कोरोना संक्रमण में अचानक उछाल आने से अब देश इस लड़ाई के नाज़ुक दौर में

स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, पांच राज्यों (महाराष्ट्र, पंजाब, छत्तीसगढ़, केरल और मध्य प्रदेश) में नए संक्रमण देशभर में होने वाले 86% नए संक्रमणों का हिस्सा हैं.

WrittenBy:डॉ यूसुफ़ अख़्तर
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27 फरवरी को, देश ने कोरोना वायरस के 16,400 से अधिक नए संक्रमित दर्ज किए. 27 फरवरी तक भारत में कोविड-19 के कुल मामले 1.1 करोड़ से अधिक थे. दैनिक नए संक्रमणों के साथ-जो एक दिन में 10,000 के करीब आ गए थे- धीरे-धीरे पिछले एक-दो सप्ताह में बढ़ रहे हैं, कई राज्य अब स्थानीयकृत लॉकडाउन पर विचार कर रहे हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां अचानक संक्रमण में बढ़त दिख रही है.

16 सितंबर, 2020 को लगभग 98,000 ताज़ा दैनिक कोरोना वायरस मामलों की सबसे बड़ी संख्या के बाद, भारत में प्रति दिन नए मामलों की संख्या में फरवरी के मध्य तक 12,000 से नीचे पहुंचने के बाद से धीमी लेकिन स्थिर गिरावट देखी गई थी. लेकिन उसके बाद कुछ राज्यों- महाराष्ट्र, पंजाब, छत्तीसगढ़, केरल और मध्य प्रदेश में मामलों में तेजी आने के बाद पिछले दस दिनों में इसके घटते हुए ग्राफ में उलटफेर शुरू हो गया. भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, पांच राज्यों (महाराष्ट्र, पंजाब, छत्तीसगढ़, केरल और मध्य प्रदेश) में नए संक्रमण देशभर में होने वाले 86% नए संक्रमणों का हिस्सा हैं.

केरल में दैनिक मामलों में बढ़त के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किए गए दावों के विपरीत, दैनिक ताज़ा मामले वास्तव में पिछले एक हफ्ते में धीरे-धीरे घट रहे हैं. राज्य में हालिया मामले में गिरावट जनवरी 2021 की शुरुआत से सामने आई है. इसके परिणामस्वरूप, केरल में भारत का कुल दैनिक मामलों में 45-50% का योगदान जो पिछले कई हफ्तों से था पिछले कुछ दिनों में लगभग 33% तक गिर गया है. लेकिन भारी गिरावट के बावजूद, राष्ट्रीय स्तर पर दैनिक ताजा मामलों में वृद्धि हुई है- फरवरी के दूसरे सप्ताह में 11,100 मामलों के सात दिन के औसत से लेकर अंतिम सप्ताह में 12,900 मामले देखने को मिलें हैं.

महाराष्ट्र, भारत का ऐसा पश्चिमी राज्य है जो देश की वित्तीय राजधानी मुंबई का घर है, वो इन नए संक्रमण मामलों में शीर्ष पर है. राज्य सरकार ने पुणे जैसे शहरों एवं कुछ अन्य जिलों और कस्बों में रात का कर्फ्यू लागू किया है, और अमरावती के क्षेत्र में एक सप्ताह की पूर्ण तालाबंदी कर दी गयी है. पिछले तीन हफ्तों में महाराष्ट्र में, 3,000 से कम की अवसत से दैनिक मामले बढ़ रहे थे जो अब बढ़ कर पिछले सप्ताह में 21 फरवरी को लगभग 7,000 का अंक छूने लगे हैं. महामारी की शुरुआत से ही महाराष्ट्र दैनिक मामलों में नंबर एक पर था, ये राज्य एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक दैनिक संक्रमण के साथ देश में शीर्ष पर है. जबकि पंजाब, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मामलों में पूर्ण वृद्धि अधिक नहीं हो रही है.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने एक वीडियो संबोधन में कहा, "क्या आप लॉकडाउन चाहते हैं? कोविड-19 से अब लोग तभी बच सकते हैं, अगर वो अपने आप ज़िम्मेदार बने और मास्क को ठीक से लगाएं, सरकार द्वारा दी गयी गाइडलाइन्स का पालन न करना वर्तमान उछाल के पीछे एक कारण है. उन्होंने लोगों को एक नया नारा दिया- 'मैं ज़िम्मेदार हूं' ये बताता है कि लोगों को खुद के लिए ज़िम्मेदार होना पड़ेगा."

