हम शहद की बजाय चीनी खा रहे हैं, जो न सिर्फ हमारा वजन बढ़ाती है बल्कि कई गंभीर बीमारियों को न्यौता देती है.
प्राकृतिक गुणों वाले जिस शहद का हम उपभोग कर रहे हैं दरअसल उसमें जबरदस्त चीनी की मिलावट है. हमारी ताजा तहकीकात यह बताती है कि यह इसलिए पकड़ में नहीं आती, क्योंकि चीन की कंपनियों ने शुगर सिरप इस तरह “डिजाइन” किया है कि वे भारतीय प्रयोगशालाओं के जांच-परीक्षणों में पकड़ में ही नहीं आते. यह कितना घातक है जब यह तथ्य हमारे पास है कि कोविड-19 संक्रमण के कारण हमारा स्वास्थ्य और जीवन पहले से ही खतरे में है.
ऐसे समय में प्रतिरक्षा (इम्यूनिटी) को मजबूत बनाने का उपक्रम शुरू हुआ है और इम्युनिटी को बढ़ाने के लिए देश में शहद की खपत काफी बढ़ गई है. अमृत समझे जाने वाले शहद में एंटी ऑक्सीडेंट और एंटी-माइक्रोबियल गुण होते हैं. लेकिन अफसोस यह है कि हम शहद की बजाय चीनी खा रहे हैं, जो न सिर्फ हमारा वजन बढ़ाती है बल्कि कई गंभीर बीमारियों को न्यौता देती है.
हालिया प्रमाण बताते हैं कि अधिक वजन वाले लोगों में कोविड-19 का खतरा ज्यादा है. अब जरा सोचिए किसी कोविड संक्रमित की चपेट में आसानी से आने वाले मोटापे से ग्रसित आबादी पर यह मिलावटी शहद क्या असर डालेगा.
इतना ही नहीं, शहद में चीनी की मिलावट से मधुमक्खी पालकों की आजिवका और आमदनी पर भी बुरा असर पड़ रहा है. यदि उनका कारोबार बंद हो जाता है तो हम मधुमक्खियों को खो देंगे साथ ही उनकी परागण सेवाएं भी. इससे खाद्य उत्पादकता में भी गिरावट आएगी, इसलिए शहद में मिलावट एक अक्षम्य अपराध है.
इस खुलासे के बाद उद्योग जगत की कड़ी प्रतिक्रिया है कि वे मानकों का पूरी तरह पालन कर रहे हैं, खासकर बड़े ब्रांड खुद को प्रयोगशाला जांच में पूरी तरह सही बता रहे हैं तो फिर हम कैसे कह सकते हैं कि उन्होंने मिलावट की है. लेकिन हम ऐसा कह सकते हैं और मैं इसलिए कहती हूं, क्योंकि इसके लिए हमने बेहद कठिन और जटिल तहकीकात की है. इससे पता चलता है कि खाद्य व्यवसाय बहुत सरल नहीं है.
यह भी पता चलता है कि हमारी खाद्य नियामक भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है. हालांकि यह कहना मुश्किल है कि उसे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है या उसकी मिलीभगत है. मेरे सहयोगी ऐसे मोड़ पर थे, जहां से आगे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. जब हमें पता चला कि मधुमक्खी पालकों को कारोबार में नुकसान हो रहा है, तब हमें कोई ठोस जवाब नहीं मिला. कोई भी यह बताने को तैयार नहीं था कि क्या चल रहा है.
चीन की कंपनियों और शुगर सिरप के बारे में कुछ अस्पष्ट सी बातें सामने आ रही थीं. लेकिन इस रहस्यमयी सिरप और कंपनियों के बारे में कोई ठोस सबूत नहीं थे. मई माह में एफएसएसएआई ने शुगर सिरप के आयातकों के लिए एक आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि शहद में मिलावट के सबूत मिले हैं. यह भी कहा गया कि खाद्य आयुक्त इसकी जांच करें.
इस बारे में एफएसएसएआई में लगाई गई आरटीआई दूसरे मंडलों में भेजी गई, जिनका जवाब आया कि “सूचना उपलब्ध नहीं है.” एफएसएसएआई के आदेश में जिस शुगर सिरप का जिक्र था, केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आयात-निर्यात डाटाबेस में उसका नाम तक नहीं मिला. इससे हमारी पड़ताल पर फिर से विराम लग गया. लेकिन जानकारियां सामने आती रही.
