मुंबई पुलिस और रिपब्लिक टीवी के बीच जारी यह लड़ाई अच्छी पत्रकारिता या खबरों की प्रमाणिकता के लिए नहीं बल्कि एक परोक्ष राजनीतिक लड़ाई है.
इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने आज अपने संपादकीय में मुंबई पुलिस के द्वारा रिपब्लिक टीवी के पत्रकारों पर दर्ज एफआईआर की निंदा की है. साथ ही संपादकीय में देश के अलहदा हिस्सों में पत्रकारों को पुलिस द्वारा निशाना बनाने की प्रवृत्ति की भी आलोचना है.
एक्सप्रेस के अनुसार मुंबई पुलिस और रिपब्लिक टीवी के बीच जारी यह लड़ाई अच्छी पत्रकारिता या खबरों की प्रमाणिकता के लिए नहीं बल्कि एक परोक्ष राजनीतिक लड़ाई है. इसमें भाजपा और सत्ताधारी विपक्षी दलों का गठबंधन के बीच एक छद्मयुद्ध चल रहा है. कायदे से मुबई पुलिस और वहां की सत्ताधारी विपक्षी पार्टी को इस बात की नज़ीर पेश करना चाहिए था कि उनका शासन देश भर में जारी सत्ता-मीडिया के गठजोड़ से अलग है. लेकिन वो भी इसी परिपाटी में शामिल हो गए.
संपादकीय मुंबई पुलिस की कार्रवाई की तुलना उत्तर प्रदेश की योगी सरकार से करते हुए कहता है कि बिल्कुल इसी तरह से उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर राजद्रोह और यूएपीए जैसी गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई है. इसका संदर्भ हाथरस में हुई घटना के बाद यूपी पुलिस और सरकार की कार्रवाई है.
दिल्ली दंगों की जांच में दिल्ली पुलिस की कार्यशैली और उत्तर प्रदेश में थोक के भाव देशद्रोह और यूएपीए के अंतर्गत पत्रकारों पर मुकदमे का उदाहरण देते हुए संपादकीय ने कहा गया है कि पुलिस सत्ताधारी नेताओं के हाथ की कठपुतली बन गई है. पत्रकारिता में मूल्यों के क्षरण के इस युग में इस तरह की कार्रवाई एक विपक्ष शासित राज्य में होना देश में संवाद और विविधताओं की मान्यता के गिरते स्तर को उजागर करता है.
एक्सप्रेस के मुताबिक सत्ता के लिए इससे बेहतर क्या ख़बर होगी कि उसकी हां में हां मिलाने वाला मीडिया है और जी-हुजूरी वाला पुलिस बल है जो अपने मालिक की हर इच्छा को अंजाम देने के लिए तत्पर है. और साथ में वो राजनीति है जिसके लिए आज़ाद मीडिया का कोई अर्थ नहीं रहा. ऐसे में वो मिडिल ग्राउंड सिकुड़ गया है जहां विविध विचारों और संवाद के लिए जगह होती थी.