किसानों को भले ही एमएसपी देते रहने का ऐलान किया गया हो लेकिन बजट में एमएसपी सुनिश्चित करने वाली अहम योजनाओं के प्रावधानों में बड़ी कटौती की गई है जो खेती-किसानी को हतोत्साहित करती हैं.
वित्त वर्ष 2021-2022 के तहत बजट में एमआईएस-पीएसएस योजना के लिए कुल 1500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है जबकि वित्त वर्ष 2019-2020 में 3000 करोड़ रुपए की तुलना में 50 फीसदी की कमी है. जबकि पीएम आशा योजना के लिए इस बार बजट में 400 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है जबकि वित्त वर्ष 2019-20 में 1500 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था.
जय किसान आंदोलन, एलाएंस फॉर सस्टेनबल एंड हॉलिस्टिक एग्रीकल्चर (आशा) और रायतू स्वराज्य वेदिका ने संयुक्त रूप से आम बजट पर अपनी टिप्पणी में कहा कि एमएसपी से कम मूल्य पर अनाज बेचने के कारण किसानों को प्रतिवर्ष 50,000 करोड़ रुपए सालाना का नुकसान होता है.
वहीं, किसानों को उनकी उपज की बिक्री के लिए सबसे जरूरी कृषि बाजारों की उपलब्धता है. जबकि कृषि बाजारों की सरंचना के लिए वित्त वर्ष 2021-22 में एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के तहत 900 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. किसान संगठनों ने बजट विश्लेषण को लेकर अपनी टिप्पणी में कहा कि आत्मनिर्भर भारत के तहत एक लाख करोड़ रुपए का एग्री फंड घोषित किया गया था, जबकि उसमें से कुछ खर्च नहीं हो पाया.
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसी सरकार की कई अहम और महात्वाकांक्षी योजनाओं पर बजट में चुप्पी रही है. किसानों के खातों में सालाना 6000 रुपए भेजने वाली पीएम किसान सम्मान निधि की तुलना बीते वित्त वर्ष के संशोधित बजट से करें तो कोई बदलाव नहीं किया गया है.
29 जनवरी, 2021 को पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि कुल 14 करोड़ किसानों में 2020-2021 के दिसंबर तक पीएम किसान सम्मान निधि कुल 9 करोड़ किसानों तक ही पहुंची. बटाई और किराए की खेती करने वाले किसानों के लिए योजना के विस्तार पर कुछ नहीं कहा गया.
ऑल इंडिया किसान संघर्ष समन्वय समिति के राष्ट्रीय समूह सदस्य किरण कुमार विस्सा ने कहा कि फसलों के बीमा पर किसानों को और मजबूती मिलनी चाहिए क्योंकि प्राकृतिक आपदाओं के कारण किसानों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है. यदि किसानों की समस्याओ को सुलझाने के लिए व्यापक व्यवस्था नहीं होगी तो किसान न सिर्फ संकट में जाएंगे बल्कि उनपर कर्ज का गहरा संकट भी बढ़ जाएगा.
उन्होंने कहा कि फसल बीमा पाने वाले किसानों की संख्या भी धीरे-धीरे घट रही है, जो फंड आवंटित किया जा रहा है वह भी किसानों के लिए उपयोगी नहीं है. सरकार के मुताबिक 2020-2021 में दिसंबर तक 70 लाख किसान फसल बीमा का लाभ ले पाए जबकि यह संख्या 12 करोड़ किसान परिवारों की तुलना में बहुत छोटी है.
वित्त वर्ष 2021-2022 के तहत बजट में एमआईएस-पीएसएस योजना के लिए कुल 1500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है जबकि वित्त वर्ष 2019-2020 में 3000 करोड़ रुपए की तुलना में 50 फीसदी की कमी है. जबकि पीएम आशा योजना के लिए इस बार बजट में 400 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है जबकि वित्त वर्ष 2019-20 में 1500 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था.
जय किसान आंदोलन, एलाएंस फॉर सस्टेनबल एंड हॉलिस्टिक एग्रीकल्चर (आशा) और रायतू स्वराज्य वेदिका ने संयुक्त रूप से आम बजट पर अपनी टिप्पणी में कहा कि एमएसपी से कम मूल्य पर अनाज बेचने के कारण किसानों को प्रतिवर्ष 50,000 करोड़ रुपए सालाना का नुकसान होता है.
वहीं, किसानों को उनकी उपज की बिक्री के लिए सबसे जरूरी कृषि बाजारों की उपलब्धता है. जबकि कृषि बाजारों की सरंचना के लिए वित्त वर्ष 2021-22 में एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के तहत 900 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. किसान संगठनों ने बजट विश्लेषण को लेकर अपनी टिप्पणी में कहा कि आत्मनिर्भर भारत के तहत एक लाख करोड़ रुपए का एग्री फंड घोषित किया गया था, जबकि उसमें से कुछ खर्च नहीं हो पाया.
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसी सरकार की कई अहम और महात्वाकांक्षी योजनाओं पर बजट में चुप्पी रही है. किसानों के खातों में सालाना 6000 रुपए भेजने वाली पीएम किसान सम्मान निधि की तुलना बीते वित्त वर्ष के संशोधित बजट से करें तो कोई बदलाव नहीं किया गया है.
29 जनवरी, 2021 को पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि कुल 14 करोड़ किसानों में 2020-2021 के दिसंबर तक पीएम किसान सम्मान निधि कुल 9 करोड़ किसानों तक ही पहुंची. बटाई और किराए की खेती करने वाले किसानों के लिए योजना के विस्तार पर कुछ नहीं कहा गया.
ऑल इंडिया किसान संघर्ष समन्वय समिति के राष्ट्रीय समूह सदस्य किरण कुमार विस्सा ने कहा कि फसलों के बीमा पर किसानों को और मजबूती मिलनी चाहिए क्योंकि प्राकृतिक आपदाओं के कारण किसानों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है. यदि किसानों की समस्याओ को सुलझाने के लिए व्यापक व्यवस्था नहीं होगी तो किसान न सिर्फ संकट में जाएंगे बल्कि उनपर कर्ज का गहरा संकट भी बढ़ जाएगा.
उन्होंने कहा कि फसल बीमा पाने वाले किसानों की संख्या भी धीरे-धीरे घट रही है, जो फंड आवंटित किया जा रहा है वह भी किसानों के लिए उपयोगी नहीं है. सरकार के मुताबिक 2020-2021 में दिसंबर तक 70 लाख किसान फसल बीमा का लाभ ले पाए जबकि यह संख्या 12 करोड़ किसान परिवारों की तुलना में बहुत छोटी है.