'पक्ष'कारिता: पत्रकार की भी कोई जिम्‍मेदारी होती है या नहीं?

क्‍या पत्रकार खबर लिखने का बुनियादी उसूल भी भूल चुके हैं, कि आजकल वे खुलेआम यौन हिंसा की शिकार महिला का नाम और पहचान उजागर कर देते हैं?

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खबर लिखना भी भूल गए?

कुछ लोग कह सकते हैं कि एक गरीब स्‍थानीय हिंदी पत्रकार या स्ट्रिंगर से लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता आदि की उम्‍मीद करना कुछ ज्‍यादती है. चलिए माना, लेकिन क्‍या पत्रकार खबर लिखने का बुनियादी उसूल भी भूल चुके हैं, कि आजकल वे खुलेआम यौन हिंसा की शिकार महिला का नाम और पहचान उजागर कर देते हैं?

मामला मध्‍य प्रदेश के नागदा जिले का है, जहां एक महिला को उसके सास, ससुर, पति और रिश्‍तेदार ने बर्बर तरीके से प्रताडि़त किया और मरा समझकर कर फेंक कर भाग गए. फिलहाल यह महिला इंदौर के एमवाइ अस्‍पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही है. इस महिला के साथ जैसी बर्बरता हुई है, उसकी तुलना में कार्रवाई के नाम पर केवल आइपीसी की धारा 307 खड़ी है जिसके अंतर्गत दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है. बाकी की छीछालेदर और कवर-अप अखबारों ने कर दी है.

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ऊपर की दोनों खबरों में महिला के उत्‍पीड़न की वजह ‘’चरित्र शंका’’ और ‘’अवैध संबंध’’ को बताया गया है. दिलचस्‍प है कि पत्रिका अपनी खबर में लिखता है कि घर की औरतें काम के सिलसिले में अकसर गुजरात जाती हैं तब घर बंद पड़ा रहता है. इसके बावजूद पीडि़त महिला के घर से बाहर जाने को उसने ‘’अवैध संबंध’’ से जोड़ दिया गया है.

ये दोनों खबरें वैसे भी फॉलोअप हैं. शुरुआती खबर में पत्रिका, भास्‍कर, नई दुनिया, राज एक्‍सप्रेस, दैनिक जागरण सब ने निरपवाद रूप से महिला का नाम लिया है जबकि साथ में बर्बर यौन प्रताड़ना की बात भी लिखी है. अखबारों और रिपोर्टरों ने ऐसा क्‍यों किया? ऊपर पत्रिका की खबर की तस्‍वीर देखिए, लिखा है- ‘’पुलिस ने बताया कि महिला का नाम ... है’’. पुलिस तो बताएगी ही, पत्रकार की भी कोई जिम्‍मेदारी होती है या नहीं? कहीं इसके पीछे ‘रेप’ की आशंका को पूरी तरह रूलआउट करने की बात तो नहीं है?

बुधवार को नागदा पुलिस इंदौर जाकर वहां भर्ती महिला का बयान ले आयी, ऐसा अखबार कहते हैं. यह बात वे अखबार लिख रहे हैं जिन्‍होंने एक दिन पहले लिखा है कि उस महिला की जीभ, नाकऔर गाल तलवार से काट दिए गए थे. बिना जीभ, नाक और गाल के महिला ने बयान कैसे दिया होगा, यह सहज सवाल किसी ने क्‍यों नहीं उठाया?

शुक्रवार को दो और गिरफ्तारियों की खबर अखबारों ने छापी. पहले तो सभी ने लिखा था कि महिला के यौनांग में ‘बेलन’ डाला गया. शुक्रवार को दैनिक भास्‍कर ने लिखा कि पकड़े गए दो और आरोपियों ने महिला के साथ ‘’छेड़छाड़’’ भी की थी. किसी भी रिपोर्टर ने यह पूछने की सहज कोशिश क्‍यों नहीं की कि ‘’छेड़छाड़़’’ और यौनांग में बेलन डालने को पुलिस ने यौन प्रताड़ना मानते हुए अलग से धाराएं एफआईआर में अभी तक क्‍यों नहीं डाली हैं?

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तीन दिन पहले ही सीधी जिले से बिलकुल ऐसी ही घटना सामने आयी थी जहां रेप के बाद यौनांग में सरिया डाल दिया गया था. राहुल गांधी ने उस केस में पीडि़त महिला को ‘निर्भया’ कहा था. वहां रेप की पुष्टि थी, यहां पैटर्न समान है. अखबारों और पत्रकारों की ओर से सवाल गायब!

छपने की आस में एक चिट्ठी

मध्‍य प्रदेश कुछ और कारणों से भी सुर्खियों में है. जानने वाले कह रहे हैं कि प्रदेश में कुछ ‘बड़ा’ होने वाला है. यह ‘बड़ा’ क्‍या हो सकता है, वहां के अखबार पढ़कर आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं. ग्‍वालियर में गोडसे ज्ञानशाला का खुलना, साध्‍वी प्रज्ञा के बयान, सांप्रदायिक हिंसा की छिटपुट घटनाएं, बहुत कुछ इस ओर इशारा कर रहा है. सबकी कवरेज बराबर है, बस एक चीज़ की कवरेज नहीं है- मध्‍य प्रदेश के प्रबुद्ध व्‍यक्तियों और लेखक संगठनों व सामाजिक समूहों द्वारा राष्‍ट्रपति को भेजी गयी चिट्ठी.

किसी राज्‍य के प्रबुद्ध नागरिकों की ओर से राष्‍ट्रपति को भेजी गयी ऐसी चिट्ठी शायद हमने हालिया अतीत में नहीं देखी-सुनी. इस चिट्ठी को सुधी पाठक यहां पढ़ सकते हैं और अंदाजा लगा सकते हैं कि हिंदी के अखबारों को देश के दिल की कितनी परवाह है.

