भारतीय जनता पार्टी से वफादारी और रिपब्लिक भारत की प्रसिद्धि ने सैनियों को जाटों के द्वारा प्रतिनिधित्व किए जा रहे अभियान से विमुख कर दिया है, जबकि वे दावा करते हैं कि उनके पास सभी जाति समूहों का समर्थन है.
रवि हमें समझाते हैं, "यहां बिचौलिए हर सौदे पर 6 फ़ीसदी चार्ज लगाते हैं. इस कानून से यह बिचौलिए निकाल दिए जाएंगे और हमें अपनी बिक्री के लिए बेहतर पैसा मिलेगा. आमतौर पर बिचौलिए हमारी फूलगोभी 5 रुपए किलो खरीदते हैं जिसे फिर दुकानदार 20 रुपए किलो में बेचता है. अगर हमारी उपज सीधे दुकानदार तक जाए तो हम कुछ और रुपए कमा पाएंगे."
रवि अपना फोन उठाकर फेसबुक पर उन्हें मिला एक ऑडियो क्लिप चलाते हैं. कथिततौर पर यह एक युवा जाट का कबूल नामा है, जिसमें वह पैसे और मज़े के लिए गाजीपुर प्रदर्शन में जाने की बात स्वीकार करता है. रवि मुस्कुराते हुए चुटकी बजाकर कहते हैं, "आप पैसा हटा लो और जाट यूं वापस हो लेंगे."
मुजफ्फरनगर के कुटेसरा गांव में 81 वर्षीय सैनी किसान रोशन लाल, जिनके पास 17 हेक्टेयर जमीन है, वह कहते हैं कि उनका समाज किसान प्रदर्शनों का समर्थन नहीं कर रहा. हम जितने भी जाट किसानों से मिले, रोशन के पास उनमें से अधिकतर से ज्यादा ज़मीन है और वह उन्हीं की तरह गन्ने की खेती करते हैं.
उनका कहना है, "चाहे कुछ भी हो मैं भाजपा के साथ हूं. मैं कानूनों के बारे में तो कुछ नहीं बोल सकता जिन्होंने जाटों को सही में डरा दिया है, लेकिन अब वो भाजपा का विरोध कर रहे हैं और हम ऐसा बिल्कुल नहीं करेंगे."
रोशन यह बात स्वीकार करते हैं कि योगी आदित्यनाथ सरकार के अंदर राज्य में गन्ने के दाम नहीं बढ़े हैं, लेकिन सत्ताधारी दल से उन्हें एक दूसरा मजबूत जोड़ बांध कर रखे हुए है. वे कहते हैं, "हमारी जाति के सभी राजनीतिक नेता भाजपा में हैं- चाहे वो कवाल के विक्रम सिंह हों या सहारनपुर के धर्म सिंह. और फिर योगी आदित्यनाथ के अंदर यूपी में अपराध पर नकेल लगी है."
रोशन के पड़ोसी 35 वर्षीय विनीत सैनी भी एक गन्ना किसान हैं और हमसे बातचीत में उन्होंने शुरू में ही यह कबूल किया कि वह नहीं जानते कि कृषि कानून किस बारे में हैं. उन्होंने हिंदी समाचार चैनल रिपब्लिक भारत पर जो भी कवरेज देखा, उससे उन्हें यही पता चला कि इन कानूनों से उनका कोई नुकसान नहीं होने वाला है.
इसका एक कारण यह भी है कि इलाके में गन्ना मिलों से भुगतान में देरी की अधिकतर जाटों के सामने आने वाली परेशानी का सामना विनीत को नहीं करना पड़ता. वे कहते हैं, "यह बात सही है कि गन्ने के दामों में बढ़ोतरी नहीं हुई है लेकिन पास की देवबंद मिल हमें हमारी उपज के लिए समय पर भुगतान करती रही है. यह प्रदर्शन केवल इसलिए हो रहे हैं कि राज्य में चुनाव आने वाले हैं. लेकिन जब समय आएगा तो जाट भी भाजपा को ही वोट देंगे."
विनीत का परिवार लंबे समय से भाजपा का समर्थक रहा है. उनके बाप दादा आडवाणी और वाजपेई वाले दिनों से ही पार्टी के लिए वोट करते रहे हैं, इसका मुख्य कारण 80 और 90 के दशक के शुरू में चला राम जन्मभूमि आंदोलन है. उनकी वफादारी का कारण पूछने पर, वे भी बिजनौर के परमेश सिंह वाली बात दोहराते हैं कि बढ़ते हुए बीजेपी के विरोध से उनका समाज बचा हुआ है. "हम भाजपा का बहिष्कार क्यों करेंगे? केवल वही तो एक हिंदू पार्टी है."
