संघ की तमाम 'विफलताओं' को नज़रअंदाज़ करके देबतनु भाजपा के टिकट पर हावड़ा जिले की आम्ता विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.
हिंदुत्व का आसरा
पिछले महीने तक देबतनु कहते थे कि वह चुनाव लड़ने के लिए खुद की पार्टी बनाएंगे और बंगाली हिन्दुओं की रक्षा करने में असमर्थ भाजपा से समर्थन न लेंगे न देंगे.
आम्ता से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने के उनके निर्णय ने जिले में काडर-विहीन भगवा ब्रिगेड में नई जान फूंक दी है. हावड़ा जिले में पार्टी कार्यकर्ताओं में टिकट बंटवारे को लेकर दो-फाड़ है. वहीं दूसरी ओर हिन्दू संहति के पास हज़ारो ज़मीनी कार्यकर्ता हैं जिन्होंने बंगाल को हिंदू भूमि बनाने की शपथ ले रखी है. और उनके सामाजिक कार्यों जैसे लॉकडाउन के समय साबुन और सैनिटाइज़र बांटने की वजह से लोग उन्हें जानने लगे हैं.
यह जोयपुर में कुछ लोगों से हमारी बातचीत में भी परिलक्षित होता है. राजू मिधा (30) बताते हैं कि वह बेरोज़गार हैं और आम्ता के अगले विधायक से चाहते हैं कि वह ग्रामीण युवाओं के लिए रोज़गार सुनिश्चित करें. "कई युवा गांव छोड़कर बंगाल और देश के दूसरे हिस्सों में बस रहे हैं" उन्होंने बताया और कहा कि वह इस बार भाजपा को वोट देकर देखना चाहते हैं.
"मुझे भाजपा के उम्मीदवार को वोट देने में कोई समस्या नहीं है. मैंने आपदा के समय उन्हें लोगों तक राहत पहुंचाते देखा है. लॉकडाउन के समय जब हम घरों में कैद थे, उनके लोगों ने हम तक खाना और दूसरी राहत सामग्री पहुंचाई. पहली बार मैंने यहां किसी सामाजिक संस्था को काम करते देखा. देबतनु भट्टाचार्य मुझे विश्वास करने योग्य लगते हैं," मिधा ने कहा.
ज़मीन पर काम करने के साथ ही हिन्दू संहति ने दंगा पीड़ित इलाकों में खुद को हिन्दुओं के 'रक्षक' के रूप में स्थापित कर लिया है, विशेषकर वहां जहां पुलिस-प्रशासन हिंसा रोकने में नाकाम रहा.
26-वर्षीय गृहणी रिंकू पांजा कहती हैं, "विकास के दूसरे मुद्दे बाद में देखे जा सकते हैं लेकिन इस समय सबसे ज़रूरी मुद्दा है सामाजिक सुरक्षा. हम नहीं चाहते कि हमारे दुर्गा और काली पूजा पंडालों पर और हमले हों."
"2015 से 2020 तक ऐसी 10 घटनाएं चंदरपुर, मोईनान, भतोरा और नोरित में हो चुकी हैं. जो लड़के धार्मिक सभाओं और वाज़ महफ़िलों में जाते हैं वही इन छोटे-बड़े हमलों में शामिल थे. हमारी मदद के लिए सिर्फ हिन्दू संहति के कार्यकर्ता आए. महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के लिए हम तो उन्हें ही वोट देंगे," पांजा ने कहा.
हांलांकि एक अन्य गृहणी, 30 वर्षीय रंजना मांझी, ने दूसरी समस्याएं गिनाईं, "हमारी प्राथमिक मांगे हैं साफ़ पेयजल, सड़कें, बच्चों के लिए शिक्षा और रोज़गार. मेरे जैसी गृहणी और क्या मांग सकती है? यह सब ज़रूरते अधूरी हैं. हम ऐसा पानी पीते हैं जो पीने लायक नहीं है. यहां कोई मुकम्मल सड़क नहीं है, बाढ़ की रोकथाम की कोई व्यवस्था नहीं है. स्कूलों में शिक्षकों की कमी है और कोई रोज़गार नहीं है."
दुकानदारों और स्थानीय व्यापारियों ने हमसे बातचीत के दौरान अपने प्राथमिकताएं ना बताना ही उचित समझा. लेकिन उनमें से कई ने कहा कि उन्हें साफ़ छवि का उम्मीदवार चाहिए जो उनके व्यापर के लिए उपयुक्त वातावरण बना सके.
"हम बस अनावश्यक परेशानियों से छुटकारा चाहते हैं. चुनाव का समय संवेदनशील होता है इसलिए हम अपनी पसंद बताना नहीं चाहते. बस यह चाहते हैं कि ऐसा उम्मीदवार हो जो 'तोलबाज़ी' (धन उगाही) रोक सके," स्थानीय व्यापारी जयदीप कर ने कहा.
चाय विक्रेता खोकन दास ने कहा कि कोई राजनैतिक पार्टी उनकी प्राथमिकता नहीं है. वह ऐसा उम्मीदवार चाहते हैं जो गरीबों के लिए काम करे.
"हम हाशिए पर पड़े लोग हैं. एक ही जैसे चरित्र वाले नेता हर बार चुनावों के पहले कई वादे करते हैं और चुनाव के बाद हमें भूल जाते हैं. लोग हमें मोदी और उनकी योजनाओं के बारे में बहुत कुछ बताते हैं. कुछ लोग हमसे दीदी (ममता बनर्जी) की भी बात करते हैं. लेकिन मोदी बेहतर लगते हैं. मेरा भाजपा से कोई ख़ास लगाव नहीं है लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मुझे मोदी पसंद हैं," दास ने कहा.
आम्ता के वर्तमान विधायक, कांग्रेस के असित मित्रा एक बार फिर मैदान में हैं.
हिन्दू संहति के कार्यकर्ताओं का ध्येय है मोदी के 'सबका साथ, सबका विकास' का प्रचार. लेकिन यदि यह उसी संगठन द्वारा कहा जाए जो एक 'हिन्दू बंगाल' स्थापित करना चाहता हो तो क्या यह स्वीकार कर पाना मुमकिन है?
"हमें अशफ़ाक़उल्ला खान जैसे मुस्लिमों से कोई समस्या नहीं जो भारत की आज़ादी के लिए लड़े. हमारी समस्या उनसे है जो भारत को तोड़ना चाहते हैं," बंटी ने कहा.
यह पूछने पर कि क्या उनके कोई मुस्लिम मित्र हैं, बंटी कहते हैं, "मैं उनसे बात करता हूं लेकिन उनसे दोस्ती करना असंभव है. वह दोस्त नहीं हो सकते."
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