तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन के सौ दिन पूरे हो गए हैं. सौ दिन बाद गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन की स्थिति जानने की हमने कोशिश की.
‘खेती बाद में पहले धरना’
बुलंदशहर के रहने वाले पवन कुमार 15 दिन रहने के लिए अपने गांव के जत्थे के साथ रविवार को ही गाजीपुर पहुंचे थे. इस जत्थे में उनके गांव के 25 लोग आए हैं, जब ये लोग जाएंगे तो और 25 लोग यहां आ जाएंगे. 42 वर्षीय कुमार का बायां हाथ तीन साल की उम्र में ही कट गया था. वे तीसरी बार यहां आए हैं.
न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कुमार कहते हैं, ‘‘मैं आज ही घर से आया हूं. मैंने एक एकड़ में आलू की खेती की है जिसे निकालने का काम शुरू होना था. अपने छोटे भाई और बेटे को बताकर आ गया कि आलू निकालकर क्या करना है. हमारे लिए खेती से बढ़कर आंदोलन ज़रूरी है. अगर हमारा आंदोलन सफल नहीं हुआ तो खेती हमारी खत्म है. खेती बाद में पहले धरना ज़रूरी है. जब तक हमारी मांगे पूरी नहीं होती हमारा आंदोलन ज़ारी रहेगा.’’
रविवार को ही संभल जिले के बंजपुरी की रहने वाली अमरावती अपने पति सतवीर सिंह यादव और दो बच्चों के साथ गाजीपुर बॉर्डर पहुंची थीं. आठ एकड़ में खेती करने वाली अमरावती इससे पहले भी यहां आ चुकी हैं. इस बार वो होली तक रहने के लिए आई हैं.
न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए अमरावती कहती हैं, ‘‘हम तो यहां पहले भी आए थे. खेती का काम था तो कुछ दिनों के लिए वापस चले गए थे लेकिन आज दोपहर एक बजे ही वापस आए हैं. इस बार तो होली तक इधर ही रहेंगे. इस बार बेटा और बेटी को भी लेकर आई हूं. पिछली बार लेकर नहीं आई थी. सरकार जब तक ये कानून ख़त्म नहीं करती हम इधर आते रहेंगे. जीत हमारी होगी. किसानों की जीत होगी.’’
अमरावती को बस इतना पता है कि ये तीनों कानून किसानों के खिलाफ हैं. क्यों आंदोलन कर रही हैं ये समझाने के लिए वो अपने पति सतवीर को बुलाती हैं. सतवीर कहते हैं, ‘‘सरकार बिन मांग के ये कानून हमें दी है. जब हम लेने से मना कर रहे हैं तो वापस नहीं ले रही है. इसी से समझिए की यह किसके फायदे के लिए हैं. अगर मैं आपको कुछ दूं ताकि आपका भला हो सके और आप न लो तो मुझे वापस लेने में क्या नुकसान होगा? नहीं होगा न. बात ये है कि कानून हमारे लिए आया ही नहीं है. कानून अडानी-अंबानी जैसों के लिए आया है, लेकिन हम भी बिना आपस कराये जाने वाले नहीं. चाहे छह महीना चले या छह साल. इधर ही बैठे रहेंगे.’’
सतवीर बताते हैं, ‘‘हम लोग होली तक यहीं रहने वाले हैं. होली के दिन यहां गांव से काफी संख्या में लोग आ रहे हैं. होली के दिन जो कार्यक्रम हम गांव में करते हैं वो इस बार दिल्ली में ही होगा.’’
पीएम मोदी से अपील
किसान नेताओं और सरकार के मंत्रियों के बीच 22 जनवरी के बाद कोई बातचीत नहीं हुई, अभी होगी इसकी कोई संभावना भी नजर नहीं आ रही है. इससे पहले 11 दौर की बातचीत बेनतीजा रही थी. गाजीपुर में हमने कई किसानों से पूछा कि आंदोलन के सौ दिन पूरे हो गए हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कुछ कहना चाहेंगे?
