आवाज को दबा देने के लिए 29 फीसदी मामलों में लिया गया गिरफ़्तारी का सहारा
रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2020 से 31 दिसंबर 2020 के बीच प्रताड़ना के 919 मामले सामने आए हैं. हालांकि इनमें धमकी देने और निगरानी करने के मामलों को शामिल नहीं किया गया है क्योंकि यह ऐसे मामले हैं जिनका पाला अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे लोगों से रोज ही पड़ता है. यदि हत्या को छोड़ दें तो करीब 29 फीसदी मामलों में आवाज को दबा देने के लिए गिरफ़्तारी या फिर नजरबन्द करने का सहारा लिया गया है. वहीं 19 फीसदी मामलों में इन लोगों के लिए कानूनी कार्रवाई की गई है. शर्मनाक है कि 13 फीसदी में उनपर हमला किया गया था जबकि 7 फीसदी मामलों में अलग-अलग तरीकों से उनका उत्पीड़न किया गया था. वहीं 6 फीसदी मामलों में उनके दफ्तरों और घरों पर छापा मारा गया और 5 फीसदी मामले में उन्हें अलग-अलग तरीकों से कष्ट दिया गया था.
यदि प्रताड़ना की बात करें तो इस बार भी पर्यावरण, जमीन और आदिवासियों के हकों के लिए लड़ने वालों को सबसे ज्यादा तंग किया गया था. प्रताड़ना के कुल मामलों में 21 फीसदी मामले इन्हीं लोगों के खिलाफ सामने आए हैं. जबकि महिला हकों की लड़ाई लड़ रहे 11 फीसदी लोगों को तरह-तरह से प्रताड़ित किया गया था. सबसे शर्म की बात है की इसके लिए सरकारी मशीनरी का भी सहारा लिया गया था.
आप ऐसे समाज को क्या कहेंगे जहां इंसान के हकों के लिए आवाज बुलंद करने वालों को ही मार दिया जाता है या फिर उन्हें चुप कराने के लिए तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है. हालांकि ज्यादातर मामले 25 देशों में ही सामने आए हैं. पर ऐसा होना न केवल किसी देश के लिए बल्कि पूरे मानव समाज के लिए खतरा है. जहां लोगों की भलाई के लिए उठने वाली आवाज को कुछ लोगों के फायदे के लिए दबा दिया जाता है.
(साभार- डाउन टू अर्थ)
आवाज को दबा देने के लिए 29 फीसदी मामलों में लिया गया गिरफ़्तारी का सहारा
रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2020 से 31 दिसंबर 2020 के बीच प्रताड़ना के 919 मामले सामने आए हैं. हालांकि इनमें धमकी देने और निगरानी करने के मामलों को शामिल नहीं किया गया है क्योंकि यह ऐसे मामले हैं जिनका पाला अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे लोगों से रोज ही पड़ता है. यदि हत्या को छोड़ दें तो करीब 29 फीसदी मामलों में आवाज को दबा देने के लिए गिरफ़्तारी या फिर नजरबन्द करने का सहारा लिया गया है. वहीं 19 फीसदी मामलों में इन लोगों के लिए कानूनी कार्रवाई की गई है. शर्मनाक है कि 13 फीसदी में उनपर हमला किया गया था जबकि 7 फीसदी मामलों में अलग-अलग तरीकों से उनका उत्पीड़न किया गया था. वहीं 6 फीसदी मामलों में उनके दफ्तरों और घरों पर छापा मारा गया और 5 फीसदी मामले में उन्हें अलग-अलग तरीकों से कष्ट दिया गया था.
यदि प्रताड़ना की बात करें तो इस बार भी पर्यावरण, जमीन और आदिवासियों के हकों के लिए लड़ने वालों को सबसे ज्यादा तंग किया गया था. प्रताड़ना के कुल मामलों में 21 फीसदी मामले इन्हीं लोगों के खिलाफ सामने आए हैं. जबकि महिला हकों की लड़ाई लड़ रहे 11 फीसदी लोगों को तरह-तरह से प्रताड़ित किया गया था. सबसे शर्म की बात है की इसके लिए सरकारी मशीनरी का भी सहारा लिया गया था.
आप ऐसे समाज को क्या कहेंगे जहां इंसान के हकों के लिए आवाज बुलंद करने वालों को ही मार दिया जाता है या फिर उन्हें चुप कराने के लिए तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है. हालांकि ज्यादातर मामले 25 देशों में ही सामने आए हैं. पर ऐसा होना न केवल किसी देश के लिए बल्कि पूरे मानव समाज के लिए खतरा है. जहां लोगों की भलाई के लिए उठने वाली आवाज को कुछ लोगों के फायदे के लिए दबा दिया जाता है.
(साभार- डाउन टू अर्थ)