इनमें सबसे ज्यादा परियोजनाएं हरियाणा से सम्बन्ध रखती हैं. जहां 259 परियोजनाओं में पर्यावरण मंजूरी सम्बन्धी शर्तों की अवहेलना की गई है.
इसी तरह झारखण्ड में 190, पंजाब में 169, हिमाचल प्रदेश में 152, असम में 109, राजस्थान में 91, उत्तर प्रदेश में 80, तेलंगाना में 72, बिहार में 67 परियोजनाएं, मेघालय में 36 और दिल्ली की 27 परियोजनाएं शामिल हैं. वहीं नियमों को ताक पर रखने वालों में कर्नाटक में 25, पश्चिम बंगाल की 19, ओडिशा की 14, छत्तीसगढ़ की 13, चंडीगढ़ की 11 और जम्मू कश्मीर की 9 परियोजनाएं शामिल हैं. जबकि त्रिपुरा में 8, आंध्रप्रदेश की 6, केरल की 5, सिक्किम, मणिपुर और मध्यप्रदेश में चार-चार, तमिलनाडु में तीन, गोवा और अरुणाचलप्रदेश में दो-दो और नागालैंड और गुजरात दोनों राज्यों की एक-एक परियोजनाएं शामिल हैं.
गौरतलब है कि पर्यावरण मंजूरी के मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 31 जुलाई, 2020 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के लिए एक आदेश जारी किया था. जिसमें मंत्रालय को पर्यावरण मंजूरी के मामले में प्रभावी कदम उठाने की सलाह दी थी.
कोर्ट ने कहा था कि किसी भी प्रोजेक्ट के एसेस्समेंट के आधार पर पर्यावरण मंजूरी के लिए केवल शर्तें तय करना ही काफी नहीं है. जब तक की उसके पूरा हो जाने तक उसकी निगरानी नहीं की जाती और जब तक उसका उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता तब तक मंत्रालय की जिम्मेदारी बनी रहती है.
इसी तरह झारखण्ड में 190, पंजाब में 169, हिमाचल प्रदेश में 152, असम में 109, राजस्थान में 91, उत्तर प्रदेश में 80, तेलंगाना में 72, बिहार में 67 परियोजनाएं, मेघालय में 36 और दिल्ली की 27 परियोजनाएं शामिल हैं. वहीं नियमों को ताक पर रखने वालों में कर्नाटक में 25, पश्चिम बंगाल की 19, ओडिशा की 14, छत्तीसगढ़ की 13, चंडीगढ़ की 11 और जम्मू कश्मीर की 9 परियोजनाएं शामिल हैं. जबकि त्रिपुरा में 8, आंध्रप्रदेश की 6, केरल की 5, सिक्किम, मणिपुर और मध्यप्रदेश में चार-चार, तमिलनाडु में तीन, गोवा और अरुणाचलप्रदेश में दो-दो और नागालैंड और गुजरात दोनों राज्यों की एक-एक परियोजनाएं शामिल हैं.
गौरतलब है कि पर्यावरण मंजूरी के मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 31 जुलाई, 2020 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के लिए एक आदेश जारी किया था. जिसमें मंत्रालय को पर्यावरण मंजूरी के मामले में प्रभावी कदम उठाने की सलाह दी थी.
कोर्ट ने कहा था कि किसी भी प्रोजेक्ट के एसेस्समेंट के आधार पर पर्यावरण मंजूरी के लिए केवल शर्तें तय करना ही काफी नहीं है. जब तक की उसके पूरा हो जाने तक उसकी निगरानी नहीं की जाती और जब तक उसका उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता तब तक मंत्रालय की जिम्मेदारी बनी रहती है.