इस सवाल के जवाब में आर्मी के जवान रहते हुए साल 1965 का युद्ध लड़ने वाले उत्तराखंड के देसा सिंह कहते हैं, ‘‘मोदी जी को सोचना चाहिए कि सौ दिन से किसान सड़कों पर हैं. मेरी उम्र 75 साल है. पहले देश के लिए युद्ध लड़ा. 1965 की लड़ाई में श्रीनगर में था. आज हमें आतंकवादी, नक्सली कहा जा रहा है. पहले तो ऐसा जो बोले उस पर सरकार कार्रवाई करे. साथ ही सरकार बातचीत करके किसानों की परेशानी दूर करे और कानून वापस ले. सरकार का काम हठ करना नहीं है.’’
इसी सवाल के जवाब में चौधरी तेजपाल सिंह कहते हैं, ‘‘मोदी जी यहीं आए थे (उन्हें जगह का नाम याद नहीं आता). कह रहे थे किसानों के लिए ये करूंगा, वो करूंगा. आपका सांसद आपके गांव नहीं गया हो तो उसे माफ़ कीजिएगा और मेरे लिए वोट दीजिएगा. जब हमने उन्हें जीताकर भेज दिया तो आज हमें ही घुटने के बल बैठा दिया है. ये शर्म की बात है. अडानी-अंबानी के लिए किसानों को सड़क पर छोड़ दिया है.’’
पहले ही दिन से गाजीपुर बॉर्डर पर लंगर लगाने वाले उत्तराखंड के जिला उधमसिंह नगर के जसपुर निवासी 26 वर्षीय युवक करणदीप कहते हैं, ‘‘अगर सरकार नहीं मान रही तो उसे समझना चाहिए कि गेहूं की कटाई के बाद दो महीने तक किसानों के पास खास काम नहीं होता. वो जून-जुलाई का महीना होता है. सरकार को लग रहा होगा कि गर्मी के कारण किसान नहीं आएंगे तो वो भूल है. हमें गर्मी और ठंडी सहने की आदत है. किसान यहां लाखों की संख्या में आएंगे और सरकार को सुनना होगा.’’
जारी किसान आंदोलन के बीच तीन कृषि कानूनों को फिर से समझने की एक कोशिश
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बुलंदशहर के रहने वाले पवन कुमार 15 दिन रहने के लिए अपने गांव के जत्थे के साथ रविवार को ही गाजीपुर पहुंचे थे. इस जत्थे में उनके गांव के 25 लोग आए हैं, जब ये लोग जाएंगे तो और 25 लोग यहां आ जाएंगे. 42 वर्षीय कुमार का बायां हाथ तीन साल की उम्र में ही कट गया था. वे तीसरी बार यहां आए हैं.
न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कुमार कहते हैं, ‘‘मैं आज ही घर से आया हूं. मैंने एक एकड़ में आलू की खेती की है जिसे निकालने का काम शुरू होना था. अपने छोटे भाई और बेटे को बताकर आ गया कि आलू निकालकर क्या करना है. हमारे लिए खेती से बढ़कर आंदोलन ज़रूरी है. अगर हमारा आंदोलन सफल नहीं हुआ तो खेती हमारी खत्म है. खेती बाद में पहले धरना ज़रूरी है. जब तक हमारी मांगे पूरी नहीं होती हमारा आंदोलन ज़ारी रहेगा.’’
रविवार को ही संभल जिले के बंजपुरी की रहने वाली अमरावती अपने पति सतवीर सिंह यादव और दो बच्चों के साथ गाजीपुर बॉर्डर पहुंची थीं. आठ एकड़ में खेती करने वाली अमरावती इससे पहले भी यहां आ चुकी हैं. इस बार वो होली तक रहने के लिए आई हैं.
न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए अमरावती कहती हैं, ‘‘हम तो यहां पहले भी आए थे. खेती का काम था तो कुछ दिनों के लिए वापस चले गए थे लेकिन आज दोपहर एक बजे ही वापस आए हैं. इस बार तो होली तक इधर ही रहेंगे. इस बार बेटा और बेटी को भी लेकर आई हूं. पिछली बार लेकर नहीं आई थी. सरकार जब तक ये कानून ख़त्म नहीं करती हम इधर आते रहेंगे. जीत हमारी होगी. किसानों की जीत होगी.’’
