कृषि कानूनों के खिलाफ जारी आंदोलन में प्रदर्शन स्थल पर नए-नए रंग देखने को मिल रहे हैं.
“यहां ये बच्चे इधर-उधर घूमते रहते, कूड़ा बीनते रहते. साथ में नारेबाजी भी करते, जिसका उन्हें मतलब भी नहीं पता. स्टूडेंट की उम्र के इन बच्चों से हम ये उम्मीद नहीं कर सकते. तो हम ऐसा कुछ नहीं छोड़ना चाहते जो बाद में हमें बुरा लगे कि हमने इन्हें नहीं सिखाया. और फिर यहां प्रदर्शन में बहुत से एजुकेटेड लोग हैं तो क्यों न उसका सही इस्तेमाल किया जाए. इसलिए हमने ये स्कूल शुरू किया.”
सिंघु बॉर्डर पर किसान आंदोलन के बीच आसपास (स्लम) के बच्चों के लिए ‘फुलवारी’ नाम से स्कूल शुरू करने वाली कंवलजीत कौर ने हमसे ये बातें कहीं. यह स्कूल केएफसी मॉल के पास शुरू किया गया है.
नवजोत कौर और अरविंदर सिंह भी इसमें इनका साथ देते हैं. साथ ही वॉलिंटियर्स का भी काफी सपोर्ट मिल रहा है. पंजाब के गुरदासपुर के एक ग्रामीण इलाके से ताल्लुक रखने वाली कंवलजीत सिंह बीएड की पढ़ाई कर चुकी हैं और पहले भी शिक्षा के क्षेत्र में काम करती रही हैं. 10-12 बच्चों से शुरू किए गए स्कूल में बच्चों की संख्या भी अब बढ़कर 60 को पार कर गई है.
इस स्कूल का नाम ‘फुलवारी’ क्यों रखा. इसके जवाब में कंवलजीत बताती हैं, “क्योंकि बच्चे फुलवारी में खिले अलग-अलग फूलों की तरह हैं. उन्हें फूलों की तरह एक साथ ग्रोथ और सपोर्ट करना है.”
कंवलजीत चाहती हैं कि अब शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली यहां की कोई एनजीओ उनसे जुड़े, ताकि उनके जाने के बाद भी इन बच्चों की पढ़ाई-लिखाई न रुके.
गौरतलब है कि देश की राजधानी दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर पिछले 50 दिन से तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ लोग विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. यहां आए सभी लोग चाहें डॉक्टर हों या छात्र सभी इस किसान आदोंलन को अपने-अपने तरीके से सपोर्ट कर रहे हैं. इस कड़ी में ही कुछ युवाओं ने सिंघु बॉर्डर पर ये स्कूल शुरू किया है. जिसमें ये यहां रहने वाले बच्चों को बेसिक एजुकेशन के साथ-साथ साफ-सफाई के बारे में भी जागरुक कर रहे हैं.
फुलवारी के संस्थापक सदस्यों में से एक नवजोत कौर ने विस्तार से हमें इस स्कूल की योजना और संचालन के बारे में बताया. नवजोत ने अभी पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से स्पेशल एजुकेशन (इंटलेक्चुअल डिसएबलिटीज) में बीएड किया है.
नवजोत बताती हैं, “हमने 15-16 दिसम्बर को ये स्कूल शुरू किया था. प्रदर्शन के दौरान हमने देखा था कि यहां जो स्लम में रहने वाले बच्चे हैं वो यहां आकर बोतल आदि बीनते थे. तो हमने सोचा कि जब तक हम यहां हैं तो क्यों न इन बच्चों की भलाई के लिए कुछ किया जाए. हम लंगर में जाकर बच्चों को कन्वेंस करते थे. पहले कुछ बच्चे आते थे और कुछ भाग जाते थे. शुरू में 10 बच्चे आए फिर उन्हें देखकर और बच्चे आने लगे. अब हमारे पास 60 से ज्यादा बच्चे हैं.”
“अभी तो इन्हें कुछ नहीं आता, हम बच्चों को अभी बिल्कुल बेसिक अल्फाबेट्स सिखा रहे हैं, नंबर से शुरू किया है. इसके अलावा साफ-सफाई जैसे हाइजीन का ध्यान कैसे रखना है, वह भी हम इन्हें सिखा रहे हैं. इसके अलावा जो चीजें इनके पास नहीं थीं, जैसे- ब्रुश, जूते, कपड़े आदि वह भी हमने इन्हें प्रोवाइड कराई हैं. यहां आने वाले अलग-अलग पेशे के लोगों से भी हम इन्हें मिलवाते हैं. जिससे कि न सिर्फ वे इन प्रोफेशन के बारे में जानें बल्कि उन्हें इन लोगों से बात करने का मौका भी मिले, ”नवजोत ने बताया.
