बढ़ती ठंड के बीच रंगपुरी पहाड़ी पर वन विभाग ने चलाया बुलडोजर, बेघर हुए लोग

लोगों का दावा है कि उन्हें अतिक्रमण हटाने के अभियान के बारे में कोई नोटिस भी नहीं दिया गया था.

बढ़ती ठंड के बीच रंगपुरी पहाड़ी पर वन विभाग ने चलाया बुलडोजर, बेघर हुए लोग
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दिल्ली में कोरोना वायरस का कहर जारी है. संक्रमित और मौतों के आंकड़े रोज नए रिकॉर्ड छू रहे हैं. इस कारण सरकार लोगों से घरों में रहने की अपील कर रही है. वहीं दूसरी तरफ दिल्ली सरकार पर ही कुछ लोगों के घरों को बिना पूर्व सूचना के तोड़कर बेघर करने का आरोप लगा है.

दक्षिणी दिल्ली के महिपालपुर में वन विभाग ने अपनी जमीन पर बसे होने का बताकर इसे उजाड़ दिया. मंगलवार 27 अक्टूबर को रंगपुरी पहाड़ी के इजराइल कैंप के करीब 50 घरों पर अचानक से बुलडोजर चला दिया. ऐसे में यहां के सैकड़ों लोग बेघर हो गए हैं. यहां रह रहे लोगों का दावा है कि उन्हें अतिक्रमण हटाने के अभियान के बारे में कोई नोटिस भी नहीं दिया गया था. फिलहाल उनके पास कोरोना वायरस महामारी के चलते जीविका का साधन भी नहीं है. ऐसे में कुछ समाजसेवी संस्थाएं उनकी सहायता के लिए आगे आई हैं. इन संस्था से जुड़े लोगों ने उन्हें राशन वगैरह भी मुहैया कराया है.

दूसरी तरफ दिल्ली में ठंड भी इस बार रोज नए रिकॉर्ड बना रही है. सोमवार को दिल्ली में न्यूनतम तापमान सामान्य से पांच डिग्री कम 6.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज हुआ. जिसने 17 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया. अक्टूबर में भी ठंड ने 58 सालों का रिकॉर्ड तोड़ा था. कोरोना और ठंड की दोहरी मार के बीच आसियाना छिन जाने से ये लोग काफी गुस्से में हैं. इनका आरोप है कि जब हमने ये मकान बनाए थे तब वन विभाग के लोगों ने पैसे लेकर उन्हें न टूटने का आश्वासन दिया था. इन लोगों के पास ‘जहां झुग्गी वहीं मकान’ का सर्टिफिकेट भी है. इसके बावजूद भी उनके घरों को ढ़हा दिया गया. जिससे वे खुले में रहने को मजबूर हैं. घर टूटने से कुछ लोग अपने पुश्तैनी गांव जा चुके हैं तो कुछ ने किराए के मकान खोज लिए हैं. और कुछ यहीं टेम्परेरी तौर पर रह रहे हैं.

न्यूजलॉन्ड्री की टीम ने इस बस्ती का दौरा किया और यहां के लोगों से मिल उनकी परेशानी जानने की कोशिश की. यह कॉलोनी जंगल से मिली हुई है. यहां के ज्यादातर मर्द मजदूरी करते हैं, जबकि महिलाएं लोगों के घरों में काम करती हैं.

यहां हमारी मुलाकात 40 वर्षीय सुनीता से हुई, उनका घर भी तोड़ दिया गया है. मूल रूप से राजस्थान की रहने वाली सुनीता के तीन बच्चे हैं और पति एक एक्सीडेंट में पेरेलाइज्ड हो गए हैं. वे कोठियों में काम कर गुजारा करती हैं. फिलहाल पल्ली वगैरह डालकर घर को रहने लायक बनाया है.