फरवरी में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने निर्यात किए जा रहे शहद के लिए एक अतिरिक्त प्रयोगशाला जांच अनिवार्य कर दी, जिसे न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी (एनएमआर) कहा जाता है. हम जानते थे कि यह परीक्षण तब किया जाता है, जब सरकार को शक हो कि शहद में ऐसा शुगर सिरप मिलाया जा रहा है, जिसको पकड़ पाना आसान नहीं होता. यह मामला हमारी सेहत से जुड़ा था. हम इसे ऐसे ही नहीं जाने दे सकते थे.
हमारा माथा तब ठनका, जब हमें पता चला कि चीनी कंपनियों की वेबसाइटें खुलेआम ऐसे सिरप बेच रही थी, जो निर्धारित परीक्षणों पर खरा उतर सकता है. तब हमें समझ में आया कि यह कारोबार काफी विकसित हो चुका है. शहद में मिलावट की शुरुआत गन्ने और मक्के जैसे पौधों से बनी चीनी से हुई थी, जिसके पौधे सी4 प्रकाश सश्लेंषण रूट का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन विज्ञान के विकास के साथ-साथ उद्योग को नई शुगर मिलती गई. इसने चावल और चुकंदर जैसे सी3 पौधों से प्राप्त होने वाली शुगर का इस्तेमाल शुरू कर दिया. लेकिन विश्लेषणात्मक पद्धतियों से शहद में इस शुगर की मिलावट का भी पता चल गया.
चीन के ऑनलाइन पोर्टल पर कंपनियां यह दावा करती हैं कि उन्होंने ऐसे सिरप बनाए हैं, जो सी3 और सी4 शुगर टसे्ट में आसानी से पास हो जाएंगे. यही कंपनियां भारत में फ्करु्टोज सिरप की निर्यातक थीं. इन कड़ियों को हमने आपस में जोड़ दिया. लेकिन अब तक हम इसके आखिरी खरीदार को नहीं ढूंढ़ पा रहे थे. कई औद्योगिक इस्तेमाल के लिए यह सिरप आयात किया जाता है. इसलिए, दिखने में यह एक वैध व्यवसाय था. लेकिन जब हमने इन जांच को बाईपास करने वाले सिरप को खरीदने का इंतजाम किया और चाइनीज कंपनियों ने हमें यह सिरप बेचने के लिए आतुरता दिखाई तो मामला साफ हो गया.
ये कंपनियां जानती थीं कि भारतीय व्यवस्था किस तरह काम करती है, खासकर हमारा कस्टम विभाग. कंपनी ने हमें पेंट पिगमेंट के रूप में सैंपल भेजा. हम जानते थे कि पिछले साल फ्रक्टोज सिरप के आयात में कमी आई थी. सूत्रों ने बताया कि भारतीय कारोबारियों ने चीन से टक्नोलॉजी खरीद ली है.
फिर दोबारा से हमने इसकी जांच शुरू की, तब जानकारी मिली बाजार में इसे “ऑल पास सिरप” कहा जाता है. अब तक हमारे पास एक रंगहीन लिक्विड पहुंच चुका था, जो मिलावटी शहद में चीनी की मौजूदगी को छिपा सकता है. इसकी जांच के लिए हमने कच्ची शहद में इसे मिलाकर प्रयोगशाला में भेजा, जो परीक्षण में पास हो गया. इससे एक जानलेवा कारोबार की पुष्टि हो गई.
इस धोखाधड़ी के खेल से पूरा पर्दा तब उठा जब हमने 13 प्रमुख ब्रांड के नमूनों को उन्नत एनएमआर तकनीक पर परखा गया और उनमें से ज्यादातर फेल हो गए. जर्मन प्रयोगशाला में हमने नमूनों को जांच कराई, जिसकी रिपोर्ट बताती है कि इन नमूनों में शुगर सिरप की मिलावट थी. अब जब हम इस रिपोर्ट को सार्वजनिक कर रहे हैं तो हम सरकार, उद्योग और आप उपभोक्ताओं से इस पर प्रतिक्रिया की उम्मीद करते हैं.
हम जानते हैं कि उद्योग जगत बहुत ताकतवार है. लेकिन हमारा विश्वास है कि मिलावट के इस कारोबार से हमारी सेहत और हमें जीवन देने वाली प्रकृति की सेना यानी मधुमक्खियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है.
