रिपब्लिक और ज़ी ग्रुप ने सरकार को कैसे लगाया 52 करोड़ का चूना

सरकारी दस्तावेज़ बताते हैं कि कैसे इन दो नेटवर्क्स ने दूरदर्शन की डीटीएच सेवा का गैर-कानूनी रूप से निःशुल्क प्रयोग किया.

WrittenBy:आयुष तिवारी
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साल 2017 मे रिपब्लिक टीवी का दूरदर्शन की डीटीएच सर्विस डीडी फ्री डिश पर 31 अन्य चैनलों के साथ प्रसारण शुरू हुआ. यह सरकारी प्रसारणकर्ता और डीडी की संचालक संस्था प्रसार भारती के नियमों के विरुद्ध था. न्यूज़लॉन्ड्री की जांच में यह सामने आया कि इस वजह से प्रसार भारती को कम से कम 52 करोड़ रुपयों का घाटा हुआ.

सीधे-सीधे कहें तो इन 32 चैनलों ने ग़ैर-कानूनी तरीके से एक सार्वजनिक डीटीएच सुविधा का दोहन किया. ऐसा ज़ी समूह की डीटीएच सर्विस डिश टीवी की सहायता से किया गया. इन 32 चैनलों में आधा दर्ज़न से भी अधिक चैनल ज़ी समूह के ही थे.

यह घोटाला केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय की नज़र में भी आया, जो कि तब वर्तमान उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू के अधीन था. मंत्रालय ने इसकी सूचना दूरदर्शन को दी और डिश टीवी से भी रिपब्लिक के द्वारा डीडी फ्री डिश के 'अनाधिकृत प्रयोग' पर सफाई मांगी.

मंत्रालय को दिए जवाब में दूरदर्शन ने डिश टीवी और रिपब्लिक टीवी पर प्रतिस्पर्धा कम करने और डीडी फ्री डिश के स्लॉट्स की नीलामी के उद्देश्य को विफल करने का आरोप लगाते हुए कार्रवाई की मांग की.

डीडी फ्री डिश भारत सरकार की निःशुल्क-प्रसारण डीटीएच सेवा है. 2017 में इसके करीब दो करोड़ बीस लाख उपभोक्ता थे जिनमे ज़्यादातर हिंदीभाषी, ग्रामीण इलाक़ों में थे.

इस माध्यम पर सीमित प्रसारण के लिए प्रसारणकर्ताओं को बोली लगानी पड़ती है और करोड़ो रुपये का शुल्क देना होता है. लेकिन ज़ी नेटवर्क और रिपब्लिक टीवी ने इस प्रक्रिया को चकमा देकर दर्शक बटोरने के लिए डीडी फ्री डिश का प्रयोग किया.

अर्नब गोस्वामी के नाम पत्र

31 मई 2017 को दूरदर्शन ने रिपब्लिक के मैनेजिंग डायरेक्टर अर्नब गोस्वामी और सीईओ विकास खानचंदानी को एक पत्र लिखा. दूरदर्शन के प्रमुख निदेशक कार्यालय के विभागाधिकारी द्वारा लिखे गए इस पत्र में कहा गया कि 'दूरदशर्न ने रिपब्लिक को फ्री डिश पर उपलब्ध नहीं करवाया है. जबकि रिपब्लिक यह दावा करता है कि वह फ्री डिश पर उपलब्ध है. यह धोखे से गलत तथ्य प्रस्तुत करने के सामान है.'

पत्र में कहा गया दूरदर्शन को सूचना-प्रसारण मंत्रालय की शिकायत मिली है जिसके अनुसार रिपब्लिक चैनल 'ग़ैरकानूनी' तौर पर डीडी फ्री डिश पर उपलब्ध है. रिपब्लिक टीवी के एक ट्वीट का हवाला देते हुए दूरदर्शन ने गोस्वामी और खानचंदानी से पूछा कि उन्होंने किस आधार पर यह 'गलत दावा' किया कि उनका चैनल डीडी फ्री डिश पर उपलब्ध है और 'उनके विरुद्ध कार्रवाई क्यों न की जाए?'

गोस्वामी ने नवम्बर 2016 में खुद का अंग्रेज़ी न्यूज़ चैनल शुरू करने के इरादे से टाइम्स नाउ के एडिटर-इन-चीफ के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. 6 मई 2017 को सरकार के चारण की भूमिका में रिपब्लिक टीवी का प्रसारण शुरू हुआ.

