कोविड-19 लॉकडाउन भले खत्म हो जाये, लेकिन गरीब भूखे ही रहेंगे

11 राज्यों के कम से कम 4000 असुरक्षित व हाशिये की आबादी को लेकर हुआ सर्वे, दो तिहाई ने कहा कि उन्हें कम खाना मिल रहा.

WrittenBy:शगुन कपिल
Date:
Article image
  • Share this article on whatsapp

कमाई में गिरावट

सर्वे में हिस्सा लेने वाले लोगों ने ये भी कहा कि लॉकडाउन के बाद उनकी कमाई रुक गई या फिर बिल्कुल कम हो गई. इनमें से 56 प्रतिशत आबादी को अप्रैल-मई में किसी तरह की कमाई नहीं हुई थी और सितंबर-अक्टूबर में भी यही क्रम जारी रहा.

करीब 62 प्रतिशत आबादी ने बताया कि अप्रैल-मई (लॉकडाउन से पहले) के मुकाबले सितंबर-अक्टूबर में उनकी कमाई में गिरावट आई. केवल तीन प्रतिशत ने कहा कि उन्हें सितंबर-अक्टूबर में भी अप्रैल-मई जितनी कमाई हुई.

सर्वे रिपोर्ट में हाशिये पर जीने वाले समुदाय की स्थिति पर भी चर्चा की गई है. रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वे में शामिल असुरक्षित जनजातीय परिवारों में से 77 प्रतिशत ने कहा कि उनके भोजन की खुराक लॉकडाउन से पहले के मुकाबले सितंबर-अक्टूबर में कम हो गई. दलितों की 74 प्रतिशत आबादी में खुराक होने की बात कही, वहीं इनमें से 36 प्रतिशत ने बताया कि उनकी खुराक ‘काफी कम’ हो गई.

करीब 54 प्रतिशत आदिवासियों ने भोजन की खुराक कम मिलने की बात कही.

रिपोर्ट में इस बात को भी रेखांकित किया गया है कि पिछले कुछ महीनों में लाये गये लेबर कोड व कृषि कानून जैसे नीति व विधेयकों के चलते इन तबकों की हालत और नाजुक हो सकती है.

“चार लेबर कोड असंगठित क्षेत्र के कामगारों को अशक्त करते हैं और काम के बदले मजदूरी के भुगतान को लेकर अनिश्चितता बढ़ाते हैं, जो अंततः भोजन खरीदने की उनकी क्षमता को प्रभावित करेगा. तीन कृषि कानूनों को लेकर किसान आंदोलन कर रहे हैं और तर्क दिया जा रहा है कि ये कानून खाद्यान्न अधिप्राप्ति तंत्र के लिए खतरनाक है, जो आखिरकार जनवितरण प्रणाली के लिए भी खतरा हो सकता है,” रिपोर्ट कहती है.

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि कोविड-19 राहत के तहत अतिरिक्त खाद्यान्न दिया जा रहा है, लेकिन इसके बावजूद पूरक बजट में फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई) के लिए केवल 10,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बजट प्रावधान किया गया.

रिपोर्ट में कहा गया है, “एफसीआई की अंडरफंडिंग का मतलब किसानों को मिलने वाले समर्थन मूल्य को कमजोर करना व उन्हें और कर्ज में धकेलना है. केंद्र सरकार को एफसीआई को मजूत करने के लिए अतिरिक्त फंड देना चाहिए.”

(डाउन टू अर्थ से साभार)

कमाई में गिरावट

सर्वे में हिस्सा लेने वाले लोगों ने ये भी कहा कि लॉकडाउन के बाद उनकी कमाई रुक गई या फिर बिल्कुल कम हो गई. इनमें से 56 प्रतिशत आबादी को अप्रैल-मई में किसी तरह की कमाई नहीं हुई थी और सितंबर-अक्टूबर में भी यही क्रम जारी रहा.

करीब 62 प्रतिशत आबादी ने बताया कि अप्रैल-मई (लॉकडाउन से पहले) के मुकाबले सितंबर-अक्टूबर में उनकी कमाई में गिरावट आई. केवल तीन प्रतिशत ने कहा कि उन्हें सितंबर-अक्टूबर में भी अप्रैल-मई जितनी कमाई हुई.

सर्वे रिपोर्ट में हाशिये पर जीने वाले समुदाय की स्थिति पर भी चर्चा की गई है. रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वे में शामिल असुरक्षित जनजातीय परिवारों में से 77 प्रतिशत ने कहा कि उनके भोजन की खुराक लॉकडाउन से पहले के मुकाबले सितंबर-अक्टूबर में कम हो गई. दलितों की 74 प्रतिशत आबादी में खुराक होने की बात कही, वहीं इनमें से 36 प्रतिशत ने बताया कि उनकी खुराक ‘काफी कम’ हो गई.

करीब 54 प्रतिशत आदिवासियों ने भोजन की खुराक कम मिलने की बात कही.

रिपोर्ट में इस बात को भी रेखांकित किया गया है कि पिछले कुछ महीनों में लाये गये लेबर कोड व कृषि कानून जैसे नीति व विधेयकों के चलते इन तबकों की हालत और नाजुक हो सकती है.

“चार लेबर कोड असंगठित क्षेत्र के कामगारों को अशक्त करते हैं और काम के बदले मजदूरी के भुगतान को लेकर अनिश्चितता बढ़ाते हैं, जो अंततः भोजन खरीदने की उनकी क्षमता को प्रभावित करेगा. तीन कृषि कानूनों को लेकर किसान आंदोलन कर रहे हैं और तर्क दिया जा रहा है कि ये कानून खाद्यान्न अधिप्राप्ति तंत्र के लिए खतरनाक है, जो आखिरकार जनवितरण प्रणाली के लिए भी खतरा हो सकता है,” रिपोर्ट कहती है.

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि कोविड-19 राहत के तहत अतिरिक्त खाद्यान्न दिया जा रहा है, लेकिन इसके बावजूद पूरक बजट में फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई) के लिए केवल 10,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बजट प्रावधान किया गया.

रिपोर्ट में कहा गया है, “एफसीआई की अंडरफंडिंग का मतलब किसानों को मिलने वाले समर्थन मूल्य को कमजोर करना व उन्हें और कर्ज में धकेलना है. केंद्र सरकार को एफसीआई को मजूत करने के लिए अतिरिक्त फंड देना चाहिए.”

(डाउन टू अर्थ से साभार)

subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like