उन्होंने आगे कहा, "हम अगले कुछ दिनों में स्थिति को देखेंगे और निर्णय लेंगे. लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे ठीक तरह से मास्क पहने रहें और शारीरिक दूरी बनाए रखें और अपने हाथ अच्छी तरह से धोते रहें."

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हालांकि, महाराष्ट्र के विधायकों ने कहा है कि राज्य में महामारी की इस "दूसरी लहर" को बढ़ने का अनुमान लगाना समय से पहले की बात है. लेकिन महामारी विज्ञानियों को चिंता है कि कहीं इस दूसरी लहर का कारण कोरोना वायरस में होने वाला म्यूटेशन तो नहीं?

इस समय राज्यों और राष्ट्रीय सीमाओं पर लोगों की मुक्त आवाजाही में लगभग किसी प्रकार के प्रतिबंध नहीं हैं. त्योहारों के मौसम, सर्दियों, बड़े समारोहों इत्यादि में प्रतिबंधों में ढील देने के बावजूद पिछले साल सितंबर के बाद से मामलों में लगातार गिरावट दर्ज की गई थी. हालांकि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा 17 दिसंबर, 2020 और 8 जनवरी, 2021 के बीच किए गए तीसरे देशव्यापी सीरो-सर्वेक्षण में पाया गया कि भारत के केवल 21.5% (लगभग 225 मिलियन) लोग तब तक वायरस के संपर्क में आए थे.

इस सर्वेक्षण में ये देखा गया था की कितने लोगों के रक्त में कोरोना वायरस की एंटीबाडीज पायी गयी थीं. इसका निष्कर्ष है कि एक बड़ी आबादी अभी भी संक्रमण से असुरक्षित है. फिर भी कुछ दिनों पहले तक नए संक्रमण के मामलों में कोई अप्रायश्चित बढ़त नहीं देखी गयी थी. हालांकि अभी तक इस घटना को समझने के लिए कोई ठोस वैज्ञानिक व्याख्या नहीं मिली है. इसके कारण सिर्फ लक्षित परीक्षण की कमी या रिपोर्टिंग में न बरती जाने वाली ईमानदारी भी हो सकती है.

कोरोना वायरस में म्यूटेशन की रिपोर्ट यूके, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील हर जगह से आ रहीं हैं. यहां तक ​​कि भारत में फैलने वाले कोरोना वायरस वैरिएंट्स में भी म्यूटेशन का उत्पन्न होने की सम्भावना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है. लेकिन अभी इस बात के पर्याप्त सबूत नहीं हैं, कि ये महामारी भारत में फिर से और कहर बरपा सकती है, या अभी स्थिति और भयावह होगी. उदाहरण के लिए, भारत में 22 फरवरी को कुल सक्रिय मरीज़ों तक लगभग 150,000 है, जो देश में कुल पुष्टि किए गए सकारात्मक मामलों का 1.36% है. महामारी विज्ञानी यह भी दावा करते हैं कि नए वेरिएंट्स ने मौतों की संख्या पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं दिखाया है, और फिलहाल कुल सक्रिय मरीज़ों की संख्या 156,385 है. लेकिन जब तक इन म्यूटेशनों की विस्तृत जांच सुसंगत अनुक्रमण (डीएनए सिक्वेंसिंग) से नहीं की जा सकती है, तब तक ये परिकल्पना एक बेहतरीन अनुमान ही मानी जाएगी. संक्रमण के मामलों में हुई इस अचानक संख्या वृद्धि का एक संभावित कारण स्थानीयकृत झुंड प्रतिरक्षा की कमी भी हो सकती है.

अगस्त और सितंबर महीनों में कोविड-19 संक्रमणों में उछाल से भारत के बड़े महानगरीय शहरों में भारी तबाही देखी गई थी. महामारी वैज्ञानिक जयप्रकाश मुलियाल बताते हैं, "यह एक महामारी का एक प्राकृतिक प्रक्षेपवक्र था, जिसके मामलों में उन महीनों के बाद में लगातार कमी आ रही थी. इसके पीछे के कारणों में एक इन शहरों में स्थानीयकृत झुंड प्रतिरक्षा भी था, इन जगहों में सीरोलॉजिकल सर्वेक्षणों में भी 50% आबादी के पास कोविड-19 एंटीबॉडी पायी गयी थी. वैज्ञानिकों का सुझाव ये भी है कि ऐसे सर्वेक्षण अक्सर वास्तविक सीरो-प्रचलन से कम ही दिखाई पड़ते हैं, जो इन क्षेत्रों में झुंड प्रतिरक्षा के लिए आवश्यक 70% के करीब आंकड़ा ले सकता है."

