राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडे, ज़फ़र आग़ा, विनोद जोस, परेश नाथ और अनंत नाथ के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दायर किया गया है.
इंडियन विमेन प्रेस काॅर्पस की अध्यक्ष और प्रिंट की राष्ट्रीय संपादक ज्योति मल्होत्रा ने कहा, "हम पत्रकार बने क्योंकि हम बोलना चाहते थे, वाम् और दक्षिण दोनों ही तरफ की बात और उनके बीच की बात भी रखना चाहते थे, हमें दोनों तरफ की बात बतानी ही होगी."
भारत के आज के परिवेश को एक "अघोषित आपातकाल" बताते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने सभा को कहा, "आज हमारे पास एक ऐसी सरकार नहीं है जो संविधान और कानून की आत्मा को पूरी तरह समर्पित हो, न ही हमारे पास संभवतः ऐसे न्यायाधीश हैं जो जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए उस न्यायाधीश की तरह तत्पर हों."
पत्रकारों के खिलाफ दायर की गई एफआईआर का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, "यह एक रोचक बात है कि यह सारी शिकायतें एक ही प्रकार के लोगों के खिलाफ हैं, जैसे कि एक ही प्रकार के लोगों को चुप कराने के लिए शिकायतों की एक साजिश सी हो या एक ही तरह के लोगों की मिसाल कायम करने के लिए."
हिंदू की राष्ट्रीय संपादक सुहासिनी हैदर ने सभा में न्यूज़लॉन्ड्री से बात की. उन्होंने कहा, "सरकार राजद्रोह और आपराधिक मानहानि जैसे अंग्रेजों के जमाने के कानूनों को पत्रकारों की आवाज दबाने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकती. हर वह पत्रकार जिसे राजद्रोह का नोटिस दिया गया है, सभी पत्रकारों का प्रतिनिधित्व करता है और एक प्रकार से देखें, तो सरकार सभी पत्रकारों को कहना चाह रही है कि वह उनके खिलाफ कदम उठा सकती है."
वे आगे कहती हैं, "गलतियां होंगी, रिपोर्टिंग के दौरान भूले भी होंगी, लेकिन इन्हें बहाना बनाकर पत्रकारों की आवाज़ को नहीं दबाया जा सकता जिससे कि सरकार को अच्छे न लगने वाले विषयों के बारे मेें कोई पत्रकारिता न हो." एक स्वतंत्र पत्रकार स्मिता शर्मा ने भी इन विचारों से अपनी सहमति दी है, "जिस समय आपको कोई सूचना मिले उसी समय उसको सत्यापित करना हो सकता है संभव न हो. प्रश्न यह है कि क्या पत्रकार ने ऐसा जानबूझकर हिंसा भड़काने के लिए किया? गलती हो जाने के बाद क्या पत्रकार ने माफी मांगी और अपनी बात को वापस लिया या नहीं? अगर यह सब हुआ है तो उसे भी सही संदर्भ में देखा जाना चाहिए."
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के जनरल सेक्रेटरी और हार्ड न्यूज़ पत्रिका के संपादक संजय कपूर ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, "मारे गए व्यक्ति को लेकर कुछ विवाद था, कि वह गोली से मारा था या वह एक दुर्घटना से मरा, यह एक बदलती हुई खबर थी, आप किसी खबर में एक दृष्टिकोण लेकर शुरुआत करते हैं लेकिन वह बदल कर एक दूसरा रूप ले सकती है."
सरकार इस प्रकार से पत्रकारों के पीछे जाकर क्या हासिल करना चाहती है?
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के सेक्रेटरी जनरल आनंद कुमार सहाय कहते हैं, "सरकार यह संदेश दे रही है कि भले ही कागजों पर हमें लोकतंत्र हों, लेकिन हम दुनिया के कई अलोकतांत्रिक राज्यों की तरह बर्ताव कर रहे हैं. अगर एक पत्रकार ने गलती की भी है, तो वह अपराध नहीं. गलती से कोई एक बात जो 100 प्रतिशत सही न हो, कहना अपराध नहीं है, और इसीलिए सरकार उसे एक बहाना बनाकर राजद्रोह जैसा खतरनाक कानून पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल नहीं कर सकती."