प्रसारण शुरू होने के एक दिन पहले, 5 मई को रिपब्लिक टीवी ने ट्विटर पर उन डीटीएच सेवाओं की एक सूची जारी की जिनपर वह उपलब्ध था. उस ट्वीट को जल्दी ही हटा लिया गया लेकिन रिपब्लिक के स्टाफ द्वारा किए गए वैसे ही ट्वीट अभी भी ऑनलाइन हैं.

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ट्वीट के मुताबिक़ चैनल का प्रसारण वीडियोकॉन, एयरटेल, टाटा स्काई, और विशेष रूप से डिश टीवी और डीडी फ्री डिश की डीटीएच सेवाओं पर होना था. तो रिपब्लिक टीवी ने बिना आवंटन प्रक्रिया में हिस्सा लिए सरकारी डीटीएच सेवा पर उपलब्ध होने का दावा किया. चैनल की इस हरकत ने सूचना प्रसारण मंत्रालय और दूरदर्शन दोनों के कान खड़े कर दिए.

फ्री डिश का मुफ्त स्लॉट पाने की चाल

डीडी फ्री डिश का स्लॉट पाने की प्रक्रिया बेहद सरल है. इस बाबत सरकार ने 2011 मे दिशानिर्देश जारी किए थे. प्रसार भारती उसकी डीटीएच सेवा का उपयोग करने के इच्छुक निजी चैनलों के लिए ई-ऑक्शन की घोषणा करता है. ई-ऑक्शन के अंतर्गत उपलब्ध स्लॉट्स या बकेट्स की नीलामी होती है.

हिंदी मनोरंजन के चैनल सबसे मंहगे होते हैं, उनके बाद हिंदी फिल्म, हिंदी और भोजपुरी संगीत और खेल, और फिर हिंदी, अंग्रेजी और पंजाबी न्यूज़ चैनल आते हैं. 54 स्लॉट्स की नीलामी होती है जो कि बेहद मंहगे बिकते हैं. इस साल फरवरी में हुए दूसरे सालाना ई-ऑक्शन में न्यूज़ चैनलों ने 13 फ्री डिश स्लॉट्स, औसतन 10.85 करोड़ रुपए प्रति स्लॉट की दर से खरीदे.

हांलाकि न्यूज़ श्रेणी में एक स्लॉट का रिजर्व मूल्य सात करोड़ रुपये था, फिर भी सबसे अधिक बोली 12.25 करोड़ रुपयों की लगी थी. लेकिन इस प्रक्रिया को चकमा देने और करोड़ो रुपए बचाने का एक तरीका है. एक तकनीकी हेर-फेर से डिश टीवी किसी चैनल को फ्री डिश पर निःशुल्क उपलब्ध करवा सकता है.

सरकारी डीटीएच सेवा अपने लाखों उपभोक्ताओं को कुछ फ्री-टू-एयर चैनल उपलब्ध करवाती है जिस से उन्हें डीडी का नियमित सदस्यता शुल्क न देना पड़े. जबकि 2001 के डीटीएच दिशानिर्देशों के अनुसार निजी डीटीएच ऑपरेटर ऐसा नहीं कर सकते. इसका मतलब डिश टीवी या किसी भी निजी डीटीएच सेवा पर सभी चैनल अनिवार्य रूप से 'एन्क्रिप्टेड' रहते हैं.

'अपलिंकिंग गाइडलाइन्स' के अनुसार भी चैनल 'एन्क्रिप्टेड' रूप में रहने चाहिए जो केवल कुछ ही उपभोक्ताओं को उपलब्ध हो. लेकिन फ्री डिश और डिश टीवी के उपग्रहों की स्थिति ने इसमें एक ऐसी गड़बड़ी पैदा कर दी है जिस से यदि डिश टीवी पर 'अनएन्क्रिप्टेड' चैनल उप्ब्लब्ध हों तो वह फ्री डिश पर भी बिना कोई स्लॉट खरीदे प्रसारित किए जा सकते हैं.

