28 दिसंबर को कृषि मंत्री ने अपने ट्वीटर अकाउंट पर 12 किसान संगठनों का कृषि कानूनों के समर्थन में दिया पत्र साझा किया. न्यूज़लॉन्ड्री ने जानने की कोशिश की कि इन किसान संगठनों के प्रमुख कौन हैं और इनकी जमीनी पकड़ कितनी है.
भारतीय कृषक समाज
भारतीय कृषक समाज से मिले समर्थन पत्र को साझा करते हुए कृषि मंत्री ने लिखा, ‘‘गाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश के ‘‘भारतीय कृषक समाज’’ से प्राप्त नए कृषि सुधार कानूनों के समर्थन में पत्र. उन्होंने इस पत्र में कृषि कानूनों का समर्थन करते हुए इसे किसान हित में एक बड़ा साहसिक व ऐतिहासिक कदम बताया है.’
कृष्णवीर चौधरी भी बीजेपी के सदस्य हैं. वे खुद को समान्य कार्यकर्ता बताते हुए कहते हैं कि करोड़ो लोगों की तरह मैं भी बीजेपी का एक सदस्य हूं. हालांकि तत्कालीन बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह की उपस्थिति में चौधरी साल 2014 में बीजेपी में शामिल हुए थे.|
सरकार को दिए समर्थन पत्र में इन कानूनों की किसानों द्वारा लम्बी मांग बताते हुए कृष्णवीर चौधरी लिखते हैं, ''आज सरकार ने बाजार खोलकर किसानों के हित में एक बड़ा साहसिक और ऐतिहासिक फैसला लिया है. यह कानून देश में किसानों की प्रगति के साथ, कृषि उत्पादकता में सुधार और किसानों की आर्थिक दशा सुधारने में मदद करेगा.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कृष्णवीर चौधरी अपने संगठन के बारे में बताते हुए कहते हैं, ‘‘यह सिर्फ किसानों का और किसान के लिए बना संगठन है. हमारा प्राथमिक काम किसानों की समस्यायों को सरकार के सामने उठाना है. मेरी विचारधारा किसानों के हित में काम करना है.’’
कृष्णवीर चौधरी लम्बे समय तक कांग्रेस में रह चुके हैं. वे कहते हैं, ‘‘कांग्रेस में रहते हुए यूपीए 1 और 2 के समय हम लगातार किसानों के लिए बोलते रहे. हम वहां बराबर लड़ते रहे कि बिचौलियों के द्वारा किसानो का शोषण किया जा रहा है. वे किसानों को लूटते हैं. तब इसको लेकर सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह भी बोलते रहे. शरद पवार ने भी बोला था. तब तो वे हमारी बात मानते थे. देश के पहले कृषि मंत्री थे पंजाब राव देशमुख, हम उनके आदर्शों पर चलने वाले हैं. उन्होंने तब कहा था कि जब तक किसान को बाजार में नहीं खड़ा करेंगे उसका शोषण होता रहेगा. चौधरी चरण ने भी ऐसा ही कहा था. तो क्या वे गलत कह रहे थे? हमारी लड़ाई सिर्फ बिचौलियों के खिलाफ है.’’
भारत सरकार को कृषि बिलों पर समर्थन देने के साथ-साथ भारतीय कृषक समाज के प्रमुख कृष्ण वीर चौधरी की भूमिका अन्य कई संगठनों से समर्थन दिलाने में भी नजर आती है. चाहे वो महाराष्ट्र राज्य कृषक समाज के प्रकाश मानकर द्वारा दिया गया समर्थन हो या पलवल के प्रगतिशील किसान क्लब के विजेंद्र सिंह दलाल द्वारा दिया गया समर्थन. प्रकाश मानकर ने सरकार को समर्थन देते हुए एक पत्र केंद्रीय कृषि मंत्री को लिखा है और दूसरा पत्र कृष्ण वीर चौधरी को लिखा है. वहीं अगर विजेंद्र की बात करें तो दोनों को जानने वाले बताते हैं कि ये आपस में काफी घनिष्ट हैं.
इन संगठनों के अलावा 28 दिसंबर को जम्मू-कश्मीर के ‘जे एंड के किसान काउंसिल’ और ‘जे एंड के डेयरी प्रोड्यूसर्स, प्रोसेसर्स एंड मार्केटिंग को.आप. यूनियन लि. कोलकाता पश्चिम बंगाल के ‘कृषि जागरण मंच’, भारतीय किसान संगठन" दिल्ली प्रदेश और उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर के रहने वाले "पीजेंट वेल्फेयर एसोसिएशन" से सरकार को अपना समर्थन दिया है.
विरोध करने वाले विपक्षी तो समर्थन करने वाले कौन?