इस स्टोरी का एक वर्जन पहले न्यूज़लॉन्ड्री पर प्रकाशित हो चुका है.
इंडियन विमेन प्रेस काॅर्पस की अध्यक्ष और प्रिंट की राष्ट्रीय संपादक ज्योति मल्होत्रा ने कहा, "हम पत्रकार बने क्योंकि हम बोलना चाहते थे, वाम् और दक्षिण दोनों ही तरफ की बात और उनके बीच की बात भी रखना चाहते थे, हमें दोनों तरफ की बात बतानी ही होगी."
भारत के आज के परिवेश को एक "अघोषित आपातकाल" बताते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने सभा को कहा, "आज हमारे पास एक ऐसी सरकार नहीं है जो संविधान और कानून की आत्मा को पूरी तरह समर्पित हो, न ही हमारे पास संभवतः ऐसे न्यायाधीश हैं जो जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए उस न्यायाधीश की तरह तत्पर हों."
पत्रकारों के खिलाफ दायर की गई एफआईआर का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, "यह एक रोचक बात है कि यह सारी शिकायतें एक ही प्रकार के लोगों के खिलाफ हैं, जैसे कि एक ही प्रकार के लोगों को चुप कराने के लिए शिकायतों की एक साजिश सी हो या एक ही तरह के लोगों की मिसाल कायम करने के लिए."
हिंदू की राष्ट्रीय संपादक सुहासिनी हैदर ने सभा में न्यूज़लॉन्ड्री से बात की. उन्होंने कहा, "सरकार राजद्रोह और आपराधिक मानहानि जैसे अंग्रेजों के जमाने के कानूनों को पत्रकारों की आवाज दबाने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकती. हर वह पत्रकार जिसे राजद्रोह का नोटिस दिया गया है, सभी पत्रकारों का प्रतिनिधित्व करता है और एक प्रकार से देखें, तो सरकार सभी पत्रकारों को कहना चाह रही है कि वह उनके खिलाफ कदम उठा सकती है."
वे आगे कहती हैं, "गलतियां होंगी, रिपोर्टिंग के दौरान भूले भी होंगी, लेकिन इन्हें बहाना बनाकर पत्रकारों की आवाज़ को नहीं दबाया जा सकता जिससे कि सरकार को अच्छे न लगने वाले विषयों के बारे मेें कोई पत्रकारिता न हो." एक स्वतंत्र पत्रकार स्मिता शर्मा ने भी इन विचारों से अपनी सहमति दी है, "जिस समय आपको कोई सूचना मिले उसी समय उसको सत्यापित करना हो सकता है संभव न हो. प्रश्न यह है कि क्या पत्रकार ने ऐसा जानबूझकर हिंसा भड़काने के लिए किया? गलती हो जाने के बाद क्या पत्रकार ने माफी मांगी और अपनी बात को वापस लिया या नहीं? अगर यह सब हुआ है तो उसे भी सही संदर्भ में देखा जाना चाहिए."
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के जनरल सेक्रेटरी और हार्ड न्यूज़ पत्रिका के संपादक संजय कपूर ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, "मारे गए व्यक्ति को लेकर कुछ विवाद था, कि वह गोली से मारा था या वह एक दुर्घटना से मरा, यह एक बदलती हुई खबर थी, आप किसी खबर में एक दृष्टिकोण लेकर शुरुआत करते हैं लेकिन वह बदल कर एक दूसरा रूप ले सकती है."
सरकार इस प्रकार से पत्रकारों के पीछे जाकर क्या हासिल करना चाहती है?
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के सेक्रेटरी जनरल आनंद कुमार सहाय कहते हैं, "सरकार यह संदेश दे रही है कि भले ही कागजों पर हमें लोकतंत्र हों, लेकिन हम दुनिया के कई अलोकतांत्रिक राज्यों की तरह बर्ताव कर रहे हैं. अगर एक पत्रकार ने गलती की भी है, तो वह अपराध नहीं. गलती से कोई एक बात जो 100 प्रतिशत सही न हो, कहना अपराध नहीं है, और इसीलिए सरकार उसे एक बहाना बनाकर राजद्रोह जैसा खतरनाक कानून पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल नहीं कर सकती."
इस स्टोरी का एक वर्जन पहले न्यूज़लॉन्ड्री पर प्रकाशित हो चुका है.