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एनएल चर्चा के 138वें एपिसोड में हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री द्वारा कुछ मीडिया संस्थान और पत्रकारों पर दायर मुकदमा, तनिष्क के विज्ञापन का विरोध और कर्मचारी को मिली ट्विटर पर धमकियां, पारले और बजाज द्वारा ज़हर उगलने वाले टीवी चैनलों को विज्ञापन नही देने की घोषणा और मार्च 2021 तक बांग्लादेश का जीडीपी भारत से ज्यादा होने के अनुमान पर चर्चा हुई.
इस बार चर्चा में स्क्रीनराइटर और पूर्व पत्रकार अनु सिंह चौधरी और न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा की शुरुआत कुछ मीडिया संस्थानों और पत्रकारों के खिलाफ़ हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री के चार संगठनों और 34 बड़े प्रोडक्शन हाउसेज की तरफ से दिल्ली हाईकोर्ट में दायर मुक़दमे से करते हुए अतुल कहते हैं, "फिल्म इंडस्ट्री ने पहली बार न्यूज़ चैनलों के खिलाफ खुला विरोध दर्ज किया है. इस चिंता की असल शुरुआत होती है सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद. हमने देखा है किस तरह टीवी मीडिया ने एक पूरा नकली अभियान फिल्म बिरादरी के खिलाफ खड़ा किया. यह सच्चाई पर कम, कही-सुनी बातों पर ज्यादा आधारित था. सुशांत सिंह को कथित न्याय दिलाने की बहस को आगे बढ़ाते हुए मीडिया के एक हिस्से ने उसे पूरी फिल्म इंडस्ट्री के खिलाफ एक बदनीयती भरे अभियान में तब्दील कर दिया. पूरे बॉलीवुड को नशेड़ी घोषित किया जाने लगा. ये सारे आरोप याचिका में लगाया गया है, जिसमें रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ का नाम हैं और साथ में अर्णब गोस्वामी, प्रदीप भंडारी, राहुल शिवशंकर और नाविका कुमार का नाम भी याचिका में लिया गया है."
अनु से सवाल पूछते हुए अतुल कहते हैं, "हिंदुस्तान की फिल्म इंडस्ट्री दुनिया में हॉलीवुड के बाद सबसे ज्यादा चर्चित फिल्म इंडस्ट्री है. भारतीय फिल्मों के सितारे दुनिया में हॉलीवुड के बाद सबसे ज्यादा लोकप्रिय और पहचाने जाने वाले चेहरे हैं. उस फिल्म इंडस्ट्री को लेकर जिस तरह का अभियान भारतीय मीडिया के एक हिस्से ने चलाया है, उस गैरजिम्मेदारी पर आपकी प्रतिक्रिया क्या है? क्या यह जरूरी याचिका थी?”
अनु कहती हैं, "जी, ये बात बहुत समझने वाली है, हम इससे से वाक़िफ़ हैं. मीडिया और बॉलीवुड का रिश्ता सहयोगी का रहा है. मीडिया जिसे ज़रूरत है बॉलीवुड की चटपटी खबरों की, टीआरपी, या फिर सब्सक्रिप्शन के आधार पर पाठकों तक पहुंचने की, ये रिश्ता अभी से नहीं हमेशा से रहा है."
अनु आगे कहती हैं, "इसी तरह मीडिया को भी बॉलीवुड की ज़रूरत है. जब कोई बड़ी बुक या फिल्म रिलीज होती है तब ये रिश्ता सामने आता है. हमे समझना होगा कि वो सभी बड़े प्रोड्यूसर जो सरकार की नज़र में अच्छा रहना चाहते है, अगर वो इन चैनलों और पत्रकारों (जिन पर सरकार की दरबारी मीडिया का आरोप लगता है) के खिलाफ एक साथ खड़े होकर अदालत में जाते हैं तो ये साफ है कि वे दुःखी होंगे और जो नुकसान उन्हें हुआ होगा वह इतना ही बड़ा रहा होगा, कि इस हद तक आने की ज़रूरत पड़ गई. जहां पर हम बिल्कुल परवाह नहीं करेंगे कि इसका परिणाम क्या होगा."
मेघनाद को चर्चा में शामिल करते हुए अतुल कहते हैं, "मैंने कुछ रोज़ पहले ऋचा चड्ढा का इंटरव्यू किया था. उस बातचीत में लगा की पूरी फिल्म इंडस्ट्री खुद पर अटैक तथा आइसोलेट महसूस कर रही है. इस साल के शुरुआत में पूरी फिल्म इंडस्ट्री के तमाम नामचीन चेहरों के साथ पीएम मोदी ने फ़ोटो खिंचवाई और कहा फ़िल्म इंडस्ट्री को नेशन बिल्डिंग का काम करना है. फिर देखने को मिलता है कि मीडिया का एक हिस्सा और सोशल मीडिया पर सरकार समर्थित बॉट ट्रोल उसी फ़िल्म इंडस्ट्री पर संगठित तरीके से हमला करते हैं. ये बात सामने आती है कि इस तरह की आईटी सेल के 80 हजार फर्जी अकॉउंट से यह हमला हो रहा है और ट्रेंड करवाया जा रहा है. आप इस विरोधाभास को कैसे देखते हैं."
अतुल के प्रश्न का जवाब देते हुए मेघनाद कहते हैं, "मौजूदा समय की जो मीडिया इंडस्ट्री है वह आसान न्यूज़ रिपोर्टिंग पर विश्वास रखती है. सोशल मीडिया पर जो ख़बरें चलती है उसे चैनल प्राइम टाइम पर चलाते है. लॉकडाउन के बाद जब कंपनियों ने अपने मार्केटिंग बजट में कटौती की, तब रिपब्लिक टीवी ने सुशांत सिंह की आत्महत्या को हत्या बताकर शो करना शुरु कर दिया. उन्होंने करीब तीन महीनों के दौरान करीब 125 शो सुशांत सिंह के ऊपर किया है.”
मेघनाद कहते हैं, “इस दौरान लॉकडाउन था, कोरोना वायरस का मामला था, भारत चीन सीमा तनाव का मुद्दा था, लेकिन बाकी चैनलों ने भी रिपब्लिक टीवी के रास्ते पर चलते हुए सुशांत सिंह राजपूत के मामले को ही दिखाया. इसके बाद चैनलो में टीआरपी के लड़ाई शुरु हो गई और फिर एक दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरु हो गया.”
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