(डाउन टू अर्थ से साभार)
प्राकृतिक गुणों वाले जिस शहद का हम उपभोग कर रहे हैं दरअसल उसमें जबरदस्त चीनी की मिलावट है. हमारी ताजा तहकीकात यह बताती है कि यह इसलिए पकड़ में नहीं आती, क्योंकि चीन की कंपनियों ने शुगर सिरप इस तरह “डिजाइन” किया है कि वे भारतीय प्रयोगशालाओं के जांच-परीक्षणों में पकड़ में ही नहीं आते. यह कितना घातक है जब यह तथ्य हमारे पास है कि कोविड-19 संक्रमण के कारण हमारा स्वास्थ्य और जीवन पहले से ही खतरे में है.
ऐसे समय में प्रतिरक्षा (इम्यूनिटी) को मजबूत बनाने का उपक्रम शुरू हुआ है और इम्युनिटी को बढ़ाने के लिए देश में शहद की खपत काफी बढ़ गई है. अमृत समझे जाने वाले शहद में एंटी ऑक्सीडेंट और एंटी-माइक्रोबियल गुण होते हैं. लेकिन अफसोस यह है कि हम शहद की बजाय चीनी खा रहे हैं, जो न सिर्फ हमारा वजन बढ़ाती है बल्कि कई गंभीर बीमारियों को न्यौता देती है.
हालिया प्रमाण बताते हैं कि अधिक वजन वाले लोगों में कोविड-19 का खतरा ज्यादा है. अब जरा सोचिए किसी कोविड संक्रमित की चपेट में आसानी से आने वाले मोटापे से ग्रसित आबादी पर यह मिलावटी शहद क्या असर डालेगा.
इतना ही नहीं, शहद में चीनी की मिलावट से मधुमक्खी पालकों की आजिवका और आमदनी पर भी बुरा असर पड़ रहा है. यदि उनका कारोबार बंद हो जाता है तो हम मधुमक्खियों को खो देंगे साथ ही उनकी परागण सेवाएं भी. इससे खाद्य उत्पादकता में भी गिरावट आएगी, इसलिए शहद में मिलावट एक अक्षम्य अपराध है.
इस खुलासे के बाद उद्योग जगत की कड़ी प्रतिक्रिया है कि वे मानकों का पूरी तरह पालन कर रहे हैं, खासकर बड़े ब्रांड खुद को प्रयोगशाला जांच में पूरी तरह सही बता रहे हैं तो फिर हम कैसे कह सकते हैं कि उन्होंने मिलावट की है. लेकिन हम ऐसा कह सकते हैं और मैं इसलिए कहती हूं, क्योंकि इसके लिए हमने बेहद कठिन और जटिल तहकीकात की है. इससे पता चलता है कि खाद्य व्यवसाय बहुत सरल नहीं है.
यह भी पता चलता है कि हमारी खाद्य नियामक भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है. हालांकि यह कहना मुश्किल है कि उसे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है या उसकी मिलीभगत है. मेरे सहयोगी ऐसे मोड़ पर थे, जहां से आगे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. जब हमें पता चला कि मधुमक्खी पालकों को कारोबार में नुकसान हो रहा है, तब हमें कोई ठोस जवाब नहीं मिला. कोई भी यह बताने को तैयार नहीं था कि क्या चल रहा है.
चीन की कंपनियों और शुगर सिरप के बारे में कुछ अस्पष्ट सी बातें सामने आ रही थीं. लेकिन इस रहस्यमयी सिरप और कंपनियों के बारे में कोई ठोस सबूत नहीं थे. मई माह में एफएसएसएआई ने शुगर सिरप के आयातकों के लिए एक आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि शहद में मिलावट के सबूत मिले हैं. यह भी कहा गया कि खाद्य आयुक्त इसकी जांच करें.
इस बारे में एफएसएसएआई में लगाई गई आरटीआई दूसरे मंडलों में भेजी गई, जिनका जवाब आया कि “सूचना उपलब्ध नहीं है.” एफएसएसएआई के आदेश में जिस शुगर सिरप का जिक्र था, केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आयात-निर्यात डाटाबेस में उसका नाम तक नहीं मिला. इससे हमारी पड़ताल पर फिर से विराम लग गया. लेकिन जानकारियां सामने आती रही.