अंत में नवजोत बताती हैं, “अभी इसमें यहां के स्लम के ही बच्चे हैं, लेकिन अगर इनमें प्रोटेस्ट में शामिल होने वाले बच्चे भी शामिल होना चाहें तो आ सकते हैं. इस स्कूल को शुरू करने का एक प्रमुख कारण ये है कि हमारे देश में सिर्फ एक फॉर्मिंग ही नहीं बल्कि और भी बहुत कुछ है, जिसे ठीक करने की जरूरत है. एजुकेशन भी बहुत जरूरी है, उस पर भी ध्यान देना चाहिए. इसके जरिए हम एक संदेश भी देना चाहते हैं.”
टिकरी बॉर्डर
सिंघु बॉर्डर की तरह ही टिकरी बॉर्डर पर भी प्रदर्शन के अतिरिक्त लोग लाइब्रेरी, शिक्षा और जागरुकता के लिए काम कर रहे हैं. ज्ञात हो कि किसानों द्वारा शुरू किए गए ‘ट्राली टाइम्स’ का मुख्यालय भी यही हैं. यहां जगह-जगह आपको लाइब्रेरी भी मिल जाएंगी, यहां किताबें लेकर पढ़कर वापस की जाने की सुविधा उपलब्ध है.
यहां हमारी मुलाकात डॉ. सवाईमान सिंह से हुई. पंजाब के अमृतसर से ताल्लुक रखने वाले सवाईमान अमेरिका के न्यूजर्सी में कार्डियोलोजिस्ट हैं लेकिन फिलहाल यहां किसान प्रदर्शन में पूरी तरह से शिक्षा और दूसरे इंतजाम करने में सहयोग कर रहे हैं.
डॉ. सवाईमान ने बताया, “हम देश की बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी चाहें दिल्ली यूनिवर्सिटी हो या पंजाब यूनिवर्सिटी वहां से हम बड़े-बड़े प्रोफेसर को बुलाएंगे जो यहां हमारे सही इतिहास, संविधान, तिरंगा आदि के बारे में लोगों को जानकारी देंगे. जैसे- सुभाषचंद्र बोस, भगतसिंह, जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी आदि जिन लोगों ने भी इस देश को बनाया है और तिरंगे के बारे में लोगों को सही जानकारी देंगे. साथ ही सही देशभक्ति और राष्ट्रभक्ति के बारे में भी बताएंगे. क्योंकि ऐसा लगता है कि लोगों को अभी यही मालूम नहीं है कि ये देश किसलिए बना था, और इस तिरंगे में तीन रंग क्यूं हैं या देश के संविधान का क्या मतलब है. लोगों को पूरी तरह से जागरुक किया जाना जरूरी है. क्योंकि कुछ लोग उल्टे सीधे बयान देकर एक तरह से तिरंगे को दाग लगा रहे हैं. बाकि एग्रीकल्चर के बारे में भी बताया जाएगा.” डॉ. सवाईमान ने कहा.
सवाईमान ने न्यू बस अड्डा बहादुरगढ़ के नवनिर्मित भवन को ही अपना ऑफिस बना दिया है और यहीं से सारा काम देखते हैं. उनका कहना है कि जब तक ये प्रदर्शन चलेगा तब तक मैं यहीं रहूंगा उसके बाद वापस अमेरिका लौट जाऊंगा. प्रदर्शन में बच्चों और बड़ों सभी का उत्साह देखते ही बनता है. ऐसे ही स्टेज के सबसे आगे की लाइन में बैठे एक बच्चे से टिकरी बॉर्डर पर हम मिले. ऋषभजीत सिंह हाथ में किताब लिए बैठे थे.
तीसरी कक्षा में पढ़ने वाला सात साल का ऋषभजीत पूरे परिवार के साथ पंजाब से प्रदर्शन में आया है. जब हमने पूछा कि यहां क्यूं आए हो तो सीधा जवाब दिया- अपना हक लेने. पढ़ाई को पूछने पर बताया कि पढ़ाई भी करते हैं लेकिन ये भी जरूरी है.
शाम को जब हम लौट रहे थे तो किसान छोटी-छोटी लोहड़ी जला रहे थे. साथ ही प्रदर्शन स्थलों पर सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर नए कृषि कानूनों की प्रतियां जलाकर उस आग में डाल रहे थे. उनका कहना था कि इस बार हम लोहड़ी कैसे मना सकते हैं. जब किसान सड़क पर हैं और सरकार सुन नहीं रही है.
