टिकरी बॉर्डर: किसानों के आंदोलन से परेशान होने वालों का सच

29 जनवरी को करीब 200 की संख्या में लोग टिकरी बॉर्डर पर बने स्टेज के पास पहुंच गए. वहां किसानों के विरोध में नारे लगाए और उन्हें रास्ता खाली करने के लिए कहा. कौन हैं ये लोग?

WrittenBy:बसंत कुमार
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बीजेपी की भूमिका

यहां मिले ज़्यादातर लोग बीजेपी के स्थानीय नेता गजेंद्र सिंह का नाम लेते हैं. सिंह मुडंका वार्ड नंबर 39 से निगम पार्षद के उम्मीदवार रह चुके हैं और वर्तमान में बीजपी के बाहरी दिल्ली के जिला महामंत्री हैं. हम सिंह से मिलने के लिए उनके कार्यालय पहुंचे जो टिकरी बॉर्डर से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर है.

बीजेपी नेता गजेंद्र सिंह

सिंह तब अपने कार्यालय में नहीं थे. वहां हमारी मुलाकात संदीप राणा से हुई. जो 29 जनवरी को किसानों के खिलाफ हुए प्रदर्शन में जाने की बात स्वीकार करते हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए राणा कहते हैं, ‘‘हम लोग इनसे परेशान हो चुके हैं. यहां से आने जाने में परेशानी हो रही है. उस रोज करीब दो सौ से ढाई सौ लोग थे. सब आसपास के ही रहने वाले थे. हम लोग एक पत्र लेकर गए थे उनसे कहने कि हमें दिक्कत हो रही है. तो वे हमें मारने लगे. उस दिन मैंने कसम खा ली कि मैं उनके पास नहीं जाऊंगा. उन्होंने हमपर ईंट मारी थी.’’

राणा टिकरी बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे लोगों को किसान मानने से भी इंकार करते नज़र आते हैं. वे कहते हैं, ‘‘हमने पुलिस से भी शिकायत की, लेकिन तोड़फोड़ तो किसान ही कर रहे हैं. एक तो होते हैं किसान और दूसरे होते हैं अपने नाम के आगे किसान लगाकर फिर गंध मचाते हैं. वो किसान तो नहीं रहता है. मैं दो दिन पहले बहादुरगढ़ से आ रहा था तो दो-तीन किलोमीटर पैदल चला आया ये देखने के लिए कि वे क्या कर रहे हैं. वे डांस कर रहे थे. दारू पी रहे थे. आपस में गाली गलौज कर रहे थे. सात बजे के बाद वे खूंखार हो जाते हैं.’’

हम राणा से बातचीत कर रहे थे तभी गजेंद्र सिंह अपने कार्यालय पहुंचे. 29 जनवरी की रैली में अपनी भूमिका को लेकर पूछे गए सवाल पर न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘मेरे पास अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार कल्याण से जुड़े हुए लोग आए थे. वे लिखित में एक पत्र किसानों को देना चाहते थे. उन्होंने अपने साथ चलने के लिए कहा. 26 जनवरी को जो कुछ हुआ था उससे हमें नाराजगी थी. मैं उनके साथ टिकरी मेट्रो स्टेशन तक गया. मैंने नारे लगाए कि तिरंगे का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान. मैं स्टेज के पास तक नहीं गया था. हम इतने दिनों से शांत बैठे थे लेकिन 26 जनवरी को जो हुआ वो बर्दाश्त से बाहर है.’’

गजेंद्र सिंह आंदोलन कर रहे किसानों को लेकर बताते हैं, ‘‘इन लोगों ने आसपास के लोगों को परेशान कर रखा है. आर भारत ( रिपब्लिक भारत ) पर आपने देखा बाबा हरिदास कॉलोनी की महिलाओं ने बताया है कि शाम को ये लोग शराब पीकर कॉलोनी में घुस आते हैं. अपशब्द बोलते हैं. बाबा हरिदास मेरे वार्ड में आता है तो मैं तो वहां जाऊंगा न लोगों से पूछने की कोई परेशानी तो नहीं है. रोड बंद होने से लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. टिकरी गांव में किसी को दिक्क्त होती है तो उन्हें नागलोई जाने में दो घंटा लगेगा और बहादुरगढ़ जाने में पांच मिनट. कई अस्पताल है वहां पर. सारे रास्ते इन्होंने बंद कर रखे हैं. शराब पीकर डांस करते हैं. अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं. आप उनको किसान कहोगे. हरियाणा से जो भी लोग आए हैं वे सभी कांग्रेसी हैं.’’