लेकिन इस अध्ययन में एक चेतावनी भी मौजूद है. देश के शीर्ष चिकित्सा अनुसंधान निकाय, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने पाया है कि पूरे देश के लिए सीरो-सर्वेक्षण का आकलन सिर्फ 20% के आस-पास है. इस तरह से देश की 80% आबादी ऐसी है जो कोरोनावायरस के संपर्क में नहीं आएं हैं, यह एक बड़ी अर्ध-शहरी और ग्रामीण आबादी की ओर इशारा करता है, जिसे अभी तक वायरस से बचा लिया गया है.

लेकिन इन मामलों में हालिया बढ़त, या तो उन लोगों के संक्रमण के कारण है जो अभी तक कोरोनावायरस के सम्पर्क में ही नहीं आये थे, या इनमें से कुछ को री-इन्फेक्शन हुआ होगा. ये तथ्य अन्य देशों में पहली बार पाए गए तीन वेरिएंट (यूके, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील) में से किसी के फैलने या भारत में एक नए म्यूटेशन संस्करण के उद्भव की संभावना की तरफ भी इशारा करते हैं. इस तरह के किसी भी प्रकार के म्यूटेशन उद्भव और प्रसार का पता लगाने और उसे ट्रैक करने के लिए संक्रमित लोगों से कोरोनावायरस के जीनोम को लेकर बड़े पैमाने पर डीएनए सिक्वेंसिंग करना ही पड़ेगा. जबकि भारत में कुछ संस्थान जीनोम की सिक्वेंसिंग कर रहें हैं, लेकिन अगर उनकी तुलना दूसरे विकसित पश्चिमी देशों से की जाये तो पैमाने और गति दोनों में ये कहीं बहुत पीछे हैं. ऐसे लोगों जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है या उनको कोई और बिमारी जैसे डायबिटीज, ह्रदय रोग इत्यादि है उनकी एक बड़ी आबादी की रक्षा करने और मास्क पहनने को बढ़ावा देने तथा टीकाकरण के कवरेज में तेजी लाने का यही सही समय है. इन विषयों पर जनहित में किसी प्रकार की लापरवाही के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए है.

(लेखक बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर विश्विद्यालय, लखनऊ, में बायोटेक्नोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)

27 फरवरी को, देश ने कोरोना वायरस के 16,400 से अधिक नए संक्रमित दर्ज किए. 27 फरवरी तक भारत में कोविड-19 के कुल मामले 1.1 करोड़ से अधिक थे. दैनिक नए संक्रमणों के साथ-जो एक दिन में 10,000 के करीब आ गए थे- धीरे-धीरे पिछले एक-दो सप्ताह में बढ़ रहे हैं, कई राज्य अब स्थानीयकृत लॉकडाउन पर विचार कर रहे हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां अचानक संक्रमण में बढ़त दिख रही है.

16 सितंबर, 2020 को लगभग 98,000 ताज़ा दैनिक कोरोना वायरस मामलों की सबसे बड़ी संख्या के बाद, भारत में प्रति दिन नए मामलों की संख्या में फरवरी के मध्य तक 12,000 से नीचे पहुंचने के बाद से धीमी लेकिन स्थिर गिरावट देखी गई थी. लेकिन उसके बाद कुछ राज्यों- महाराष्ट्र, पंजाब, छत्तीसगढ़, केरल और मध्य प्रदेश में मामलों में तेजी आने के बाद पिछले दस दिनों में इसके घटते हुए ग्राफ में उलटफेर शुरू हो गया. भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, पांच राज्यों (महाराष्ट्र, पंजाब, छत्तीसगढ़, केरल और मध्य प्रदेश) में नए संक्रमण देशभर में होने वाले 86% नए संक्रमणों का हिस्सा हैं.

केरल में दैनिक मामलों में बढ़त के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किए गए दावों के विपरीत, दैनिक ताज़ा मामले वास्तव में पिछले एक हफ्ते में धीरे-धीरे घट रहे हैं. राज्य में हालिया मामले में गिरावट जनवरी 2021 की शुरुआत से सामने आई है. इसके परिणामस्वरूप, केरल में भारत का कुल दैनिक मामलों में 45-50% का योगदान जो पिछले कई हफ्तों से था पिछले कुछ दिनों में लगभग 33% तक गिर गया है. लेकिन भारी गिरावट के बावजूद, राष्ट्रीय स्तर पर दैनिक ताजा मामलों में वृद्धि हुई है- फरवरी के दूसरे सप्ताह में 11,100 मामलों के सात दिन के औसत से लेकर अंतिम सप्ताह में 12,900 मामले देखने को मिलें हैं.