मंत्रालय को लगी खबर

18 मई 2017 को सूचना प्रसारण मंत्रालय ने डिश टीवी को लिखा. 'रिपब्लिक टीवी के डीडी फ्री डिश पर अनाधिकृत रूप से उपलब्ध होने की बात मंत्रालय के सामने आई है', प्रसारण नीति और विधान के उपसचिव मनोज कुमार निर्भीक ने पत्र में लिखा. 'मंत्रालय इस मामले की जांच कर रहा है.'

निर्भीक ने इस ओर इशारा किया कि डिश टीवी दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर रहा है और यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या डिश टीवी पर कोई 'अनएन्क्रिप्टेड' चैनल भी उपलब्ध है. 22 मई को डिश टीवी ने जवाब देने के लिए दो हफ़्तों का समय मांगा. लेकिन मंत्रालय के जून और जुलाई में दो-दो बार पुनः पूछे जाने पर भी डिश टीवी ने कोई जवाब नहीं दिया.

डिश टीवी के एक प्रवक्ता ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उन्होंने कोई 'अनएन्क्रिप्टेड' चैनल अपलिंक नहीं किए और इस बारे में मंत्रालय को नवम्बर 2017 में सूचित कर दिया गया था. जबकि मंत्रालय और दूरदर्शन की बातचीत कुछ और ही कहानी कहती है.

जून 2017 में दूरदर्शन को यह स्पष्ट हो चुका था कि रिपब्लिक टीवी के फ्री डिश पर उपलब्ध होने की बात महज़ 'गलत जानकारी' नही है. बल्कि चैनल सरकारी सुविधा का गैर-कानूनी इस्तेमाल कर रहा है. दूरदर्शन की तत्कालीन प्रमुख निदेशक सुप्रिया साहू ने सूचना प्रसारण मंत्रालय के सहायक सचिव को 20 जून को एक पत्र में बताया कि रिपब्लिक और 31 अन्य चैनल फ्री डिश पर प्रसारित हो रहे हैं.

उन्होंने कहा कि रिपब्लिक ने दूरदर्शन के 31 मई के पत्र का कोई जवाब नहीं दिया है और 81 चैनल दूरदर्शन की अनुमति के बिना फ्री डिश पर प्रसारित हो रहे हैं. 'इन 81 चैनलों में 32 डिश टीवी के, 33 एमएचआरडी के और 16 वंदे गुजरात के चैनल हैं,' साहू ने लिखा.

साहू के अनुसार मानव संसाधन मंत्रालय और वंदे गुजरात के चैनल सरकारी 'शिक्षाप्रद' चैनल थे जबकि 32 फ्री-टू -एयर चैनल डिश टीवी द्वारा अपलिंक किए गए निजी चैनल थे जिनमे रिपब्लिक टीवी भी था. साहू द्वारा दी गई सूची के अनुसार रिपब्लिक के अलावा डिश टीवी की मदद से ज़ी नेटवर्क के आठ चैनल भी सरकारी नियमों का उल्लंघन कर प्रसारित हो रहे थे. यह आठ चैनल थे ज़ी 24 तास, 24 घंटा, ज़ी पंजाब, ज़ी राजस्थान, ज़ी पुरवइया (अब ज़ी बिहार-झारखण्ड), ज़ी एमपी-छत्तीसगढ़ और ज़ी कलिंगा (अब ज़ी ओडिशा). ज़ी ग्रुप का मनोरंजन चैनल Zing भी इसका हिस्सा था. गैर-ज़ी चैनलों में हिंदी न्यूज़ चैनल Channel One News तथा धार्मिक चैनल जैसे Shubh TV और Ishwar TV इन 32 चैनलों का हिस्सा थे.

दूरदर्शन की प्रमुख निदेशक के अनुसार Zee का यह कृत्य फ्री डिश के लिए खतरनाक साबित हो सकता था क्योंकि यह निजी चैनलों को बिना स्लॉट खरीदे सरकारी सेवा का उपयोग करने में सहायक था. 'यह चैनल प्रसार भारती को बिना कोई शुल्क दिए डीडी फ्री डिश के उपभोक्ताओं तक पहुंच रहे हैं,' साहू ने लिखा. 'इस से न केवल स्लॉट्स की नीलामी की प्रक्रिया आहत हो रही है बल्कि यह उन चैनलों के साथ अन्याय है जिन्होंने नीलामी में स्लॉट्स खरीदे हैं. ऐसा करने से नीलामी का पूरा उद्देश्य निरर्थक हो जाता है.'