सिंह कहते हैं, ‘‘किसानों को मोदी जी पर भरोसा करना चाहिए और वापस लौट जाना चाहिए. वे देश को बहुत आगे ले जाना चाहते हैं. इन्हें रोकने की कोशिश विपक्ष के लोग कर रहे हैं. हमारे भोले भाले किसान उनके बहकावे में आ रहे हैं.

अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार कल्याण

अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार कल्याण की 29 जनवरी को टिकरी बॉर्डर पर किसानों के विरोध में पहुंचे लोगों में बड़ी भूमिका थी. इस संस्थान ने एक पत्र किसानों को दिया है जिसका विषय है किसान आंदोलन से स्थानीय निवासियों और यात्रियों को हो रही असुविधाओं हेतु अनुरोध पत्र.

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इस पत्र में इस संस्थान ने लिखा, ''पीड़ा के संबंध में आंदोलन करना और सरकारों का विरोध करना नागरिकों का अधिकार है. परन्तु अन्य नागरिकों की सुविधाओं और सुगम आगमन को बाधित करना उचित नहीं. हम आंदोलनकर्ता भी कहीं न कहीं किसानों से जुड़े हुए हैं. इस आंदोलन में किसी न किसी प्रकार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आप संघर्षरत साथियों के समर्थन में हैं. परन्तु स्थानीय निवासियों को हो रही आर्थिक हानि भी कहीं ना कहीं किसान और मज़दूर वर्ग की ही है. अतः आपसे निवेदन है कि मार्ग को अवरुद्ध करने से परहेज करते हुए अपना आंदोलन करें.’’

इस पत्र में आगे 26 जनवरी को जो कुछ हुआ उसे कलंक बताते हुए इसकी जिम्मेदारी किसानों को लेने की सलाह दी गई है.

अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार कल्याण का मुख्यालय लाजपत नगर में है. इस संस्थान द्वारा की गई गुजारिश को लेकर जब हमने आंदोलन कर रहे किसानों से बात की तो उनका कहना था कि हमने रास्ता बंद कहां किया है. गाड़ियां आने जाने का रास्ता तो छोड़ा ही हुआ है. सरकार मज़बूत बैरिकेड बनाकर, कील लगाकर रास्ते को रोक रही है. यह मांग सरकार से होनी चाहिए थी ना कि किसानों से.

इस संस्थान से जुड़े और किसानों को आवदेन देने वाले नित्यानंद राय न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘किसान और जवान तो सब अपने ही हैं. हम लोग सिर्फ उनसे गुजारिश करने गए थे कि आप बस रास्ता खाली कर दें. हमारी तो उनसे कोई लड़ाई नहीं हुई. हमारे साथ बीजेपी का कोई नहीं था. हम बीएस स्वतंत्र सेनानी के परिवार के लोग थे.’’

टिकरी बॉर्डर से तीन किलोमीटर दूर लाडपुर के रहने वाले 70 वर्षीय राज सिंह डबास न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘हमारी तरफ से जो लोग थे उन्हें हमने कुछ नहीं करने दिया. उस तरफ से कुछ लोग हंगामा कर रहे थे. हमने उन्हें हाथ जोड़े रखा है. हम भी किसान हैं. हमें तीनों कानून ठीक लग रहे हैं. हालांकि हम भी चाहते थे कि सरकार एमएसपी को लेकर कुछ करे लेकिन सड़कों पर हंगामा करना जायज नहीं है ना. 26 जनवरी को जो कुछ हुआ इसके लिए हमने इन्हें चेता रखा था लेकिन ये लोग नहीं माने और वही हुआ जो हमने सोचा था.’’

पुलिस द्वारा रास्ता ब्लॉक करने के सवाल पर सिंह कहते हैं, ‘’पुलिस एक बार देख चुकी है कि सुरक्षा कमजोर रखने पर क्या हुआ. जनता की सुरक्षा करना पुलिस का काम होता है. ऐसे में पुलिस जो कर रही है गलत नहीं है.’’