महाराष्ट्र, भारत का ऐसा पश्चिमी राज्य है जो देश की वित्तीय राजधानी मुंबई का घर है, वो इन नए संक्रमण मामलों में शीर्ष पर है. राज्य सरकार ने पुणे जैसे शहरों एवं कुछ अन्य जिलों और कस्बों में रात का कर्फ्यू लागू किया है, और अमरावती के क्षेत्र में एक सप्ताह की पूर्ण तालाबंदी कर दी गयी है. पिछले तीन हफ्तों में महाराष्ट्र में, 3,000 से कम की अवसत से दैनिक मामले बढ़ रहे थे जो अब बढ़ कर पिछले सप्ताह में 21 फरवरी को लगभग 7,000 का अंक छूने लगे हैं. महामारी की शुरुआत से ही महाराष्ट्र दैनिक मामलों में नंबर एक पर था, ये राज्य एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक दैनिक संक्रमण के साथ देश में शीर्ष पर है. जबकि पंजाब, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मामलों में पूर्ण वृद्धि अधिक नहीं हो रही है.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने एक वीडियो संबोधन में कहा, "क्या आप लॉकडाउन चाहते हैं? कोविड-19 से अब लोग तभी बच सकते हैं, अगर वो अपने आप ज़िम्मेदार बने और मास्क को ठीक से लगाएं, सरकार द्वारा दी गयी गाइडलाइन्स का पालन न करना वर्तमान उछाल के पीछे एक कारण है. उन्होंने लोगों को एक नया नारा दिया- 'मैं ज़िम्मेदार हूं' ये बताता है कि लोगों को खुद के लिए ज़िम्मेदार होना पड़ेगा."

उन्होंने आगे कहा, "हम अगले कुछ दिनों में स्थिति को देखेंगे और निर्णय लेंगे. लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे ठीक तरह से मास्क पहने रहें और शारीरिक दूरी बनाए रखें और अपने हाथ अच्छी तरह से धोते रहें."

हालांकि, महाराष्ट्र के विधायकों ने कहा है कि राज्य में महामारी की इस "दूसरी लहर" को बढ़ने का अनुमान लगाना समय से पहले की बात है. लेकिन महामारी विज्ञानियों को चिंता है कि कहीं इस दूसरी लहर का कारण कोरोना वायरस में होने वाला म्यूटेशन तो नहीं?

इस समय राज्यों और राष्ट्रीय सीमाओं पर लोगों की मुक्त आवाजाही में लगभग किसी प्रकार के प्रतिबंध नहीं हैं. त्योहारों के मौसम, सर्दियों, बड़े समारोहों इत्यादि में प्रतिबंधों में ढील देने के बावजूद पिछले साल सितंबर के बाद से मामलों में लगातार गिरावट दर्ज की गई थी. हालांकि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा 17 दिसंबर, 2020 और 8 जनवरी, 2021 के बीच किए गए तीसरे देशव्यापी सीरो-सर्वेक्षण में पाया गया कि भारत के केवल 21.5% (लगभग 225 मिलियन) लोग तब तक वायरस के संपर्क में आए थे.

इस सर्वेक्षण में ये देखा गया था की कितने लोगों के रक्त में कोरोना वायरस की एंटीबाडीज पायी गयी थीं. इसका निष्कर्ष है कि एक बड़ी आबादी अभी भी संक्रमण से असुरक्षित है. फिर भी कुछ दिनों पहले तक नए संक्रमण के मामलों में कोई अप्रायश्चित बढ़त नहीं देखी गयी थी. हालांकि अभी तक इस घटना को समझने के लिए कोई ठोस वैज्ञानिक व्याख्या नहीं मिली है. इसके कारण सिर्फ लक्षित परीक्षण की कमी या रिपोर्टिंग में न बरती जाने वाली ईमानदारी भी हो सकती है.

