नीतीश कुमार: देखना है पेट में दांत वाले, पेट में चक्रव्यूह तोड़ने की कला सीखे थे या नहीं

बिहार में पहले चरण का चुनाव बीत चुका है. बड़े न्यूज़ चैनलों द्वारा करवाए गए सर्वेक्षणों की मानें तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन अपने बूते सरकार बना रहा है. हालांकि जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती हैं.

WrittenBy:मनीष कुमार
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राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, जो कि पिछले 15 सालों से बिहार के सत्ता पर काबिज है और जिसका नेतृत्व सुशासन बाबू फेम “नीतीश कुमार” सफलतापूर्वक करते आए हैं, इस बार अपने भीतर ही एक चक्रव्यूह रचे हुए है. इसका मूल मक़सद नीतीश जी को निपटा देना है. जो लोग भारतीय जनता पार्टी की राजनीति को समझते-बूझते हैं, उनके लिए इस बात को समझने में कोई खास दिक्कत नहीं होगी. भारतीय जनता पार्टी के संबंध में ये विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि वो समय के साथ अपने स्थानीय (रीजनल) सहयोगी पार्टी को निगल लिया करती है. इसका ये चरित्र जगजाहिर है. ऐसा पहले भी कई दफा हो चुका है और इस बार नीतीश बाबू का टाइम आ गया है.

नीतीश, बीजेपी के सबसे लंबे समय तक साथ चलने वाले सहयोगियों में से एक रहे हैं. नीतीश ही शहर तक सीमित बीजेपी को अपने कंधे पर बैठा कर बिहार के गांवों-घरों तक ले गए. नीतीश जी का ही योगदान रहा है कि बीजेपी सेठ, साहूकार, बनिया पार्टी की छवि से आगे बढ़कर गरीबों के झोपड़े तक में प्रवेश पा सकी, लेकिन आज घूम फिर कर उनका समय आ गया है. आज उनके अपने पुराने सहयोगियों ने उनके लिए एक चक्रव्यहू रच दिया है, ऐसे में अब देखने वाली बात ये होगी कि वो राजनीतिज्ञ जिसके बारे में ये धारणा प्रचलित है कि “उनके पेट में भी दांत है”, इस घेरे से कैसे बाहर निकलते हैं.

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन अपने मंचों से तो ये बात कह रहा है कि नीतीश ही उसके नेता हैं और चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री भी वही होंगे, लेकिन इस पर किसी को भरोसा नहीं हो रहा है. नीतीश जी और उनकी पार्टी भी इस बात पर ईमानदारी से भरोसा नहीं कर पा रही है. इसके लिए कुछ ठोस कारण भी जिम्मेवार है. बात को आगे बढ़ाने से पहले इस संबंध में आज की एक घटना का उल्लेख करना उचित होगा. यहां आज के समाचारपत्र के प्रथम पृष्ठ पर प्रधानमंत्री जी का फुल पेज का विज्ञापन आया है, जिसमें से नीतीश जी गायब हैं. इससे इस बात को और बल मिलता है कि एनडीए में सब वैसा नहीं चल रहा, जैसा दिखाने की कोशिश की जा रही है. अपितु अंदर ही अंदर कुछ और खेल जमा हुआ है.

इस बार एक तरफ जहां नीतीश को तेजस्वी के नेतृत्व में महागठबंधन की ओर से सशक्त मुकाबला मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर उनके अपने सहयोगी उनका पैर खींचने पर आमदा हैं जिसका असर उनके व्‍यक्तित्व और व्यवहार में स्पष्ट दिख रहा है. पहली दफा नीतीश अपने स्वभाव के विपरीत अपने विपक्षी पर पर्सनल टीका–टिप्पणी करते दिख रहे हैं, वहीं बीच-बीच में अपना आपा भी खो रहे है.

अब ध्यान असल खेल पर डाला जाए. राष्ट्रीय स्तर पर जहां एक तरफ चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी एनडीए की पार्टनर है वहीं बिहार के चुनाव में वो एनडीए के विपक्ष में खड़ी है. रामविलास पासवान के बाद चिराग के नेतृत्व में लोक जनशक्ति पार्टी अपने लिए कुछ अलग जमीन की तलाश में लगी दिखती है. चिराग के हालिया बयान को देखा जाए तो ये समझने में देर नहीं लगती कि वो एनडीए के बजाय नीतीश के विपक्ष में ज्यादा मजबूती से खड़े हैं. एक तरफ वो ये जताने का कोई मौका नहीं छोड़ते कि वो हर हाल में मोदी जी के साथ हैं, वहीं दूसरी तरफ वो नीतीश पर हल्ला बोलने का कोई मौका नहीं छोड़ते. उन्होंने ये खुलकर बोला है कि वो “मोदी जी के हनुमान हैं”, जिसकी तर्ज़ पर यहां ये नारा चल पड़ा है, “मोदी से बैर नहीं और नीतीश तेरी खैर नहीं!’’

चुनावी परिदृश्य में चिराग की लोक जनशक्ति पार्टी को देखें तो चिराग के अनुसार उनकी पार्टी भाजपा के विरुद्ध कोई उम्मीदवार नहीं देगी, हालांकि वे जेडीयू, हिंदुस्तानी अवाम पार्टी और विकासशील इंसान पार्टी के खिलाफ मजबूती से चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं. इसी संदर्भ में ये बात भी महत्वूर्ण है कि उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी से भाजपा के कोई दर्जन भर वैसे प्रत्याशियों को टिकट दिए हैं जिनका राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से टिकट कट गया था. इनमें बीजेपी के कुछ बड़े व प्रभावी चेहरे भी शामिल हैं. जमीनी स्तर पर संघ और बीजेपी के लोकल कार्यकर्ताओं को लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवारों के लिए बड़े पैमाने पर चुनाव प्रचार करते हुए भी देखा जा रहा है.

फ़ील्ड से मिल रही जानकारियों पर यकीन करें तो लोक जनशक्ति पार्टी पांच से छह जगहों को छोड़ दें तो कहीं धरातल पर नहीं दिखती, फिर ऐसे में चिराग़ का इतना हवा काटने के पीछे क्या राज़ है? इस वक़्त उनके कंधे पर किसका अदृश्य हाथ है? समय के साथ ये तस्वीर भी साफ हो जाएगी.

इस पूरे ताने-बाने से नीतीश जी कैसे निकलते हैं ये देखना रोचक होगा. यह वक़्त उनके राजनीतिक जीवन की सबसे कठिन दौड़ के रूप में सामने आया है. पक्ष-विपक्ष ने मिलकर उन्हें ठेल कर दीवार से जा लगाया है. पलटने की कला में माहिर नीतीश इस बार अपने को कैसे उभारते हैं, ये समय के साथ स्पष्ट होगा.

(साभार जनपथ)

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