नवदीप कौर और शिव कुमार की गिरफ्तारी और उगाही का सच

हरियाणा पुलिस ने नवदीप कौर और शिव कुमार को जेल भेज दिया है. दोनों पर संगीन धाराओं में मामला दर्ज है, इसमें कंपनियों से अवैध वसूली भी शामिल है. इस आरोप में कितनी सच्चाई है?

WrittenBy:बसंत कुमार
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क्या आपकी जानकारी में है कि ये किसी कंपनी मालिक से मज़दूरों के पैसे दिलाने के अलावा अपने लिए वसूली भी करते थे. इस सवाल के जवाब में गुप्ता कहते हैं, ‘‘मुझे इसकी जानकारी नहीं है क्योंकि बीते दो महीने से मैं कुंडली गया ही नहीं. लेकिन जो मुझे पता है उसमें पैसे वैसे की तो कोई बात नहीं है. इनका क्या मकसद था ये पता नहीं.’’

सिंघु बॉर्डर पर नवदीप और शिव कुमार को छोड़ने के लिए चला हस्ताक्षर कैंपेन

शिव कुमार और नवदीप के साथ काम करने वाले नौजवानों और कुछ मज़दूरों से न्यूजलॉन्ड्री ने बात की. पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ भी मामला दर्ज कर रखा है इसलिए वे अपनी पहचान जाहिर करने से बच रहे हैं. शिव कुमार के सोनीपत के देबहु गांव के रहने एक नौजवान से हमने बात की.

राजीव (बदला नाम) शिव को बचपन से जानते हैं और आईटीआई के दिनों से आंदोलनों में उनके साथी रहे हैं. वसूली के सवाल पर वे कहते हैं, ‘‘शिव कॉलेज में कॉलेज की सुविधाओं के लिए संघर्ष करता था. पढ़ाई के बाद जब उसकी कुंडली इलाके में नौकरी लगी तो यहां के मज़दूरों की बदहाली और मालिकों द्वारा उनके शोषण को देखकर उसने मज़दूर अधिकार संगठन बनाया. नवदीप भी उसी संगठन में शामिल थी. ये लोग उन मज़दूरों के पैसे दिलाते थे जिनके मालिक नहीं देते थे.’’

राजीव आगे कहते हैं, ‘‘कोरोना काल में अचानक लॉकडाउन लगने से कई मज़दूरों के पैसे मालिक नहीं दे रहे थे. इन्होंने प्रदर्शन करके करीब पांच लाख रुपए अलग-अलग मज़दूरों के दिलवाये हैं. जहां तक रही वसूली की बात तो आपको लगता है कि करोड़ो रुपए के कंपनी मालिक पचास लोगों जिनके हाथ में झंडा होता है उनसे पैसे देंगे? और अगर कोई पैसा देगा भी तो शिकायत नहीं करेगा. ऐसा मुमकिन ही नहीं है. पुलिस कंपनी मालिकों के साथ मिलकर फर्जी आरोप लगा रही है ताकि यहां मज़दूरों का शोषण पहले की तरह जारी रहे.’’

नवदीप कौर की बड़ी बहन राजवीर कौर दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रही हैं. राजवीर भगत सिंह छात्र एकता मंच से जुड़ी रही हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी में सक्रिय भगत सिंह छात्र एकता मंच अलग-अलग मामलों पर प्रदर्शन करता रहा है. इनमें से कुछ आंदोलन में नवदीप भी शामिल हुई है.

राजवीर बताती है, ‘‘आर्थिक कारणों से 12 वीं करने के बाद नवदीप को पढ़ाई रोकनी पड़ी. पांच महीने पहले ही वो कुंडली इलाके की एक कंपनी में काम करने लगी. हमने सोचा था कि कुछ दिनों बाद ग्रेजुएशन में उसका एडमिशन करा देंगे. पार्ट टाइम वो वहां काम करेगी. फिर किसान आंदोलन शुरू हुआ जिसमें वो शामिल होने लगी जिसके कारण उसे काम से हटा दिया गया. उसका पैसा रोक दिया गया था. मज़दूर अधिकार संगठन के सहयोग से ही उसके पैसे मिले. इसके बाद ही वो इस संगठन में सक्रिय रूप से शामिल हो गई और जिन मज़दूरों के पैसे बकाया थे उन्हें दिलवाते थे.’’

