उत्तराखंड आपदा: जिन्होंने पावर प्रोजेक्ट्स का विरोध किया वही मलबे के नीचे दबे

“पूरे गांव में धूल मिट्टी का गुबार छा गया. नदी गर्जना कर रही थी. धरती जैसे हिलने लगी. घरों की खिड़कियां बज रही थीं. हमने ऐसा अपनी ज़िन्दगी में कभी नहीं देखा.”

WrittenBy:हृदयेश जोशी
Date:
Article image

पावर प्रोजेक्ट को लेकर सवाल

आपदा के बाद एक बार यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या पावर प्रोजेक्ट और विकास परियोजनायें बिना पूरी प्लानिंग के बेतरतीब तरीके से खड़ी हो रही है. प्रेम सिंह बताते हैं कि गांव वालों को यह ऐहसास था कि इन परियोजनाओं के लिये पहाड़ों में होने वाली ब्लास्टिंग और तोड़फोड़ से नुकसान हो सकता है.

उनके मुताबिक “उस वक़्त कई लोगों ने इस परियोजना का विरोध किया था. फिर हमें समझाया गया कि इससे रोज़गार मिलेगा और यहां खुशहाली आयेगी. बहुत सारे लोग तब सशंकित तो थे लेकिन फिर प्रोजेक्ट शुरू हुआ तो दिल में उम्मीद बंधी.”

प्रेम सिंह ने खुद कुछ साल ऋषिगंगा प्रोजेक्ट में मज़दूरी की. वह बताते हैं कि कैसे इसी गांव के लोग आज मलबे में दबे हैं.

इस बात पर बहस होती रही है कि बड़े-बड़े कितने बांध इन पहाड़ों पर बनने चाहिये. इससे जंगल, पहाड़ों में विस्फोट और सुरंगे खोदने को लेकर सवाल हैं. केदारनाथ आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट की नियुक्त की गई विशेषज्ञ समिति का कहना था कि हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट का आपदा को बढ़ाने में रोल रहा. फिलहाल जो प्रोजेक्ट प्रभावित हुये हैं वह नन्दा देवी बायो स्फियर रिज़र्व के बफर ज़ोन में हैं.

तपोवन विष्णगाड़ प्रोजेक्ट में एनटीपीसी का 520 मेगावॉट का प्लांट पिछले 15 साल से बन रहा है. गांव वाले बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट के प्रस्ताव पर इतना विरोध हुआ था कि इसका उद्घाटन प्रस्तावित जगह पर नहीं बल्कि राजधानी देहरादून में करना पड़ा. अभी इन दोनों प्रोजेक्ट्स के मलबे में स्थानीय मज़दूर ही नहीं झारखंड, बिहार, जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल, यूपी और नेपाल के लोग फंसे हैं.

प्रेम सिंह कहते हैं, “हम पढ़े लिखे लोग नहीं हैं. हम बस सरकार से इतना चाहते हैं कि असुरक्षित हो चुके इन गांवों से हटाकर हमें कहीं और बसा दे और कुछ रोज़गार दे. हम दिल्ली देहरादून जाने की मांग नहीं कर रहे पर हमें सुरक्षित जगहों में बसाया जाये क्योंकि यहां रहना अब खतरे से खाली नहीं है.”

Also see
article imageउत्तराखंड आपदा: राहत और बचाव का काम सेना के हवाले, 200 लोग लापता, 28 शव बरामद
article imageउत्तराखंड ग्राउंड जीरो से चश्मदीद की पहली रिपोर्ट: 30-40 लोग मलबे में दबते देखे और कुछ पानी में बह गये

पावर प्रोजेक्ट को लेकर सवाल

आपदा के बाद एक बार यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या पावर प्रोजेक्ट और विकास परियोजनायें बिना पूरी प्लानिंग के बेतरतीब तरीके से खड़ी हो रही है. प्रेम सिंह बताते हैं कि गांव वालों को यह ऐहसास था कि इन परियोजनाओं के लिये पहाड़ों में होने वाली ब्लास्टिंग और तोड़फोड़ से नुकसान हो सकता है.

उनके मुताबिक “उस वक़्त कई लोगों ने इस परियोजना का विरोध किया था. फिर हमें समझाया गया कि इससे रोज़गार मिलेगा और यहां खुशहाली आयेगी. बहुत सारे लोग तब सशंकित तो थे लेकिन फिर प्रोजेक्ट शुरू हुआ तो दिल में उम्मीद बंधी.”

प्रेम सिंह ने खुद कुछ साल ऋषिगंगा प्रोजेक्ट में मज़दूरी की. वह बताते हैं कि कैसे इसी गांव के लोग आज मलबे में दबे हैं.

इस बात पर बहस होती रही है कि बड़े-बड़े कितने बांध इन पहाड़ों पर बनने चाहिये. इससे जंगल, पहाड़ों में विस्फोट और सुरंगे खोदने को लेकर सवाल हैं. केदारनाथ आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट की नियुक्त की गई विशेषज्ञ समिति का कहना था कि हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट का आपदा को बढ़ाने में रोल रहा. फिलहाल जो प्रोजेक्ट प्रभावित हुये हैं वह नन्दा देवी बायो स्फियर रिज़र्व के बफर ज़ोन में हैं.

तपोवन विष्णगाड़ प्रोजेक्ट में एनटीपीसी का 520 मेगावॉट का प्लांट पिछले 15 साल से बन रहा है. गांव वाले बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट के प्रस्ताव पर इतना विरोध हुआ था कि इसका उद्घाटन प्रस्तावित जगह पर नहीं बल्कि राजधानी देहरादून में करना पड़ा. अभी इन दोनों प्रोजेक्ट्स के मलबे में स्थानीय मज़दूर ही नहीं झारखंड, बिहार, जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल, यूपी और नेपाल के लोग फंसे हैं.

प्रेम सिंह कहते हैं, “हम पढ़े लिखे लोग नहीं हैं. हम बस सरकार से इतना चाहते हैं कि असुरक्षित हो चुके इन गांवों से हटाकर हमें कहीं और बसा दे और कुछ रोज़गार दे. हम दिल्ली देहरादून जाने की मांग नहीं कर रहे पर हमें सुरक्षित जगहों में बसाया जाये क्योंकि यहां रहना अब खतरे से खाली नहीं है.”

Also see
article imageउत्तराखंड आपदा: राहत और बचाव का काम सेना के हवाले, 200 लोग लापता, 28 शव बरामद
article imageउत्तराखंड ग्राउंड जीरो से चश्मदीद की पहली रिपोर्ट: 30-40 लोग मलबे में दबते देखे और कुछ पानी में बह गये

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like