चार युवक जिन्हें दिसंबर 2019 में कथित तौर पर गोली मार दी गई थी, उनके परिवारों की न्याय मिलने की सारी उम्मीदें आने वाले चुनावों से जुड़ी हैं.
ईश्वर नायक: "भाजपा को दिए समर्थन का पछतावा है"
चयगांव से करीब 150 किलोमीटर दूर उदलगुड़ी जिले के मजूली चाय बागान में ईश्वर नायक का परिवार रहता है. ईश्वर के पिता निराकर नायक घर में ईश्वर के भाइयों गौतम और परमेश्वर के साथ रहते हैं. इनकी मां मालती नायक की 2018 में कैंसर की बीमारी से मृत्यु हो गई थी.
24 वर्षीय ईश्वर नायक, दिसंबर 2019 में गुवाहाटी में एक कमरा साझे में किराए पर लेकर रह रहे थे और एक कपड़े की दुकान में काम करते थे. 12 दिसंबर को शाम के करीब 6:00 बजे वह अपने दोस्त के साथ कुछ काम के लिए निकले हुए थे जब उनका सामना शहर के डाउनटाउन इलाके में सीएए विरोधी प्रदर्शन से हुआ. उनके दोस्त का कहना है कि पुलिस "भीड़ का पीछा करते हुए आई" और ईश्वर को गोली लग गई. 2 दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई.
ईश्वर के परिवार ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि 2016 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा को वोट दिया था इस उम्मीद से कि कुछ परिवर्तन आएगा. अब परमेश्वर कहते हैं कि जब भी उन्हें भाजपा का चुनाव चिन्ह कमल दिखाई देता है तो उनका पारा आसमान पर पहुंच जाता है.
कहते हैं, "जब भी मुझे भाजपा का चुनाव चिन्ह दिखाई देता है तो मेरे भाई का चेहरा मेरी आंखों के आगे आ जाता है. मुझे भाजपा को पहले दिए गए समर्थन का पछतावा है."
ईश्वर के पिता और भाइयों को उनका मृत्यु प्रमाण पत्र जनवरी 2020 में मिला. उसके अगले महीने परमेश्वर ने गुवाहाटी में डेप्युटी कमिश्नर के दफ्तर में अपना बयान रिकॉर्ड किया. तब से यह मामला आगे नहीं बढ़ा है.
वे बताते हैं, "कोविड से पैदा हुए हालातों ने हमारी योजना गड़बड़ कर दी. हम चुनाव खत्म होने के बाद एफआईआर दर्ज करवाएंगे."
इस दौरान परमेश्वर गौतम और निराकार असम में नई सरकार का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. परमेश्वर कहते हैं कि परिवार उदलगुड़ी विधानसभा क्षेत्र में रिहान डाइमरी का समर्थन करेगा, जो कांग्रेस गठबंधन के दल बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट के एक वरिष्ठ नेता हैं. उनके अनुसार, ईश्वर की मृत्यु के बाद परिवार को नकद मुआवजा मिला और डाइमरी में उनके घर से 50 मीटर दूर गोधूलि बाजार में एक स्मारक बनवाने में भी उनकी मदद की.
लेकिन परमेश्वर भाजपा से केवल सीएए या अपने भाई की मृत्यु की वजह से ही गुस्सा नहीं हैं. वह कहते हैं कि पार्टी की "विभाजक" राजनीति भी एक बड़ा कारण है. "उन्होंने लोगों को संप्रदायिक तौर पर आपस में बांटने की कोशिश की है. सीएए इसका स्पष्ट उदाहरण है."
न्यूजलॉन्ड्री ने जितने भी परिवारों से बात की, उन्होंने कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों से मिली सहायता और सरकार के ठंडे रवैये का उल्लेख किया, इन दलों में दोनों नए क्षेत्रीय दल भी शामिल हैं. विपक्ष के गठबंधन के प्रचार का असर दिखाई देता है. चुनाव से पूर्व किए जाने वाले सर्वे यह दिखाते हैं कि विपक्ष की संभावित सीटें धीरे-धीरे बढ़ रही हैं, और भाजपा गठबंधन से सीटों का अंतर कम होता जा रहा है.
और यह अनुमान तब के हैं जब बोडो पीपल्स फ्रंट विपक्ष के गठबंधन का हिस्सा नहीं बना था. वह दल जो करीब 10 विधानसभा क्षेत्रों में परिणाम अपने गठबंधन की तरफ झुका सकता है.
अब्दुल अलीम: "इंसानियत नहीं बची है"
निचले असम के बारपेटा जिले के होलोंगबाड़ी गांव में लाल मामूद अली रहते हैं. जिनका 23 वर्षीय बेटा अब्दुल अलीम, 12 दिसंबर 2019 को मारा गया जब कथित तौर पर पुलिस ने गुवाहाटी के लालुंगगांव में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चला दी थीं.