अंशु दास गुप्ता के आरोपों पर जवाब देते हुए राजवीर कहती हैं, ‘‘ऐसा नहीं था कि ये लोग हर कंपनी में खुद ही पहुंच जाते थे. कई मामलों में इन्होंने लेवर कोर्ट का रास्ता भी अपनाया है. इन्होंने बकायदा एक डायरी बनाई थी जिसमें लिखा है कि किस कंपनी पर किस मज़दूर का कितना बकाया है और किसके-किसके इन्होंने पैसे दिलवाये हैं. अब किसी मज़दूर का सात-आठ हज़ार का बकाया हो तो वो वकील करके लेवर कोर्ट में केस लड़ सकता है. जिन मामलों में कम पैसे होते थे उन्हीं मामलों में प्रदर्शन कर और कंपनी मालिक को पत्र देकर ये मज़दूरों का पैसे दिलवाते थे.’’

तीनों एफआईआर में लगे वसूली के आरोप को राजवीर निराधार बताती हैं. वो कहती हैं, ‘‘पुलिस कोई भी आरोप लगा सकती है. नवदीप मज़दूरों को उनका बकाया दिलाने के लिए सघर्ष करती थी. लॉकडाउन में कई मज़दूरों के पैसे कंपनी ने रख लिए थे. जब इस संगठन की मदद से नवदीप का खुद का बकाया मिला तो वो बाकी मज़दूरों के लिए संघर्ष करने लगी.’’

शिव कुमार के पिता का भी नाम राजवीर ही है. जिनके पास अपना कोई खेत नहीं है. वे दूसरों के खेतों में काम कर परिवार चलाते हैं.

55 वर्षीय राजवीर से न्यूजलॉन्ड्री ने जब वसूली को लेकर सवाल किया तो वे सीधे इससे इंकार करते हैं. वे कहते हैं, ‘‘इन्हें फंसाया जा रहा है. मैं तो जानता तक नहीं था कि वो मज़दूरों के लिए आंदोलन करता है. उसकी गिरफ्तारी के बाद जब मैं यहां आया तो पता चला कि मज़दूरों का बकाया दिलाने के लिए वो आंदोलन करता था. मैं कई मज़दूरों से भी मिला जिनके पैसे वो दिलवाया था. ऐसे में वसूली का आरोप लगाना मुझे गलत लगता है. अगर वो वसूली करता तो हम दूसरों के खेतों में मज़दूरी नहीं करते.’’

न्यूजलॉन्ड्री ने कुंडली इलाके की अलग-अलग कई कंपनियों में नवदीप और शिव कुमार को लेकर जानकारी हासिल की तो किसी को भी इनको लेकर खास जानकारी नहीं थी. पचास से ज़्यादा कंपनियों में तैनात गार्ड्स को हमने इनकी तस्वीरें दिखाई लेकिन कोई भी इन्हें पहचान नहीं पाया. सिर्फ गार्ड्स ही नहीं कुंडली इलाके में रेहड़ी लगाने वालों से भी हमने इनके कामों को लेकर सवाल किए लेकिन किसी को भी इनकी जानकारी नहीं थी.

पूछताछ के ही क्रम में हमारी मुलाकात बिहार के गया जिले के रहने वाले टुनटुन ठाकुर से हुई जो यहां एक पेड़ के नीचे बीते तीन साल से सैलून चलाते हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए टुनटुन कहते हैं, ‘‘12 जनवरी से चार-पांच दिन पहले झंडा लिए एक भीड़ को देखा था. सामने जो कंपनी दिख रही है इसके गेट के आगे उन्होंने कुछ देर तक नारे लगाए और फिर चले गए थे. ये दोनों (नवदीप और शिव) उसमें थे या नहीं मुझे नहीं पता. उसके कुछ दिनों बाद पुलिस से मारपीट का मामला सुना. उस रोज मंगलवार था तो मैं नहीं आया.’’

टुनटुन ठाकुर

टुनटुन ठाकुर जिस कंपनी की तरफ इशारा करके बताते हैं कि यहां कुछ लोग आए थे उसके गार्ड को जब हमने नवदीप और शिव कुमार की तस्वीर दिखाई तो उन्होंने ने भी पहचानने से इंकार कर दिया.