बीजेपी नेता गजेंद्र सिंह से मिलने को लेकर राज सिंह डबास और नित्यानंद राय दोनों इंकार करते हैं वहीं दूसरी तरफ गजेंद्र सिंह दावा करते हैं कि ये लोग उनके पास आए थे और साथ चलने के लिए कहा था. डबास उस भीड़ में किसी के भी बीजेपी से भी होने से इंकार करते हैं लेकिन खुद बीजेपी के लोग न्यूजलॉन्ड्री से स्वीकार करते हैं कि वे वहां गए थे. स्टेज के पास दुकान चलाने वाले ज़्यादातर दुकानदार भी यहीं बताते हैं कि उस रोज विरोध करने जो लोग पहुंचे थे उसमें से ज़्यादातर बीजेपी के लोग थे.

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बीजेपी नेता गजेंद्र सिंह

सिंह तब अपने कार्यालय में नहीं थे. वहां हमारी मुलाकात संदीप राणा से हुई. जो 29 जनवरी को किसानों के खिलाफ हुए प्रदर्शन में जाने की बात स्वीकार करते हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए राणा कहते हैं, ‘‘हम लोग इनसे परेशान हो चुके हैं. यहां से आने जाने में परेशानी हो रही है. उस रोज करीब दो सौ से ढाई सौ लोग थे. सब आसपास के ही रहने वाले थे. हम लोग एक पत्र लेकर गए थे उनसे कहने कि हमें दिक्कत हो रही है. तो वे हमें मारने लगे. उस दिन मैंने कसम खा ली कि मैं उनके पास नहीं जाऊंगा. उन्होंने हमपर ईंट मारी थी.’’

राणा टिकरी बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे लोगों को किसान मानने से भी इंकार करते नज़र आते हैं. वे कहते हैं, ‘‘हमने पुलिस से भी शिकायत की, लेकिन तोड़फोड़ तो किसान ही कर रहे हैं. एक तो होते हैं किसान और दूसरे होते हैं अपने नाम के आगे किसान लगाकर फिर गंध मचाते हैं. वो किसान तो नहीं रहता है. मैं दो दिन पहले बहादुरगढ़ से आ रहा था तो दो-तीन किलोमीटर पैदल चला आया ये देखने के लिए कि वे क्या कर रहे हैं. वे डांस कर रहे थे. दारू पी रहे थे. आपस में गाली गलौज कर रहे थे. सात बजे के बाद वे खूंखार हो जाते हैं.’’

हम राणा से बातचीत कर रहे थे तभी गजेंद्र सिंह अपने कार्यालय पहुंचे. 29 जनवरी की रैली में अपनी भूमिका को लेकर पूछे गए सवाल पर न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘मेरे पास अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार कल्याण से जुड़े हुए लोग आए थे. वे लिखित में एक पत्र किसानों को देना चाहते थे. उन्होंने अपने साथ चलने के लिए कहा. 26 जनवरी को जो कुछ हुआ था उससे हमें नाराजगी थी. मैं उनके साथ टिकरी मेट्रो स्टेशन तक गया. मैंने नारे लगाए कि तिरंगे का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान. मैं स्टेज के पास तक नहीं गया था. हम इतने दिनों से शांत बैठे थे लेकिन 26 जनवरी को जो हुआ वो बर्दाश्त से बाहर है.’’

गजेंद्र सिंह आंदोलन कर रहे किसानों को लेकर बताते हैं, ‘‘इन लोगों ने आसपास के लोगों को परेशान कर रखा है. आर भारत ( रिपब्लिक भारत ) पर आपने देखा बाबा हरिदास कॉलोनी की महिलाओं ने बताया है कि शाम को ये लोग शराब पीकर कॉलोनी में घुस आते हैं. अपशब्द बोलते हैं. बाबा हरिदास मेरे वार्ड में आता है तो मैं तो वहां जाऊंगा न लोगों से पूछने की कोई परेशानी तो नहीं है. रोड बंद होने से लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. टिकरी गांव में किसी को दिक्क्त होती है तो उन्हें नागलोई जाने में दो घंटा लगेगा और बहादुरगढ़ जाने में पांच मिनट. कई अस्पताल है वहां पर. सारे रास्ते इन्होंने बंद कर रखे हैं. शराब पीकर डांस करते हैं. अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं. आप उनको किसान कहोगे. हरियाणा से जो भी लोग आए हैं वे सभी कांग्रेसी हैं.’’

सिंह कहते हैं, ‘‘किसानों को मोदी जी पर भरोसा करना चाहिए और वापस लौट जाना चाहिए. वे देश को बहुत आगे ले जाना चाहते हैं. इन्हें रोकने की कोशिश विपक्ष के लोग कर रहे हैं. हमारे भोले भाले किसान उनके बहकावे में आ रहे हैं.

अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार कल्याण

अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार कल्याण की 29 जनवरी को टिकरी बॉर्डर पर किसानों के विरोध में पहुंचे लोगों में बड़ी भूमिका थी. इस संस्थान ने एक पत्र किसानों को दिया है जिसका विषय है किसान आंदोलन से स्थानीय निवासियों और यात्रियों को हो रही असुविधाओं हेतु अनुरोध पत्र.

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इस पत्र में इस संस्थान ने लिखा, ''पीड़ा के संबंध में आंदोलन करना और सरकारों का विरोध करना नागरिकों का अधिकार है. परन्तु अन्य नागरिकों की सुविधाओं और सुगम आगमन को बाधित करना उचित नहीं. हम आंदोलनकर्ता भी कहीं न कहीं किसानों से जुड़े हुए हैं. इस आंदोलन में किसी न किसी प्रकार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आप संघर्षरत साथियों के समर्थन में हैं. परन्तु स्थानीय निवासियों को हो रही आर्थिक हानि भी कहीं ना कहीं किसान और मज़दूर वर्ग की ही है. अतः आपसे निवेदन है कि मार्ग को अवरुद्ध करने से परहेज करते हुए अपना आंदोलन करें.’’

इस पत्र में आगे 26 जनवरी को जो कुछ हुआ उसे कलंक बताते हुए इसकी जिम्मेदारी किसानों को लेने की सलाह दी गई है.

अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार कल्याण का मुख्यालय लाजपत नगर में है. इस संस्थान द्वारा की गई गुजारिश को लेकर जब हमने आंदोलन कर रहे किसानों से बात की तो उनका कहना था कि हमने रास्ता बंद कहां किया है. गाड़ियां आने जाने का रास्ता तो छोड़ा ही हुआ है. सरकार मज़बूत बैरिकेड बनाकर, कील लगाकर रास्ते को रोक रही है. यह मांग सरकार से होनी चाहिए थी ना कि किसानों से.

इस संस्थान से जुड़े और किसानों को आवदेन देने वाले नित्यानंद राय न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘किसान और जवान तो सब अपने ही हैं. हम लोग सिर्फ उनसे गुजारिश करने गए थे कि आप बस रास्ता खाली कर दें. हमारी तो उनसे कोई लड़ाई नहीं हुई. हमारे साथ बीजेपी का कोई नहीं था. हम बीएस स्वतंत्र सेनानी के परिवार के लोग थे.’’

टिकरी बॉर्डर से तीन किलोमीटर दूर लाडपुर के रहने वाले 70 वर्षीय राज सिंह डबास न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘हमारी तरफ से जो लोग थे उन्हें हमने कुछ नहीं करने दिया. उस तरफ से कुछ लोग हंगामा कर रहे थे. हमने उन्हें हाथ जोड़े रखा है. हम भी किसान हैं. हमें तीनों कानून ठीक लग रहे हैं. हालांकि हम भी चाहते थे कि सरकार एमएसपी को लेकर कुछ करे लेकिन सड़कों पर हंगामा करना जायज नहीं है ना. 26 जनवरी को जो कुछ हुआ इसके लिए हमने इन्हें चेता रखा था लेकिन ये लोग नहीं माने और वही हुआ जो हमने सोचा था.’’

पुलिस द्वारा रास्ता ब्लॉक करने के सवाल पर सिंह कहते हैं, ‘’पुलिस एक बार देख चुकी है कि सुरक्षा कमजोर रखने पर क्या हुआ. जनता की सुरक्षा करना पुलिस का काम होता है. ऐसे में पुलिस जो कर रही है गलत नहीं है.’’

बीजेपी नेता गजेंद्र सिंह से मिलने को लेकर राज सिंह डबास और नित्यानंद राय दोनों इंकार करते हैं वहीं दूसरी तरफ गजेंद्र सिंह दावा करते हैं कि ये लोग उनके पास आए थे और साथ चलने के लिए कहा था. डबास उस भीड़ में किसी के भी बीजेपी से भी होने से इंकार करते हैं लेकिन खुद बीजेपी के लोग न्यूजलॉन्ड्री से स्वीकार करते हैं कि वे वहां गए थे. स्टेज के पास दुकान चलाने वाले ज़्यादातर दुकानदार भी यहीं बताते हैं कि उस रोज विरोध करने जो लोग पहुंचे थे उसमें से ज़्यादातर बीजेपी के लोग थे.

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