मामूद ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, "मुझे 100 फ़ीसदी भरोसा है कि अगर एक गठबंधन की सरकार कांग्रेस के नेतृत्व में सत्ता में आती है तो मामला फास्ट ट्रैक हो जाएगा और न्याय तेजी से मिलेगा. शहीदों को मर्यादा मिलेगी, सम्मान मिलेगा."
अपनी मृत्यु से पहले अब्दुल गुवाहाटी में एक दवा और हार्डवेयर की दुकान में काम करते थे. 12 दिसंबर को सुबह 9:30 बजे उन्होंने अपने मालिक के कहने के अनुसार दुकान बंद कर दी क्योंकि पूरे शहर में कर्फ्यू लगाया जा रहा था. उस दिन सुबह उन्होंने अपने पिता से बात की थी और बताया था कि वह अगले दिन गांव आने की योजना बना रहे हैं.
अब्दुल करीब 1 किलोमीटर दूर अपने घर पैदल जा रहे थे जब उन्होंने कटाकीपारा में प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा हुजूम देखा.
सुरक्षा बल तेजी से भीड़ पर टूट पड़े और गोलियां चलानी शुरू कर दीं. एक गोली कथित तौर पर अब्दुल के सर में आकर लगी. चश्मदीदों ने मामूद को बताया कि संभवतः अब्दुल वहीं पर गुजर गया था, लेकिन उसे गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज ले जाया गया जहां पर तीन दिन बाद उसे मृत घोषित कर दिया गया था.
अब्दुल की मृत्यु के बाद, मामूद के भाई एकब्बर ने 24 दिसंबर को परिवार की तरफ से गुवाहाटी के गरचुक पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई, जिसके थाना क्षेत्र में यह कथित गोलीबारी हुई थी. मामूद बताते हैं कि मृत्यु प्रमाण पत्र हासिल करना एक बहुत मुश्किल काम था. जब एक बार दर्ज हो गया तो उन्हें गुवाहाटी में एडिशनल डिप्टी कमिश्नर के द्वारा एक बार बयान दर्ज करने के लिए बुलाया गया. यह एक साल पहले की बात है और तब से इस मामले में उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली है.
मामूद यह दलील देते हैं कि, यह मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और उनके शक्तिशाली सहकर्मी हेमंत बिसवा शर्मा की बदमाशी की वजह से हुआ है.
वे कहते हैं, "भाजपा सरकार को सत्ता का नशा चढ़ गया है. उन्होंने मामले को रोक दिया है. सरकार बेशर्म है और उसमें कोई इंसानियत नहीं बची है."
गरचुक पुलिस थाने से अब्दुल की मौत के जांच अधिकारी अभिजीत गोगोई ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि एक प्राथमिक रिपोर्ट, एक साल पहले ही एडिशनल पुलिस कमिश्नर हिमांग्शु दास के पास दाखिल कर दी गई थी, जो अब इस मामले के जांच अधिकारी हैं. तब से ही मामला पुलिस क्राइम ब्रांच के डिप्टी कमिश्नर के अंतर्गत है और जांच चल रही है. दास ने मामले पर कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया और देरी की भी कोई वजह नहीं बताई.
मामूद बताते हैं कि इस दौरान उन्हें कांग्रेस और उनके साथ गठबंधन में शामिल एआईयूडीएफ से आर्थिक सहायता मिली. होलोंगबाड़ी गांव भाबानीपुर चुनाव क्षेत्र में पड़ता है जहां के विधायक अबुल कलाम आजाद एआईयूडीएफ से हैं.
मामूद के लिए अब मिशन यह है कि जो सीएए के खिलाफ है जीत उसी की हो, हालांकि उन्होंने यह नहीं स्पष्ट किया कि वह वोट किसे देंगे.
वह कहते हैं, "सीएए के जरिए भाजपा सरकार और बांग्लादेशियों को असम में, जो पहले से ही इस बोझ से दबा है, लाना चाहती है. हम इसका समर्थन कभी नहीं कर सकते."
मामूद ने यह भी बताया कि वह अब गैर भाजपा सरकार लाने के लिए प्रचार कर रहे हैं और उन्होंने तय किया है कि अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से करीब 200 वोट इसके लिए डलवाएंगे. "सीएए और भाजपा के खिलाफ लड़ाई में यह मेरा योगदान होगा."
आशा भरी आवाज में वे कहते हैं, "सीएए विरोधी शहीदों की मृत्यु व्यर्थ नहीं जाएगी. जनता घमंडी भाजपा सरकार को एक करारा जवाब देगी."