शिव कुमार और नवदीप कौर की गिरफ्तारी को लेकर पुलिस पर उठते सवाल

एक तरफ जहां नवदीप कौर की गिरफ्तारी के बाद पुलिस पर कई आरोप लगे वहीं शिव कुमार की गिरफ्तारी पर ही कई सवाल खड़े हो रहे हैं.

नवदीप कौर की गिरफ्तारी और उनके द्वारा लगाए गए तमाम आरोपों के सवाल पर एसएचओ रवि कुमार कहते हैं, ‘‘आरोप लगाने दीजिए. हमारे पास तमाम सवालों के कागजी जवाब हैं. हम कोर्ट में तमाम सवालों का जवाब देंगे. हमारे पास वो वीडियो है जिसमें हमारे अधिकारियों के ऊपर हमले हुए. सबका मेडिकल हुआ है. नवदीप की गिरफ्तारी भी महिला पुलिसकर्मी द्वारा ही की गई. उन्हें डॉक्टर के पास जब लेकर गए तब भी महिला कर्मचारी ही उनके साथ थी. हमने उन्हें कुंडली थाने में घंटा भर भी नहीं रखा. उसी दिन उन्हें जेल भेज दिया गया. हमारे पास मेडिकल करने वाली डॉक्टर्स का भी हस्ताक्षर है. हम हर सवाल का जवाब देंगे.’’

शिव कुमार के साथियों और उनके परिजनों की माने तो पुलिस ने उन्हें 16 जनवरी को गिरफ्तार किया लेकिन इसकी कोई जानकारी नहीं दी. करीब 15 दिन बाद शिव कुमार ने जैसे-तैसे अपने परिजनों तक अपने गिरफ्तार होने की जानकारी पहुंचाई. हालांकि उनको गिरफ्तार करने वाले एसएचओ रवि कुमार कहते हैं, ‘‘शिव को 23 जनवरी को गिरफ्तार किया गया. उनकी गिरफ्तारी के बाद उनके परिजनों को इसकी जानकारी भी दी गई. गिरफ्तारी के कागज पर उनकी मां का हस्ताक्षर भी है.’’

रवि कुमार के दावे पर शिव कुमार के पिता राजवीर कहते हैं, ‘‘23 जनवरी की रात 9 बजे कुछ पुलिस वाले मेरे घर आए थे. मैं तब घर पर नहीं था. घर पर बच्चे और मेरी पत्नी थी. मेरी पत्नी पढ़ी लिखी भी नहीं है और वो मेंटल हेल्थ से गुजर रही है. उन्होंने पूछा कि शिव कुमार कहां है? बच्चों ने बताया कि यहां नहीं है तो उन्होंने बोला कि आए तो सरेंडर करने के लिए कहना. इतना कहने के बाद उन्होंने एक कागज पर मेरी बीमार पत्नी से हस्ताक्षर करा लिए. हमने तो एक फरवरी को शिव की गिरफ्तारी का पता चला. हम लोग अभी तक उससे मिल तक नहीं पाए हैं.’’

राजवीर आगे कहते हैं, ‘‘पुलिस ने उसे क्यों गिरफ्तार किया मुझे समझ नहीं आ रहा है. 12 जनवरी को जो कुछ हुआ उसमें तो शिव शामिल ही नहीं था. उन दिनों वो बीमार चल रहा था. हमें मिलने तक नहीं दिया जा रहा है. न जाने किस हाल में होगा वो.’’

हालांकि रवि कुमार कहते हैं, ‘‘12 जनवरी की घटना के वक़्त शिव मौजूद था. घटना के बाद से ही हमारी उसपर नजर थी. 23 जनवरी को हमने उसे सिंघु बॉर्डर से गिरफ्तार किया. आरोप लगाने को लिए कोई कुछ भी लगा सकता है. गिरफ्तारी के वक़्त उसका मेडिकल कराया गया है. कोर्ट में पेश करके रिमांड लिया गया. उनके परिजनों को इसकी सूचना दी गई. हर कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया.’’

कौर को 28 दिसंबर और 12 जनवरी को दर्ज एफआईआर संख्या 26 में जमानत मिल गई हैं. वहीं एफआईआर संख्या 25 पर चंडीगढ़ हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है. शिव कुमार को अभी किसी भी मामले में जमानत नहीं मिली है.

