सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों ने निकाला अपना अखबार "ट्राली टाइम्स". इस अखबार में पंजाबी और हिंदी भाषा के लेखों को जगह दी गई.
आंदोलन में लाइब्रेरी
ट्राली टाइम्स में हिंदी का कंटेंट देख रहीं नवकिरन नट कहती हैं, "हम काफी समय से नोट कर रहे थे कि गोदी मीडिया जिस तरह से किसानों को दिखा रहा है, वह आंदोलन का दुष्प्रचार कर रहा है. तभी से हम सोच रहे थे कि कैसे हमारी बातें लोगों तक पहुंचें. हम सोच रहे थे क्यों न कुछ ऐसा किया जाए जो असली चीजें हैं वह बाहर निकल कर आएं."
अपनी बात आगे बढ़ाते हुए नट कहती हैं, "दूसरी बात यह भी है कि चारों बॉर्डर पर जहां-जहां किसान प्रदर्शन कर रहे हैं वह एक दूसरे से कनेक्ट नहीं हो पा रहे थे. गाजीपुर, शाहजहांपुर, टिकरी और सिंघु, इन सभी बॉर्डर की बातें एक दूसरे बॉर्डर तक नहीं पहुंच रही हैं. इसलिए यह न्यूज़पेपर एक माध्यम बन सकता है. ताकि यह अखबार चारों जगह पर पहुंचे और सभी बॉर्डर की आपस में कनेक्टिविटी बनी रहे. इसलिए इसे दो भाषाओं में रखा गया है.
खबरें जुटाने के तरीके के बारे में नट बताती हैं, "हमारे कई साथी हैं जो कि सभी बॉर्डर पर हैं. हम उनके साथ कनेक्ट हैं. देश में अन्य जगहों पर भी जहां प्रदर्शन चल रहे हैं वहां के लोग भी हमारे साथ जुड़े हुए हैं. जैसे जयपुर में जो चल रहा है उसके लिए हमें वहां के साथी राहुल ने लिखकर भेजा. हमने उसे ट्राली टाइम्स में जगह दी. हम अन्य युवा साथियों से भी कह रहे हैं कि आंदोलन से जुड़ा कही कुछ हो रहा है तो हमें लिखकर भेजिए."
नवकिरन बताती हैं, "उन्होंने टिकरी बॉर्डर पर शहीद भगत सिंह के नाम पर एक लाइब्रेरी भी बनाई हैं. इस लाइब्रेरी का टेंट बनाने में दो दिन का समय लगा है. यहां पर ज्यादातर पंजाबी और हिंदी की किताबें होंगी. इनमें युवा शहीदों की कहानियों से जुड़ी किताबें ज्यादा होगीं. जिन्होंने आंदोलनों में या देश के लिए अपनी कुर्बानियां दी हैं. यह सभी किताबें छोटी होंगी ताकि लोग एक दो घंटे में पढ़कर खत्म कर सकें.”
इंग्लैंड से पढ़ाई करने वाले गुरदीप सिंह भी ट्राली टाइम्स टीम के सदस्य हैं. अखबार की डिजाइनिंग, प्रींटिंग और कंटेंट इकट्ठा करने का काम गुरदीप सिंह देख रहे हैं. पंजाब के बरनाला निवासी गुरदीप सिंह ने इंग्लैंड से इंग्लिश लिटरेचर और क्रिएटिव राइटिंग में पढ़ाई की है. फिलहाल वह भारत में ही फ्रीलांसर के तौर पर डॉक्यूमेंट्री और फोटोग्राफी कर रहे हैं.
अखबार के लिए कंटेंट कैसे इकट्ठा करते हैं, इस सवाल पर वह कहते हैं, "मेल पर सभी कंटेंट मिलता है. जबकि कुछ जरूरी लेख वह धरने में शामिल लोगों से बोलकर लिखवाते हैं. बहुत ज्यादा तादात में उन्हें मेल और व्हाट्सएप आ रहे हैं. इसके लिए कंटेंट सलेक्ट करने में बहुत मुश्किल भी हो रही है, सभी को जगह देना मुनासिब नहीं है. लेकिन आगे कोशिश रहेगी की जरूरी खबरें लोगों तक पहुंचें."
वह कहते हैं, "अगर किसानों की बातें किसानों तक ही नहीं पहुंचेंगी तो फिर क्या फायदा. गोदी मीडिया तो हमें दिखा ही नहीं रहा है और न ही उससे कोई उम्मीद है इसलिए बेहतर है कि हम अपने से ही लोगों तक आंदोलन की जानकारियां पहुंचाएं. ताकि लोगों को असल में पता रहे कि आंदोलन में हो क्या रहा है."
देरी हुई तो आंदोलन में और बढ़ेगा ट्रैक्टरों का काफिला
ट्राली टाइम्स का आइडिया देने वाले शुरमीत मावी ने पत्रकारिता में पढ़ाई की हैं. वह कथाकार हैं और फिल्मों के लिये स्क्रिप्ट भी लिखते हैं. वह करीब तीन महीनों से इन प्रदर्शनों का हिस्सा रहे हैं. पहले वह पंजाब हरियाणा में चल रहे प्रदर्शनों में शामिल थे, लेकिन जब से किसान दिल्ली आए हैं तब से वह उनके साथ दिल्ली में ही हैं.
वह कहते हैं, "हम अखबार के अलावा यहां कचरा बीनने वाले बच्चों को पढ़ाने का भी काम कर रहे हैं. हमने सिंघू बॉर्डर पर एक लाइब्रेरी भी बनाई है. साथ ही टिकरी पर भी एक लाइब्रेरी बनाई गई है. वह फूलों के पौधों को इकट्ठा कर एक गार्डन भी बना रहे हैं."