मार्च 2017 में प्रसार भारती ने न्यूज़ चैनलों के लिए डीडी फ्री डिश के स्लॉट का रिज़र्व शुल्क साढ़े छह करोड़ रुपये निर्धारित किया था. यदि रिपब्लिक टीवी के साथ केवल ज़ी समूह के उन आठ चैनलों को लें जिन्हे डिश टीवी ने गैरकानूनी रूप से फ्री डिश पर प्रसारित किया तो यह पता चलता है कि इससे प्रसार भारती को कम से कम 52 करोड़ रुपयों का घाटा हुआ.

अपने पत्र के अंत में साहू ने लिखा, 'डीडी फ्री डिश की सुरक्षा के लिए आपसे निवेदन है कि ऐसे डीटीएच प्लेटफॉर्म्स पर कार्रवाई हो जो बिना एन्क्रिप्शन के चैनल अपलिंक कर रहे हैं.' दूरदर्शन द्वारा प्रश्न उठाए जानें के दो साल बाद आज डिश टीवी के प्रवक्ता कहते हैं कि चैनल 'ku' बैंड टेलिपोर्ट में सरकारी नियमानुसार 28.11.2019 और 31.10.2019 को दी गई वैध अनुमति के अंतर्गत ही अपलिंक किए जा रहे हैं.

उपसंहार

आधिकारिक तौर पर रिपब्लिक टीवी और ज़ी समूह के चैनल अब डीडी फ्री डिश पर उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन सरकारी डीटीएच सेवा का दोहन बदस्तूर जारी है. साल के आरंभ में Exchange4Media ने एक रिपोर्ट में बताया कि भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण और प्रसार भारती ने सूचना प्रसारण मंत्रालय को ऐसे ही उल्लंघनों के बारे में बताया, लेकिन किसी चैनल विशेष का नाम नहीं लिया.

प्रसार भारती के सीईओ ने लिखा, 'कुछ निजी चैनल जो डीडी फ्री डिश पर नहीं हैं, वह 'अनएन्क्रिप्टेड' रूप में उपभोक्ताओं के पास पहुंच रहे हैं.' जबकि ट्राई ने अपने पत्र में कहा कि इससे सरकारी खजाने को वित्तीय हानि हो रही है और दूसरे प्रतिस्पर्धी चैनलों पर भी असर पड़ रहा है.

रिपब्लिक नेटवर्क ने 2019 में सरकार का पक्ष लेने वाला हिंदी चैनल रिपब्लिक भारत शुरू किया. इस चैनल ने उस साल नीलामी में हिस्सा लिया और उसे डीडी फ्री डिश का स्लॉट आवंटित किया गया. इस बारे में चैनल ने कोई भी प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया.

किसी टीवी चैनल के लिए भारत में दो करोड़ 20 लाख उपभोक्ताओं तक पहुंचना हल्की बात नहीं है. 15 से 30 साल के आयु वर्ग के दर्शकों में 54 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं. हांलाकि न्यूज़ चैनल केवल आठ प्रतिशत दर्शक ही देखते हैं, लेकिन इन चैनलों पर विज्ञापन से होने वाली कमाई बहुत अधिक है.

टीवी रेटिंग मापने वाली संस्था ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च कौंसिल (BARC) ने जिन 44,000 घरों में मीटर लगाए हैं उनमे कम से कम 38 प्रतिशत ग्रामीण इलाक़ों में है. इन दर्शको तक पहुंचने के लिए ही रिपब्लिक और ज़ी समूह ने सरकारी दिशानिर्देशों और स्लॉट्स की नीलामी की प्रक्रिया को धता-बता कर अपने चैनलों का सरकारी डीटीएच पर अनाधिकृत प्रसारण किया.

डीटीएच के नियमों अनुसार इस प्रकार के उल्लंघन के लिए न केवल चैनल का लाइसेंस रद्द हो सकता है बल्कि उसपर 50 करोड़ का जुर्माना भी लगाया जा सकता है. अपलिंकिंग दिशानिर्देशों के अनुसार ऐसे मामलों में चैनल को दी गई सैटेलाइट न्यूज़ गैदरिंग तकनीक के इस्तेमाल की अनुमति को भी रद्द किया जा सकता है.