सुनीता ने बताया, “मैं तो काम करने गई थी. यहां जेसीबी खड़ी थी. हमने सोचा पेड़ पौधे लगाने आई होगी. फिर जब वापस आए तो पता चला कि घर तोड़ने आई है. जब हमने कहा कि आपने पहले कुछ नहीं बताया तो उन्होंने कुछ नहीं सुना और सब लेडीज को धक्का मारकर भगा दिया. फिर हमने जो कुछ हो सका वह बचाया और कुछ सामान दब भी गया.”

सुनीता ने हमें केजरीवाल सरकार का ‘जहां झुग्गी वहीं मकान’ का सर्टिफिकेट दिखाते हुए कहा, “हमारे पास तो ये भी था, लेकिन किसी की कुछ नहीं सुनी. 14-15 साल से यहीं रहते हैं, ऐसे समझो जैसे हम पर पहाड़ टूट गया हो. अब चोरी का ओर डर है, मोबाइल भी चोरी हो गया.”

सोनिया देवी उस दिन को याद कर बताते हुए रोने लगती हैं. वह भी कोठियों में झाड़ू-पोछा कर अपने दो बच्चों का गुजारा करती हैं.

सोनिया ने बताया, “अगर हमें पहले कोई नोटिस मिल जाता तो हम सामान कहीं ओर रख लेते अब आधे से ज्यादा सामान तो दब ही गया है. पैसे लेकर पहले तो बनवा देते हैं और फिर तुड़वा देते हैं. अगर इन्हें पता था कि टूटेगा, तो गरीब आदमी से पैसे क्यूं लेते हैं. कैसे-कैसे मजदूरी करके बनाते हैं. इतना पैसा लगाया, फिर तोड़ दिया. अब तो हम लोगों की कोई मदद कर दे, बस.”

उत्तर प्रदेश के बदायूं की रहने वाली शमां पिछले डेढ़ साल से यहीं एक कमरे के मकान में रहती थीं. वन विभाग ने उनका वह कमरा भी ढ़हा दिया. अब उनका सामान इधर-उधर बिखरा पड़ा है. अपने घर को दिखाते हुए शमां कहती हैं, “जब बनाया था तो फोरेस्ट वालों ने पैसे लेकर कहा था कि अभी नहीं टूटेंगे. लेकिन अब हमें कोई सूचना भी नहीं दी. मैं कोठियों में काम करती हूं और मेरे पति दिहाड़ी मजदूरी करते हैं. अब हम कहां जाएं, किराए पर भी नहीं रह सकते. हमें तो बस इतना ही कहना है कि सरकार हमें बस चैन से रहने दे. और हमें कुछ नहीं चाहिए.”

मूलरूप से मथुरा निवासी सपना बताती हैं कि उन्होंने पांच साल पहले ये घर बनाया था, और आठ साल से यहीं रह रहीं थीं. दिल्ली सरकार ने उन्हें सर्टिफिकेट भी दिया था. लेकिन अब घर तोड़ दिया.

E-1 फ्लैट सोसाइटी में चौकीदारी करने वाले सुखराम से जब हमारी मुलाकात हुई तो वे बेहद गुस्से में थे. सुखराम ने कहा, “मैं उस टाइम अपने घर आगरा में था, जब ये टूट-फूट हुई. मुझे मेरे भाई ने बताया. अगर मैं यहां होता तो कुछ गलत हो जाता. यहां जितने भी अधिकारी हैं सब पैसे लेते हैं. दो साल पहले जब हमने ये बनवाया था तो वन विभाग वालों ने 10 हजार रुपए लिए थे. 15 मांग रहा था, लेकिन मैंने मना कर दिया. पहले ही मना कर देते, पैसे क्यूं लेते हैं. रात-दिन, 24 घंटे एक करके कैसे-कैसे पैसे कमाते हैं. और ये देखो बिजली का बिल भी आता है (दिखाते हुए). वोटर कार्ड भी है. लेकिन अब घर तोड़ दिया और ईंटों को भी साथ ही ले गए.”

सुखराम यहां अपने भाइयों के साथ रहते थे. उनका घर पूरी तरह खत्म कर दिया है. अब वे यहीं पिन्नी डालकर रह रहे हैं.

