लगभग 80 प्रतिशत ग्रामीण घरेलू पानी की जरूरत भू-जल से पूरी होती है और भारत के शहरी क्षेत्रों में पानी की 50 प्रतिशत निर्भरता भूमिगत जल पर है.
भूजल की गुणवत्ता मुख्य रूप से लवणता, क्लोराइड, फ्लोराइड, नाइट्रेट, आयरन और आर्सेनिक से संबंधित हैं. एनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी लेटर्स नाम के जर्नल में प्रकाशित साल 2018 के अध्ययन से पता चला है कि देश के 16 राज्यों का एक्विफर यूरेनियम से दूषित है और कई अध्ययनों ने पेयजल में इसकी मौजूदगी को चिरकालिक किडनी रोग से जोड़ा है. महत्वपूर्ण बात ये है कि ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड के पेयजल विनिर्देशों में जिन प्रदूषक तत्वों पर निगरानी रखी जाती है, उनमें यूरेनियम नहीं है. ये अध्ययन अमेरिका के ड्यूक विश्वविद्यालय में निकोलस स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट में जियोकेमिस्ट्री और पानी की गुणवत्ता के प्रोफेसर अवनर वेंगोश के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम ने किया था.
अध्ययन में कहा गया है कि यूरेनियम का मुख्य स्रोत प्राकृतिक है, लेकिन सिंचाई के लिए भारी पैमाने पर भू-जल की निकासी से भू-जल स्तर में गिरावट और नाइट्रोजन उर्वरकों के बेतहाशा इस्तेमाल से फैलने वाला नाइट्राइट प्रदूषण इस समस्या को संभवत: और बढ़ा रहा है. वंगोश ने एक बयान में कहा, “राजस्थान में हमारे द्वारा परीक्षण किए गए कुओं में से एक तिहाई कुएं के पानी में यूरेनियम का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सुरक्षित पेयजल मानकों से अधिक है.” डब्ल्यूएचओ ने यूरेनियम का सुरक्षित पेयजल मानक 30 पीपीबी निर्धारित किया है.
विज्ञानियों ने राजस्थान, गुजरात और 14 अन्य राज्यों में भूजल जियो केमिस्ट्री को लेकर पूर्व में हुए 68 अध्ययनों के आंकड़ों का विश्लेषण किया. इस विश्लेषण में उन्होंने पाया कि उत्तरी राज्यों जैसे पंजाब व हरियाणा के 26 जिले समेत दक्षिणी और पूर्वी राज्यों के कई जिलों के एक्विफरों में ये समस्या व्यापक रूप में पाई गई.
समुद्री जल की घुसपैठ, औद्योगिक गंदगी और अव्यवहार्य कृषि पद्धतियों के कारण भू-जल भारी स्तर पर दूषित हो रहा है. भू-जल दूषित हो जाए तो क्या इसे साफ किया जा सकता है? इस सवाल का जवाब मुश्किल है. उदाहरण के लिए, अनुसंधान से पता चला है कि वर्षा जल को भू-जल में पहुंचा कर फ्लोराइड, आर्सेनिक, लवणता/कठोरता के स्तर को कम किया जा सकता है. यहां मुख्य मुद्दा प्रभावी रिचार्ज स्कीम या नीतियों को युद्धस्तर पर लागू करना है. केंद्रीय भूमि जल बोर्ड की तरफ से साल 2013 में “भूजल को कृत्रिम तरीके से रिचार्ज करने के लिए एक मास्टर प्लान” बनाया गया था. इस योजना के अनुसार, ग्रामीण और शहरी इलाकों में लगभग 85,565 मिलियन घनमीटर क्षेत्र में अगले 10 वर्षों में चरणबद्ध तरीके से भू-जल को रिचार्ज किया जाएगा.
औद्योगिक गंदगी में जहरीले तत्वों की अधिकता के कारण प्रदूषित पानी को साफ करने वाली प्रभावी तकनीकी नहीं है. राजस्थान में एक सल्फूरिक एसिड उत्पादन इकाई ने 22 गांवों के पेयजल स्रोतों को बेकार कर दिया. साल 2006 में प्रकाशित दिनेश कुमार और तुषार शाह के एक लेख में बताया गया है कि भारतीय संदर्भ में एक्विफर को साफ करना आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है. लेखकों ने अपने लेख में राजस्थान के एक्विफर की सफाई के लिए 40 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान लगाया था.