यूपी के माइग्रेशन बेल्ट में जारी है असंगठित मजदूरों का प्रवास दंश

चमोली त्रासदी ने प्रवासी मजदूरों के ढ़के हुए गहरे जख्मों को फिर से उधेड़ दिया है. हादसे में बच गए हीरालाल ने कहा कि वो लगातार विकृत लाशें देख रहे लेकिन उनके भाई का शव नहीं मिल पाया है.

WrittenBy:विवेक मिश्रा
Date:
Article image
  • Share this article on whatsapp

वहीं देश का सबसे बड़ा अंतरराज्यीय पलायन लॉकडाउन के दौरान हुआ. इस बीच 16 मई से 31 मई, 2020 तक मजदूरों के साथ पैदल यात्रा में पाया गया था कि जब प्रवासी घरों को लौट रहे थे तो उत्तर प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रों में शामिल बुलंदशहर और हापुड़ जैसे जिलों के बीच कई ठेकेदारों ने मजदूरों को सड़क पर लाकर छोड़ दिया था. यह सारे मजदूर बिना किसी करार और सुरक्षा के मिलों में काम करते थे.

लॉकडाउन के दौरान मनरेगा के कामों में बढ़ोत्तरी और सरकार की अन्न वितरण व्यवस्था ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था और प्रवासी श्रमिकों को सहारा जरूर दिया लेकिन स्थानीय स्तर पर ऐसा रोजागार जो मजबूती और स्थायित्व दे सके वह काम नहीं हो सका. यहां तक कि मजदूरों के नाम और पतों को भी सही से डाटाबेस में नहीं लिया गया.

चमोली त्रासदी में भी लापता और मृत हुए मजदूरों की बड़ी संख्या लखीमपुर और श्रावस्ती जैसे जिलों की है, जहां न ही उनके श्रमिक कार्यालयों में रजिस्ट्रेशन हैं और न ही उनकी कोई जानकारी. इस आपदा संकट के बाद उनके नाम सामने आए हैं.

लखीमपुर के जिलाधिकारी एसके सिंह ने कहा "अक्सर मजदूर बेहतर जिंदगी और ज्यादा मजदूरी की चाहत में महानगरों और दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं. लखीमपुर एक ग्रामीण अंचल वाला जिला है, इसलिए यहां पलायन जारी रहता है. लॉकडाउन के दौरान जिन मजदूरों के हुनर और रोजगार को लेकर रजिस्ट्रेशन व डाटाबेस बनाने की तैयारी हुई थी वह 100 फीसदी पूरी नहीं हो सकी."

यही हाल अन्य जिलों का भी है, लॉकडाउन के दौरान जिलों में सभी श्रमिकों के गांव-घर वापसी के दौरान जुटाए गए आंकड़ों का काम आधा-अधूरा रहा, वहीं रिवर्स पलायन की स्थिति को बिल्कुल भी शासन-प्रशासन की ओर से प्रबंधित नहीं किया गया. जबकि 16 जून, 2020 को शासनादेश में सरकार ने कहा था कि जो श्रमिक वापस अपने कार्यस्थल पर लौटना चाहते हैं उनके लिए जिले में विकास खंड स्तर पर हेल्पडेस्क बनाए जाएंगे.

बहरहाल, चमोली में आपदा प्रबंधन में जुटी टीमों के मुताबिक रेस्क्यू ऑपरेशन के छठवे दिन तक इस त्रासदी में अब तक 36 शव मिले हैं और 200 से अधिक लोग अब भी लापता हैं. एनटीपीसी हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट के टनेल की खुदाई जारी है.

बिना करार और सुरक्षा के एक राज्य से दूसरे राज्य (इंटर स्टेट) में श्रमिकों के प्रवास की समस्या का मुद्दा ज्वलंत बन गया है. हमारी जनगणना के आंकड़ों में इंटर स्टेट प्रवास की कोई सूचना नहीं मिलती है. आवास एवं शहरी गरीबी उपश्मन मंत्रालय के 18 सदस्यीय विशेषज्ञों ने "रिपोर्ट ऑफ द वर्किंग ग्रुप ऑफ माइग्रेशन-2017" में यह सिफारिश की थी कि जनगणना में सुधार किया जाना चाहिए.

2011 की जनगणना के मुताबिक दिल्ली में बाहरी राज्यों से आए हुए एसटी वर्ग के प्रवासी श्रमिकों को राज्य के एसटी वर्ग की सूची में अधिसूचित नहीं किया गया है. जबकि नेशनल सैंपल सर्वे 2011-12 की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में पांच लाख ऐसे लोगों ने खुद को एसटी वर्ग का बताया है जो प्रवासी की परिभाषा में पूरी तरह से फिट हैं.

लखीमपुर व श्रावस्ती जिलों के जो 42 श्रमिक हैं उनमें थारु जनजाति (एसटी वर्ग) के करीब 11 लोग शामिल हैं. इनमें तीन लोगों के जीवित होने की पुष्टि है और शेष लापता हैं. एसके सिंह ने बताया कि कंपनी से प्रवासी श्रमिकों के घर वालों को क्या मुआवजा दिया जाना है, यह बातचीत अभी जारी है.