“2013 से यहां रह रहे हैं. सर्दी का मौसम है, अगर पहले से कोई मैसेज मिला होता तो कुछ व्यवस्था कर लेते. बर्तन-भांडे सब टूट गए, डॉक्यूमेंट भी सब दब गए. मेरा तो पर्स भी चुरा लिया, यहां चोरियां भी बहुत होती हैं,” सुखराम ने कहा.

यहां से निकलकर जब हम कॉलोनी के दूसरे छोर पर पहुंचे तो वहां भी लोगों की भीड़ लगी थी. चारों तरफ टूटे घरों का मलबा नजर आ रहा था. यहीं रंगपुरी पहाड़ी में रहने वाली राखी ने हमें बताया, “एक तो बिना बताए घर तोड़े और ऊपर से मलबा भी ले गए. उस टाइम हमारे हालात तो बिल्कुल ऐसे हो गए थे कि पूछो मत. कई दिनों तक तो खाना भी अच्छा लगा था. आपस में बांटकर खाना खाया है. ऊपर से बारिश हो गई थी, तब ओर परेशानी हुई. हम जहां से पानी लेते थे, वह बोरिंग भी तोड़ दिया. कोरोना की वजह से पहले काम छूटा, अब मकान और झीन लिए. सब कुछ दब गया. बनाने-खाने के बर्तन भी नहीं बचे हैं. 300-400 लोग बेघर हो गए हैं. पहले पैसे लेकर बनवा देते हैं.”

मूलत: मेरठ की रहने वाली राखी आगे बताती हैं, “हम तो बस में भरकर केजरीवाल के ऑफिस भी गए थे. वहां भी उन्होंने गेट से भगा दिया कि आप अपना नोटिस दे दो बस, चलो कोरोना आ जाएगा.”

कुछ ऐसी ही कहानी 50 वर्षीय अकरम की है जो मजदूरी कर अपना गुजर बसर करते हैं. उनके भाई का घर भी टूट गया है, तो वह अपने गांव वापस चला गया है.

अकरम ने बताया, “ये नेताओं की आपसी लड़ाई में हम पिस गए. ‘जहां- झुग्गी वहीं मकान’ का ये सर्टिफिकेट भी दिया गया था. सब सामान दब गया. पहले किराए पर रहते थे, अब ये गुजारा कर लिया था. अब ये भी ढ़ह गया. कल एक राशन देने जरूर आए थे, बाकि कोई नहीं आया है.”

अपना आशियाना खोने के बाद उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद निवासी मेहनाज, अपनी सास और दो अन्य लोगों के साथ बाहर चौड़े में बैठी हुई थीं. अपनी सास की ओर इशारा करते हुए मेहनाज कहती हैं, “जबसे घर टूटा है, इन्हें इतनी टेंशन बढ़ गई है. शूगर ओर ज्यादा बढ़ गया है. पीने का पानी तक निकालने का मौका नहीं मिला. दूसरों के घर में नहाने-धोने जाना पड़ रहा है. पति (खालिद) मजदूरी करते हैं. दूसरे से कर्ज लेकर ये बनवाया था. अभी तो वह कर्ज भी नहीं उतरा, उससे पहले ही ये टूट गया. वोट भी बनी हुई हैं. वोट मांगने सब आ जाते हैं. जब बनवाया था, तब जंगलाती ने पैसे लिए थे, अब वही तुड़वा देते हैं.”

स्थानीय निगम पार्षद बीजेपी के इंदरजीत सहरावत से हमने इस मामले में जब फोन पर बात की तो उन्होंने कहा कि ये वन विभाग की जगह थी, जिस पर उन्होंने कब्जा किया है, तो वन विभाग ने वह तुड़वा दिया. जब हमने कहा कि उनके पास तो सर्टिफिकेट भी है तो उन्होंने बात घुमाते हुए कहा कि इसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं दिल्ली सरकार की है, वन विभाग उसी के अंडर आता है. आप उनसे बात कीजिए.