“यहां ये बच्चे इधर-उधर घूमते रहते, कूड़ा बीनते रहते. साथ में नारेबाजी भी करते, जिसका उन्हें मतलब भी नहीं पता. स्टूडेंट की उम्र के इन बच्चों से हम ये उम्मीद नहीं कर सकते. तो हम ऐसा कुछ नहीं छोड़ना चाहते जो बाद में हमें बुरा लगे कि हमने इन्हें नहीं सिखाया. और फिर यहां प्रदर्शन में बहुत से एजुकेटेड लोग हैं तो क्यों न उसका सही इस्तेमाल किया जाए. इसलिए हमने ये स्कूल शुरू किया.”
सिंघु बॉर्डर पर किसान आंदोलन के बीच आसपास (स्लम) के बच्चों के लिए ‘फुलवारी’ नाम से स्कूल शुरू करने वाली कंवलजीत कौर ने हमसे ये बातें कहीं. यह स्कूल केएफसी मॉल के पास शुरू किया गया है.
नवजोत कौर और अरविंदर सिंह भी इसमें इनका साथ देते हैं. साथ ही वॉलिंटियर्स का भी काफी सपोर्ट मिल रहा है. पंजाब के गुरदासपुर के एक ग्रामीण इलाके से ताल्लुक रखने वाली कंवलजीत सिंह बीएड की पढ़ाई कर चुकी हैं और पहले भी शिक्षा के क्षेत्र में काम करती रही हैं. 10-12 बच्चों से शुरू किए गए स्कूल में बच्चों की संख्या भी अब बढ़कर 60 को पार कर गई है.
इस स्कूल का नाम ‘फुलवारी’ क्यों रखा. इसके जवाब में कंवलजीत बताती हैं, “क्योंकि बच्चे फुलवारी में खिले अलग-अलग फूलों की तरह हैं. उन्हें फूलों की तरह एक साथ ग्रोथ और सपोर्ट करना है.”
कंवलजीत चाहती हैं कि अब शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली यहां की कोई एनजीओ उनसे जुड़े, ताकि उनके जाने के बाद भी इन बच्चों की पढ़ाई-लिखाई न रुके.
गौरतलब है कि देश की राजधानी दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर पिछले 50 दिन से तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ लोग विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. यहां आए सभी लोग चाहें डॉक्टर हों या छात्र सभी इस किसान आदोंलन को अपने-अपने तरीके से सपोर्ट कर रहे हैं. इस कड़ी में ही कुछ युवाओं ने सिंघु बॉर्डर पर ये स्कूल शुरू किया है. जिसमें ये यहां रहने वाले बच्चों को बेसिक एजुकेशन के साथ-साथ साफ-सफाई के बारे में भी जागरुक कर रहे हैं.
फुलवारी के संस्थापक सदस्यों में से एक नवजोत कौर ने विस्तार से हमें इस स्कूल की योजना और संचालन के बारे में बताया. नवजोत ने अभी पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से स्पेशल एजुकेशन (इंटलेक्चुअल डिसएबलिटीज) में बीएड किया है.
नवजोत बताती हैं, “हमने 15-16 दिसम्बर को ये स्कूल शुरू किया था. प्रदर्शन के दौरान हमने देखा था कि यहां जो स्लम में रहने वाले बच्चे हैं वो यहां आकर बोतल आदि बीनते थे. तो हमने सोचा कि जब तक हम यहां हैं तो क्यों न इन बच्चों की भलाई के लिए कुछ किया जाए. हम लंगर में जाकर बच्चों को कन्वेंस करते थे. पहले कुछ बच्चे आते थे और कुछ भाग जाते थे. शुरू में 10 बच्चे आए फिर उन्हें देखकर और बच्चे आने लगे. अब हमारे पास 60 से ज्यादा बच्चे हैं.”
“अभी तो इन्हें कुछ नहीं आता, हम बच्चों को अभी बिल्कुल बेसिक अल्फाबेट्स सिखा रहे हैं, नंबर से शुरू किया है. इसके अलावा साफ-सफाई जैसे हाइजीन का ध्यान कैसे रखना है, वह भी हम इन्हें सिखा रहे हैं. इसके अलावा जो चीजें इनके पास नहीं थीं, जैसे- ब्रुश, जूते, कपड़े आदि वह भी हमने इन्हें प्रोवाइड कराई हैं. यहां आने वाले अलग-अलग पेशे के लोगों से भी हम इन्हें मिलवाते हैं. जिससे कि न सिर्फ वे इन प्रोफेशन के बारे में जानें बल्कि उन्हें इन लोगों से बात करने का मौका भी मिले, ”नवजोत ने बताया.
