मधुमक्खी क्यों? मधु क्यों?

उनका विज्ञापन पर खर्च बढ़ गया है और उन्हें लगता है कि हमारी आवाज दब जायेगी.

WrittenBy:सुनीता नारायण
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मधुमक्खियां हमें जहरीले तत्व और कीटनाशक के अत्यधिक इस्तेमाल को लेकर भी अगाह करते रहे हैं. अब ये समझा जाता है कि मधुमक्खी कॉलोनियों के खत्म होने के पीछे नियोनिक कीटनाशक जिम्मेवार है. नियोनिक एक ऐसा जहर है, जिसे इस तरह तैयार किया गया है कि ये कीटाणुओं के तंत्रिका कोष पर हमला करता है.

यूएस कांग्रेस में मधुमक्खियों के संरक्षण के लिए सेविंग अमेरिकाज पॉलिनेटर्स नाम से कानून पेश हो चुका है. इस साल मई में अमेरिका के एनवायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी ने 12 तरह के नियोनिक्स उत्पाद को प्रतिबंधित कर दिया है.

लेकिन, दूसरे तरह के जहरीले तत्वों का इस्तेमाल अब भी जारी है और मधुमक्खियां इसकी संकेतक प्रजाति हैं. वे हमें बताती हैं कि हम अपने खाद्यान और पर्यावरण को किस तरह जहरीला बना रहे हैं.

फिर, खाद्यान्न उत्पादन व्यवस्था को लेकर सवाल है. हमने पड़ताल इसलिए शुरू की क्योंकि कच्चे शहद का दाम गिर गया और ऐसा तब हुआ, जब शहद की खपत में कई गुना की बढ़ोतरी हुई है.

मधुमक्खी पालक को व्यवसाय में घाटा हो रहा है और वे अपनी दुकान बंद कर रहे हैं. इसके लिए हमें चिंतित होना चाहिए क्योंकि उनकी आजीविका हमारे भोजन से जुड़ी हुई है.

लेकिन, बात इतनी ही नहीं है. सच ये है कि आधुनिक मधुमक्खी पालन एक औद्योगिक स्तर की गतिविधि है और इस पर भी विमर्श करने की जरूरत है.

पहली बात तो मधुमक्खियों में जैवविविधता भी एक मुद्दा है. दुनियाभर में जैविविधता संरक्षण का सिरमौर यूरोपीय संघ अपने यहां के शहद को एपिस मेलिफेरा उत्पादित शहद के रूप में परिभाषित करता है.

दूसरे शब्दों में यूरोपीय संघ में जो शहद बिकता है, उस शहद का उत्पादन दूसरी कोई भी मधुमक्खी नहीं कर सकती है. फिर ये मधुमक्खियों की जैवविविधता के लिए क्या करता है? भारत में अपिस सेराना (भारतीय मधुमक्खी) या अपिस डोरसाता (पहाड़ी मधुमक्खी) है.

अगर इन मधुमक्खियों के शहद को अलग नहीं किया जा सकता है, अगर मधुमक्खियों की इन प्रजातियों को बढ़ावा नहीं दिया जाता है और इनकी संख्या नहीं बढ़ती है, तो क्या होगा?

एक बड़ा सवाल ये भी है कि उत्पादन और प्रसंस्करण से हम क्या समझते हैं? ज्यादातर मामलों में शहद ‘प्रसंस्कृत’ होते हैं. इन्हें गर्म किया जाता है और इसकी नमी को निकाला जाता है. ये प्रक्रिया पैथोजेन हटाने और लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए अपनाई जाती है.

इस तरह के प्रसंस्कृत शहद के लिए सुरक्षा और शुद्धता के मानदंड तैयार किये जाते हैं. लेकिन क्या असल में जो शहद है, उसके लिए ये मानदंड काम करते हैं? क्या प्रकृति से शहद लाकर इसे पूरी तरह शुद्ध रूप में हम खाते हैं?

लेकिन, फिर बात आती है कि ऐसे में बड़ा उद्योग कैसे जीवित रहेगा? क्या दुनियाभर में लाखों लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए ये अपना उत्पादन बढ़ा सकते हैं? बुनियादी सवाल केवल शहद में मिलावट का नहीं है, बल्कि इससे ज्यादा है. सवाल भविष्य के खाद्य पदार्थों के कारोबार की प्रकृति का है.

