योगी आदित्यनाथ ने टाइम मैगज़ीन में विज्ञापन छपवाया जिसे तमाम नेताओं के साथ मीडिया ने भी रिपोर्ट बनाकर दिखाया.
टाइम में छपे इस विज्ञापन पर अगर गौर करें तो उसमें ऊपर ‘क़ॉन्टेंट फ्रॉम उत्तर प्रदेश’ साफ लिखा है. यूपी सरकार के इस विज्ञापन में ‘कोविड मृत्यु दर 1.3 प्रतिशत और रिकवरी रेट 94 प्रतिशत’ के अलावा ‘विषम परिस्थितियों में पॉजिटिव रहना सरल नहीं बल्कि ये नेतृत्व का कमाल है’. योगी के अलावा किसी और मुख्यमंत्री ये नहीं कर पाए. इसी तरह की तारीफ भरी बातें लिखी हैं. साथ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मुस्कुराते हुए तस्वीर भी लगी है.
दिलचस्प बात है कि नवंबर 2020 में इसी टाइम मैगजीन में योगी सरकार की कड़ी आलोचना की गई थी. तब कथित लव जिहाद कानून के चलते योगी आदित्यनाथ को ‘हार्डलाइन हिंदू राष्ट्रवादी साधू’ बताया गया था. इससे पहले मई 2019 में टाइम ने अपने कवर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘डिवाइडर इन चीफ’ नाम से लेख लिखा था. तब बीजेपी के नेताओं ने और तमाम खबरिया चैनलों ने उसकी कड़ी आलोचना की थी.
यह विज्ञापन टाइम मैगजीन में पब्लिश होने से पहले यूपी के पत्रकारों के पास दिसम्बर की शुरुआत में एक प्रेस ब्रीफिंग के रूप में भी पहुंचा था. न्यूज़लॉन्ड्री के पास वह दस्तावेज मौजूद है. इसमें यूपी सरकार के कोविड संबंधी कामकाज जैसे- लॉकडाउन, कोविड हॉस्पिटल, टेस्टिंग आदि के बारे में बताया गया है. उस प्रेस रिलीज को तमाम छोटे-बड़े मीडिया संस्थान एडिटिंग करके पहले ही छाप चुके हैं.
सबसे पहले यह राजस्थान से पब्लिश होने वाले ‘फर्स्ट इंडिया’ नामक अंग्रेजी अखबार में छपा था. इसका संचालन ज़ी न्यूज़ के पूर्व एक्जीक्यूटिव एडिटर जगदीप चंद्र करते हैं. 5 दिसम्बर को अखबार ने ये प्रेस ब्रीफिंग लगभग इसी हेडलाइन और कंटेंट के साथ छापी थी.
इसके अलावा दैनिक अखबार डेली गार्जियन ने 9 नवंबर को इस प्रेस रिलीज को ख़बर बनाकर प्रकाशित किया था.
इसके एक हफ्ते बाद 14 दिसम्बर को तहलका ने इसी रिपोर्ट को इसी तरह छापा था. न्यूजलॉन्ड्री ने जब यहां रहने वाले एक कर्मचारी से संपर्क किया तो पता चला कि एक समय अपनी खोजी रिपोर्टिंग के लिए मशहूर रही तहलका मैगजीन को योगी सरकार के साथ थोड़ा सॉफ्ट रहने की नसीहत दी गई है.
कर्मचारी से जब पूछा गया कि सरकार की प्रेस रिलीज को रिपोर्ट बताकर क्यों छापा गया है, तो उसने कहा, “हम क्या कर सकते हैं? जॉब की कमी है और सैलरी भी कम है. हम यहां प्रबंधन के हाथों में लगभग क्लर्क बन चुके हैं.”
कर्मचारी ने आगे बताया, “इस तरह की रिपोर्ट करने के कारण ही इस बार हमें यूपी सरकार से काफी विज्ञापन मिला है. अगर आप उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता करना चाहते हो तो आपको हाथ में मोमबत्ती लेकर चलना होगा. सरकार वहां एएनआई जैसे कुछ गिने-चुने मीडिया हाउस के सिवा किसी को सवालों का जवाब नहीं देती.”
17 दिसम्बर को उत्तर प्रदेश के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी अमित मोहन का एक ओपिनियन पीस इंडियन एक्सप्रेस ने छापा था. जिसमें कोविड संकट से निपटने के तौर तरीकों को बताया गया था. इसे भी उस प्रेस ब्रीफिंग का छोटा रूप कहा जा सकता है.
मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार इस मुद्दे पर कहते हैं, “मेरा मानना ये है कि ये चैनल और पब्लिशिंग हाउस इस तरह की मूर्खता इसलिए करते हैं क्योंकि वे टेस्टिंग करते हैं कि समाज का कॉमन सेंस कितना खत्म हो चुका है. इसलिए वे इस तरह की हरकतें हर 10-15 दिन में करते हैं. ये खुद जानते हैं कि ये पेड एडवरटाइजमेंट है लेकिन ख़बर की तरह इसलिए चलाते हैं क्योंकि इनका इरादा लोगों का सेंस खत्म करना है.”
