आप अखबार पढ़ते रहिए, उधर डिजिटल हो चुकी आपकी खसरा-खतौनी लुटने वाली है

भाजपा शासित राज्‍यों की सरकारें खसरा खतौनी घरौनी के डिजिटलीकरण और 16 अंकों की आईडी के माध्‍यम से जनता में चारा फेंक चुकी हैं.

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नये पट्टेदारी कानून पर आने से पहले इसकी पृष्‍ठभूमि समझ लेते हैं. नरेंद्र मोदी ने सत्‍ता में आने के बाद योजना आयोग को भंग करके 1 जनवरी 2015 को नीति आयोग बनाया था. इस नीति आयोग के शुरुआती कामों में एक कमेटी का गठन शामिल था. कृषि लागत और मूल्‍य आयोग के पूर्व प्रमुख टी. हक़ की अध्‍यक्षता में बनी इस कमेटी का काम जमीन के पट्टों को ‘कंक्‍लूसिव’ यानी अंतिम रूप से दिए जाने का एक प्रस्‍ताव तैयार करना था. इसी कमेटी की रिपोर्ट पर नवंबर 2019 में नीति आयोग के एक कार्यसमूह ने ‘’मॉडल कंक्‍लूसिव लैंड टाइटलिंग कानून’’ का एक मसौदा बनाया.

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यह मसौदा सभी राज्‍य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को अनुमोदन के लिए भेजा गया. हां या ना करने की अंतिम तारीख रखी गयी सितंबर 2020, जिसमें राज्‍यों को लिखा गया कि यदि वे अपनी राय नहीं देते हैं तो इसे उनकी स्‍वीकृति मान लिया जाएगा.

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भारतीय जनता पार्टी को ‘एक’ से बहुत लगाव है. एक राष्‍ट्र, एक टैक्‍स, एक श्‍मशान, एक कुआं, एक नेता, एक चुनाव जैसे जुमले हम नीतियों में परिवर्तित होते देखते आ रहे हैं सात साल से. यह नया लैंड टाइटलिंग कानून का मसौदा भी एक राष्‍ट्र, एक रजिस्‍ट्री के नारे के अंतर्गत लाया गया. जाहिर है, यह नारा अभी जनता के बीच नहीं फेंका गया है लेकिन भाजपा शासित राज्‍यों की सरकारें खसरा खतौनी घरौनी के डिजिटलीकरण और 16 अंकों की आईडी के माध्‍यम से जनता में चारा फेंक चुकी हैं. जनता के पास इसे खाने के अलावा कोई चारा नहीं है. और बुरी खबर यह है कि जमीन जायदाद का मसला राज्‍य सूची का होते हुए भी केंद्र द्वारा तय किया जा रहा है और जल्‍द ही नया कानून आने वाला है. नए कानून में बस राज्‍य का नाम खानापूर्ति के लिए भरा जाना है. भरोसा न हो तो राज्‍यों को भेजे गए ड्राफ्ट का पहला पन्‍ना देखिए:

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यह नया कानून क्‍या है, इसे आप गूगल पर खोज कर भी बहुत कुछ नहीं समझ सकते. सिवाय टेलिग्राफ की एक खबर के, जिसमें 2015 में इसके लिए बनायी गयी कमेटी के प्रमुख हक साहब ने खुद संदेह जताते हुए एक बयान दिया है, ‘’एक कंक्‍लूसिव टाइटिल यानी निर्णायक पट्टा ही अंतिम पट्टा होगा. इसको चुनौती नहीं दी जा सकती.‘’ न तो तहसीलदार की अदालत में न दीवानी अदालत में आप जमीन पर अपना अधिकार जता सकते हैं, अगर एक बार किसी ने पट्टा अपने नाम लिखवा लिया. इसके अलावा आप अपनी ज़मीन पर ईंटा बालू गिराकर निर्माण भी नहीं कर पाएंगे क्‍योंकि उसके लिए आपको किसी बिल्‍डर/डेवलपर से ‘’एक डेवलपर कॉन्‍ट्रैक्‍ट’’ करना होगा.

इस कानून से रजिस्‍ट्री कार्यालयों की नौकरियों पर क्‍या गाज गिरने वाली है, उसे समझना हो तो तो दैनिक जागरण चंदौली की पिछले साल 26 सितंबर, 2020 की यह खबर देखें जो संभवत: नए कानून के संदर्भ में ही छापी गयी है. जमीन का ऑनलाइन दाखिल खारिज, पेपर लेस होगा दफ्तर. इसके अलावा, दीवानी मामलों के वकीलों की रोजी-रोटी भी बुरी तरह छिनने वाली है इस कानून से. बाकी आपकी जमीन की तो अब सरकार ही मालिक है.