शिव सोनीपत जेल में बंद हैं वहीं नवदीप कौर करनाल जेल में बंद हैं. गिरफ्तारी के लगभग एक महीने गुजर जाने के बाद भी दोनों के परिजनों से उनकी मुलाकात नहीं हो पाई है.

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क्या आपकी जानकारी में है कि ये किसी कंपनी मालिक से मज़दूरों के पैसे दिलाने के अलावा अपने लिए वसूली भी करते थे. इस सवाल के जवाब में गुप्ता कहते हैं, ‘‘मुझे इसकी जानकारी नहीं है क्योंकि बीते दो महीने से मैं कुंडली गया ही नहीं. लेकिन जो मुझे पता है उसमें पैसे वैसे की तो कोई बात नहीं है. इनका क्या मकसद था ये पता नहीं.’’

सिंघु बॉर्डर पर नवदीप और शिव कुमार को छोड़ने के लिए चला हस्ताक्षर कैंपेन

शिव कुमार और नवदीप के साथ काम करने वाले नौजवानों और कुछ मज़दूरों से न्यूजलॉन्ड्री ने बात की. पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ भी मामला दर्ज कर रखा है इसलिए वे अपनी पहचान जाहिर करने से बच रहे हैं. शिव कुमार के सोनीपत के देबहु गांव के रहने एक नौजवान से हमने बात की.

राजीव (बदला नाम) शिव को बचपन से जानते हैं और आईटीआई के दिनों से आंदोलनों में उनके साथी रहे हैं. वसूली के सवाल पर वे कहते हैं, ‘‘शिव कॉलेज में कॉलेज की सुविधाओं के लिए संघर्ष करता था. पढ़ाई के बाद जब उसकी कुंडली इलाके में नौकरी लगी तो यहां के मज़दूरों की बदहाली और मालिकों द्वारा उनके शोषण को देखकर उसने मज़दूर अधिकार संगठन बनाया. नवदीप भी उसी संगठन में शामिल थी. ये लोग उन मज़दूरों के पैसे दिलाते थे जिनके मालिक नहीं देते थे.’’

राजीव आगे कहते हैं, ‘‘कोरोना काल में अचानक लॉकडाउन लगने से कई मज़दूरों के पैसे मालिक नहीं दे रहे थे. इन्होंने प्रदर्शन करके करीब पांच लाख रुपए अलग-अलग मज़दूरों के दिलवाये हैं. जहां तक रही वसूली की बात तो आपको लगता है कि करोड़ो रुपए के कंपनी मालिक पचास लोगों जिनके हाथ में झंडा होता है उनसे पैसे देंगे? और अगर कोई पैसा देगा भी तो शिकायत नहीं करेगा. ऐसा मुमकिन ही नहीं है. पुलिस कंपनी मालिकों के साथ मिलकर फर्जी आरोप लगा रही है ताकि यहां मज़दूरों का शोषण पहले की तरह जारी रहे.’’

नवदीप कौर की बड़ी बहन राजवीर कौर दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रही हैं. राजवीर भगत सिंह छात्र एकता मंच से जुड़ी रही हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी में सक्रिय भगत सिंह छात्र एकता मंच अलग-अलग मामलों पर प्रदर्शन करता रहा है. इनमें से कुछ आंदोलन में नवदीप भी शामिल हुई है.

राजवीर बताती है, ‘‘आर्थिक कारणों से 12 वीं करने के बाद नवदीप को पढ़ाई रोकनी पड़ी. पांच महीने पहले ही वो कुंडली इलाके की एक कंपनी में काम करने लगी. हमने सोचा था कि कुछ दिनों बाद ग्रेजुएशन में उसका एडमिशन करा देंगे. पार्ट टाइम वो वहां काम करेगी. फिर किसान आंदोलन शुरू हुआ जिसमें वो शामिल होने लगी जिसके कारण उसे काम से हटा दिया गया. उसका पैसा रोक दिया गया था. मज़दूर अधिकार संगठन के सहयोग से ही उसके पैसे मिले. इसके बाद ही वो इस संगठन में सक्रिय रूप से शामिल हो गई और जिन मज़दूरों के पैसे बकाया थे उन्हें दिलवाते थे.’’