इस पर हमने स्थानीय विधायक भूपेंद्र सिंह जून को फोन किया तो उनके सहयोगी ने मीटिंग में बोलकर बाद में बात करने को कहा. बाद में उन्होंने हमारा फोन नहीं उठाया. वन विभाग के अधिकारियों पर भी स्थानीय लोगों ने रिश्वत के आरोप लगाए हैं. इस पूरे मामले में हमने वन विभाग के स्थानीय इंचार्ज विकास मीणा से मिलकर बात करनी चाही, तो पता चला कि वह छुट्टी पर हैं. फोन पर बातचीत में उन्होंने इन सभी आरोपों को सिरे से नकार दिया.

विकास मीणा ने बताया, “हम तो ड्यूटी कर रहे हैं. ऑफिस से ऑर्डर था, तो हमने कर दिया. जब इस तरह से अवैध घर बनते हैं तब भी हम कोशिश करते हैं कि न बनें, लेकिन आपने शायद वहां का माहौल देखा नहीं है, वे हमला भी कर देते हैं. बाकि रिश्वत की बात बेबुनियाद और बकवास है, क्योंकि अब हमने तोड़ दिया है तो बलेम करेंगे ही. ऐसे बोलने से उन्हें लग रहा होगा कि दोबारा न तोड़े. अगर मैं ऐसा करता तो तुड़वाने साथ न जाकर किसी ओर को भेज देता.”

मीणा एक दावा ओर करते हैं, “अगर आप सही हैं इन्वेस्टीगेट करो तो पाओगे कि इनके मकान तो अंदर हैं. जब झुग्गी की जगह मकान की बात आई थी तो लोगों ने दो-दो हजार गज में रस्सियां बांध दी थीं. मुझे पता है मैंने कैसे कंट्रोल किया है. कुछ दबंग किस्म के लोग यहां घेर लेते हैं और धोखा देकर दूसरों को बेच देते हैं. हम तो भाईसाब छोटे-मोटे कर्मचारी हैं जो दोनों के बीच में पिस रहे हैं.”

बस्ती सुरक्षा मंच और नारी सुरक्षा से जुड़े लोगों ने अपने घरों को खो चुके इन लोगों की मदद को आगे आए हैं. बस्ती सुरक्षा मंच के अकबर अली ने हमें बताया कि फिलहाल हमने मिलकर यहां के लोगों को राशन मुहैया कराया था. बाकि हमारी कोशिश है कि उन्हें कुछ कंबल वगैरह भी पहुंचाएं और हम इसमें प्रयासरत हैं.

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दक्षिणी दिल्ली के महिपालपुर में वन विभाग ने अपनी जमीन पर बसे होने का बताकर इसे उजाड़ दिया. मंगलवार 27 अक्टूबर को रंगपुरी पहाड़ी के इजराइल कैंप के करीब 50 घरों पर अचानक से बुलडोजर चला दिया. ऐसे में यहां के सैकड़ों लोग बेघर हो गए हैं. यहां रह रहे लोगों का दावा है कि उन्हें अतिक्रमण हटाने के अभियान के बारे में कोई नोटिस भी नहीं दिया गया था. फिलहाल उनके पास कोरोना वायरस महामारी के चलते जीविका का साधन भी नहीं है. ऐसे में कुछ समाजसेवी संस्थाएं उनकी सहायता के लिए आगे आई हैं. इन संस्था से जुड़े लोगों ने उन्हें राशन वगैरह भी मुहैया कराया है.

दूसरी तरफ दिल्ली में ठंड भी इस बार रोज नए रिकॉर्ड बना रही है. सोमवार को दिल्ली में न्यूनतम तापमान सामान्य से पांच डिग्री कम 6.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज हुआ. जिसने 17 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया. अक्टूबर में भी ठंड ने 58 सालों का रिकॉर्ड तोड़ा था. कोरोना और ठंड की दोहरी मार के बीच आसियाना छिन जाने से ये लोग काफी गुस्से में हैं. इनका आरोप है कि जब हमने ये मकान बनाए थे तब वन विभाग के लोगों ने पैसे लेकर उन्हें न टूटने का आश्वासन दिया था. इन लोगों के पास ‘जहां झुग्गी वहीं मकान’ का सर्टिफिकेट भी है. इसके बावजूद भी उनके घरों को ढ़हा दिया गया. जिससे वे खुले में रहने को मजबूर हैं. घर टूटने से कुछ लोग अपने पुश्तैनी गांव जा चुके हैं तो कुछ ने किराए के मकान खोज लिए हैं. और कुछ यहीं टेम्परेरी तौर पर रह रहे हैं.