आंदोलन में लाइब्रेरी
ट्राली टाइम्स में हिंदी का कंटेंट देख रहीं नवकिरन नट कहती हैं, "हम काफी समय से नोट कर रहे थे कि गोदी मीडिया जिस तरह से किसानों को दिखा रहा है, वह आंदोलन का दुष्प्रचार कर रहा है. तभी से हम सोच रहे थे कि कैसे हमारी बातें लोगों तक पहुंचें. हम सोच रहे थे क्यों न कुछ ऐसा किया जाए जो असली चीजें हैं वह बाहर निकल कर आएं."
अपनी बात आगे बढ़ाते हुए नट कहती हैं, "दूसरी बात यह भी है कि चारों बॉर्डर पर जहां-जहां किसान प्रदर्शन कर रहे हैं वह एक दूसरे से कनेक्ट नहीं हो पा रहे थे. गाजीपुर, शाहजहांपुर, टिकरी और सिंघु, इन सभी बॉर्डर की बातें एक दूसरे बॉर्डर तक नहीं पहुंच रही हैं. इसलिए यह न्यूज़पेपर एक माध्यम बन सकता है. ताकि यह अखबार चारों जगह पर पहुंचे और सभी बॉर्डर की आपस में कनेक्टिविटी बनी रहे. इसलिए इसे दो भाषाओं में रखा गया है.
खबरें जुटाने के तरीके के बारे में नट बताती हैं, "हमारे कई साथी हैं जो कि सभी बॉर्डर पर हैं. हम उनके साथ कनेक्ट हैं. देश में अन्य जगहों पर भी जहां प्रदर्शन चल रहे हैं वहां के लोग भी हमारे साथ जुड़े हुए हैं. जैसे जयपुर में जो चल रहा है उसके लिए हमें वहां के साथी राहुल ने लिखकर भेजा. हमने उसे ट्राली टाइम्स में जगह दी. हम अन्य युवा साथियों से भी कह रहे हैं कि आंदोलन से जुड़ा कही कुछ हो रहा है तो हमें लिखकर भेजिए."
नवकिरन बताती हैं, "उन्होंने टिकरी बॉर्डर पर शहीद भगत सिंह के नाम पर एक लाइब्रेरी भी बनाई हैं. इस लाइब्रेरी का टेंट बनाने में दो दिन का समय लगा है. यहां पर ज्यादातर पंजाबी और हिंदी की किताबें होंगी. इनमें युवा शहीदों की कहानियों से जुड़ी किताबें ज्यादा होगीं. जिन्होंने आंदोलनों में या देश के लिए अपनी कुर्बानियां दी हैं. यह सभी किताबें छोटी होंगी ताकि लोग एक दो घंटे में पढ़कर खत्म कर सकें.”
इंग्लैंड से पढ़ाई करने वाले गुरदीप सिंह भी ट्राली टाइम्स टीम के सदस्य हैं. अखबार की डिजाइनिंग, प्रींटिंग और कंटेंट इकट्ठा करने का काम गुरदीप सिंह देख रहे हैं. पंजाब के बरनाला निवासी गुरदीप सिंह ने इंग्लैंड से इंग्लिश लिटरेचर और क्रिएटिव राइटिंग में पढ़ाई की है. फिलहाल वह भारत में ही फ्रीलांसर के तौर पर डॉक्यूमेंट्री और फोटोग्राफी कर रहे हैं.
अखबार के लिए कंटेंट कैसे इकट्ठा करते हैं, इस सवाल पर वह कहते हैं, "मेल पर सभी कंटेंट मिलता है. जबकि कुछ जरूरी लेख वह धरने में शामिल लोगों से बोलकर लिखवाते हैं. बहुत ज्यादा तादात में उन्हें मेल और व्हाट्सएप आ रहे हैं. इसके लिए कंटेंट सलेक्ट करने में बहुत मुश्किल भी हो रही है, सभी को जगह देना मुनासिब नहीं है. लेकिन आगे कोशिश रहेगी की जरूरी खबरें लोगों तक पहुंचें."
वह कहते हैं, "अगर किसानों की बातें किसानों तक ही नहीं पहुंचेंगी तो फिर क्या फायदा. गोदी मीडिया तो हमें दिखा ही नहीं रहा है और न ही उससे कोई उम्मीद है इसलिए बेहतर है कि हम अपने से ही लोगों तक आंदोलन की जानकारियां पहुंचाएं. ताकि लोगों को असल में पता रहे कि आंदोलन में हो क्या रहा है."
देरी हुई तो आंदोलन में और बढ़ेगा ट्रैक्टरों का काफिला
ट्राली टाइम्स का आइडिया देने वाले शुरमीत मावी ने पत्रकारिता में पढ़ाई की हैं. वह कथाकार हैं और फिल्मों के लिये स्क्रिप्ट भी लिखते हैं. वह करीब तीन महीनों से इन प्रदर्शनों का हिस्सा रहे हैं. पहले वह पंजाब हरियाणा में चल रहे प्रदर्शनों में शामिल थे, लेकिन जब से किसान दिल्ली आए हैं तब से वह उनके साथ दिल्ली में ही हैं.
वह कहते हैं, "हम अखबार के अलावा यहां कचरा बीनने वाले बच्चों को पढ़ाने का भी काम कर रहे हैं. हमने सिंघू बॉर्डर पर एक लाइब्रेरी भी बनाई है. साथ ही टिकरी पर भी एक लाइब्रेरी बनाई गई है. वह फूलों के पौधों को इकट्ठा कर एक गार्डन भी बना रहे हैं."