ट्रैक्टर मार्च में शामिल हुए किसानों का कहना है कि सरकार को तीनों कृषि बिल वापस लेने ही होंगे.
परेड में युवा, बुजुर्ग और छात्र भी शामिल हुए. ऐसे ही 7वीं में पढ़ने वाले एक छात्र से हमने बात की.
अमृतसर का 13 साल के गुरुसेवक सिंह अपने गांव को दो अन्य युवकों कुलदीप सिंह और हरवंत सिंह के साथ ट्रैक्टर परेड में शामिल हुए. एक महीने से ज्यादा समय से किसान आंदोलन में डेरा डाले गुरुसेवक ने बताया, “वे सिंघु से टिकरी बॉर्डर तक मार्च में शामिल थे. आज तो ट्रेलर दिया है. बाकि 26 जनवरी को तिरंगे के साथ किसान पार्लियामेंट के पास जाकर परेड करेंगे. पंजाब में सभी परिवारों से एक आदमी को परेड में भेजने की अपील की जा रही है. गणतंत्र दिवस पर हम सरकार को ये बताना चाहते हैं कि जो आजादी हमें मिली है वह अभी अधूरी है.”
गुरुसेवक ने ट्रैक्टर परेड पर कहा, “शांतिपूर्ण तरीके से हमने मार्च किया है. हमारी इन बातों का असर भी हो रहा है. देखो अब यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने गणतंत्र दिवस पर आने से मना कर दिया है. भले ही वजह कोरोना बताया हो लेकिन ये सब इसी आंदोलन का असर है. यही हमारी सबसे बड़ी जीत है.”
पढ़ाई की उम्र में आंदोलन के सवाल पर गुरुसेवक ने कहा, “पढ़ाई भी कर रहे हैं. ऑनलाइन क्लास चल रही हैं तो यहीं से कर लेते हैं.”
ट्रैक्टर परेड में शामिल हुए लोग अपने-अपने तरीके से समर्थन कर रहे थे. कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे के मुख्य पॉइंट पर ऐसे ही कुछ युवाओं से हमारी मुलाकात हुई. ये लोग ट्रैक्टरों को मैनेज करने का काम कर रहे थे. पटियाला के अरविंदर विर्क पेशे से किसान हैं, साथ ही जॉन डियर ट्रैक्टर कम्पनी के साथ कारोबार से भी जुड़े हैं. अरविंदर ने हमें बताया, "उनका 10-15 लोगों का ग्रुप है जो इस आंदोलन में जरूरत की चीजों पर ध्यान रखता है. जिस चीज की भी जरूरत होती है. उसे पूरा करने की कोशिश करता है. चाहे साफ-सफाई हो, खाना-पीना या कुछ और."
ट्रैक्टर परेड के बारे में अरविंदर कहते हैं, “आज ये हमारा ट्रायल है. बाकि इसके तहत हम सरकार को बताना चाहते हैं कि हम 26 जनवरी को क्या करने वाले हैं. क्योंकि किसी भी सरकार की ताकत नहीं है कि जनता को दबा दे. सरकार झुकेगी, उसे बिल वापस लेना होगा.”
साइकोलॉजी की पढ़ाई कर चुकीं रवनीत कौर भी इसी ग्रुप की सदस्य हैं, वे एक सिंगर भी हैं. जो यहां किसानों और ट्रैक्टर परेड को समर्थन देने आई हैं. वह कहती हैं, “हम किसानों को यह दिखाने के लिए कि हम उनके साथ हैं, एकजुट हैं, यहां आए हैं. आज की ये परेड 26 जनवरी की रिहर्सल है. हम यूथ हैं, तो हम इस आंदोलन के बारे में लोगों को अच्छे से जागरूक कर सकते हैं. जितनी भी बड़ी लड़ाई होती है, वो लम्बी ही चलती है. किसान उसके लिए तैयार हैं. किसान सड़क पर हैं तो हम घर में कैसे रह सकते है.”
पंजाब यूनिवर्सिटी से लॉ फाइनल ईयर की पढ़ाई कर रहे दीपेंदर विर्क भी ट्रैक्टर परेड में वॉलंटियर की भूमिका में थे. दीपेंदर पास ही खेतों की ओर हाथ उठाकर कहते हैं, “ये हमारी मां है. इसके बिना हमें चैन नहीं आता. हम चाहें लाख रूपए दिन में कमाएं लेकिन जो खुशी हमें फसल बेचकर आए पैसों से मिलती है, वो वैसे कभी नहीं मिलती. हमारे यहां बाप खेती करेगा और बेटे को पढ़ाएगा.”
शाम को जब हम सिंघु बॉर्डर से वापस लौट रहे थे तब तक भी किसानों का मार्च से वापस आने का सिलसिला नहीं रुका था.