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस बाबत सूचना प्रसारण मंत्रालय, प्रसार भारती, दूरदर्शन और ज़ी नेटवर्क से भी सवाल किए हैं जिनका जवाब प्रतीक्षित हैं. कोई उत्तर मिलने पर इस रिपोर्ट को संशोधित किया जाएगा.

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साल 2017 मे रिपब्लिक टीवी का दूरदर्शन की डीटीएच सर्विस डीडी फ्री डिश पर 31 अन्य चैनलों के साथ प्रसारण शुरू हुआ. यह सरकारी प्रसारणकर्ता और डीडी की संचालक संस्था प्रसार भारती के नियमों के विरुद्ध था. न्यूज़लॉन्ड्री की जांच में यह सामने आया कि इस वजह से प्रसार भारती को कम से कम 52 करोड़ रुपयों का घाटा हुआ.

सीधे-सीधे कहें तो इन 32 चैनलों ने ग़ैर-कानूनी तरीके से एक सार्वजनिक डीटीएच सुविधा का दोहन किया. ऐसा ज़ी समूह की डीटीएच सर्विस डिश टीवी की सहायता से किया गया. इन 32 चैनलों में आधा दर्ज़न से भी अधिक चैनल ज़ी समूह के ही थे.

यह घोटाला केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय की नज़र में भी आया, जो कि तब वर्तमान उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू के अधीन था. मंत्रालय ने इसकी सूचना दूरदर्शन को दी और डिश टीवी से भी रिपब्लिक के द्वारा डीडी फ्री डिश के 'अनाधिकृत प्रयोग' पर सफाई मांगी.

मंत्रालय को दिए जवाब में दूरदर्शन ने डिश टीवी और रिपब्लिक टीवी पर प्रतिस्पर्धा कम करने और डीडी फ्री डिश के स्लॉट्स की नीलामी के उद्देश्य को विफल करने का आरोप लगाते हुए कार्रवाई की मांग की.

डीडी फ्री डिश भारत सरकार की निःशुल्क-प्रसारण डीटीएच सेवा है. 2017 में इसके करीब दो करोड़ बीस लाख उपभोक्ता थे जिनमे ज़्यादातर हिंदीभाषी, ग्रामीण इलाक़ों में थे.

इस माध्यम पर सीमित प्रसारण के लिए प्रसारणकर्ताओं को बोली लगानी पड़ती है और करोड़ो रुपये का शुल्क देना होता है. लेकिन ज़ी नेटवर्क और रिपब्लिक टीवी ने इस प्रक्रिया को चकमा देकर दर्शक बटोरने के लिए डीडी फ्री डिश का प्रयोग किया.

अर्नब गोस्वामी के नाम पत्र

31 मई 2017 को दूरदर्शन ने रिपब्लिक के मैनेजिंग डायरेक्टर अर्नब गोस्वामी और सीईओ विकास खानचंदानी को एक पत्र लिखा. दूरदर्शन के प्रमुख निदेशक कार्यालय के विभागाधिकारी द्वारा लिखे गए इस पत्र में कहा गया कि 'दूरदशर्न ने रिपब्लिक को फ्री डिश पर उपलब्ध नहीं करवाया है. जबकि रिपब्लिक यह दावा करता है कि वह फ्री डिश पर उपलब्ध है. यह धोखे से गलत तथ्य प्रस्तुत करने के सामान है.'

पत्र में कहा गया दूरदर्शन को सूचना-प्रसारण मंत्रालय की शिकायत मिली है जिसके अनुसार रिपब्लिक चैनल 'ग़ैरकानूनी' तौर पर डीडी फ्री डिश पर उपलब्ध है. रिपब्लिक टीवी के एक ट्वीट का हवाला देते हुए दूरदर्शन ने गोस्वामी और खानचंदानी से पूछा कि उन्होंने किस आधार पर यह 'गलत दावा' किया कि उनका चैनल डीडी फ्री डिश पर उपलब्ध है और 'उनके विरुद्ध कार्रवाई क्यों न की जाए?'

गोस्वामी ने नवम्बर 2016 में खुद का अंग्रेज़ी न्यूज़ चैनल शुरू करने के इरादे से टाइम्स नाउ के एडिटर-इन-चीफ के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. 6 मई 2017 को सरकार के चारण की भूमिका में रिपब्लिक टीवी का प्रसारण शुरू हुआ.

