टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग-2021 में कहां हैं भारतीय शिक्षण संस्थान?

कानून विषय में कोई भी भारतीय विश्वविद्यालय ने इस सूची में जगह नहीं बनाई है.

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इसी प्रकार दूसरे, अनुसंधान मापदंड में, प्रतिष्ठा सर्वेक्षण को 18% भारांक, अनुसंधान के लिए प्राप्त अनुदान की मात्रा को 6% भारांक और अनुसंधान उत्पादकता को 6% भारांक दिए गए हैं. ये श्रेणी संस्थानों की अनुसंधान हेतु अनुदान प्राप्त करने के प्रदर्शन का एक सूचकांक कहा जा सकता है. इस श्रेणी का सबसे प्रमुख संकेतक वार्षिक अकादमिक प्रतिष्ठा सर्वेक्षण है, जो विश्व भर शिक्षाविदों की प्रतिक्रियाओं के आधार पर तैयार किया जाता है. इसी प्रकार अनुसंधान अनुदान की मात्रा भी महत्वपूर्ण सूचकांक है जिसके लिए 6% भारांक निर्धारित हैं. भारतीय विश्वविद्यालय वैश्विक अनुदान देने वाली संस्थाएं जैसे वर्ल्ड बैंक, यूनेस्को, विश्व स्वास्थ्य संगठन, वेलकम ट्रस्ट, बिल एन्ड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, ह्यूमन साइंस फ्रंटियर प्रोग्राम, रॉयल सोसाइटी ऑफ़ साइंस, एमबो (EMBO), इत्यादि की शोध परियोजनाओं को प्राप्त कर इस श्रेणी मे सुधार कर सकते हैं.

हालांकि ऐसे अनुसंधानों को पाने के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा का होती है, और यह कई अन्य कारकों पर भी निर्भर करता है. इसी प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर भी अनुसंधान परियोजनाओं की भारी आवश्यकता है, ताकि अनुसंधान की मात्रा को बढ़ाया जा सके. यहां यह समझना आवश्यक है कि विश्व स्तरीय अनुसंधान हेतु, भारी अनुदान की आवश्यकता होती है। हाल ही में यूजीसी द्वारा ‘स्ट्राइड’ योजना एवं भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) की ‘इम्प्रेस’ योजनाएं अनुसंधानकर्ताओं को प्रोत्साहित अवश्य करती है, परंतु राष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान पर कुल खर्च राशि अन्य राष्ट्रों के सापेक्ष उदासीन करती हैं हालांकि विज्ञान विषयों में अनुसंधान अनुदान अक्सर उच्चतम गुणवत्ता वाले सामाजिक विज्ञान, कला और मानविकी अनुसंधान के लिए दिए जाने वाले लोगों की तुलना में बड़ा होता है. अनुसंधान उत्पादकता को मापने के लिए यह रैंकिंग शैक्षिक पत्रिकाओं/जर्नल में प्रकाशित प्रकाशनों की संख्या की गणना करते हैं जिनमे एलसेवीयर के स्कोपस डेटाबेस में इंडेक्स किए गए पत्रिकाओं के लेखों को ही सम्मिलित किया जाता है. भारतीय संस्थानों मे कार्यरत अनुसंधान कर्ताओं एवं शिक्षकों को प्रथमतः अपनी उत्पादकता को बढ़ाना होगा एवं पत्रिकाओं के चुनाव मे गुणवत्ता युक्त पत्रिकाओं को ही अपने लेख भेजने होंगे. नीतिगत स्तर पर हाल ही में जारी यूजीसी की केयर (CARE) सूची इस दिशा मे अच्छा प्रयास है, जो भविष्य मे भारतीय संस्थानों के इन रैंकिंग में अच्छे स्थान पाने में अवश्य ही सहायक होगी. अन्य उपायों मे उच्च गुणवत्ता वाले लेख प्रकाशित करवाने वाले लेखकों को प्रोत्साहन राशि या प्रोमोशन मे प्राथमिकता दिया जाना हो सकता है.

नए ज्ञान और विचारों को फैलाने में विश्वविद्यालयों की एक अहम भूमिका होती है, किसी विश्वविद्यालय के द्वारा प्रकाशित लेखों का विश्व स्तर पर विद्वानों द्वारा उद्धृत करना प्रकाशित लेख की गुणवत्ता एवं नए ज्ञान और विचारों के योगदान का द्योतक होता है. शिक्षण संस्थानों की वैश्विक रैंकिंग करने वाले उद्धरणों की औसत संख्या की गणना करके किसी अनुसंधान के प्रभाव की जांच करते हैं. इस साल की रैंकिंग मे 86 मिलियन से अधिक उद्धरणों के साथ 13.6 मिलियन जर्नल लेख, लेख समीक्षा, सम्मेलन की प्रोसीडिंग्स, पुस्तकें और पांच वर्षों में प्रकाशित पुस्तक अध्याय को शामिल किया गया. विभिन्न विषय क्षेत्रों के बीच उद्धरण की मात्रा में भिन्नता को दर्शाने के लिए आंकड़ों को सामान्यीकृत किया जाता है. इसका मतलब यह है कि, पारंपरिक रूप से उच्च इम्पैक्ट फैक्टर की गिनती वाले विषयों में अनुसंधान के उच्च स्तर वाले संस्थान अनुचित लाभ नहीं उठा पाते जब आंकड़ों का सामान्यीकरण कर दिया जाता है. सैद्धांतिक रूप से देखा जाए तो उद्धरण प्राप्त करना लेखक के नियंत्रण मे नहीं होता है, इसीलिए यह आवश्यक है की लेख की गुणवत्ता पर पूरा ध्यान केंद्रित किया जाए. अन्य उपायों में ऐसे शोध विषयों का चुनाव जिन शोध विषयों की ज्यादा सामाजिक उपयोगिता है या ज्यादा मात्र मे शोध किया जा रहा है फ़ायदेमंद होता है.