कुछ सैनी किसान ऐसे भी हैं जिनकी चल रहे प्रदर्शनों से सहानुभूति कई प्रतिवादों के साथ आती है. शामली के बाहरी इलाके में रहने वाले सैनी किसान 65 वर्षीय जयपाल सिंह कहते हैं कि गन्ने की खेती अब इस इलाके में फायदे का धंधा नहीं रही. उनका कहना है, "हम अपने पोते पोतियो की स्कूल की फीस और होम लोन नहीं चुका पाते. गायों ने हमारी फसल तबाह कर दी है. वह हमारे गेहूं की फसल खा जाती हैं क्योंकि स्थानीय गौशालाएं उन्हें रात को बाहर निकाल देती हैं."
जब भाकियू ने शामली में महापंचायत रखी थी तो जयपाल ने प्रदर्शनों के लिए पैसा भी दान किया था. लेकिन वह यह दावा खारिज करते हैं कि सभी समाज उसके समर्थन में हैं. वे कहते हैं, "यह केवल कहने वाली बात है कि सभी 36 जातियां इसका समर्थन करती हैं जबकि केवल जाट ही इसमें शामिल हैं."
जयपाल का प्रदर्शनों में हिस्सा लेने का कारण प्रदर्शनों का भाजपा विरोधी पहलू है. वे कहते हैं, “उन्होंने जब से पार्टी बनी है तब से उसे ही वोट दिया है और आगे भी देते रहेंगे. भले ही वह कोई काम ना करे." वे यह भी जोड़ते हैं कि वह प्रधानमंत्री द्वारा संसद में सोमवार को कही बात "एमएसपी था, एमएसपी है और एमएसपी आगे भी रहेगा" पर विश्वास रखते हैं.
जयपाल का कहना है, "भले ही मोदी से कुछ गलतियां हुई हों, लेकिन उन्होंने एक काम ठीक से किया, जैसे उन्होंने कोविड-19 को नियंत्रित किया अगर नहीं किया होता, तो केवल भारत ही नहीं दुनिया ही तबाह हो गई होती."
उन्हें इस बात का विश्वास कैसे है. उन्होंने झट से जवाब दिया, "मैंने यह रिपब्लिक भारत पर देखा. हम उसे हर सुबह और शाम को देखते हैं."
रवि हमें समझाते हैं, "यहां बिचौलिए हर सौदे पर 6 फ़ीसदी चार्ज लगाते हैं. इस कानून से यह बिचौलिए निकाल दिए जाएंगे और हमें अपनी बिक्री के लिए बेहतर पैसा मिलेगा. आमतौर पर बिचौलिए हमारी फूलगोभी 5 रुपए किलो खरीदते हैं जिसे फिर दुकानदार 20 रुपए किलो में बेचता है. अगर हमारी उपज सीधे दुकानदार तक जाए तो हम कुछ और रुपए कमा पाएंगे."
रवि अपना फोन उठाकर फेसबुक पर उन्हें मिला एक ऑडियो क्लिप चलाते हैं. कथिततौर पर यह एक युवा जाट का कबूल नामा है, जिसमें वह पैसे और मज़े के लिए गाजीपुर प्रदर्शन में जाने की बात स्वीकार करता है. रवि मुस्कुराते हुए चुटकी बजाकर कहते हैं, "आप पैसा हटा लो और जाट यूं वापस हो लेंगे."
मुजफ्फरनगर के कुटेसरा गांव में 81 वर्षीय सैनी किसान रोशन लाल, जिनके पास 17 हेक्टेयर जमीन है, वह कहते हैं कि उनका समाज किसान प्रदर्शनों का समर्थन नहीं कर रहा. हम जितने भी जाट किसानों से मिले, रोशन के पास उनमें से अधिकतर से ज्यादा ज़मीन है और वह उन्हीं की तरह गन्ने की खेती करते हैं.
उनका कहना है, "चाहे कुछ भी हो मैं भाजपा के साथ हूं. मैं कानूनों के बारे में तो कुछ नहीं बोल सकता जिन्होंने जाटों को सही में डरा दिया है, लेकिन अब वो भाजपा का विरोध कर रहे हैं और हम ऐसा बिल्कुल नहीं करेंगे."