न्यूजलॉन्ड्री की टीम ने इस बस्ती का दौरा किया और यहां के लोगों से मिल उनकी परेशानी जानने की कोशिश की. यह कॉलोनी जंगल से मिली हुई है. यहां के ज्यादातर मर्द मजदूरी करते हैं, जबकि महिलाएं लोगों के घरों में काम करती हैं.

यहां हमारी मुलाकात 40 वर्षीय सुनीता से हुई, उनका घर भी तोड़ दिया गया है. मूल रूप से राजस्थान की रहने वाली सुनीता के तीन बच्चे हैं और पति एक एक्सीडेंट में पेरेलाइज्ड हो गए हैं. वे कोठियों में काम कर गुजारा करती हैं. फिलहाल पल्ली वगैरह डालकर घर को रहने लायक बनाया है.

सुनीता ने बताया, “मैं तो काम करने गई थी. यहां जेसीबी खड़ी थी. हमने सोचा पेड़ पौधे लगाने आई होगी. फिर जब वापस आए तो पता चला कि घर तोड़ने आई है. जब हमने कहा कि आपने पहले कुछ नहीं बताया तो उन्होंने कुछ नहीं सुना और सब लेडीज को धक्का मारकर भगा दिया. फिर हमने जो कुछ हो सका वह बचाया और कुछ सामान दब भी गया.”

सुनीता ने हमें केजरीवाल सरकार का ‘जहां झुग्गी वहीं मकान’ का सर्टिफिकेट दिखाते हुए कहा, “हमारे पास तो ये भी था, लेकिन किसी की कुछ नहीं सुनी. 14-15 साल से यहीं रहते हैं, ऐसे समझो जैसे हम पर पहाड़ टूट गया हो. अब चोरी का ओर डर है, मोबाइल भी चोरी हो गया.”

सोनिया देवी उस दिन को याद कर बताते हुए रोने लगती हैं. वह भी कोठियों में झाड़ू-पोछा कर अपने दो बच्चों का गुजारा करती हैं.

सोनिया ने बताया, “अगर हमें पहले कोई नोटिस मिल जाता तो हम सामान कहीं ओर रख लेते अब आधे से ज्यादा सामान तो दब ही गया है. पैसे लेकर पहले तो बनवा देते हैं और फिर तुड़वा देते हैं. अगर इन्हें पता था कि टूटेगा, तो गरीब आदमी से पैसे क्यूं लेते हैं. कैसे-कैसे मजदूरी करके बनाते हैं. इतना पैसा लगाया, फिर तोड़ दिया. अब तो हम लोगों की कोई मदद कर दे, बस.”

उत्तर प्रदेश के बदायूं की रहने वाली शमां पिछले डेढ़ साल से यहीं एक कमरे के मकान में रहती थीं. वन विभाग ने उनका वह कमरा भी ढ़हा दिया. अब उनका सामान इधर-उधर बिखरा पड़ा है. अपने घर को दिखाते हुए शमां कहती हैं, “जब बनाया था तो फोरेस्ट वालों ने पैसे लेकर कहा था कि अभी नहीं टूटेंगे. लेकिन अब हमें कोई सूचना भी नहीं दी. मैं कोठियों में काम करती हूं और मेरे पति दिहाड़ी मजदूरी करते हैं. अब हम कहां जाएं, किराए पर भी नहीं रह सकते. हमें तो बस इतना ही कहना है कि सरकार हमें बस चैन से रहने दे. और हमें कुछ नहीं चाहिए.”