प्रसारण शुरू होने के एक दिन पहले, 5 मई को रिपब्लिक टीवी ने ट्विटर पर उन डीटीएच सेवाओं की एक सूची जारी की जिनपर वह उपलब्ध था. उस ट्वीट को जल्दी ही हटा लिया गया लेकिन रिपब्लिक के स्टाफ द्वारा किए गए वैसे ही ट्वीट अभी भी ऑनलाइन हैं.

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ट्वीट के मुताबिक़ चैनल का प्रसारण वीडियोकॉन, एयरटेल, टाटा स्काई, और विशेष रूप से डिश टीवी और डीडी फ्री डिश की डीटीएच सेवाओं पर होना था. तो रिपब्लिक टीवी ने बिना आवंटन प्रक्रिया में हिस्सा लिए सरकारी डीटीएच सेवा पर उपलब्ध होने का दावा किया. चैनल की इस हरकत ने सूचना प्रसारण मंत्रालय और दूरदर्शन दोनों के कान खड़े कर दिए.

फ्री डिश का मुफ्त स्लॉट पाने की चाल

डीडी फ्री डिश का स्लॉट पाने की प्रक्रिया बेहद सरल है. इस बाबत सरकार ने 2011 मे दिशानिर्देश जारी किए थे. प्रसार भारती उसकी डीटीएच सेवा का उपयोग करने के इच्छुक निजी चैनलों के लिए ई-ऑक्शन की घोषणा करता है. ई-ऑक्शन के अंतर्गत उपलब्ध स्लॉट्स या बकेट्स की नीलामी होती है.

हिंदी मनोरंजन के चैनल सबसे मंहगे होते हैं, उनके बाद हिंदी फिल्म, हिंदी और भोजपुरी संगीत और खेल, और फिर हिंदी, अंग्रेजी और पंजाबी न्यूज़ चैनल आते हैं. 54 स्लॉट्स की नीलामी होती है जो कि बेहद मंहगे बिकते हैं. इस साल फरवरी में हुए दूसरे सालाना ई-ऑक्शन में न्यूज़ चैनलों ने 13 फ्री डिश स्लॉट्स, औसतन 10.85 करोड़ रुपए प्रति स्लॉट की दर से खरीदे.

हांलाकि न्यूज़ श्रेणी में एक स्लॉट का रिजर्व मूल्य सात करोड़ रुपये था, फिर भी सबसे अधिक बोली 12.25 करोड़ रुपयों की लगी थी. लेकिन इस प्रक्रिया को चकमा देने और करोड़ो रुपए बचाने का एक तरीका है. एक तकनीकी हेर-फेर से डिश टीवी किसी चैनल को फ्री डिश पर निःशुल्क उपलब्ध करवा सकता है.

सरकारी डीटीएच सेवा अपने लाखों उपभोक्ताओं को कुछ फ्री-टू-एयर चैनल उपलब्ध करवाती है जिस से उन्हें डीडी का नियमित सदस्यता शुल्क न देना पड़े. जबकि 2001 के डीटीएच दिशानिर्देशों के अनुसार निजी डीटीएच ऑपरेटर ऐसा नहीं कर सकते. इसका मतलब डिश टीवी या किसी भी निजी डीटीएच सेवा पर सभी चैनल अनिवार्य रूप से 'एन्क्रिप्टेड' रहते हैं.

'अपलिंकिंग गाइडलाइन्स' के अनुसार भी चैनल 'एन्क्रिप्टेड' रूप में रहने चाहिए जो केवल कुछ ही उपभोक्ताओं को उपलब्ध हो. लेकिन फ्री डिश और डिश टीवी के उपग्रहों की स्थिति ने इसमें एक ऐसी गड़बड़ी पैदा कर दी है जिस से यदि डिश टीवी पर 'अनएन्क्रिप्टेड' चैनल उप्ब्लब्ध हों तो वह फ्री डिश पर भी बिना कोई स्लॉट खरीदे प्रसारित किए जा सकते हैं.

मंत्रालय को लगी खबर

18 मई 2017 को सूचना प्रसारण मंत्रालय ने डिश टीवी को लिखा. 'रिपब्लिक टीवी के डीडी फ्री डिश पर अनाधिकृत रूप से उपलब्ध होने की बात मंत्रालय के सामने आई है', प्रसारण नीति और विधान के उपसचिव मनोज कुमार निर्भीक ने पत्र में लिखा. 'मंत्रालय इस मामले की जांच कर रहा है.'

