2020 के आखिरी दिन इस पहलू पर जरूर गौर किया जा सकता है कि आखिर महाशक्तिवान भारत 2020 का नारा लगाया क्यों गया.
राजीव से पहले भी 15 साल पहले सपने बुने गए
राजीव गांधी ने 15 साल पहले छलांग लगाने की कोई पहली कोशिश नहीं की थी. 15 साल की अवधि निर्धारित करने की एक पृष्ठभूमि भी है. 1947 से पहले अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन के दौरान देश के चंद पूंजीपतियों ने अंग्रेजों के जाने के बाद देश का एक मॉडल पेश किया था. भारत के राजनीतिज्ञों के हाथों में सत्ता मिलते ही मुबंई के पूंजीपतियों ने एक 15 वर्षीय योजना की रूपरेखा सरकार के सामने प्रस्तुत की थी. लेकिन आजादी के आंदोलन से निकली सरकार यह नहीं चाहती थी कि लोगों को लगे कि वह पूंजीपतियों के इशारे पर चल रही है. इसीलिए मुबंई के पूंजीपतियों की योजना सीधे तौर पर लागू नहीं की जा सकी. राजनीतिक माहौल बदलता चला गया और सरकार ने लोगों के सोचने की परवाह करनी खुले आम बंद कर दी.
क्या यह महज संयोग है कि राजीव गांधी कोई लंबी प्रक्रिया से गुजरकर राजनीति में नहीं आए थे. उन्हें भाई संजय गांधी की हवाई दुर्धटना में मौत के बाद पायलट की नौकरी छोड़कर अपनी मां इंदिरा गांधी की विरासत संभालनी पड़ी. राष्ट्रपति कलाम की भी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही है. उनकी छवि एक वैज्ञानिक की हैं. वैसे वैज्ञानिक की जो परमाणु और उपग्रहों के जरिये महाशक्ति बनने की परिकल्पना करता हो. मनमोहन सिंह की भी राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही है. माना जाता है कि उन्हें नई आर्थिक नीतियों को लागू करने वाले विशेषज्ञ के रूप में राजनीतिक सत्ता मिली थी.
2020 तक आखिरकार क्या हुआ
जनता ने 2014 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार को नकार दिया और नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बन गई. नरेन्द्र मोदी को 2020 के नारे को जारी रखने के लिए राजनीतिक चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ा. एनडीए की नई सरकार ने नई आर्थिक नीतियों को लागू करने की गति पहले से ज्यादा तेज कर दी. नई सरकार ने पांच साल के लिए योजनाएं बनाने वाली संस्था योजना आयोग को पूरी तरह से बदल कर नीति आयोग कर दिया. योजना आयोग का प्रमुख पद राजनैतिक माना जाता है लेकिन उसकी कमान नई आर्थिक नीतियों के प्रवक्ता नौकरशाह के हाथों में सौंप दी. योजना आयोग को एक बौद्धिक संस्था का रूप दे दिया गया. राजनीतिक परछाई से दूर हो गई. राजीव गांधी का कंप्यूटरीकरण छलांग लगाकार ऑनलाइन तक पहुंच गया.
अमेरिकी संस्थानों के आकलन के मुताबिक भारत के दूसरे महाशक्तियों के सामने खड़ा होने का प्रतीक विदेशी मुद्राभंडार का बढ़ना, सेंसेक्स के रिकॉर्ड का टूटना और इसे परमाणु शक्ति जैसे प्रतीकों और दुनिया का सबसे बड़ा बाजार बनने में दिखता है लेकिन इस "महाशक्ति" को वैसे किसान आंदोलन का सामना करना पड़ रहा है जिसकी मिसाल अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ आंदोलन के दौरान देखने को मिली थी. दलितों और आदिवासियों में बड़े पैमाने पर असंतोष हैं. जबकि राष्ट्रपति कलाम ने 2020 का नारा देते वक्त यह अनुमान व्यक्त किया था कि भारत में 2020 में ऐसी महाशक्ति बनेगा जब एक भी नागरिक गरीबी रेखा से नीचे नहीं होगा. दूसरे बुद्धिजीवियों ने भी मीडिया में भारत से गरीबी के खत्म हो जाने का ऐलान किया था. अर्थशास्त्री माने जाने वाले नेता सुब्रहमणयम स्वामी ने भी यह स्वीकार किया था कि 2020 तक भारत अर्थवय्वस्था के मामले में चीन को पीछे छोड़ चुका होगा और अमेरिकी अर्थ व्यवस्था को चुनौती पेश करेगा. जबकि बेरोजगारी का स्तर पिछले पचास वर्षों के स्तर पर पहुंच गया है.
2019 के चुनाव में केन्द्रीय गृह मंत्री ने मतदाताओं से यह वादा किया है कि यदि नरेन्द्र मोदी की सरकार बनती है तो भारत 2024 तक महाशक्ति होगा.