टाइम में छपे इस विज्ञापन पर अगर गौर करें तो उसमें ऊपर ‘क़ॉन्टेंट फ्रॉम उत्तर प्रदेश’ साफ लिखा है. यूपी सरकार के इस विज्ञापन में ‘कोविड मृत्यु दर 1.3 प्रतिशत और रिकवरी रेट 94 प्रतिशत’ के अलावा ‘विषम परिस्थितियों में पॉजिटिव रहना सरल नहीं बल्कि ये नेतृत्व का कमाल है’. योगी के अलावा किसी और मुख्यमंत्री ये नहीं कर पाए. इसी तरह की तारीफ भरी बातें लिखी हैं. साथ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मुस्कुराते हुए तस्वीर भी लगी है.
दिलचस्प बात है कि नवंबर 2020 में इसी टाइम मैगजीन में योगी सरकार की कड़ी आलोचना की गई थी. तब कथित लव जिहाद कानून के चलते योगी आदित्यनाथ को ‘हार्डलाइन हिंदू राष्ट्रवादी साधू’ बताया गया था. इससे पहले मई 2019 में टाइम ने अपने कवर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘डिवाइडर इन चीफ’ नाम से लेख लिखा था. तब बीजेपी के नेताओं ने और तमाम खबरिया चैनलों ने उसकी कड़ी आलोचना की थी.
यह विज्ञापन टाइम मैगजीन में पब्लिश होने से पहले यूपी के पत्रकारों के पास दिसम्बर की शुरुआत में एक प्रेस ब्रीफिंग के रूप में भी पहुंचा था. न्यूज़लॉन्ड्री के पास वह दस्तावेज मौजूद है. इसमें यूपी सरकार के कोविड संबंधी कामकाज जैसे- लॉकडाउन, कोविड हॉस्पिटल, टेस्टिंग आदि के बारे में बताया गया है. उस प्रेस रिलीज को तमाम छोटे-बड़े मीडिया संस्थान एडिटिंग करके पहले ही छाप चुके हैं.
सबसे पहले यह राजस्थान से पब्लिश होने वाले ‘फर्स्ट इंडिया’ नामक अंग्रेजी अखबार में छपा था. इसका संचालन ज़ी न्यूज़ के पूर्व एक्जीक्यूटिव एडिटर जगदीप चंद्र करते हैं. 5 दिसम्बर को अखबार ने ये प्रेस ब्रीफिंग लगभग इसी हेडलाइन और कंटेंट के साथ छापी थी.
इसके अलावा दैनिक अखबार डेली गार्जियन ने 9 नवंबर को इस प्रेस रिलीज को ख़बर बनाकर प्रकाशित किया था.
इसके एक हफ्ते बाद 14 दिसम्बर को तहलका ने इसी रिपोर्ट को इसी तरह छापा था. न्यूजलॉन्ड्री ने जब यहां रहने वाले एक कर्मचारी से संपर्क किया तो पता चला कि एक समय अपनी खोजी रिपोर्टिंग के लिए मशहूर रही तहलका मैगजीन को योगी सरकार के साथ थोड़ा सॉफ्ट रहने की नसीहत दी गई है.
कर्मचारी से जब पूछा गया कि सरकार की प्रेस रिलीज को रिपोर्ट बताकर क्यों छापा गया है, तो उसने कहा, “हम क्या कर सकते हैं? जॉब की कमी है और सैलरी भी कम है. हम यहां प्रबंधन के हाथों में लगभग क्लर्क बन चुके हैं.”
कर्मचारी ने आगे बताया, “इस तरह की रिपोर्ट करने के कारण ही इस बार हमें यूपी सरकार से काफी विज्ञापन मिला है. अगर आप उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता करना चाहते हो तो आपको हाथ में मोमबत्ती लेकर चलना होगा. सरकार वहां एएनआई जैसे कुछ गिने-चुने मीडिया हाउस के सिवा किसी को सवालों का जवाब नहीं देती.”
17 दिसम्बर को उत्तर प्रदेश के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी अमित मोहन का एक ओपिनियन पीस इंडियन एक्सप्रेस ने छापा था. जिसमें कोविड संकट से निपटने के तौर तरीकों को बताया गया था. इसे भी उस प्रेस ब्रीफिंग का छोटा रूप कहा जा सकता है.
मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार इस मुद्दे पर कहते हैं, “मेरा मानना ये है कि ये चैनल और पब्लिशिंग हाउस इस तरह की मूर्खता इसलिए करते हैं क्योंकि वे टेस्टिंग करते हैं कि समाज का कॉमन सेंस कितना खत्म हो चुका है. इसलिए वे इस तरह की हरकतें हर 10-15 दिन में करते हैं. ये खुद जानते हैं कि ये पेड एडवरटाइजमेंट है लेकिन ख़बर की तरह इसलिए चलाते हैं क्योंकि इनका इरादा लोगों का सेंस खत्म करना है.”