कहे जाने वाले हैदराबाद के लिए 116 किलोमीटर दूर कृष्णा नदी के नागार्जुन सागर बांध से और बंगलुरू के लिए 100 किलोमीटर दूर कावेरी नदी से पानी लाया जाता है. रेगिस्तानी शहर उदयपुर के लिए जयसमंद झील से पानी खींचा जाता है, लेकिन ये झील सूख रही है और नई आबादी की प्यास बुझाने में नाकाफी साबित होगी. ऐसी पहलों का मतलब है कि शहरों में जलसंकट गहरा रहा है.

शहरों और किसानों के लिए राज्यों में नदियों के पानी को लेकर लड़ाइयां हो रही हैं. गांव के लोग अपने क्षेत्र के पानी पर पड़ोसी शहरों के अधिकारों को चुनौती दे रहे हैं. शहर से सटा इलाका जो चारों तरफ से गांवों से घिरा हुआ है, वहां पानी की अत्यधिक निकासी के कारण फसलों का उत्पादन घट रहा है. बहुत सारे किसान पानी बेच रहे हैं, जिससे भू-जल स्तर में गिरावट आ रही है. गांव के पानी को शहर की तरफ मोड़ने से ग्रामीण इलाकों में रोष पनप रहा है. सदाबहार जल स्रोतों की कमी और अनिश्चित मानसून ने शहरों में जल संकट को और बढ़ा दिया है. चेन्नई शहर के पानी की जरूरत के लिए जब वीरानाम झील में गहरी बोरिंग की गई थी, तो भी किसानों ने इसके खिलाफ प्रदर्शन किया था. गुस्साए किसानों ने पम्पिंग सेट और पानी की सप्लाई के लिए लगाए गए पाइपों को क्षतिग्रस्त कर दिया था.

किसानों की नाराजगी के कारण यह योजना वापस ले ली गई. साल 2009 की गर्मी में मध्य प्रदेश के कुछ शहरों में जल संकट इतना बढ़ गया था कि पानी की सप्लाई करने के लिए राशन दुकानों से कूपन बांटना पड़ा था. जब भी शहरों में सूखा आता है, तो ग्रामीण क्षेत्रों के पानी की याद आ जाती है. मध्य प्रदेश के सिहोर शहर में जब ये समस्या आई थी, तो शहर में पानी की सप्लाई करने के लिए प्रशासन ने 10 किलोमीटर के दायरे में आने वाले सभी ट्यूबवेल्स को अपने अधिकार में ले लिया था. देवास में तो 122 किलोमीटर लंबी वाटर सप्लाई पाइपलाइन को किसानों से बचाने के लिए कर्फ्यू लगाना पड़ा. पानी की जरूरतें और उनकी प्रकृति में बदलाव आ रहा है. कृषि क्षेत्रों की जरूरतों को पूरा करने के बजाए इस वक्त विस्तार पाते शहर और औद्योगिक क्षेत्रों की पानी की जरूरतों पर ही ध्यान केंद्रित है. ऐसा लग रहा है कि जल अर्थव्यवस्था को एक रैक पर बांध दिया गया है और उसे खींचा जा रहा है.

समस्या है कि “असंगठित” जल अर्थव्यवस्था जो कृषि पर निर्भर आबादी की जरूरतों को पूरा करता है, अब भी अस्तित्व में है. भारत अब भी कृषि आधारित अर्थव्यवस्था से उत्पादन-सेवा क्षेत्र संचालित अर्थव्यवस्था में तब्दील नहीं हुआ है. मौजूदा संकट ग्रामीण भारत के लोगों को भोजन और आजीविका की सुरक्षा के लिए पानी उपलब्ध कराना है. साथ ही साथ ही शहरी-औद्योगिक भारत की जरूरतों को भी पूरा करना है. ऐसे में सवाल है कि क्या पानी के इस्तेमाल के लिए एक अलग आदर्श प्रतिमान हो सकता है? ऐसा लगता है कि कल के शहरों को भविष्य में अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए पुराने तौर-तरीकों को सीखने की जरूरत है.

भारत के 19.2 करोड़ ग्रामीण घरों में से 6.6 करोड़ घरों तक नल के जरिए पीने के पानी की आपूर्ति की जा रही है. जिसका मतलब है कि देश के 34.6 फीसदी ग्रामीण घरों तक नल के जरिए जल पहुंच चुका है. यह जानकारी जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत द्वारा लोकसभा में दिए एक प्रश्न के जवाब में सामने आई है. जोकि जल जीवन मिशन (ग्रामीण) के आंकड़ों पर आधारित है. यदि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में 100 फीसदी नल जल के लक्ष्य की बात करें तो आज देश के 2 राज्यों, 52 जिलों, 663 ब्लॉक, 40,086 पंचायतों और 76,196 गांवों तक नल के जरिए पीने का साफ़ जल पहुंच चुका है.

Also see
article imageयमुना के पानी की गुणवत्ता सुधारने के लिए बेमौसम बारिश ने निभाई बड़ी भूमिका
article image2020 का दशक जल की अग्नि परीक्षा का दशक

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like