त्रासदी से बच गए मजदूर चमोली के कैंप में हैं और लाशों की पहचान और लापता लोगों की तलाश जारी है.

(साभार- डाउन टू अर्थ)

वहीं देश का सबसे बड़ा अंतरराज्यीय पलायन लॉकडाउन के दौरान हुआ. इस बीच 16 मई से 31 मई, 2020 तक मजदूरों के साथ पैदल यात्रा में पाया गया था कि जब प्रवासी घरों को लौट रहे थे तो उत्तर प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रों में शामिल बुलंदशहर और हापुड़ जैसे जिलों के बीच कई ठेकेदारों ने मजदूरों को सड़क पर लाकर छोड़ दिया था. यह सारे मजदूर बिना किसी करार और सुरक्षा के मिलों में काम करते थे.

लॉकडाउन के दौरान मनरेगा के कामों में बढ़ोत्तरी और सरकार की अन्न वितरण व्यवस्था ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था और प्रवासी श्रमिकों को सहारा जरूर दिया लेकिन स्थानीय स्तर पर ऐसा रोजागार जो मजबूती और स्थायित्व दे सके वह काम नहीं हो सका. यहां तक कि मजदूरों के नाम और पतों को भी सही से डाटाबेस में नहीं लिया गया.

चमोली त्रासदी में भी लापता और मृत हुए मजदूरों की बड़ी संख्या लखीमपुर और श्रावस्ती जैसे जिलों की है, जहां न ही उनके श्रमिक कार्यालयों में रजिस्ट्रेशन हैं और न ही उनकी कोई जानकारी. इस आपदा संकट के बाद उनके नाम सामने आए हैं.

लखीमपुर के जिलाधिकारी एसके सिंह ने कहा "अक्सर मजदूर बेहतर जिंदगी और ज्यादा मजदूरी की चाहत में महानगरों और दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं. लखीमपुर एक ग्रामीण अंचल वाला जिला है, इसलिए यहां पलायन जारी रहता है. लॉकडाउन के दौरान जिन मजदूरों के हुनर और रोजगार को लेकर रजिस्ट्रेशन व डाटाबेस बनाने की तैयारी हुई थी वह 100 फीसदी पूरी नहीं हो सकी."

यही हाल अन्य जिलों का भी है, लॉकडाउन के दौरान जिलों में सभी श्रमिकों के गांव-घर वापसी के दौरान जुटाए गए आंकड़ों का काम आधा-अधूरा रहा, वहीं रिवर्स पलायन की स्थिति को बिल्कुल भी शासन-प्रशासन की ओर से प्रबंधित नहीं किया गया. जबकि 16 जून, 2020 को शासनादेश में सरकार ने कहा था कि जो श्रमिक वापस अपने कार्यस्थल पर लौटना चाहते हैं उनके लिए जिले में विकास खंड स्तर पर हेल्पडेस्क बनाए जाएंगे.

बहरहाल, चमोली में आपदा प्रबंधन में जुटी टीमों के मुताबिक रेस्क्यू ऑपरेशन के छठवे दिन तक इस त्रासदी में अब तक 36 शव मिले हैं और 200 से अधिक लोग अब भी लापता हैं. एनटीपीसी हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट के टनेल की खुदाई जारी है.

बिना करार और सुरक्षा के एक राज्य से दूसरे राज्य (इंटर स्टेट) में श्रमिकों के प्रवास की समस्या का मुद्दा ज्वलंत बन गया है. हमारी जनगणना के आंकड़ों में इंटर स्टेट प्रवास की कोई सूचना नहीं मिलती है. आवास एवं शहरी गरीबी उपश्मन मंत्रालय के 18 सदस्यीय विशेषज्ञों ने "रिपोर्ट ऑफ द वर्किंग ग्रुप ऑफ माइग्रेशन-2017" में यह सिफारिश की थी कि जनगणना में सुधार किया जाना चाहिए.

2011 की जनगणना के मुताबिक दिल्ली में बाहरी राज्यों से आए हुए एसटी वर्ग के प्रवासी श्रमिकों को राज्य के एसटी वर्ग की सूची में अधिसूचित नहीं किया गया है. जबकि नेशनल सैंपल सर्वे 2011-12 की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में पांच लाख ऐसे लोगों ने खुद को एसटी वर्ग का बताया है जो प्रवासी की परिभाषा में पूरी तरह से फिट हैं.

लखीमपुर व श्रावस्ती जिलों के जो 42 श्रमिक हैं उनमें थारु जनजाति (एसटी वर्ग) के करीब 11 लोग शामिल हैं. इनमें तीन लोगों के जीवित होने की पुष्टि है और शेष लापता हैं. एसके सिंह ने बताया कि कंपनी से प्रवासी श्रमिकों के घर वालों को क्या मुआवजा दिया जाना है, यह बातचीत अभी जारी है.

त्रासदी से बच गए मजदूर चमोली के कैंप में हैं और लाशों की पहचान और लापता लोगों की तलाश जारी है.

(साभार- डाउन टू अर्थ)

subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like