मधुमक्खियां हमें जहरीले तत्व और कीटनाशक के अत्यधिक इस्तेमाल को लेकर भी अगाह करते रहे हैं. अब ये समझा जाता है कि मधुमक्खी कॉलोनियों के खत्म होने के पीछे नियोनिक कीटनाशक जिम्मेवार है. नियोनिक एक ऐसा जहर है, जिसे इस तरह तैयार किया गया है कि ये कीटाणुओं के तंत्रिका कोष पर हमला करता है.

यूएस कांग्रेस में मधुमक्खियों के संरक्षण के लिए सेविंग अमेरिकाज पॉलिनेटर्स नाम से कानून पेश हो चुका है. इस साल मई में अमेरिका के एनवायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी ने 12 तरह के नियोनिक्स उत्पाद को प्रतिबंधित कर दिया है.

लेकिन, दूसरे तरह के जहरीले तत्वों का इस्तेमाल अब भी जारी है और मधुमक्खियां इसकी संकेतक प्रजाति हैं. वे हमें बताती हैं कि हम अपने खाद्यान और पर्यावरण को किस तरह जहरीला बना रहे हैं.

फिर, खाद्यान्न उत्पादन व्यवस्था को लेकर सवाल है. हमने पड़ताल इसलिए शुरू की क्योंकि कच्चे शहद का दाम गिर गया और ऐसा तब हुआ, जब शहद की खपत में कई गुना की बढ़ोतरी हुई है.

मधुमक्खी पालक को व्यवसाय में घाटा हो रहा है और वे अपनी दुकान बंद कर रहे हैं. इसके लिए हमें चिंतित होना चाहिए क्योंकि उनकी आजीविका हमारे भोजन से जुड़ी हुई है.

लेकिन, बात इतनी ही नहीं है. सच ये है कि आधुनिक मधुमक्खी पालन एक औद्योगिक स्तर की गतिविधि है और इस पर भी विमर्श करने की जरूरत है.

पहली बात तो मधुमक्खियों में जैवविविधता भी एक मुद्दा है. दुनियाभर में जैविविधता संरक्षण का सिरमौर यूरोपीय संघ अपने यहां के शहद को एपिस मेलिफेरा उत्पादित शहद के रूप में परिभाषित करता है.

दूसरे शब्दों में यूरोपीय संघ में जो शहद बिकता है, उस शहद का उत्पादन दूसरी कोई भी मधुमक्खी नहीं कर सकती है. फिर ये मधुमक्खियों की जैवविविधता के लिए क्या करता है? भारत में अपिस सेराना (भारतीय मधुमक्खी) या अपिस डोरसाता (पहाड़ी मधुमक्खी) है.

अगर इन मधुमक्खियों के शहद को अलग नहीं किया जा सकता है, अगर मधुमक्खियों की इन प्रजातियों को बढ़ावा नहीं दिया जाता है और इनकी संख्या नहीं बढ़ती है, तो क्या होगा?

एक बड़ा सवाल ये भी है कि उत्पादन और प्रसंस्करण से हम क्या समझते हैं? ज्यादातर मामलों में शहद ‘प्रसंस्कृत’ होते हैं. इन्हें गर्म किया जाता है और इसकी नमी को निकाला जाता है. ये प्रक्रिया पैथोजेन हटाने और लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए अपनाई जाती है.

इस तरह के प्रसंस्कृत शहद के लिए सुरक्षा और शुद्धता के मानदंड तैयार किये जाते हैं. लेकिन क्या असल में जो शहद है, उसके लिए ये मानदंड काम करते हैं? क्या प्रकृति से शहद लाकर इसे पूरी तरह शुद्ध रूप में हम खाते हैं?

लेकिन, फिर बात आती है कि ऐसे में बड़ा उद्योग कैसे जीवित रहेगा? क्या दुनियाभर में लाखों लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए ये अपना उत्पादन बढ़ा सकते हैं? बुनियादी सवाल केवल शहद में मिलावट का नहीं है, बल्कि इससे ज्यादा है. सवाल भविष्य के खाद्य पदार्थों के कारोबार की प्रकृति का है.

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