अमरावती को बस इतना पता है कि ये तीनों कानून किसानों के खिलाफ हैं. क्यों आंदोलन कर रही हैं ये समझाने के लिए वो अपने पति सतवीर को बुलाती हैं. सतवीर कहते हैं, ‘‘सरकार बिन मांग के ये कानून हमें दी है. जब हम लेने से मना कर रहे हैं तो वापस नहीं ले रही है. इसी से समझिए की यह किसके फायदे के लिए हैं. अगर मैं आपको कुछ दूं ताकि आपका भला हो सके और आप न लो तो मुझे वापस लेने में क्या नुकसान होगा? नहीं होगा न. बात ये है कि कानून हमारे लिए आया ही नहीं है. कानून अडानी-अंबानी जैसों के लिए आया है, लेकिन हम भी बिना आपस कराये जाने वाले नहीं. चाहे छह महीना चले या छह साल. इधर ही बैठे रहेंगे.’’
सतवीर बताते हैं, ‘‘हम लोग होली तक यहीं रहने वाले हैं. होली के दिन यहां गांव से काफी संख्या में लोग आ रहे हैं. होली के दिन जो कार्यक्रम हम गांव में करते हैं वो इस बार दिल्ली में ही होगा.’’
पीएम मोदी से अपील
किसान नेताओं और सरकार के मंत्रियों के बीच 22 जनवरी के बाद कोई बातचीत नहीं हुई, अभी होगी इसकी कोई संभावना भी नजर नहीं आ रही है. इससे पहले 11 दौर की बातचीत बेनतीजा रही थी. गाजीपुर में हमने कई किसानों से पूछा कि आंदोलन के सौ दिन पूरे हो गए हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कुछ कहना चाहेंगे?
इस सवाल के जवाब में आर्मी के जवान रहते हुए साल 1965 का युद्ध लड़ने वाले उत्तराखंड के देसा सिंह कहते हैं, ‘‘मोदी जी को सोचना चाहिए कि सौ दिन से किसान सड़कों पर हैं. मेरी उम्र 75 साल है. पहले देश के लिए युद्ध लड़ा. 1965 की लड़ाई में श्रीनगर में था. आज हमें आतंकवादी, नक्सली कहा जा रहा है. पहले तो ऐसा जो बोले उस पर सरकार कार्रवाई करे. साथ ही सरकार बातचीत करके किसानों की परेशानी दूर करे और कानून वापस ले. सरकार का काम हठ करना नहीं है.’’
इसी सवाल के जवाब में चौधरी तेजपाल सिंह कहते हैं, ‘‘मोदी जी यहीं आए थे (उन्हें जगह का नाम याद नहीं आता). कह रहे थे किसानों के लिए ये करूंगा, वो करूंगा. आपका सांसद आपके गांव नहीं गया हो तो उसे माफ़ कीजिएगा और मेरे लिए वोट दीजिएगा. जब हमने उन्हें जीताकर भेज दिया तो आज हमें ही घुटने के बल बैठा दिया है. ये शर्म की बात है. अडानी-अंबानी के लिए किसानों को सड़क पर छोड़ दिया है.’’
पहले ही दिन से गाजीपुर बॉर्डर पर लंगर लगाने वाले उत्तराखंड के जिला उधमसिंह नगर के जसपुर निवासी 26 वर्षीय युवक करणदीप कहते हैं, ‘‘अगर सरकार नहीं मान रही तो उसे समझना चाहिए कि गेहूं की कटाई के बाद दो महीने तक किसानों के पास खास काम नहीं होता. वो जून-जुलाई का महीना होता है. सरकार को लग रहा होगा कि गर्मी के कारण किसान नहीं आएंगे तो वो भूल है. हमें गर्मी और ठंडी सहने की आदत है. किसान यहां लाखों की संख्या में आएंगे और सरकार को सुनना होगा.’’
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