एक तरफ सरकार बिना किसी किसान संगठन की मांग और मशविरा के विपक्ष के विरोध के बावजूद कोरोना काल में तीनों कृषि कानूनों को पास करा लेती है. जब पंजाब और हरियाणा के किसान इसके खिलाफ प्रदर्शन शुरू करते हैं तो सरकार अनदेखा करती है.
25-26 नवंबर को किसान दिल्ली चलो के नारे के साथ दिल्ली के लिए निकल पड़ते है. उन्हें रोकने की कोशिश होती है. जब वे नहीं रुकते और बैरिकेटिंग तोड़ते हुए दिल्ली की सीमाओं पर पहुंच जाते हैं तो गृहमंत्री निरंकारी ग्राउंड पहुंचने पर ही बातचीत शुरू करने की बात कहते है. लेकिन किसान नहीं मानते इसके बाद सरकार और किसानों की बात शुरू होती है.
एक तरफ सरकार किसानों से बातचीत कर रही है. दूसरी तरफ इन्हें विपक्ष द्वारा बरगलाया हुआ बताया जाता है. ऐसा करने वाले सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी हैं. वे एक बार नहीं कई बार किसानों को विपक्ष द्वारा भ्रमित किया हुआ बता चुके हैं. पीएम मोदी ने बीते दिनों विपक्ष से कहा था, ''आप भले ही सारा क्रेडिट ले लें लेकिन किसानों को बरगलाना बंद करें.'’
विरोध कर रहे किसान नेताओं के अलग-अलग संगठन से जुड़े होने को मुद्दा बनाकर इस आंदोलन को किसानों का नहीं बल्कि विपक्ष का आंदोलन बताने की कोशिश सरकार के मंत्रियों, आईटी सेल और सरकार समर्थक मीडिया संस्थानों द्वारा भी किया जाता है. जबकि किसान नेताओं ने अपनी पहचान छुपाई भी नहीं है.
नाराज़ किसानों से बातचीत के बीचोंबीच केंद्रीय कृषि मंत्री अलग-अलग किसान संगठनों से मुलाकात कर उनसे इन बिलों को बेहतर बताते हुए समर्थन मिलने का दावा करते हैं. कृषि मंत्री इस समर्थन पत्र के जरिए यह दिखाने की कोशिश करते है कि काफी संख्या में किसान इस बिल से खुश हैं, हालांकि वे ये नहीं बताते कि इस संगठन के लोग उनके ही दल से जुड़े हैं. यह हैरान करने वाली बात है.
भारतीय कृषक समाज
भारतीय कृषक समाज से मिले समर्थन पत्र को साझा करते हुए कृषि मंत्री ने लिखा, ‘‘गाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश के ‘‘भारतीय कृषक समाज’’ से प्राप्त नए कृषि सुधार कानूनों के समर्थन में पत्र. उन्होंने इस पत्र में कृषि कानूनों का समर्थन करते हुए इसे किसान हित में एक बड़ा साहसिक व ऐतिहासिक कदम बताया है.’
कृष्णवीर चौधरी भी बीजेपी के सदस्य हैं. वे खुद को समान्य कार्यकर्ता बताते हुए कहते हैं कि करोड़ो लोगों की तरह मैं भी बीजेपी का एक सदस्य हूं. हालांकि तत्कालीन बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह की उपस्थिति में चौधरी साल 2014 में बीजेपी में शामिल हुए थे.|
सरकार को दिए समर्थन पत्र में इन कानूनों की किसानों द्वारा लम्बी मांग बताते हुए कृष्णवीर चौधरी लिखते हैं, ''आज सरकार ने बाजार खोलकर किसानों के हित में एक बड़ा साहसिक और ऐतिहासिक फैसला लिया है. यह कानून देश में किसानों की प्रगति के साथ, कृषि उत्पादकता में सुधार और किसानों की आर्थिक दशा सुधारने में मदद करेगा.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कृष्णवीर चौधरी अपने संगठन के बारे में बताते हुए कहते हैं, ‘‘यह सिर्फ किसानों का और किसान के लिए बना संगठन है. हमारा प्राथमिक काम किसानों की समस्यायों को सरकार के सामने उठाना है. मेरी विचारधारा किसानों के हित में काम करना है.’’
