हरियाणा विधानसभा में किसान हित की नीतियों पर ‘राजनीतिक दुरभिसंधियां ‘स्पष्ट तौर पर भारी रहीं! भाजपा-जजपा गठबन्धन सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव सदन में नामंजूर हुआ.
तीन नये कृषि कानूनों के आने के बाद भाजपा और जजपा के कई विधायकों ने प्रदेश नेतृत्व को इन कानूनों से होने वाले प्रभावों को लेकर अपनी चिंताएं जतायी थीं. कुछ विधायकों व नेताओं ने किसानों के पक्ष का समर्थन किया और सार्वजनिक मंच से किसानों के साथ खड़े होने के दावे भी किये थे.
किसानों के साथ खड़े होने की पहल महम के निर्दलीय विधायक बलराज कुन्डू ने की, दादरी से निर्दलीय विधायक सोमवीर सांगवान ने दिसंबर 2020 में ही किसानों के मुद्दों पर मनोहर लाल खट्टर सरकार के रुख के कारण समर्थन वापिस ले लिया था.
नारनौंद से जजपा विधायक व पार्टी के उपाध्यक्ष राम कुमार गौतम ने भी केन्द्र द्वारा पारित कृषि कानूनों का विरोध मुखर तौर पर किया था. उन्होंने कहा था, "किसानों का जो आंदोलन चल रहा है उस बारे में मेरा यह कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समय की नजाकत को देखते हुए फौरन तीनों कानून रद्द कर देने चाहिए. जो आज दिल्ली बॉर्डर पर किसान जमा हैं, वह सभी धर्मों के सभी जातियों के, सारे देश के लोग वहां पर हैं. उनकी भावना के खिलाफ कानून बनाए रखना यह बहुत बड़ी बेवकूफी होगी और इसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा, जिसके परिणाम बहुत गंभीर होंगे. किसान कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं, वह इस देश को चलाता है. देश की सीमाओं की रक्षा तक किसान करता है. किसान को नाराज करना बहुत बड़ी गलती होगी. हरियाणा सरकार के बारे में मैं यह कहना चाहता हूं कि स्पेशल सेशन बुलाकर तीनों कानून को रद्द करने के लिए रेगुलेशन भेजना चाहिए हरियाणा सरकार की तरफ से."
लेकिन रामकुमार गौतम ने अविश्वास प्रस्ताव पर सरकार के पक्ष में ही अपना समर्थन दे दिया. टोहाना से जननायक जनता पार्टी के विधायक देविन्द्र बबली ने तीन दिन पहले ही किसान आन्दोलन के पक्ष में बोलते हुए सरकार पर ही सवाल उठाये थे, लेकिन आखिरकार सरकार को समर्थन दे दिया.
खाप पंचायतों द्वारा पूरे प्रदेश में भाजपा के बहिष्कार का ऐलान पहले ही हो चुका है. लेकिन भाजपा सरकार इस किसान आन्दोलन को कांग्रेस द्वारा प्रायोजित बताने पर तुली हुई है.
हरियाणा प्रदेश में राजनीति पारम्परिक तौर पर किसानों व ग्रामीण मुद्दों पर ही केन्द्रित रही है जिसमें भाजपा 2014 मे सेंध लगाने में सफल रही और प्रदेश की राजनीति को जाट और गैर-जाट के ध्रुवों मे बांट दिया. इस अविश्वास प्रस्ताव से किसान आन्दोलन या कांग्रेस को क्या मिलेगा ये तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन कानूनों के बारे में सरकार की स्थिति और नीति और भी स्पष्ट जरूर हो गयी है.
तीन नये कृषि कानूनों के आने के बाद भाजपा और जजपा के कई विधायकों ने प्रदेश नेतृत्व को इन कानूनों से होने वाले प्रभावों को लेकर अपनी चिंताएं जतायी थीं. कुछ विधायकों व नेताओं ने किसानों के पक्ष का समर्थन किया और सार्वजनिक मंच से किसानों के साथ खड़े होने के दावे भी किये थे.
किसानों के साथ खड़े होने की पहल महम के निर्दलीय विधायक बलराज कुन्डू ने की, दादरी से निर्दलीय विधायक सोमवीर सांगवान ने दिसंबर 2020 में ही किसानों के मुद्दों पर मनोहर लाल खट्टर सरकार के रुख के कारण समर्थन वापिस ले लिया था.
नारनौंद से जजपा विधायक व पार्टी के उपाध्यक्ष राम कुमार गौतम ने भी केन्द्र द्वारा पारित कृषि कानूनों का विरोध मुखर तौर पर किया था. उन्होंने कहा था, "किसानों का जो आंदोलन चल रहा है उस बारे में मेरा यह कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समय की नजाकत को देखते हुए फौरन तीनों कानून रद्द कर देने चाहिए. जो आज दिल्ली बॉर्डर पर किसान जमा हैं, वह सभी धर्मों के सभी जातियों के, सारे देश के लोग वहां पर हैं. उनकी भावना के खिलाफ कानून बनाए रखना यह बहुत बड़ी बेवकूफी होगी और इसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा, जिसके परिणाम बहुत गंभीर होंगे. किसान कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं, वह इस देश को चलाता है. देश की सीमाओं की रक्षा तक किसान करता है. किसान को नाराज करना बहुत बड़ी गलती होगी. हरियाणा सरकार के बारे में मैं यह कहना चाहता हूं कि स्पेशल सेशन बुलाकर तीनों कानून को रद्द करने के लिए रेगुलेशन भेजना चाहिए हरियाणा सरकार की तरफ से."
लेकिन रामकुमार गौतम ने अविश्वास प्रस्ताव पर सरकार के पक्ष में ही अपना समर्थन दे दिया. टोहाना से जननायक जनता पार्टी के विधायक देविन्द्र बबली ने तीन दिन पहले ही किसान आन्दोलन के पक्ष में बोलते हुए सरकार पर ही सवाल उठाये थे, लेकिन आखिरकार सरकार को समर्थन दे दिया.
खाप पंचायतों द्वारा पूरे प्रदेश में भाजपा के बहिष्कार का ऐलान पहले ही हो चुका है. लेकिन भाजपा सरकार इस किसान आन्दोलन को कांग्रेस द्वारा प्रायोजित बताने पर तुली हुई है.
हरियाणा प्रदेश में राजनीति पारम्परिक तौर पर किसानों व ग्रामीण मुद्दों पर ही केन्द्रित रही है जिसमें भाजपा 2014 मे सेंध लगाने में सफल रही और प्रदेश की राजनीति को जाट और गैर-जाट के ध्रुवों मे बांट दिया. इस अविश्वास प्रस्ताव से किसान आन्दोलन या कांग्रेस को क्या मिलेगा ये तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन कानूनों के बारे में सरकार की स्थिति और नीति और भी स्पष्ट जरूर हो गयी है.
General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?