रोशन यह बात स्वीकार करते हैं कि योगी आदित्यनाथ सरकार के अंदर राज्य में गन्ने के दाम नहीं बढ़े हैं, लेकिन सत्ताधारी दल से उन्हें एक दूसरा मजबूत जोड़ बांध कर रखे हुए है. वे कहते हैं, "हमारी जाति के सभी राजनीतिक नेता भाजपा में हैं- चाहे वो कवाल के विक्रम सिंह हों या सहारनपुर के धर्म सिंह. और फिर योगी आदित्यनाथ के अंदर यूपी में अपराध पर नकेल लगी है."
रोशन के पड़ोसी 35 वर्षीय विनीत सैनी भी एक गन्ना किसान हैं और हमसे बातचीत में उन्होंने शुरू में ही यह कबूल किया कि वह नहीं जानते कि कृषि कानून किस बारे में हैं. उन्होंने हिंदी समाचार चैनल रिपब्लिक भारत पर जो भी कवरेज देखा, उससे उन्हें यही पता चला कि इन कानूनों से उनका कोई नुकसान नहीं होने वाला है.
इसका एक कारण यह भी है कि इलाके में गन्ना मिलों से भुगतान में देरी की अधिकतर जाटों के सामने आने वाली परेशानी का सामना विनीत को नहीं करना पड़ता. वे कहते हैं, "यह बात सही है कि गन्ने के दामों में बढ़ोतरी नहीं हुई है लेकिन पास की देवबंद मिल हमें हमारी उपज के लिए समय पर भुगतान करती रही है. यह प्रदर्शन केवल इसलिए हो रहे हैं कि राज्य में चुनाव आने वाले हैं. लेकिन जब समय आएगा तो जाट भी भाजपा को ही वोट देंगे."
विनीत का परिवार लंबे समय से भाजपा का समर्थक रहा है. उनके बाप दादा आडवाणी और वाजपेई वाले दिनों से ही पार्टी के लिए वोट करते रहे हैं, इसका मुख्य कारण 80 और 90 के दशक के शुरू में चला राम जन्मभूमि आंदोलन है. उनकी वफादारी का कारण पूछने पर, वे भी बिजनौर के परमेश सिंह वाली बात दोहराते हैं कि बढ़ते हुए बीजेपी के विरोध से उनका समाज बचा हुआ है. "हम भाजपा का बहिष्कार क्यों करेंगे? केवल वही तो एक हिंदू पार्टी है."
कुछ सैनी किसान ऐसे भी हैं जिनकी चल रहे प्रदर्शनों से सहानुभूति कई प्रतिवादों के साथ आती है. शामली के बाहरी इलाके में रहने वाले सैनी किसान 65 वर्षीय जयपाल सिंह कहते हैं कि गन्ने की खेती अब इस इलाके में फायदे का धंधा नहीं रही. उनका कहना है, "हम अपने पोते पोतियो की स्कूल की फीस और होम लोन नहीं चुका पाते. गायों ने हमारी फसल तबाह कर दी है. वह हमारे गेहूं की फसल खा जाती हैं क्योंकि स्थानीय गौशालाएं उन्हें रात को बाहर निकाल देती हैं."
जब भाकियू ने शामली में महापंचायत रखी थी तो जयपाल ने प्रदर्शनों के लिए पैसा भी दान किया था. लेकिन वह यह दावा खारिज करते हैं कि सभी समाज उसके समर्थन में हैं. वे कहते हैं, "यह केवल कहने वाली बात है कि सभी 36 जातियां इसका समर्थन करती हैं जबकि केवल जाट ही इसमें शामिल हैं."
जयपाल का प्रदर्शनों में हिस्सा लेने का कारण प्रदर्शनों का भाजपा विरोधी पहलू है. वे कहते हैं, “उन्होंने जब से पार्टी बनी है तब से उसे ही वोट दिया है और आगे भी देते रहेंगे. भले ही वह कोई काम ना करे." वे यह भी जोड़ते हैं कि वह प्रधानमंत्री द्वारा संसद में सोमवार को कही बात "एमएसपी था, एमएसपी है और एमएसपी आगे भी रहेगा" पर विश्वास रखते हैं.
जयपाल का कहना है, "भले ही मोदी से कुछ गलतियां हुई हों, लेकिन उन्होंने एक काम ठीक से किया, जैसे उन्होंने कोविड-19 को नियंत्रित किया अगर नहीं किया होता, तो केवल भारत ही नहीं दुनिया ही तबाह हो गई होती."
उन्हें इस बात का विश्वास कैसे है. उन्होंने झट से जवाब दिया, "मैंने यह रिपब्लिक भारत पर देखा. हम उसे हर सुबह और शाम को देखते हैं."