मूलरूप से मथुरा निवासी सपना बताती हैं कि उन्होंने पांच साल पहले ये घर बनाया था, और आठ साल से यहीं रह रहीं थीं. दिल्ली सरकार ने उन्हें सर्टिफिकेट भी दिया था. लेकिन अब घर तोड़ दिया.

E-1 फ्लैट सोसाइटी में चौकीदारी करने वाले सुखराम से जब हमारी मुलाकात हुई तो वे बेहद गुस्से में थे. सुखराम ने कहा, “मैं उस टाइम अपने घर आगरा में था, जब ये टूट-फूट हुई. मुझे मेरे भाई ने बताया. अगर मैं यहां होता तो कुछ गलत हो जाता. यहां जितने भी अधिकारी हैं सब पैसे लेते हैं. दो साल पहले जब हमने ये बनवाया था तो वन विभाग वालों ने 10 हजार रुपए लिए थे. 15 मांग रहा था, लेकिन मैंने मना कर दिया. पहले ही मना कर देते, पैसे क्यूं लेते हैं. रात-दिन, 24 घंटे एक करके कैसे-कैसे पैसे कमाते हैं. और ये देखो बिजली का बिल भी आता है (दिखाते हुए). वोटर कार्ड भी है. लेकिन अब घर तोड़ दिया और ईंटों को भी साथ ही ले गए.”

सुखराम यहां अपने भाइयों के साथ रहते थे. उनका घर पूरी तरह खत्म कर दिया है. अब वे यहीं पिन्नी डालकर रह रहे हैं.

“2013 से यहां रह रहे हैं. सर्दी का मौसम है, अगर पहले से कोई मैसेज मिला होता तो कुछ व्यवस्था कर लेते. बर्तन-भांडे सब टूट गए, डॉक्यूमेंट भी सब दब गए. मेरा तो पर्स भी चुरा लिया, यहां चोरियां भी बहुत होती हैं,” सुखराम ने कहा.

यहां से निकलकर जब हम कॉलोनी के दूसरे छोर पर पहुंचे तो वहां भी लोगों की भीड़ लगी थी. चारों तरफ टूटे घरों का मलबा नजर आ रहा था. यहीं रंगपुरी पहाड़ी में रहने वाली राखी ने हमें बताया, “एक तो बिना बताए घर तोड़े और ऊपर से मलबा भी ले गए. उस टाइम हमारे हालात तो बिल्कुल ऐसे हो गए थे कि पूछो मत. कई दिनों तक तो खाना भी अच्छा लगा था. आपस में बांटकर खाना खाया है. ऊपर से बारिश हो गई थी, तब ओर परेशानी हुई. हम जहां से पानी लेते थे, वह बोरिंग भी तोड़ दिया. कोरोना की वजह से पहले काम छूटा, अब मकान और झीन लिए. सब कुछ दब गया. बनाने-खाने के बर्तन भी नहीं बचे हैं. 300-400 लोग बेघर हो गए हैं. पहले पैसे लेकर बनवा देते हैं.”

मूलत: मेरठ की रहने वाली राखी आगे बताती हैं, “हम तो बस में भरकर केजरीवाल के ऑफिस भी गए थे. वहां भी उन्होंने गेट से भगा दिया कि आप अपना नोटिस दे दो बस, चलो कोरोना आ जाएगा.”

कुछ ऐसी ही कहानी 50 वर्षीय अकरम की है जो मजदूरी कर अपना गुजर बसर करते हैं. उनके भाई का घर भी टूट गया है, तो वह अपने गांव वापस चला गया है.

अकरम ने बताया, “ये नेताओं की आपसी लड़ाई में हम पिस गए. ‘जहां- झुग्गी वहीं मकान’ का ये सर्टिफिकेट भी दिया गया था. सब सामान दब गया. पहले किराए पर रहते थे, अब ये गुजारा कर लिया था. अब ये भी ढ़ह गया. कल एक राशन देने जरूर आए थे, बाकि कोई नहीं आया है.”