भारतीय शोध अनुदान प्रदान करने वाली संस्थाएं शोधकर्ताओं की इन क्षेत्रों मे शोध करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं, जिनके ऊपर लिखे लेखों पर उद्धरण प्राप्त होने की प्रायिकता अधिक होगी. जैसा कि हाल में देखा गया की कोरोना वायरस विषय पर लिखे लेखों को भारी उद्धरण प्राप्त हो रहे हैं. इसी प्रकार ऐसी पत्रिकाओं का चयन जिनका इम्पैक्ट फैक्टर अच्छा है, उनमें लेख छापने से अधिक उद्धरण पाने की सम्भावना बढ़ जाती है. अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण (कर्मचारी, छात्र, अनुसंधान) मापदंड में क्रमश: अंतरराष्ट्रीय छात्रों का संख्या: 2.5% भारांक, अंतरराष्ट्रीय शिक्षकों की संख्या: 2.5% भारांक, और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के 2.5% भारांक शामिल हैं. भारतीय संस्थानों को इस दिशा मे कार्य करना अतिआवश्यक है, अभी भारत से बाहर जाने वाले छात्रों की संख्या भारत में विदेश से आने वाले छात्रों की संख्या से काफी ज्यादा है.

अंतरराष्ट्रीय छात्र और शिक्षकों को आकर्षित करने के लिए, अनुसंधान छात्रवृत्तियों की संख्या को बढ़ाना होगा, इसके साथ साथ राष्ट्रीय स्तर पर मित्र राष्ट्रों से अंतरराष्ट्रीय अकादमिक समझौतों की संख्या को भी बढ़ाया जाना चाहिए. भारतीय विश्वविद्यालयों को अपनी प्रवेश नीतियों को भी अंतरराष्ट्रीय छात्रों के अनुकूल बनाना होगा एवं शैक्षणिक पदों की अर्हता को भी अंतरराष्ट्रीय डिग्री एवं शिक्षा पद्धति के अनुसार परिवर्तित करना होगा. सबसे आवश्यक है, की विश्वविद्यालय के कैम्पसों को समावेशी एवं स्वागत योग्य बनाते हुए विश्वविद्यालयों के प्रशासनिक ढांचे में लालफीताशाही को हटाते हुए आगे बढ़ना होगा.

नवाचार, आविष्कार और परामर्श के साथ उद्योग में मदद करने की शिक्षण संस्थानों की क्षमता समकालीन वैश्विक अकादमिक क्षेत्र का एक मुख्य मिशन बन गया है, शिक्षा पूरी कर रहे विद्यार्थियों को ये रोज़गार के नए अवसर दिलाने में भी सहायक हो सकता है. यह श्रेणी इस तरह की तकनीकी-हस्तांतरण गतिविधियों को मापने का प्रयास करती है, यह देखते हुए कि कोई संस्थान विभिन्न उद्योगों से सहयोग (पीपीपी मॉडल) करके कितनी आय अर्जित करता है. व्यावसायिक बाज़ार के लिए किसी संस्थान के अनुसंधान की उपयोगिता और इस आधार पर संस्थान का वित्त प्राप्त करने की क्षमता संस्थागत गुणवत्ता का एक संकेतक है. भारतीय संस्थान इस क्षेत्र मे अद्वितीय योगदान देते रहे हैं, हाल ही में कृषि उपकरणों, बीज एवं कीटनाशकों की श्रेणी मे भारतीय संस्थानों ने उच्च कोटि के नवाचार किए हैं. व्यावसायिक बाज़ार की आवश्यकता के आकलन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कार्य योजना तैयार कर श्वेत पत्र जारी किए जा सकते हैं, जो शोधकर्ताओं के विषय निर्धारण में मददगार साबित होंगे और उनके अनुसंधान की भारी उपयोगिता भी हो सकेगी.

विश्व श्रेणी के संस्थानों में शामिल होने की भारतीय इच्छा विभिन्न रैंकिंग सूचियों के प्रकाशन के प्रारंभ होने से ही रही है. हाल के वर्षों मे इस दिशा मे काफी प्रयास किए गए हैं, जैसे कुछ चुनिंदा उच्च कोटि के संस्थानों को ‘इंस्टिट्यूट ऑफ एमीनेन्स’ का तमगा प्रदान करना, जिसमें उनको ज्यादा स्वायत्तता एवं संसाधन मुहैया कराए जा रहे हैं. इसी प्रकार यूजीसी द्वारा ‘क्वालिटी मैंडेट’ पत्र को जारी करना जिसमें विश्वविद्यालयों के कार्यप्रणाली एवं सुधार पर ध्यान दिया गया है. यहीं नीतिनिर्माताओं को समुचित संसाधनों की उपलब्धता और मेधावी छात्रों को आकर्षित करना होगा. इसके साथ-साथ शिक्षकों, संस्थानों के निदेशकों एवं विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति को राजनीति से परे रखकर, केवल सत्ताधारी दलों के शुभचिंतकों को नहीं बल्कि उच्च कोटि के शिक्षाविदों को नियुक्त करना होगा, तभी इन रैंकिंग सूचियों मे भारतीय संस्थानों की उच्च रैंकिंग प्राप्त करने का स्वप्न पूर्ण हो पायेगा.

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