जेपी नड्डा की चुनावी रैली में सोशल डिस्टेन्सिंग, मास्क समेत एहतियातों की उड़ी धज्जियां

महामारी के बीच भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की पहली चुनावी रैली का जायजा.

WrittenBy:बसंत कुमार
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कोरोना महामारी के बीच पहली चुनावी रैली बिहार के गया जिले में हुई जहां भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा पहुंचे. दावा यह किया जा रहा था कि रैली में कोरोना बीमारी से बचाव के लिए तमाम सावधानियों का पालन किया जाएगा, लेकिन ऐसा होता नहीं दिखा.

रैली के दौरान लोग न सिर्फ कोरोना महामारी से बचाव के नियमों का उल्लंघन कर रहे थे बल्कि लोग कोरोना को लेकर अजीबोगरीब तर्क भी दे रहे थे.

बिहार विधानसभा चुनाव की पहली रैली रविवार को गया में हुई. यहां शुरुआत में लोगों का तापमान मापा गया और उन्हें मास्क दिया गया, लेकिन बाद में यह सब बंद हो गया. सभा में बोलते हुए बीजेपी अध्यक्ष ने महामारी से बचाव का ध्यान रखने के लिए लोगों को धन्यवाद जरूर दिया, लेकिन शायद उन्होंने ध्यान से देखा नहीं कि रैली में लोग करीब-करीब बैठे हुए थे. तमाम लोगों ने मास्क तक नहीं लगाए थे.

यहां हमारी मुलाकात कई कार्यकर्ताओं और नेताओं से हुई उन्होंने साफ कहा कि महामारी से बचाव की कोशिश तो हमने की थी, लेकिन भीड़ ज्यादा आने के कारण हम असफल रहे.

बिहार में अब तक कोरोना के एक लाख 97 हज़ार मामले सामने आ चुके है जहां करीब एक हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है. अगर गया शहर की बात करें तो यहां कोरोना के छह हज़ार के करीब मामले आए है. जिस रोज चुनावी रैली हो रही थी उसके एक रोज पहले ही यहां 29 कोरोना के मामले सामने आए थे.

हमने पाया कि लोगों में कोरोना को लेकर कई तरह की भ्रांतियां भी थी. मसलन एक व्यक्ति ने कहा कि आज तक मैंने किसी को कोरोना से मरते हुए नहीं देखा है. जब तक मैं अपने आंख से नहीं देख लेता तब तक नहीं मानूंगा की कोरोना से किसी की मौत हुई है. वहीं एक एक महिला ने कहा कि कोरोना से उनकी ही मौत हुई जिनका कर्म ख़राब था.

कोई बिहार सरकार ने नाराज़ तो कोई खुश दिखा

लॉकडाउन के बाद बिहार सरकार पर कई तरह के सवाल खड़े हुए. नीतीश कुमार नहीं चाहते थे कि मजदूर दूसरे प्रदेशों से बिहार लौटे हैं, लेकिन मजदूर पैदल, साइकिल से या किसी और माध्यम से जैसे तैसे अपने घर पहुंचने लगे. अंत में नीतीश सरकार को मजदूरों को लाने का फैसला करना पड़ा.

यहां कोरोना से बीमार लोगों को समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण लोग बेहाल नज़र आए. अस्पतालों की ऐसी तस्वीरें सामने आई जो स्वास्थ्य व्यवस्था की हकीक़त बता रही थी. हमने यहां लोगों से यह भी जानने की कोशिश की कि नीतीश कुमार ने कोरोना के समय क्या बेहतर तैयारी की थी तो कुछ लोगों ने सरकार की तारीफ की वहीं कुछ लोग नाराज़ नज़र आए.

लेकिन सबसे बड़ा सवाल है की कोरोना के दौर में जब तमाम धार्मिक आयोजनों पर कई तरह के प्रतिबंध जारी हैं तब दूसरी तरफ चुनावी सभाएं और प्रचार की अनुमति है.

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