परेड में युवा, बुजुर्ग और छात्र भी शामिल हुए. ऐसे ही 7वीं में पढ़ने वाले एक छात्र से हमने बात की.
अमृतसर का 13 साल के गुरुसेवक सिंह अपने गांव को दो अन्य युवकों कुलदीप सिंह और हरवंत सिंह के साथ ट्रैक्टर परेड में शामिल हुए. एक महीने से ज्यादा समय से किसान आंदोलन में डेरा डाले गुरुसेवक ने बताया, “वे सिंघु से टिकरी बॉर्डर तक मार्च में शामिल थे. आज तो ट्रेलर दिया है. बाकि 26 जनवरी को तिरंगे के साथ किसान पार्लियामेंट के पास जाकर परेड करेंगे. पंजाब में सभी परिवारों से एक आदमी को परेड में भेजने की अपील की जा रही है. गणतंत्र दिवस पर हम सरकार को ये बताना चाहते हैं कि जो आजादी हमें मिली है वह अभी अधूरी है.”
गुरुसेवक ने ट्रैक्टर परेड पर कहा, “शांतिपूर्ण तरीके से हमने मार्च किया है. हमारी इन बातों का असर भी हो रहा है. देखो अब यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने गणतंत्र दिवस पर आने से मना कर दिया है. भले ही वजह कोरोना बताया हो लेकिन ये सब इसी आंदोलन का असर है. यही हमारी सबसे बड़ी जीत है.”
पढ़ाई की उम्र में आंदोलन के सवाल पर गुरुसेवक ने कहा, “पढ़ाई भी कर रहे हैं. ऑनलाइन क्लास चल रही हैं तो यहीं से कर लेते हैं.”
ट्रैक्टर परेड में शामिल हुए लोग अपने-अपने तरीके से समर्थन कर रहे थे. कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे के मुख्य पॉइंट पर ऐसे ही कुछ युवाओं से हमारी मुलाकात हुई. ये लोग ट्रैक्टरों को मैनेज करने का काम कर रहे थे. पटियाला के अरविंदर विर्क पेशे से किसान हैं, साथ ही जॉन डियर ट्रैक्टर कम्पनी के साथ कारोबार से भी जुड़े हैं. अरविंदर ने हमें बताया, "उनका 10-15 लोगों का ग्रुप है जो इस आंदोलन में जरूरत की चीजों पर ध्यान रखता है. जिस चीज की भी जरूरत होती है. उसे पूरा करने की कोशिश करता है. चाहे साफ-सफाई हो, खाना-पीना या कुछ और."
ट्रैक्टर परेड के बारे में अरविंदर कहते हैं, “आज ये हमारा ट्रायल है. बाकि इसके तहत हम सरकार को बताना चाहते हैं कि हम 26 जनवरी को क्या करने वाले हैं. क्योंकि किसी भी सरकार की ताकत नहीं है कि जनता को दबा दे. सरकार झुकेगी, उसे बिल वापस लेना होगा.”
साइकोलॉजी की पढ़ाई कर चुकीं रवनीत कौर भी इसी ग्रुप की सदस्य हैं, वे एक सिंगर भी हैं. जो यहां किसानों और ट्रैक्टर परेड को समर्थन देने आई हैं. वह कहती हैं, “हम किसानों को यह दिखाने के लिए कि हम उनके साथ हैं, एकजुट हैं, यहां आए हैं. आज की ये परेड 26 जनवरी की रिहर्सल है. हम यूथ हैं, तो हम इस आंदोलन के बारे में लोगों को अच्छे से जागरूक कर सकते हैं. जितनी भी बड़ी लड़ाई होती है, वो लम्बी ही चलती है. किसान उसके लिए तैयार हैं. किसान सड़क पर हैं तो हम घर में कैसे रह सकते है.”
पंजाब यूनिवर्सिटी से लॉ फाइनल ईयर की पढ़ाई कर रहे दीपेंदर विर्क भी ट्रैक्टर परेड में वॉलंटियर की भूमिका में थे. दीपेंदर पास ही खेतों की ओर हाथ उठाकर कहते हैं, “ये हमारी मां है. इसके बिना हमें चैन नहीं आता. हम चाहें लाख रूपए दिन में कमाएं लेकिन जो खुशी हमें फसल बेचकर आए पैसों से मिलती है, वो वैसे कभी नहीं मिलती. हमारे यहां बाप खेती करेगा और बेटे को पढ़ाएगा.”
शाम को जब हम सिंघु बॉर्डर से वापस लौट रहे थे तब तक भी किसानों का मार्च से वापस आने का सिलसिला नहीं रुका था.