कोरोना वायरस में म्यूटेशन की रिपोर्ट यूके, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील हर जगह से आ रहीं हैं. यहां तक ​​कि भारत में फैलने वाले कोरोना वायरस वैरिएंट्स में भी म्यूटेशन का उत्पन्न होने की सम्भावना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है. लेकिन अभी इस बात के पर्याप्त सबूत नहीं हैं, कि ये महामारी भारत में फिर से और कहर बरपा सकती है, या अभी स्थिति और भयावह होगी. उदाहरण के लिए, भारत में 22 फरवरी को कुल सक्रिय मरीज़ों तक लगभग 150,000 है, जो देश में कुल पुष्टि किए गए सकारात्मक मामलों का 1.36% है. महामारी विज्ञानी यह भी दावा करते हैं कि नए वेरिएंट्स ने मौतों की संख्या पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं दिखाया है, और फिलहाल कुल सक्रिय मरीज़ों की संख्या 156,385 है. लेकिन जब तक इन म्यूटेशनों की विस्तृत जांच सुसंगत अनुक्रमण (डीएनए सिक्वेंसिंग) से नहीं की जा सकती है, तब तक ये परिकल्पना एक बेहतरीन अनुमान ही मानी जाएगी. संक्रमण के मामलों में हुई इस अचानक संख्या वृद्धि का एक संभावित कारण स्थानीयकृत झुंड प्रतिरक्षा की कमी भी हो सकती है.

अगस्त और सितंबर महीनों में कोविड-19 संक्रमणों में उछाल से भारत के बड़े महानगरीय शहरों में भारी तबाही देखी गई थी. महामारी वैज्ञानिक जयप्रकाश मुलियाल बताते हैं, "यह एक महामारी का एक प्राकृतिक प्रक्षेपवक्र था, जिसके मामलों में उन महीनों के बाद में लगातार कमी आ रही थी. इसके पीछे के कारणों में एक इन शहरों में स्थानीयकृत झुंड प्रतिरक्षा भी था, इन जगहों में सीरोलॉजिकल सर्वेक्षणों में भी 50% आबादी के पास कोविड-19 एंटीबॉडी पायी गयी थी. वैज्ञानिकों का सुझाव ये भी है कि ऐसे सर्वेक्षण अक्सर वास्तविक सीरो-प्रचलन से कम ही दिखाई पड़ते हैं, जो इन क्षेत्रों में झुंड प्रतिरक्षा के लिए आवश्यक 70% के करीब आंकड़ा ले सकता है."

लेकिन इस अध्ययन में एक चेतावनी भी मौजूद है. देश के शीर्ष चिकित्सा अनुसंधान निकाय, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने पाया है कि पूरे देश के लिए सीरो-सर्वेक्षण का आकलन सिर्फ 20% के आस-पास है. इस तरह से देश की 80% आबादी ऐसी है जो कोरोनावायरस के संपर्क में नहीं आएं हैं, यह एक बड़ी अर्ध-शहरी और ग्रामीण आबादी की ओर इशारा करता है, जिसे अभी तक वायरस से बचा लिया गया है.

लेकिन इन मामलों में हालिया बढ़त, या तो उन लोगों के संक्रमण के कारण है जो अभी तक कोरोनावायरस के सम्पर्क में ही नहीं आये थे, या इनमें से कुछ को री-इन्फेक्शन हुआ होगा. ये तथ्य अन्य देशों में पहली बार पाए गए तीन वेरिएंट (यूके, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील) में से किसी के फैलने या भारत में एक नए म्यूटेशन संस्करण के उद्भव की संभावना की तरफ भी इशारा करते हैं. इस तरह के किसी भी प्रकार के म्यूटेशन उद्भव और प्रसार का पता लगाने और उसे ट्रैक करने के लिए संक्रमित लोगों से कोरोनावायरस के जीनोम को लेकर बड़े पैमाने पर डीएनए सिक्वेंसिंग करना ही पड़ेगा. जबकि भारत में कुछ संस्थान जीनोम की सिक्वेंसिंग कर रहें हैं, लेकिन अगर उनकी तुलना दूसरे विकसित पश्चिमी देशों से की जाये तो पैमाने और गति दोनों में ये कहीं बहुत पीछे हैं. ऐसे लोगों जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है या उनको कोई और बिमारी जैसे डायबिटीज, ह्रदय रोग इत्यादि है उनकी एक बड़ी आबादी की रक्षा करने और मास्क पहनने को बढ़ावा देने तथा टीकाकरण के कवरेज में तेजी लाने का यही सही समय है. इन विषयों पर जनहित में किसी प्रकार की लापरवाही के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए है.

(लेखक बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर विश्विद्यालय, लखनऊ, में बायोटेक्नोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)

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