कृषि कानूनों पर अस्थाई तौर पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस गतिरोध को खत्म करने के लिए एक कमेटी का गठन किया है. हैरानी की बात है कि कमेटी में शामिल सदस्य कृषि कानूनों का पहले ही समर्थन कर चुके हैं. ऐसे में क्या रास्ता निकलेगा?
भूपिंदर सिंह मान
बुजुर्ग किसान नेता भूपिंदर सिंह मान भारतीय किसान यूनियन (मान) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. वे राज्यसभा के सांसद भी रह चुके हैं. दिसंबर 2020 में मान ने तोमर से मुलाकात की. तब उन्होंने हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार और तमिलनाडु के किसानों के समूह का नेतृत्व किया था. इस प्रतिनिधि मंडल ने कृषि मंत्री को ज्ञापन सौंपकर मांग की थी कि तीन नए कानूनों को कुछ संशोधनों के साथ लागू किया जाए.’'
मान ने हिन्दू अख़बार को कृषि कानूनों को लेकर बताया था, ‘‘ये रिफ़ॉर्म कृषि को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए बेहद ज़रूरी है. लेकिन किसानों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा उपाय और जो भी इसमें कमी है उसे भी ठीक करने की ज़रूरत है.’’
मान ने सितंबर महीने में पीएम मोदी को पत्र लिखकर कहा था कि इस बात की गारंटी दी जानी चाहिए कि किसानों को एमएसपी मिलेगी और कम दाम में खरीद करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होगी.
न्यूज़ 18 में छपी रिपोर्ट के मुताबिक मान ने अपने पत्र में लिखा था, ''इसके अलावा 9वें शेड्यूल में संशोधन होना चाहिए और कृषि जमीनों को इसके दायरे से बाहर करना चाहिए, ताकि किसान न्याय के लिए अदालतों के दरवाजे खटखटा सकें. जबकि कानून की मौजूदा स्थिति वह हालात पैदा करती है जिनमें किसानों को अभी तक आजादी नहीं मिली "आजाद देश के गुलाम किसान".
मान कृषि में निजी व्यवसाइयों को शामिल कराने के पुराने प्रस्तावक हैं. 2008 में मान और शेतकारी संगठन के शरद जोशी ने मनमोहन सिंह सरकार द्वारा पंजाब और हरियाणा से गेहूं की खरीद पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय के खिलाफ एक प्रदर्शन किया था.
'आंदोलन के कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं'
किसान संगठनों ने किसी भी कमेटी में शामिल होने की बात से पहले ही इंकार कर दिया था. हालांकि मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम मामले को सुलझाना चाहते हैं ऐसे में किसानों की यह बात हमें मंजूर नहीं कि वे कमेटी को नामंजूर करें.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद किसान नेता दर्शनपाल ने बताया, ''संयुक्त किसान मोर्चा तीनों किसान विरोधी कानूनों के कार्यान्वयन पर स्टे लगाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करता है. यह आदेश हमारी इस मान्यता को पुष्ट करता है कि यह तीनों कानून असंवैधानिक है. लेकिन यह स्थगन आदेश अस्थाई है जिसे कभी भी पलटा जा सकता है. हमारा आंदोलन इन तीन कानूनों के स्थगन नहीं इन्हें रद्द करने के लिए चलाया जा रहा है. इसलिए केवल इस स्टे के आधार पर हम अपने कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं कर सकते.''
दर्शनपाल आगे कहते हैं, ''मोर्चा किसी भी कमेटी के प्रस्ताव को खारिज कर चुका है. हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं लेकिन हमने इस मामले में मध्यस्थता के लिए सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना नहीं की है और ऐसी किसी कमेटी से हमारा कोई संबंध नहीं है. चाहे यह कमेटी कोर्ट को तकनीकी राय देने के लिए बनी है या फिर किसानों और सरकार में मध्यस्थता के लिए, किसानों का इस कमेटी से कोई लेना देना नहीं है. आज कोर्ट ने जो चार सदस्य कमेटी घोषित की है उसके सभी सदस्य इन तीनों कानूनों के पैरोकार रहे हैं और पिछले कई महीनों से खुलकर इन कानूनों के पक्ष में माहौल बनाने की असफल कोशिश करते रहे हैं. यह अफसोस की बात है कि देश के सुप्रीम कोर्ट में अपनी मदद के लिए बनाई इस कमेटी में एक भी निष्पक्ष व्यक्ति को नहीं रखा है.''
आंदोलन में किसी तरह का बदलाव नहीं होने की बात कहते हुए दर्शनपाल ने बताया, ''मोर्चा द्वारा घोषित आंदोलन के कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं होगा. हमारे सभी पूर्व घोषित कार्यक्रम यानी 13 जनवरी लोहड़ी पर तीनों कानूनों को जलाने का कार्यक्रम, 18 जनवरी को महिला किसान दिवस मनाने, 20 जनवरी को श्री गुरु गोविंद सिंह की याद में शपथ लेने और 23 जनवरी को आज़ाद हिंद किसान दिवस पर देश भर में राजभवन का घेराव करने का कार्यक्रम जारी रहेगा. गणतंत्र दिवस 26 जनवरी के दिन देशभर के किसान दिल्ली पहुंचकर शांतिपूर्ण तरीके से "किसान गणतंत्र परेड" आयोजित करे गणतंत्र का गौरव बढ़ाएंगे.''