निर्भीक ने इस ओर इशारा किया कि डिश टीवी दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर रहा है और यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या डिश टीवी पर कोई 'अनएन्क्रिप्टेड' चैनल भी उपलब्ध है. 22 मई को डिश टीवी ने जवाब देने के लिए दो हफ़्तों का समय मांगा. लेकिन मंत्रालय के जून और जुलाई में दो-दो बार पुनः पूछे जाने पर भी डिश टीवी ने कोई जवाब नहीं दिया.

डिश टीवी के एक प्रवक्ता ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उन्होंने कोई 'अनएन्क्रिप्टेड' चैनल अपलिंक नहीं किए और इस बारे में मंत्रालय को नवम्बर 2017 में सूचित कर दिया गया था. जबकि मंत्रालय और दूरदर्शन की बातचीत कुछ और ही कहानी कहती है.

जून 2017 में दूरदर्शन को यह स्पष्ट हो चुका था कि रिपब्लिक टीवी के फ्री डिश पर उपलब्ध होने की बात महज़ 'गलत जानकारी' नही है. बल्कि चैनल सरकारी सुविधा का गैर-कानूनी इस्तेमाल कर रहा है. दूरदर्शन की तत्कालीन प्रमुख निदेशक सुप्रिया साहू ने सूचना प्रसारण मंत्रालय के सहायक सचिव को 20 जून को एक पत्र में बताया कि रिपब्लिक और 31 अन्य चैनल फ्री डिश पर प्रसारित हो रहे हैं.

उन्होंने कहा कि रिपब्लिक ने दूरदर्शन के 31 मई के पत्र का कोई जवाब नहीं दिया है और 81 चैनल दूरदर्शन की अनुमति के बिना फ्री डिश पर प्रसारित हो रहे हैं. 'इन 81 चैनलों में 32 डिश टीवी के, 33 एमएचआरडी के और 16 वंदे गुजरात के चैनल हैं,' साहू ने लिखा.

साहू के अनुसार मानव संसाधन मंत्रालय और वंदे गुजरात के चैनल सरकारी 'शिक्षाप्रद' चैनल थे जबकि 32 फ्री-टू -एयर चैनल डिश टीवी द्वारा अपलिंक किए गए निजी चैनल थे जिनमे रिपब्लिक टीवी भी था. साहू द्वारा दी गई सूची के अनुसार रिपब्लिक के अलावा डिश टीवी की मदद से ज़ी नेटवर्क के आठ चैनल भी सरकारी नियमों का उल्लंघन कर प्रसारित हो रहे थे. यह आठ चैनल थे ज़ी 24 तास, 24 घंटा, ज़ी पंजाब, ज़ी राजस्थान, ज़ी पुरवइया (अब ज़ी बिहार-झारखण्ड), ज़ी एमपी-छत्तीसगढ़ और ज़ी कलिंगा (अब ज़ी ओडिशा). ज़ी ग्रुप का मनोरंजन चैनल Zing भी इसका हिस्सा था. गैर-ज़ी चैनलों में हिंदी न्यूज़ चैनल Channel One News तथा धार्मिक चैनल जैसे Shubh TV और Ishwar TV इन 32 चैनलों का हिस्सा थे.

दूरदर्शन की प्रमुख निदेशक के अनुसार Zee का यह कृत्य फ्री डिश के लिए खतरनाक साबित हो सकता था क्योंकि यह निजी चैनलों को बिना स्लॉट खरीदे सरकारी सेवा का उपयोग करने में सहायक था. 'यह चैनल प्रसार भारती को बिना कोई शुल्क दिए डीडी फ्री डिश के उपभोक्ताओं तक पहुंच रहे हैं,' साहू ने लिखा. 'इस से न केवल स्लॉट्स की नीलामी की प्रक्रिया आहत हो रही है बल्कि यह उन चैनलों के साथ अन्याय है जिन्होंने नीलामी में स्लॉट्स खरीदे हैं. ऐसा करने से नीलामी का पूरा उद्देश्य निरर्थक हो जाता है.'