अंशु दास गुप्ता के आरोपों पर जवाब देते हुए राजवीर कहती हैं, ‘‘ऐसा नहीं था कि ये लोग हर कंपनी में खुद ही पहुंच जाते थे. कई मामलों में इन्होंने लेवर कोर्ट का रास्ता भी अपनाया है. इन्होंने बकायदा एक डायरी बनाई थी जिसमें लिखा है कि किस कंपनी पर किस मज़दूर का कितना बकाया है और किसके-किसके इन्होंने पैसे दिलवाये हैं. अब किसी मज़दूर का सात-आठ हज़ार का बकाया हो तो वो वकील करके लेवर कोर्ट में केस लड़ सकता है. जिन मामलों में कम पैसे होते थे उन्हीं मामलों में प्रदर्शन कर और कंपनी मालिक को पत्र देकर ये मज़दूरों का पैसे दिलवाते थे.’’

तीनों एफआईआर में लगे वसूली के आरोप को राजवीर निराधार बताती हैं. वो कहती हैं, ‘‘पुलिस कोई भी आरोप लगा सकती है. नवदीप मज़दूरों को उनका बकाया दिलाने के लिए सघर्ष करती थी. लॉकडाउन में कई मज़दूरों के पैसे कंपनी ने रख लिए थे. जब इस संगठन की मदद से नवदीप का खुद का बकाया मिला तो वो बाकी मज़दूरों के लिए संघर्ष करने लगी.’’

शिव कुमार के पिता का भी नाम राजवीर ही है. जिनके पास अपना कोई खेत नहीं है. वे दूसरों के खेतों में काम कर परिवार चलाते हैं.

55 वर्षीय राजवीर से न्यूजलॉन्ड्री ने जब वसूली को लेकर सवाल किया तो वे सीधे इससे इंकार करते हैं. वे कहते हैं, ‘‘इन्हें फंसाया जा रहा है. मैं तो जानता तक नहीं था कि वो मज़दूरों के लिए आंदोलन करता है. उसकी गिरफ्तारी के बाद जब मैं यहां आया तो पता चला कि मज़दूरों का बकाया दिलाने के लिए वो आंदोलन करता था. मैं कई मज़दूरों से भी मिला जिनके पैसे वो दिलवाया था. ऐसे में वसूली का आरोप लगाना मुझे गलत लगता है. अगर वो वसूली करता तो हम दूसरों के खेतों में मज़दूरी नहीं करते.’’

न्यूजलॉन्ड्री ने कुंडली इलाके की अलग-अलग कई कंपनियों में नवदीप और शिव कुमार को लेकर जानकारी हासिल की तो किसी को भी इनको लेकर खास जानकारी नहीं थी. पचास से ज़्यादा कंपनियों में तैनात गार्ड्स को हमने इनकी तस्वीरें दिखाई लेकिन कोई भी इन्हें पहचान नहीं पाया. सिर्फ गार्ड्स ही नहीं कुंडली इलाके में रेहड़ी लगाने वालों से भी हमने इनके कामों को लेकर सवाल किए लेकिन किसी को भी इनकी जानकारी नहीं थी.

पूछताछ के ही क्रम में हमारी मुलाकात बिहार के गया जिले के रहने वाले टुनटुन ठाकुर से हुई जो यहां एक पेड़ के नीचे बीते तीन साल से सैलून चलाते हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए टुनटुन कहते हैं, ‘‘12 जनवरी से चार-पांच दिन पहले झंडा लिए एक भीड़ को देखा था. सामने जो कंपनी दिख रही है इसके गेट के आगे उन्होंने कुछ देर तक नारे लगाए और फिर चले गए थे. ये दोनों (नवदीप और शिव) उसमें थे या नहीं मुझे नहीं पता. उसके कुछ दिनों बाद पुलिस से मारपीट का मामला सुना. उस रोज मंगलवार था तो मैं नहीं आया.’’

टुनटुन ठाकुर

टुनटुन ठाकुर जिस कंपनी की तरफ इशारा करके बताते हैं कि यहां कुछ लोग आए थे उसके गार्ड को जब हमने नवदीप और शिव कुमार की तस्वीर दिखाई तो उन्होंने ने भी पहचानने से इंकार कर दिया.

शिव कुमार और नवदीप कौर की गिरफ्तारी को लेकर पुलिस पर उठते सवाल

एक तरफ जहां नवदीप कौर की गिरफ्तारी के बाद पुलिस पर कई आरोप लगे वहीं शिव कुमार की गिरफ्तारी पर ही कई सवाल खड़े हो रहे हैं.