पूरा मामला तफ़सील से समझने के लिए सुनें रांची के वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता रश्मि कात्‍यान को, जिनका इंटरव्‍यू स्‍थानीय पत्रकार प्रवीण ने कुछ दिनों पहले लिया है.

डिजिटल खतरों का ट्रेलर

डिजिटल इंडिया का नारा देकर निजी डेवलपर्स को आपकी ज़मीन में घुसाने के लिए नया कानून लाने जा रही सरकार की राह हालांकि आसान नहीं है. स्‍थानीय स्‍तर पर डिजिटलीकरण के खतरे अभी से ही सामने आने लगे हैं. अच्‍छी बात ये है कि अखबार रेगुलर खबरों के तहत ही सही, इन घटनाओं को कवर कर रहे हैं.

- तहसील में खसरा खतौनी लॉक, लोगों के अटके काम (दैनिक जागरण)

- भूनावासियों के लिए जी का जंजाल बनी प्रॉपर्टी आईडी (दैनिक जागरण)

- प्रॉपर्टी आईडी का खेल कर किया फर्जीवाड़ा, बरसात में राय मार्केट जाकर एसडीएम ने की जांच (दैनिक जागरण)

- माहिर नटवरलाल खेल गए फर्जी आइडी से रजिस्ट्री का खेल (दैनिक जागरण)

- फेक आईडी बनाकर कोर्ट में जमानत लेने का आरोपी गिरफ्तार (अमर उजाला)

- टेंपरेरी प्रॉपर्टी आईडी फर्जीवाड़े के आरोपी की हुई पहचान, गिरफ्तारी होते ही मामले का होगा पर्दाफाश, रिकॉर्ड लेकर साइबर जांच भी शुरू (दैनिक भास्‍कर)

- अफसरों-ठेकेदारों का दिखा गठजोड़, भ्रष्टाचार की खुली पोल, विजिलेंस जांच का प्रस्ताव पास (अमर उजाला)

- Korba News: पटवारी की आईडी हैक कर ठग ने ऐसे बेच दी सरकारी जमीन (नई दुनिया)

मैंने इस संदर्भ में जानकारी लेने के लिए यूपी के राजस्‍व विभाग के कुछ लोगों से बातचीत की. हैरत की बात है कि लेखपाल से लेकर तहसीलदार के स्‍तर तक अधिकारियों को इस नए लैंड टाइटलिंग कानून की भनक तक नहीं है. इसके उलट, वे राजस्‍व विभागों के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया को बहुत उत्‍साह से निपटाने में लगे हैं और इस तर्क से पूरी तरह सहमत हैं कि डिजिटलीकरण की प्रक्रिया जमीन जायदाद के फर्जीवाड़े को रोकने में सक्षम होगी. यह बताने पर कि नए कानून में एक ओटीपी के सहारे किसी को जमीन बेचना या खरीदना संभव हो जाएगा, एक सरकारी अधिकारी ने अनौपचारिक रूप से टिप्‍पणी की, ‘’अव्‍वल तो ऐसा संभव नहीं है कि सरकार ऐसा कुछ करेगी, अगर उसने किया तो बहुत खून खच्‍चर होगा.‘’

जब अधिकारी डिजिटलीकरण की असल मंशा से अनभिज्ञ हैं तो आम लोगों के बारे में क्‍या ही कहा जाय. हां, अखबारों ने जिस तरीके से पिछले कुछ वर्षों में कंप्‍यूटरीकरण और डिजिटलीकरण के बारे में एक सकारात्‍मक माहौल बनाया है और लगातार बनाए जा रहे हैं, वह कई ऐसे बदलावों की राह आसान कर सकता है जिसका बयाना केंद्र सरकार को चलाने वालों ने लिया हुआ है.

कागज़ दिखाते रहो

हम जानते हैं कि 1 अप्रैल से नेशनल पॉपुलेशन रजिस्‍टर के लिए सर्वेक्षण का काम सरकार शुरू करवा रही है. अगर नए भूमि पट्टेदारी कानून के मसौदे, कृषि कानून, एनपीआर, एनआरसी/सीएए को मिलाकर देखें तो हम पाते हैं कि दरअसल इन सभी का साझा उद्देश्‍य एक ऐसे देश की जनता को डराना धमकाना है जहां लोगों के पास सरकारी कागज़ात पूरे नहीं हैं.