किसान संगठनों ने इस कमेटी में शामिल होने से इंकार कर दिया है ऐसे में देखने वाली बात होगी कि इस कमेटी का भविष्य क्या होता है.
भूपिंदर सिंह मान
बुजुर्ग किसान नेता भूपिंदर सिंह मान भारतीय किसान यूनियन (मान) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. वे राज्यसभा के सांसद भी रह चुके हैं. दिसंबर 2020 में मान ने तोमर से मुलाकात की. तब उन्होंने हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार और तमिलनाडु के किसानों के समूह का नेतृत्व किया था. इस प्रतिनिधि मंडल ने कृषि मंत्री को ज्ञापन सौंपकर मांग की थी कि तीन नए कानूनों को कुछ संशोधनों के साथ लागू किया जाए.’'
मान ने हिन्दू अख़बार को कृषि कानूनों को लेकर बताया था, ‘‘ये रिफ़ॉर्म कृषि को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए बेहद ज़रूरी है. लेकिन किसानों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा उपाय और जो भी इसमें कमी है उसे भी ठीक करने की ज़रूरत है.’’
मान ने सितंबर महीने में पीएम मोदी को पत्र लिखकर कहा था कि इस बात की गारंटी दी जानी चाहिए कि किसानों को एमएसपी मिलेगी और कम दाम में खरीद करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होगी.
न्यूज़ 18 में छपी रिपोर्ट के मुताबिक मान ने अपने पत्र में लिखा था, ''इसके अलावा 9वें शेड्यूल में संशोधन होना चाहिए और कृषि जमीनों को इसके दायरे से बाहर करना चाहिए, ताकि किसान न्याय के लिए अदालतों के दरवाजे खटखटा सकें. जबकि कानून की मौजूदा स्थिति वह हालात पैदा करती है जिनमें किसानों को अभी तक आजादी नहीं मिली "आजाद देश के गुलाम किसान".
मान कृषि में निजी व्यवसाइयों को शामिल कराने के पुराने प्रस्तावक हैं. 2008 में मान और शेतकारी संगठन के शरद जोशी ने मनमोहन सिंह सरकार द्वारा पंजाब और हरियाणा से गेहूं की खरीद पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय के खिलाफ एक प्रदर्शन किया था.
'आंदोलन के कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं'
किसान संगठनों ने किसी भी कमेटी में शामिल होने की बात से पहले ही इंकार कर दिया था. हालांकि मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम मामले को सुलझाना चाहते हैं ऐसे में किसानों की यह बात हमें मंजूर नहीं कि वे कमेटी को नामंजूर करें.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद किसान नेता दर्शनपाल ने बताया, ''संयुक्त किसान मोर्चा तीनों किसान विरोधी कानूनों के कार्यान्वयन पर स्टे लगाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करता है. यह आदेश हमारी इस मान्यता को पुष्ट करता है कि यह तीनों कानून असंवैधानिक है. लेकिन यह स्थगन आदेश अस्थाई है जिसे कभी भी पलटा जा सकता है. हमारा आंदोलन इन तीन कानूनों के स्थगन नहीं इन्हें रद्द करने के लिए चलाया जा रहा है. इसलिए केवल इस स्टे के आधार पर हम अपने कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं कर सकते.''
दर्शनपाल आगे कहते हैं, ''मोर्चा किसी भी कमेटी के प्रस्ताव को खारिज कर चुका है. हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं लेकिन हमने इस मामले में मध्यस्थता के लिए सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना नहीं की है और ऐसी किसी कमेटी से हमारा कोई संबंध नहीं है. चाहे यह कमेटी कोर्ट को तकनीकी राय देने के लिए बनी है या फिर किसानों और सरकार में मध्यस्थता के लिए, किसानों का इस कमेटी से कोई लेना देना नहीं है. आज कोर्ट ने जो चार सदस्य कमेटी घोषित की है उसके सभी सदस्य इन तीनों कानूनों के पैरोकार रहे हैं और पिछले कई महीनों से खुलकर इन कानूनों के पक्ष में माहौल बनाने की असफल कोशिश करते रहे हैं. यह अफसोस की बात है कि देश के सुप्रीम कोर्ट में अपनी मदद के लिए बनाई इस कमेटी में एक भी निष्पक्ष व्यक्ति को नहीं रखा है.''
आंदोलन में किसी तरह का बदलाव नहीं होने की बात कहते हुए दर्शनपाल ने बताया, ''मोर्चा द्वारा घोषित आंदोलन के कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं होगा. हमारे सभी पूर्व घोषित कार्यक्रम यानी 13 जनवरी लोहड़ी पर तीनों कानूनों को जलाने का कार्यक्रम, 18 जनवरी को महिला किसान दिवस मनाने, 20 जनवरी को श्री गुरु गोविंद सिंह की याद में शपथ लेने और 23 जनवरी को आज़ाद हिंद किसान दिवस पर देश भर में राजभवन का घेराव करने का कार्यक्रम जारी रहेगा. गणतंत्र दिवस 26 जनवरी के दिन देशभर के किसान दिल्ली पहुंचकर शांतिपूर्ण तरीके से "किसान गणतंत्र परेड" आयोजित करे गणतंत्र का गौरव बढ़ाएंगे.''
किसान संगठनों ने इस कमेटी में शामिल होने से इंकार कर दिया है ऐसे में देखने वाली बात होगी कि इस कमेटी का भविष्य क्या होता है.