अंत में नवजोत बताती हैं, “अभी इसमें यहां के स्लम के ही बच्चे हैं, लेकिन अगर इनमें प्रोटेस्ट में शामिल होने वाले बच्चे भी शामिल होना चाहें तो आ सकते हैं. इस स्कूल को शुरू करने का एक प्रमुख कारण ये है कि हमारे देश में सिर्फ एक फॉर्मिंग ही नहीं बल्कि और भी बहुत कुछ है, जिसे ठीक करने की जरूरत है. एजुकेशन भी बहुत जरूरी है, उस पर भी ध्यान देना चाहिए. इसके जरिए हम एक संदेश भी देना चाहते हैं.”
टिकरी बॉर्डर
सिंघु बॉर्डर की तरह ही टिकरी बॉर्डर पर भी प्रदर्शन के अतिरिक्त लोग लाइब्रेरी, शिक्षा और जागरुकता के लिए काम कर रहे हैं. ज्ञात हो कि किसानों द्वारा शुरू किए गए ‘ट्राली टाइम्स’ का मुख्यालय भी यही हैं. यहां जगह-जगह आपको लाइब्रेरी भी मिल जाएंगी, यहां किताबें लेकर पढ़कर वापस की जाने की सुविधा उपलब्ध है.
यहां हमारी मुलाकात डॉ. सवाईमान सिंह से हुई. पंजाब के अमृतसर से ताल्लुक रखने वाले सवाईमान अमेरिका के न्यूजर्सी में कार्डियोलोजिस्ट हैं लेकिन फिलहाल यहां किसान प्रदर्शन में पूरी तरह से शिक्षा और दूसरे इंतजाम करने में सहयोग कर रहे हैं.
डॉ. सवाईमान ने बताया, “हम देश की बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी चाहें दिल्ली यूनिवर्सिटी हो या पंजाब यूनिवर्सिटी वहां से हम बड़े-बड़े प्रोफेसर को बुलाएंगे जो यहां हमारे सही इतिहास, संविधान, तिरंगा आदि के बारे में लोगों को जानकारी देंगे. जैसे- सुभाषचंद्र बोस, भगतसिंह, जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी आदि जिन लोगों ने भी इस देश को बनाया है और तिरंगे के बारे में लोगों को सही जानकारी देंगे. साथ ही सही देशभक्ति और राष्ट्रभक्ति के बारे में भी बताएंगे. क्योंकि ऐसा लगता है कि लोगों को अभी यही मालूम नहीं है कि ये देश किसलिए बना था, और इस तिरंगे में तीन रंग क्यूं हैं या देश के संविधान का क्या मतलब है. लोगों को पूरी तरह से जागरुक किया जाना जरूरी है. क्योंकि कुछ लोग उल्टे सीधे बयान देकर एक तरह से तिरंगे को दाग लगा रहे हैं. बाकि एग्रीकल्चर के बारे में भी बताया जाएगा.” डॉ. सवाईमान ने कहा.
सवाईमान ने न्यू बस अड्डा बहादुरगढ़ के नवनिर्मित भवन को ही अपना ऑफिस बना दिया है और यहीं से सारा काम देखते हैं. उनका कहना है कि जब तक ये प्रदर्शन चलेगा तब तक मैं यहीं रहूंगा उसके बाद वापस अमेरिका लौट जाऊंगा. प्रदर्शन में बच्चों और बड़ों सभी का उत्साह देखते ही बनता है. ऐसे ही स्टेज के सबसे आगे की लाइन में बैठे एक बच्चे से टिकरी बॉर्डर पर हम मिले. ऋषभजीत सिंह हाथ में किताब लिए बैठे थे.
तीसरी कक्षा में पढ़ने वाला सात साल का ऋषभजीत पूरे परिवार के साथ पंजाब से प्रदर्शन में आया है. जब हमने पूछा कि यहां क्यूं आए हो तो सीधा जवाब दिया- अपना हक लेने. पढ़ाई को पूछने पर बताया कि पढ़ाई भी करते हैं लेकिन ये भी जरूरी है.
शाम को जब हम लौट रहे थे तो किसान छोटी-छोटी लोहड़ी जला रहे थे. साथ ही प्रदर्शन स्थलों पर सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर नए कृषि कानूनों की प्रतियां जलाकर उस आग में डाल रहे थे. उनका कहना था कि इस बार हम लोहड़ी कैसे मना सकते हैं. जब किसान सड़क पर हैं और सरकार सुन नहीं रही है.