आप नागरिक हैं, इसे सिद्ध करिए. जमीन आपकी है, इसे सिद्ध करिए. कोई एक सिद्ध हो गया या नहीं हुआ, तो दूसरा स्‍वत: सिद्ध हो जाएगा. तर्क प्रणाली को देखें तो ये सभी आपस में जुड़े हुए मामले लगते हैं.

इन बातों को समझने के लिए अब अखबारों के भरोसे तो नहीं बैठा रहा जा सकता, लेकिन अखबारों पर करीबी नजर जरूर रखी जानी चाहिए ताकि जब वे कहें आपकी जिंदगी आसान होने वाली है, समझ जाइए कि एक और बिजली गिरने वाली है.

फिलहाल, किसान अपनी ज़मीन बचाने में लगे हुए हैं. अगर आपको किसानों से सहानुभूति नहीं तो कोई बात नहीं. अपनी ज़मीन से तो प्‍यार होगा ही. कम से कम उसी के लिए चीजों को समझना और बोलना शुरू करिए. अब भी बहुत देर नहीं हुई है.

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यह मसौदा सभी राज्‍य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को अनुमोदन के लिए भेजा गया. हां या ना करने की अंतिम तारीख रखी गयी सितंबर 2020, जिसमें राज्‍यों को लिखा गया कि यदि वे अपनी राय नहीं देते हैं तो इसे उनकी स्‍वीकृति मान लिया जाएगा.

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भारतीय जनता पार्टी को ‘एक’ से बहुत लगाव है. एक राष्‍ट्र, एक टैक्‍स, एक श्‍मशान, एक कुआं, एक नेता, एक चुनाव जैसे जुमले हम नीतियों में परिवर्तित होते देखते आ रहे हैं सात साल से. यह नया लैंड टाइटलिंग कानून का मसौदा भी एक राष्‍ट्र, एक रजिस्‍ट्री के नारे के अंतर्गत लाया गया. जाहिर है, यह नारा अभी जनता के बीच नहीं फेंका गया है लेकिन भाजपा शासित राज्‍यों की सरकारें खसरा खतौनी घरौनी के डिजिटलीकरण और 16 अंकों की आईडी के माध्‍यम से जनता में चारा फेंक चुकी हैं. जनता के पास इसे खाने के अलावा कोई चारा नहीं है. और बुरी खबर यह है कि जमीन जायदाद का मसला राज्‍य सूची का होते हुए भी केंद्र द्वारा तय किया जा रहा है और जल्‍द ही नया कानून आने वाला है. नए कानून में बस राज्‍य का नाम खानापूर्ति के लिए भरा जाना है. भरोसा न हो तो राज्‍यों को भेजे गए ड्राफ्ट का पहला पन्‍ना देखिए:

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यह नया कानून क्‍या है, इसे आप गूगल पर खोज कर भी बहुत कुछ नहीं समझ सकते. सिवाय टेलिग्राफ की एक खबर के, जिसमें 2015 में इसके लिए बनायी गयी कमेटी के प्रमुख हक साहब ने खुद संदेह जताते हुए एक बयान दिया है, ‘’एक कंक्‍लूसिव टाइटिल यानी निर्णायक पट्टा ही अंतिम पट्टा होगा. इसको चुनौती नहीं दी जा सकती.‘’ न तो तहसीलदार की अदालत में न दीवानी अदालत में आप जमीन पर अपना अधिकार जता सकते हैं, अगर एक बार किसी ने पट्टा अपने नाम लिखवा लिया. इसके अलावा आप अपनी ज़मीन पर ईंटा बालू गिराकर निर्माण भी नहीं कर पाएंगे क्‍योंकि उसके लिए आपको किसी बिल्‍डर/डेवलपर से ‘’एक डेवलपर कॉन्‍ट्रैक्‍ट’’ करना होगा.

इस कानून से रजिस्‍ट्री कार्यालयों की नौकरियों पर क्‍या गाज गिरने वाली है, उसे समझना हो तो तो दैनिक जागरण चंदौली की पिछले साल 26 सितंबर, 2020 की यह खबर देखें जो संभवत: नए कानून के संदर्भ में ही छापी गयी है. जमीन का ऑनलाइन दाखिल खारिज, पेपर लेस होगा दफ्तर. इसके अलावा, दीवानी मामलों के वकीलों की रोजी-रोटी भी बुरी तरह छिनने वाली है इस कानून से. बाकी आपकी जमीन की तो अब सरकार ही मालिक है.