मार्च 2017 में प्रसार भारती ने न्यूज़ चैनलों के लिए डीडी फ्री डिश के स्लॉट का रिज़र्व शुल्क साढ़े छह करोड़ रुपये निर्धारित किया था. यदि रिपब्लिक टीवी के साथ केवल ज़ी समूह के उन आठ चैनलों को लें जिन्हे डिश टीवी ने गैरकानूनी रूप से फ्री डिश पर प्रसारित किया तो यह पता चलता है कि इससे प्रसार भारती को कम से कम 52 करोड़ रुपयों का घाटा हुआ.

अपने पत्र के अंत में साहू ने लिखा, 'डीडी फ्री डिश की सुरक्षा के लिए आपसे निवेदन है कि ऐसे डीटीएच प्लेटफॉर्म्स पर कार्रवाई हो जो बिना एन्क्रिप्शन के चैनल अपलिंक कर रहे हैं.' दूरदर्शन द्वारा प्रश्न उठाए जानें के दो साल बाद आज डिश टीवी के प्रवक्ता कहते हैं कि चैनल 'ku' बैंड टेलिपोर्ट में सरकारी नियमानुसार 28.11.2019 और 31.10.2019 को दी गई वैध अनुमति के अंतर्गत ही अपलिंक किए जा रहे हैं.

उपसंहार

आधिकारिक तौर पर रिपब्लिक टीवी और ज़ी समूह के चैनल अब डीडी फ्री डिश पर उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन सरकारी डीटीएच सेवा का दोहन बदस्तूर जारी है. साल के आरंभ में Exchange4Media ने एक रिपोर्ट में बताया कि भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण और प्रसार भारती ने सूचना प्रसारण मंत्रालय को ऐसे ही उल्लंघनों के बारे में बताया, लेकिन किसी चैनल विशेष का नाम नहीं लिया.

प्रसार भारती के सीईओ ने लिखा, 'कुछ निजी चैनल जो डीडी फ्री डिश पर नहीं हैं, वह 'अनएन्क्रिप्टेड' रूप में उपभोक्ताओं के पास पहुंच रहे हैं.' जबकि ट्राई ने अपने पत्र में कहा कि इससे सरकारी खजाने को वित्तीय हानि हो रही है और दूसरे प्रतिस्पर्धी चैनलों पर भी असर पड़ रहा है.

रिपब्लिक नेटवर्क ने 2019 में सरकार का पक्ष लेने वाला हिंदी चैनल रिपब्लिक भारत शुरू किया. इस चैनल ने उस साल नीलामी में हिस्सा लिया और उसे डीडी फ्री डिश का स्लॉट आवंटित किया गया. इस बारे में चैनल ने कोई भी प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया.

किसी टीवी चैनल के लिए भारत में दो करोड़ 20 लाख उपभोक्ताओं तक पहुंचना हल्की बात नहीं है. 15 से 30 साल के आयु वर्ग के दर्शकों में 54 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं. हांलाकि न्यूज़ चैनल केवल आठ प्रतिशत दर्शक ही देखते हैं, लेकिन इन चैनलों पर विज्ञापन से होने वाली कमाई बहुत अधिक है.

टीवी रेटिंग मापने वाली संस्था ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च कौंसिल (BARC) ने जिन 44,000 घरों में मीटर लगाए हैं उनमे कम से कम 38 प्रतिशत ग्रामीण इलाक़ों में है. इन दर्शको तक पहुंचने के लिए ही रिपब्लिक और ज़ी समूह ने सरकारी दिशानिर्देशों और स्लॉट्स की नीलामी की प्रक्रिया को धता-बता कर अपने चैनलों का सरकारी डीटीएच पर अनाधिकृत प्रसारण किया.

डीटीएच के नियमों अनुसार इस प्रकार के उल्लंघन के लिए न केवल चैनल का लाइसेंस रद्द हो सकता है बल्कि उसपर 50 करोड़ का जुर्माना भी लगाया जा सकता है. अपलिंकिंग दिशानिर्देशों के अनुसार ऐसे मामलों में चैनल को दी गई सैटेलाइट न्यूज़ गैदरिंग तकनीक के इस्तेमाल की अनुमति को भी रद्द किया जा सकता है.

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस बाबत सूचना प्रसारण मंत्रालय, प्रसार भारती, दूरदर्शन और ज़ी नेटवर्क से भी सवाल किए हैं जिनका जवाब प्रतीक्षित हैं. कोई उत्तर मिलने पर इस रिपोर्ट को संशोधित किया जाएगा.

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