फरवरी में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने निर्यात किए जा रहे शहद के लिए एक अतिरिक्त प्रयोगशाला जांच अनिवार्य कर दी, जिसे न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी (एनएमआर) कहा जाता है. हम जानते थे कि यह परीक्षण तब किया जाता है, जब सरकार को शक हो कि शहद में ऐसा शुगर सिरप मिलाया जा रहा है, जिसको पकड़ पाना आसान नहीं होता. यह मामला हमारी सेहत से जुड़ा था. हम इसे ऐसे ही नहीं जाने दे सकते थे.
हमारा माथा तब ठनका, जब हमें पता चला कि चीनी कंपनियों की वेबसाइटें खुलेआम ऐसे सिरप बेच रही थी, जो निर्धारित परीक्षणों पर खरा उतर सकता है. तब हमें समझ में आया कि यह कारोबार काफी विकसित हो चुका है. शहद में मिलावट की शुरुआत गन्ने और मक्के जैसे पौधों से बनी चीनी से हुई थी, जिसके पौधे सी4 प्रकाश सश्लेंषण रूट का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन विज्ञान के विकास के साथ-साथ उद्योग को नई शुगर मिलती गई. इसने चावल और चुकंदर जैसे सी3 पौधों से प्राप्त होने वाली शुगर का इस्तेमाल शुरू कर दिया. लेकिन विश्लेषणात्मक पद्धतियों से शहद में इस शुगर की मिलावट का भी पता चल गया.
चीन के ऑनलाइन पोर्टल पर कंपनियां यह दावा करती हैं कि उन्होंने ऐसे सिरप बनाए हैं, जो सी3 और सी4 शुगर टसे्ट में आसानी से पास हो जाएंगे. यही कंपनियां भारत में फ्करु्टोज सिरप की निर्यातक थीं. इन कड़ियों को हमने आपस में जोड़ दिया. लेकिन अब तक हम इसके आखिरी खरीदार को नहीं ढूंढ़ पा रहे थे. कई औद्योगिक इस्तेमाल के लिए यह सिरप आयात किया जाता है. इसलिए, दिखने में यह एक वैध व्यवसाय था. लेकिन जब हमने इन जांच को बाईपास करने वाले सिरप को खरीदने का इंतजाम किया और चाइनीज कंपनियों ने हमें यह सिरप बेचने के लिए आतुरता दिखाई तो मामला साफ हो गया.
ये कंपनियां जानती थीं कि भारतीय व्यवस्था किस तरह काम करती है, खासकर हमारा कस्टम विभाग. कंपनी ने हमें पेंट पिगमेंट के रूप में सैंपल भेजा. हम जानते थे कि पिछले साल फ्रक्टोज सिरप के आयात में कमी आई थी. सूत्रों ने बताया कि भारतीय कारोबारियों ने चीन से टक्नोलॉजी खरीद ली है.
फिर दोबारा से हमने इसकी जांच शुरू की, तब जानकारी मिली बाजार में इसे “ऑल पास सिरप” कहा जाता है. अब तक हमारे पास एक रंगहीन लिक्विड पहुंच चुका था, जो मिलावटी शहद में चीनी की मौजूदगी को छिपा सकता है. इसकी जांच के लिए हमने कच्ची शहद में इसे मिलाकर प्रयोगशाला में भेजा, जो परीक्षण में पास हो गया. इससे एक जानलेवा कारोबार की पुष्टि हो गई.
इस धोखाधड़ी के खेल से पूरा पर्दा तब उठा जब हमने 13 प्रमुख ब्रांड के नमूनों को उन्नत एनएमआर तकनीक पर परखा गया और उनमें से ज्यादातर फेल हो गए. जर्मन प्रयोगशाला में हमने नमूनों को जांच कराई, जिसकी रिपोर्ट बताती है कि इन नमूनों में शुगर सिरप की मिलावट थी. अब जब हम इस रिपोर्ट को सार्वजनिक कर रहे हैं तो हम सरकार, उद्योग और आप उपभोक्ताओं से इस पर प्रतिक्रिया की उम्मीद करते हैं.
हम जानते हैं कि उद्योग जगत बहुत ताकतवार है. लेकिन हमारा विश्वास है कि मिलावट के इस कारोबार से हमारी सेहत और हमें जीवन देने वाली प्रकृति की सेना यानी मधुमक्खियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है.
(डाउन टू अर्थ से साभार)