पूरा मामला तफ़सील से समझने के लिए सुनें रांची के वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता रश्मि कात्‍यान को, जिनका इंटरव्‍यू स्‍थानीय पत्रकार प्रवीण ने कुछ दिनों पहले लिया है.

डिजिटल खतरों का ट्रेलर

डिजिटल इंडिया का नारा देकर निजी डेवलपर्स को आपकी ज़मीन में घुसाने के लिए नया कानून लाने जा रही सरकार की राह हालांकि आसान नहीं है. स्‍थानीय स्‍तर पर डिजिटलीकरण के खतरे अभी से ही सामने आने लगे हैं. अच्‍छी बात ये है कि अखबार रेगुलर खबरों के तहत ही सही, इन घटनाओं को कवर कर रहे हैं.

- तहसील में खसरा खतौनी लॉक, लोगों के अटके काम (दैनिक जागरण)

- भूनावासियों के लिए जी का जंजाल बनी प्रॉपर्टी आईडी (दैनिक जागरण)

- प्रॉपर्टी आईडी का खेल कर किया फर्जीवाड़ा, बरसात में राय मार्केट जाकर एसडीएम ने की जांच (दैनिक जागरण)

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मैंने इस संदर्भ में जानकारी लेने के लिए यूपी के राजस्‍व विभाग के कुछ लोगों से बातचीत की. हैरत की बात है कि लेखपाल से लेकर तहसीलदार के स्‍तर तक अधिकारियों को इस नए लैंड टाइटलिंग कानून की भनक तक नहीं है. इसके उलट, वे राजस्‍व विभागों के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया को बहुत उत्‍साह से निपटाने में लगे हैं और इस तर्क से पूरी तरह सहमत हैं कि डिजिटलीकरण की प्रक्रिया जमीन जायदाद के फर्जीवाड़े को रोकने में सक्षम होगी. यह बताने पर कि नए कानून में एक ओटीपी के सहारे किसी को जमीन बेचना या खरीदना संभव हो जाएगा, एक सरकारी अधिकारी ने अनौपचारिक रूप से टिप्‍पणी की, ‘’अव्‍वल तो ऐसा संभव नहीं है कि सरकार ऐसा कुछ करेगी, अगर उसने किया तो बहुत खून खच्‍चर होगा.‘’

जब अधिकारी डिजिटलीकरण की असल मंशा से अनभिज्ञ हैं तो आम लोगों के बारे में क्‍या ही कहा जाय. हां, अखबारों ने जिस तरीके से पिछले कुछ वर्षों में कंप्‍यूटरीकरण और डिजिटलीकरण के बारे में एक सकारात्‍मक माहौल बनाया है और लगातार बनाए जा रहे हैं, वह कई ऐसे बदलावों की राह आसान कर सकता है जिसका बयाना केंद्र सरकार को चलाने वालों ने लिया हुआ है.

कागज़ दिखाते रहो

हम जानते हैं कि 1 अप्रैल से नेशनल पॉपुलेशन रजिस्‍टर के लिए सर्वेक्षण का काम सरकार शुरू करवा रही है. अगर नए भूमि पट्टेदारी कानून के मसौदे, कृषि कानून, एनपीआर, एनआरसी/सीएए को मिलाकर देखें तो हम पाते हैं कि दरअसल इन सभी का साझा उद्देश्‍य एक ऐसे देश की जनता को डराना धमकाना है जहां लोगों के पास सरकारी कागज़ात पूरे नहीं हैं.

आप नागरिक हैं, इसे सिद्ध करिए. जमीन आपकी है, इसे सिद्ध करिए. कोई एक सिद्ध हो गया या नहीं हुआ, तो दूसरा स्‍वत: सिद्ध हो जाएगा. तर्क प्रणाली को देखें तो ये सभी आपस में जुड़े हुए मामले लगते हैं.

इन बातों को समझने के लिए अब अखबारों के भरोसे तो नहीं बैठा रहा जा सकता, लेकिन अखबारों पर करीबी नजर जरूर रखी जानी चाहिए ताकि जब वे कहें आपकी जिंदगी आसान होने वाली है, समझ जाइए कि एक और बिजली गिरने वाली है.

फिलहाल, किसान अपनी ज़मीन बचाने में लगे हुए हैं. अगर आपको किसानों से सहानुभूति नहीं तो कोई बात नहीं. अपनी ज़मीन से तो प्‍यार होगा ही. कम से कम उसी के लिए चीजों को समझना और बोलना शुरू करिए. अब भी बहुत देर नहीं हुई है.

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