कृष्णवीर चौधरी लम्बे समय तक कांग्रेस में रह चुके हैं. वे कहते हैं, ‘‘कांग्रेस में रहते हुए यूपीए 1 और 2 के समय हम लगातार किसानों के लिए बोलते रहे. हम वहां बराबर लड़ते रहे कि बिचौलियों के द्वारा किसानो का शोषण किया जा रहा है. वे किसानों को लूटते हैं. तब इसको लेकर सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह भी बोलते रहे. शरद पवार ने भी बोला था. तब तो वे हमारी बात मानते थे. देश के पहले कृषि मंत्री थे पंजाब राव देशमुख, हम उनके आदर्शों पर चलने वाले हैं. उन्होंने तब कहा था कि जब तक किसान को बाजार में नहीं खड़ा करेंगे उसका शोषण होता रहेगा. चौधरी चरण ने भी ऐसा ही कहा था. तो क्या वे गलत कह रहे थे? हमारी लड़ाई सिर्फ बिचौलियों के खिलाफ है.’’
भारत सरकार को कृषि बिलों पर समर्थन देने के साथ-साथ भारतीय कृषक समाज के प्रमुख कृष्ण वीर चौधरी की भूमिका अन्य कई संगठनों से समर्थन दिलाने में भी नजर आती है. चाहे वो महाराष्ट्र राज्य कृषक समाज के प्रकाश मानकर द्वारा दिया गया समर्थन हो या पलवल के प्रगतिशील किसान क्लब के विजेंद्र सिंह दलाल द्वारा दिया गया समर्थन. प्रकाश मानकर ने सरकार को समर्थन देते हुए एक पत्र केंद्रीय कृषि मंत्री को लिखा है और दूसरा पत्र कृष्ण वीर चौधरी को लिखा है. वहीं अगर विजेंद्र की बात करें तो दोनों को जानने वाले बताते हैं कि ये आपस में काफी घनिष्ट हैं.
इन संगठनों के अलावा 28 दिसंबर को जम्मू-कश्मीर के ‘जे एंड के किसान काउंसिल’ और ‘जे एंड के डेयरी प्रोड्यूसर्स, प्रोसेसर्स एंड मार्केटिंग को.आप. यूनियन लि. कोलकाता पश्चिम बंगाल के ‘कृषि जागरण मंच’, भारतीय किसान संगठन" दिल्ली प्रदेश और उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर के रहने वाले "पीजेंट वेल्फेयर एसोसिएशन" से सरकार को अपना समर्थन दिया है.
विरोध करने वाले विपक्षी तो समर्थन करने वाले कौन?
एक तरफ सरकार बिना किसी किसान संगठन की मांग और मशविरा के विपक्ष के विरोध के बावजूद कोरोना काल में तीनों कृषि कानूनों को पास करा लेती है. जब पंजाब और हरियाणा के किसान इसके खिलाफ प्रदर्शन शुरू करते हैं तो सरकार अनदेखा करती है.
25-26 नवंबर को किसान दिल्ली चलो के नारे के साथ दिल्ली के लिए निकल पड़ते है. उन्हें रोकने की कोशिश होती है. जब वे नहीं रुकते और बैरिकेटिंग तोड़ते हुए दिल्ली की सीमाओं पर पहुंच जाते हैं तो गृहमंत्री निरंकारी ग्राउंड पहुंचने पर ही बातचीत शुरू करने की बात कहते है. लेकिन किसान नहीं मानते इसके बाद सरकार और किसानों की बात शुरू होती है.
एक तरफ सरकार किसानों से बातचीत कर रही है. दूसरी तरफ इन्हें विपक्ष द्वारा बरगलाया हुआ बताया जाता है. ऐसा करने वाले सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी हैं. वे एक बार नहीं कई बार किसानों को विपक्ष द्वारा भ्रमित किया हुआ बता चुके हैं. पीएम मोदी ने बीते दिनों विपक्ष से कहा था, ''आप भले ही सारा क्रेडिट ले लें लेकिन किसानों को बरगलाना बंद करें.'’
विरोध कर रहे किसान नेताओं के अलग-अलग संगठन से जुड़े होने को मुद्दा बनाकर इस आंदोलन को किसानों का नहीं बल्कि विपक्ष का आंदोलन बताने की कोशिश सरकार के मंत्रियों, आईटी सेल और सरकार समर्थक मीडिया संस्थानों द्वारा भी किया जाता है. जबकि किसान नेताओं ने अपनी पहचान छुपाई भी नहीं है.
नाराज़ किसानों से बातचीत के बीचोंबीच केंद्रीय कृषि मंत्री अलग-अलग किसान संगठनों से मुलाकात कर उनसे इन बिलों को बेहतर बताते हुए समर्थन मिलने का दावा करते हैं. कृषि मंत्री इस समर्थन पत्र के जरिए यह दिखाने की कोशिश करते है कि काफी संख्या में किसान इस बिल से खुश हैं, हालांकि वे ये नहीं बताते कि इस संगठन के लोग उनके ही दल से जुड़े हैं. यह हैरान करने वाली बात है.