इस भ्रम में न रहें कि मीडिया में सब टीआरपी के अनावश्यक बोझ के कारण होता है. कुछ आवश्यक दबाव के कारण भी होता है.
ये सिस्टम ही फ़्राड है. और इस फ़्राड के सभी लाभार्थी रहे हैं. रेटिंग का फ़्राड सिर्फ़ एक तरीक़े से नहीं किया जाता है. यह काम सिर्फ़ अकेले चैनल नहीं करता है बल्कि इस खेल में सत्ता भी मदद करती है. मुंबई पुलिस की कार्रवाई से मुझे कुछ नया जानने को नहीं मिला यह सारी बातें हम कानों सुनी जानते हैं. अर्णब गोस्वामी का नाम आते ही बाक़ी गोदी मीडिया ऐसे एकजुट हो गया जैसे उनके वहाँ पत्रकारिता होती हो. अर्णब के चैनल पर एफआईआर से उछलने वाले चैनल भी कम गोदी मीडिया और गंध नहीं है. आज की तारीख़ में ज़्यादातर चैनल रिपब्लिक हो चुके हैं और भी रिपब्लिक होना चाहते हैं. आप ज़रा सा याद करें कि उन चैनलों पर क्या दिखाया जाता रहा है तो समझने में देर नहीं लगेगी. इन गंध चैनलों को एक महागंध चैनलों ने मात दे दी है इसलिए वे अर्णब पर टूट पड़े हैं जबकि हैं सब एक. गोदी मीडिया. आप इस खेल में मज़ा लेने से बचिए.
टीआरपी का फ़्राड कई तरीक़े से होता है. आपने जाना कि जिन घरों में टीआरपी का मीटर लगा था वहाँ पैसे दिए जाते थे ताकि वे कथित रूप से रिपब्लिक चैनल चलता हुआ छोड़ दें. देखें या न देखें. यहाँ पर मुंबई पुलिस और बार्क को बताना चाहिए कि अर्णब के चैनल की रेटिंग मुंबई से कितनी मिलती है ? क्या ऐसा दूसरे शहरों में भी होता था? अकेले मुंबई की रेटिंग को माइनस कर देने से उन शहरों में क्या अर्णब की रेटिंग कम हुआ करती थी? टीआरपी की दुकान चलाने वाली संस्था बार्क को कुछ और तथ्य सामने रखने चाहिए?
टीआरपी का एक फ़्राड यह भी होता है कि आप मीटर किन घरों या इलाक़े में लगाते हैं. मान लें आप किसी कट्टर समर्थक के घर मीटर लगा दें. आप उसे पैसा दें या न दें वो देखेगा नहीं चैनल जिन पर सांप्रदायिक प्रसारण होता है. आज कल किसी व्यक्ति की सामाजिक प्रोफ़ाइल जानने में दो मिनट लगता है. क्या यह मीटर दलित आदिवासी और मुस्लिम घरों में लगे हैं ? क्या ये मीटर सिर्फ़ भाजपा समर्थकों के घर लगे हैं ? हम कैसे मान लें कि टीआरपी का मीटर सिर्फ़ एक सामान्य दर्शक के घर में लगा है. सवाल ये कीजिए.
रेटिंग का फ़्राड केबल से होता है. मान लीजिए मुंबई की धारावी में 200 मीटर लगे हैं. वहाँ का केबल वाला प्राइम टाइम नहीं दिखाएगा तो शो की रेटिंग कम होगी. यूपी के सबसे बड़े केबल वाले से कहा जाएगा कि एनडीटीवी इंडिया नौ बजे बंद कर दो तो चैनल की रेटिंग ज़ीरो हो जाएगी. इस खेल में प्रशासन भी शामिल होता है और केबल वाले भी. हर घर में मीटर नहीं होता है. जिन घरों में मीटर नहीं होता है उन घरों में दर्शन दिनभर एनडीटीवी इंडिया देखे तो भी रेटिंग नहीं आएगी. शायद पूरे देश में 50,000 से भी कम मीटर हैं. बार्क से आप सही संख्या पूछ सकते हैं. यह भी एक फ़्राड है.
एक फ़्राड है रातों रात चैनल को किसी दूसरे नंबर पर शिफ़्ट कर दिया जाता है. आपको पता नहीं चलेगा कि चैनल कहाँ गया. कभी वीडियो तो कभी आवाज़ नहीं आएगी. मेरे केस में इस राजनीतिक दबाव का नाम तकनीकी ख़राबी है. बिज़नेस का लोचा है! समझे. जब आप केबल ऑन करेंगे तो तीस सेकंड तक रिपब्लिक ही दिखेगा या इस तरह का कोई और चैनल. होटलों में भी किसी चैनल को फ़िक्स किया जाता है.
इस खेल में कई चैनल होते हैं. इसलिए अर्णब पर सब हमला कर रहे हैं ताकि उनका खेल चलता रहे. नया खिलाड़ी चला जाए.
टीआरपी मीटर का सिस्टम आज ख़राब नहीं हुआ. इस मसले को हड़बड़ में न समझें. ऐसा न हो कि टी आर पी कराने वाली संस्था बार्क अपनी साख बढ़ा ले कि उसी ने चोरी पकड़ी और पुलिस ने कार्रवाई की. यह चोरी न भी पकड़ी जाती तब भी इस सिस्टम में बहुत कमियाँ हैं. इस भ्रम में न रहें कि मीडिया में सब टी आर पी के अनावश्यक बोझ के कारण होता है. कुछ आवश्यक दबाव के कारण भी होता है.
The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.
ContributeGeneral elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?