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खबर लिखना भी भूल गए?

कुछ लोग कह सकते हैं कि एक गरीब स्‍थानीय हिंदी पत्रकार या स्ट्रिंगर से लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता आदि की उम्‍मीद करना कुछ ज्‍यादती है. चलिए माना, लेकिन क्‍या पत्रकार खबर लिखने का बुनियादी उसूल भी भूल चुके हैं, कि आजकल वे खुलेआम यौन हिंसा की शिकार महिला का नाम और पहचान उजागर कर देते हैं?

मामला मध्‍य प्रदेश के नागदा जिले का है, जहां एक महिला को उसके सास, ससुर, पति और रिश्‍तेदार ने बर्बर तरीके से प्रताडि़त किया और मरा समझकर कर फेंक कर भाग गए. फिलहाल यह महिला इंदौर के एमवाइ अस्‍पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही है. इस महिला के साथ जैसी बर्बरता हुई है, उसकी तुलना में कार्रवाई के नाम पर केवल आइपीसी की धारा 307 खड़ी है जिसके अंतर्गत दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है. बाकी की छीछालेदर और कवर-अप अखबारों ने कर दी है.

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ऊपर की दोनों खबरों में महिला के उत्‍पीड़न की वजह ‘’चरित्र शंका’’ और ‘’अवैध संबंध’’ को बताया गया है. दिलचस्‍प है कि पत्रिका अपनी खबर में लिखता है कि घर की औरतें काम के सिलसिले में अकसर गुजरात जाती हैं तब घर बंद पड़ा रहता है. इसके बावजूद पीडि़त महिला के घर से बाहर जाने को उसने ‘’अवैध संबंध’’ से जोड़ दिया गया है.

ये दोनों खबरें वैसे भी फॉलोअप हैं. शुरुआती खबर में पत्रिका, भास्‍कर, नई दुनिया, राज एक्‍सप्रेस, दैनिक जागरण सब ने निरपवाद रूप से महिला का नाम लिया है जबकि साथ में बर्बर यौन प्रताड़ना की बात भी लिखी है. अखबारों और रिपोर्टरों ने ऐसा क्‍यों किया? ऊपर पत्रिका की खबर की तस्‍वीर देखिए, लिखा है- ‘’पुलिस ने बताया कि महिला का नाम ... है’’. पुलिस तो बताएगी ही, पत्रकार की भी कोई जिम्‍मेदारी होती है या नहीं? कहीं इसके पीछे ‘रेप’ की आशंका को पूरी तरह रूलआउट करने की बात तो नहीं है?

बुधवार को नागदा पुलिस इंदौर जाकर वहां भर्ती महिला का बयान ले आयी, ऐसा अखबार कहते हैं. यह बात वे अखबार लिख रहे हैं जिन्‍होंने एक दिन पहले लिखा है कि उस महिला की जीभ, नाकऔर गाल तलवार से काट दिए गए थे. बिना जीभ, नाक और गाल के महिला ने बयान कैसे दिया होगा, यह सहज सवाल किसी ने क्‍यों नहीं उठाया?

शुक्रवार को दो और गिरफ्तारियों की खबर अखबारों ने छापी. पहले तो सभी ने लिखा था कि महिला के यौनांग में ‘बेलन’ डाला गया. शुक्रवार को दैनिक भास्‍कर ने लिखा कि पकड़े गए दो और आरोपियों ने महिला के साथ ‘’छेड़छाड़’’ भी की थी. किसी भी रिपोर्टर ने यह पूछने की सहज कोशिश क्‍यों नहीं की कि ‘’छेड़छाड़़’’ और यौनांग में बेलन डालने को पुलिस ने यौन प्रताड़ना मानते हुए अलग से धाराएं एफआईआर में अभी तक क्‍यों नहीं डाली हैं?

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तीन दिन पहले ही सीधी जिले से बिलकुल ऐसी ही घटना सामने आयी थी जहां रेप के बाद यौनांग में सरिया डाल दिया गया था. राहुल गांधी ने उस केस में पीडि़त महिला को ‘निर्भया’ कहा था. वहां रेप की पुष्टि थी, यहां पैटर्न समान है. अखबारों और पत्रकारों की ओर से सवाल गायब!

छपने की आस में एक चिट्ठी

मध्‍य प्रदेश कुछ और कारणों से भी सुर्खियों में है. जानने वाले कह रहे हैं कि प्रदेश में कुछ ‘बड़ा’ होने वाला है. यह ‘बड़ा’ क्‍या हो सकता है, वहां के अखबार पढ़कर आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं. ग्‍वालियर में गोडसे ज्ञानशाला का खुलना, साध्‍वी प्रज्ञा के बयान, सांप्रदायिक हिंसा की छिटपुट घटनाएं, बहुत कुछ इस ओर इशारा कर रहा है. सबकी कवरेज बराबर है, बस एक चीज़ की कवरेज नहीं है- मध्‍य प्रदेश के प्रबुद्ध व्‍यक्तियों और लेखक संगठनों व सामाजिक समूहों द्वारा राष्‍ट्रपति को भेजी गयी चिट्ठी.

किसी राज्‍य के प्रबुद्ध नागरिकों की ओर से राष्‍ट्रपति को भेजी गयी ऐसी चिट्ठी शायद हमने हालिया अतीत में नहीं देखी-सुनी. इस चिट्ठी को सुधी पाठक यहां पढ़ सकते हैं और अंदाजा लगा सकते हैं कि हिंदी के अखबारों को देश के दिल की कितनी परवाह है.

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