अपना आशियाना खोने के बाद उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद निवासी मेहनाज, अपनी सास और दो अन्य लोगों के साथ बाहर चौड़े में बैठी हुई थीं. अपनी सास की ओर इशारा करते हुए मेहनाज कहती हैं, “जबसे घर टूटा है, इन्हें इतनी टेंशन बढ़ गई है. शूगर ओर ज्यादा बढ़ गया है. पीने का पानी तक निकालने का मौका नहीं मिला. दूसरों के घर में नहाने-धोने जाना पड़ रहा है. पति (खालिद) मजदूरी करते हैं. दूसरे से कर्ज लेकर ये बनवाया था. अभी तो वह कर्ज भी नहीं उतरा, उससे पहले ही ये टूट गया. वोट भी बनी हुई हैं. वोट मांगने सब आ जाते हैं. जब बनवाया था, तब जंगलाती ने पैसे लिए थे, अब वही तुड़वा देते हैं.”

स्थानीय निगम पार्षद बीजेपी के इंदरजीत सहरावत से हमने इस मामले में जब फोन पर बात की तो उन्होंने कहा कि ये वन विभाग की जगह थी, जिस पर उन्होंने कब्जा किया है, तो वन विभाग ने वह तुड़वा दिया. जब हमने कहा कि उनके पास तो सर्टिफिकेट भी है तो उन्होंने बात घुमाते हुए कहा कि इसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं दिल्ली सरकार की है, वन विभाग उसी के अंडर आता है. आप उनसे बात कीजिए.

इस पर हमने स्थानीय विधायक भूपेंद्र सिंह जून को फोन किया तो उनके सहयोगी ने मीटिंग में बोलकर बाद में बात करने को कहा. बाद में उन्होंने हमारा फोन नहीं उठाया. वन विभाग के अधिकारियों पर भी स्थानीय लोगों ने रिश्वत के आरोप लगाए हैं. इस पूरे मामले में हमने वन विभाग के स्थानीय इंचार्ज विकास मीणा से मिलकर बात करनी चाही, तो पता चला कि वह छुट्टी पर हैं. फोन पर बातचीत में उन्होंने इन सभी आरोपों को सिरे से नकार दिया.

विकास मीणा ने बताया, “हम तो ड्यूटी कर रहे हैं. ऑफिस से ऑर्डर था, तो हमने कर दिया. जब इस तरह से अवैध घर बनते हैं तब भी हम कोशिश करते हैं कि न बनें, लेकिन आपने शायद वहां का माहौल देखा नहीं है, वे हमला भी कर देते हैं. बाकि रिश्वत की बात बेबुनियाद और बकवास है, क्योंकि अब हमने तोड़ दिया है तो बलेम करेंगे ही. ऐसे बोलने से उन्हें लग रहा होगा कि दोबारा न तोड़े. अगर मैं ऐसा करता तो तुड़वाने साथ न जाकर किसी ओर को भेज देता.”

मीणा एक दावा ओर करते हैं, “अगर आप सही हैं इन्वेस्टीगेट करो तो पाओगे कि इनके मकान तो अंदर हैं. जब झुग्गी की जगह मकान की बात आई थी तो लोगों ने दो-दो हजार गज में रस्सियां बांध दी थीं. मुझे पता है मैंने कैसे कंट्रोल किया है. कुछ दबंग किस्म के लोग यहां घेर लेते हैं और धोखा देकर दूसरों को बेच देते हैं. हम तो भाईसाब छोटे-मोटे कर्मचारी हैं जो दोनों के बीच में पिस रहे हैं.”

बस्ती सुरक्षा मंच और नारी सुरक्षा से जुड़े लोगों ने अपने घरों को खो चुके इन लोगों की मदद को आगे आए हैं. बस्ती सुरक्षा मंच के अकबर अली ने हमें बताया कि फिलहाल हमने मिलकर यहां के लोगों को राशन मुहैया कराया था. बाकि हमारी कोशिश है कि उन्हें कुछ कंबल वगैरह भी पहुंचाएं और हम इसमें प्रयासरत हैं.

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