लॉकडाउन के दौरान गांव में बेरोजगारी को कम करने व भूख शांत करने का बड़ा जरिया मनरेगा बनकर उभरा था, भारी मांग के बावजूद बजट में कमी की गई है.
जानकारों के मुताबिक कोविड-19 के समय से भारी मांग के बीच 73,000 करोड़ रुपये का बजट में प्रावधान काफी कम है. बीते वर्ष सरकार ने 111,500 करोड़ रुपये खर्च किए थे. उस वक्त बड़ी संख्या में असंगठित मजदूर अपने गांव को वापस लौटे थे और मनरेगा में काम की ऐसी मांग पहले कभी नहीं देखी गई थी.
बजट का प्रावधान सरकार के वास्तविक खर्च को प्रभावित नहीं करता है. यह मांग आधारित योजना है और सरकार ने 100 दिन रोजगार का कानूनी प्रावधान कर रखा है. यदि मांग बढ़ती है तो बजट में खर्च बढ़ाया जा सकता है. सरकार इसका प्रावधान नहीं कर सकती है. जैसे बीते वर्ष प्रावधान से 40 हजार करोड़ रुपए का ज्यादा सरकार ने बीते वर्ष ज्यादा किया.
(साभार- डाउन टू अर्थ)
जानकारों के मुताबिक कोविड-19 के समय से भारी मांग के बीच 73,000 करोड़ रुपये का बजट में प्रावधान काफी कम है. बीते वर्ष सरकार ने 111,500 करोड़ रुपये खर्च किए थे. उस वक्त बड़ी संख्या में असंगठित मजदूर अपने गांव को वापस लौटे थे और मनरेगा में काम की ऐसी मांग पहले कभी नहीं देखी गई थी.
बजट का प्रावधान सरकार के वास्तविक खर्च को प्रभावित नहीं करता है. यह मांग आधारित योजना है और सरकार ने 100 दिन रोजगार का कानूनी प्रावधान कर रखा है. यदि मांग बढ़ती है तो बजट में खर्च बढ़ाया जा सकता है. सरकार इसका प्रावधान नहीं कर सकती है. जैसे बीते वर्ष प्रावधान से 40 हजार करोड़ रुपए का ज्यादा सरकार ने बीते वर्ष ज्यादा किया.
(साभार- डाउन टू अर्थ)