मोबाइल कंपनियां अपने रिकॉर्ड किए गए एक संदेश में किसी उपभोक्ता को यह जानकारी देती हैं कि दूसरे उपभोक्ता के मोबाइल से संपर्क नहीं हो सकता है.
पत्र में कार्रवाई करने की मांग की गई हैं
पत्र में उन मोबाइल कंपनियों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की गई हैं जिन्होंने निजीत्व का ध्यान नहीं रखा है. पत्र में यह उल्लेख किया गया है कि मोबाइल सेवाएं देने वाली कंपनियां उपभोक्ताओं को शायद इस रूप में देखती है कि उपभोक्ताओं को चाहें जैसी भाषा, स्वर व शैली में वे संदेश भी दिए जा सकते हैं जो कि उन्हें आहत, अपमानित व उनके लिए अस्वीकार्य होता है.
पूरी दुनिया में जहां भी नागरिक के निजता (प्राइवेसी) की सुरक्षा और सम्मान की गारंटी होती है, उसे लोकतंत्र के लिए सबसे मजबूत व खूबसूरत माना जाता हैं. यह किसी भी देश में लोकतंत्र के प्रति सजगता का एक मानक होता है. भारत में नागरिकों के निजता में किसी भी बाहरी मसलन किसी भी सत्ता संस्थान व गैर सरकारी संस्था-संस्थान के साथ किसी दूसरे नागरिक द्वारा भी हस्तक्षेप को नागरिक व मानव अधिकारों के हनन के तौर पर लिया जाता है.
पत्र में सुझाव
1- देश में मोबाइल सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियां अपने उपभोक्ताओं के लिए कई तरह के रेकॉर्ड संदेश प्रसारित करती हैं. इन संदेशों का नागरिक व मानव अधिकारों की सुरक्षा के मद्देनजर सरकार व उसके मातहत वाली संस्थाओं व आम नागरिकों के संवेदनशील प्रतिनिधियों की समिति द्वारा अध्ययन किया जाना चाहिए, यह सुझाव दिया गया हैं.
2- मोबाइल कंपनियों को उन तमाम संदेशों को अपने उपभोक्ताओं के बीच प्रस्तुत करना चाहिए जो कि उपभोक्ताओं द्वारा उनकी सेवाएं लेने के साथ उन्हें मिलनी शुरू होती हैं. उपभोक्ताओं से उनकी यह इच्छा पूछी जानी चाहिए कि वे किसी तरह के संदेशों को स्वीकार करना पसंद करेंगे. उपभोक्ताओं द्वारा संदेशों की भाषा व शैली के लिए कोई सुझाव हो तो उन सुझावों को भी दर्ज करने और तदानुसार उस पर विचार करने की व्यवस्था की जानी चाहिए. उनकी भाषा क्या है , यह भी पूछा जाना चाहिए. यदि हिन्दी भाषी उपभोक्ता को अंग्रेजी व किसी दूसरी भाषा में संदेश मिलता है तो वह उसपर एक अतिरिक्त बोझ हैं. बल्कि यह उसके लिए वह कूड़े के समान है जिसका बोझ उठाने के लिए उसे अभिशप्त समझा जाता है.
3- मोबाइल सेवा कंपनियों के संदेशों की प्रक्रिया मानवीय समाज के लिए बेहद संवेदनशील होती है. संवेदनशीलता का अभाव नागरिकों के मानवीय भावों व स्वभावों को बुरी तरह प्रभावित करता है जिसका दूरगामी असर समाज और उसकी संस्कृति पर पड़ता है.
पत्र में कार्रवाई करने की मांग की गई हैं
पत्र में उन मोबाइल कंपनियों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की गई हैं जिन्होंने निजीत्व का ध्यान नहीं रखा है. पत्र में यह उल्लेख किया गया है कि मोबाइल सेवाएं देने वाली कंपनियां उपभोक्ताओं को शायद इस रूप में देखती है कि उपभोक्ताओं को चाहें जैसी भाषा, स्वर व शैली में वे संदेश भी दिए जा सकते हैं जो कि उन्हें आहत, अपमानित व उनके लिए अस्वीकार्य होता है.
पूरी दुनिया में जहां भी नागरिक के निजता (प्राइवेसी) की सुरक्षा और सम्मान की गारंटी होती है, उसे लोकतंत्र के लिए सबसे मजबूत व खूबसूरत माना जाता हैं. यह किसी भी देश में लोकतंत्र के प्रति सजगता का एक मानक होता है. भारत में नागरिकों के निजता में किसी भी बाहरी मसलन किसी भी सत्ता संस्थान व गैर सरकारी संस्था-संस्थान के साथ किसी दूसरे नागरिक द्वारा भी हस्तक्षेप को नागरिक व मानव अधिकारों के हनन के तौर पर लिया जाता है.
पत्र में सुझाव
1- देश में मोबाइल सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियां अपने उपभोक्ताओं के लिए कई तरह के रेकॉर्ड संदेश प्रसारित करती हैं. इन संदेशों का नागरिक व मानव अधिकारों की सुरक्षा के मद्देनजर सरकार व उसके मातहत वाली संस्थाओं व आम नागरिकों के संवेदनशील प्रतिनिधियों की समिति द्वारा अध्ययन किया जाना चाहिए, यह सुझाव दिया गया हैं.
2- मोबाइल कंपनियों को उन तमाम संदेशों को अपने उपभोक्ताओं के बीच प्रस्तुत करना चाहिए जो कि उपभोक्ताओं द्वारा उनकी सेवाएं लेने के साथ उन्हें मिलनी शुरू होती हैं. उपभोक्ताओं से उनकी यह इच्छा पूछी जानी चाहिए कि वे किसी तरह के संदेशों को स्वीकार करना पसंद करेंगे. उपभोक्ताओं द्वारा संदेशों की भाषा व शैली के लिए कोई सुझाव हो तो उन सुझावों को भी दर्ज करने और तदानुसार उस पर विचार करने की व्यवस्था की जानी चाहिए. उनकी भाषा क्या है , यह भी पूछा जाना चाहिए. यदि हिन्दी भाषी उपभोक्ता को अंग्रेजी व किसी दूसरी भाषा में संदेश मिलता है तो वह उसपर एक अतिरिक्त बोझ हैं. बल्कि यह उसके लिए वह कूड़े के समान है जिसका बोझ उठाने के लिए उसे अभिशप्त समझा जाता है.
3- मोबाइल सेवा कंपनियों के संदेशों की प्रक्रिया मानवीय समाज के लिए बेहद संवेदनशील होती है. संवेदनशीलता का अभाव नागरिकों के मानवीय भावों व स्वभावों को बुरी तरह प्रभावित करता है जिसका दूरगामी असर समाज और उसकी संस्कृति पर पड़ता है.