नवदीप कौर की गिरफ्तारी और उनके द्वारा लगाए गए तमाम आरोपों के सवाल पर एसएचओ रवि कुमार कहते हैं, ‘‘आरोप लगाने दीजिए. हमारे पास तमाम सवालों के कागजी जवाब हैं. हम कोर्ट में तमाम सवालों का जवाब देंगे. हमारे पास वो वीडियो है जिसमें हमारे अधिकारियों के ऊपर हमले हुए. सबका मेडिकल हुआ है. नवदीप की गिरफ्तारी भी महिला पुलिसकर्मी द्वारा ही की गई. उन्हें डॉक्टर के पास जब लेकर गए तब भी महिला कर्मचारी ही उनके साथ थी. हमने उन्हें कुंडली थाने में घंटा भर भी नहीं रखा. उसी दिन उन्हें जेल भेज दिया गया. हमारे पास मेडिकल करने वाली डॉक्टर्स का भी हस्ताक्षर है. हम हर सवाल का जवाब देंगे.’’

शिव कुमार के साथियों और उनके परिजनों की माने तो पुलिस ने उन्हें 16 जनवरी को गिरफ्तार किया लेकिन इसकी कोई जानकारी नहीं दी. करीब 15 दिन बाद शिव कुमार ने जैसे-तैसे अपने परिजनों तक अपने गिरफ्तार होने की जानकारी पहुंचाई. हालांकि उनको गिरफ्तार करने वाले एसएचओ रवि कुमार कहते हैं, ‘‘शिव को 23 जनवरी को गिरफ्तार किया गया. उनकी गिरफ्तारी के बाद उनके परिजनों को इसकी जानकारी भी दी गई. गिरफ्तारी के कागज पर उनकी मां का हस्ताक्षर भी है.’’

रवि कुमार के दावे पर शिव कुमार के पिता राजवीर कहते हैं, ‘‘23 जनवरी की रात 9 बजे कुछ पुलिस वाले मेरे घर आए थे. मैं तब घर पर नहीं था. घर पर बच्चे और मेरी पत्नी थी. मेरी पत्नी पढ़ी लिखी भी नहीं है और वो मेंटल हेल्थ से गुजर रही है. उन्होंने पूछा कि शिव कुमार कहां है? बच्चों ने बताया कि यहां नहीं है तो उन्होंने बोला कि आए तो सरेंडर करने के लिए कहना. इतना कहने के बाद उन्होंने एक कागज पर मेरी बीमार पत्नी से हस्ताक्षर करा लिए. हमने तो एक फरवरी को शिव की गिरफ्तारी का पता चला. हम लोग अभी तक उससे मिल तक नहीं पाए हैं.’’

राजवीर आगे कहते हैं, ‘‘पुलिस ने उसे क्यों गिरफ्तार किया मुझे समझ नहीं आ रहा है. 12 जनवरी को जो कुछ हुआ उसमें तो शिव शामिल ही नहीं था. उन दिनों वो बीमार चल रहा था. हमें मिलने तक नहीं दिया जा रहा है. न जाने किस हाल में होगा वो.’’

हालांकि रवि कुमार कहते हैं, ‘‘12 जनवरी की घटना के वक़्त शिव मौजूद था. घटना के बाद से ही हमारी उसपर नजर थी. 23 जनवरी को हमने उसे सिंघु बॉर्डर से गिरफ्तार किया. आरोप लगाने को लिए कोई कुछ भी लगा सकता है. गिरफ्तारी के वक़्त उसका मेडिकल कराया गया है. कोर्ट में पेश करके रिमांड लिया गया. उनके परिजनों को इसकी सूचना दी गई. हर कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया.’’

कौर को 28 दिसंबर और 12 जनवरी को दर्ज एफआईआर संख्या 26 में जमानत मिल गई हैं. वहीं एफआईआर संख्या 25 पर चंडीगढ़ हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है. शिव कुमार को अभी किसी भी मामले में जमानत नहीं मिली है.

शिव सोनीपत जेल में बंद हैं वहीं नवदीप कौर करनाल जेल में बंद हैं. गिरफ्तारी के लगभग एक महीने गुजर जाने के बाद भी दोनों के परिजनों से उनकी मुलाकात नहीं हो पाई है.

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