क्या वास्तव में वैकल्पिक चिकित्सा से शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को मज़बूत किया जा सकता हैं ?

योग गुरु बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद ने कोविड -19 के लिए कोरोनिल नामक एक आयुर्वेदिक उपचार किट को इलाज के रूप में लॉन्च किया लेकिन जब इसकी समीक्षा की तो पतंजलि आयुर्वेद के सारे दावे औंधे मुंह गिर गए.

WrittenBy:डॉ यूसुफ़ अख़्तर
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(कोरोनोवायरस महामारी फैलने के बाद से ही वैकल्पिक चिकित्सा, जैसे, औषधीय पौधों, होम्योपैथिक, इत्यादि की ग़लत सूचना और फर्जी उपचारों के दावों की मीडिया और सोशल मीडिया में बाढ़ आ गयी. पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा एक आवर्ती विषय है. इसी तरह से ये नीम-हकीम वैद्याचार्य इन संदिग्ध उपचार प्रणालियों से शर्तिया इलाज का दवा करते आएं हैं. ये सब लंबे समय से "प्रतिरक्षा तंत्र को ‘फ़र्ज़ी बूस्ट’ कर रहे हैं.

वास्तव में, यह सिरफिरा ख्याल इतना विशिष्ट है, कि प्रतिरक्षा प्रणाली को बूस्ट (मज़बूत) करने का दावा नीम-हकीम वैद्याचार्यों के लिए एक ध्वजवाहक नारे जैसा बन गया है. यह लगभग हमेशा, हमारे शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र के बारे में ग़लतफहमी को फैलाते हैं, और इसी लिए वैज्ञानिक साक्ष्यों के प्रकाश में लोगों को पता चलना चाहिए कि प्रतिरक्षा तंत्र क्या है और यह कैसे काम करता है. वैज्ञानिक तथ्यों से ये बात साबित है, कि कई मामलों में तो प्रतिरक्षा तंत्र को बूस्ट करने की ऐसी फ़र्ज़ी कोशिशें उल्टा हानिकारक साबित होती हैं. इस विचार के प्रस्तावक, वास्तव में ये कभी नहीं समझाते हैं, कि प्रतिरक्षा तंत्र क्या है. जिसे वे मज़बूत करने का दावा कर रहे हैं और वे ये भी कभी नहीं समझाते हैं कि, आखिर प्रतिरक्षा तंत्र को मज़बूत बनाने की आवश्यकता क्यों होगी या वास्तव में उनका फार्मूला कैसे काम करेगा.

हमारा प्रतिरक्षा तंत्र एक गुलाब के पौधे या अन्य कोई बेल वाली झाड़ी की तरह नहीं है, जो बिना सहारे के गुरुत्वाकर्षण के कारण ज़मीन पर गिर जायेगा. यदि आप एक सामान्य स्वस्थ व्यक्ति हैं, जिसका आहार आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है, तो आपका प्रतिरक्षा तंत्र अपने कार्यों को अच्छी तरह से करने में सक्षम होगा. इसके अलावा ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे आप इस्तेमाल करें और ये बेहतर काम करने लगे. संक्रामक रोग विशेषज्ञ मार्क क्रिस्लीप ने साइंस-आधारित मेडिसिन ब्लॉग पर लिखा है, "प्रतिरक्षा तंत्र एक मांसपेशी नहीं है, एक रॉकेट नहीं है, एक पंप नहीं है, एक गुब्बारा नहीं है, न ही कुछ और जो फुलाया, विस्तारित या अधिक शक्ति के साथ समताप मंडल (स्ट्रेटोस्फियर) में लॉन्च किया जा सकता हो.”

हम वास्तव में अपनी प्रतिरक्षा तंत्र को कैसे बढ़ा सकते हैं. क्या हैं, इसके वैज्ञानिक तथ्य, जिनका सभी अस्पष्ट, निरर्थक,अज्ञानी दावों से कोई लेना-देना नहीं है. इसके लिए पहले, कुछ पृष्ठभूमि जानकारी क्रम में चाहिए जो निम्नलिखित हैं.

प्रतिरक्षा प्रणाली का बुनियादी ढांचा

प्रतिरक्षा प्रणाली आपस में जुड़ी जैविक संरचनाओं और प्रक्रियाओं का एक विस्मयकारी और बेहद जटिल मकड़जाल है. इन सभी को एक साथ समन्वय में काम करना होता है, ये घटक हमें बीमारियों से बचाते हैं. वास्तव में हमारे शरीर में दो तरह की प्रतिरक्षा प्रणालियां काम करती हैं. जन्मजात (इननेट) और अनुकूली (अडाप्टिव), दोनों को शरीर की अपनी कोशिकाओं और बाहर से आने वाले आक्रमणकारी रोगाणुओं के बीच अंतर करना आता है. इससे परे, निष्क्रिय प्रतिरक्षा भी है, जो कि अपनी मां के दूध में कोलोस्ट्रम (प्रथमस्तन्य) द्वारा एक नवजात शिशु को प्रदान की जाती है या एंटीबॉडी-समृद्ध सीरम के इंजेक्शन से भी दी जाती है, जैसे कोविड-19 की प्लाज़्मा थेरेपी. निष्क्रिय प्रतिरक्षा उन लोगों के लिए एक वरदान है, जो स्वयं एंटीबॉडी उत्पादन करने में सक्षम नहीं हैं.

जन्मजात प्रतिरक्षा प्रणाली

भौतिक बाधाएं: शारीरिक प्रति रक्षा का पहला स्तर भौतिक बाधाओं, जैसे कि त्वचा द्वारा प्रदान किया जाता है, कुछ और गैर- रासायनिक बाधाओं द्वारा संवर्धित किया जाता है. बलगम श्वसन पथ में रोगाणुओं को फंसाता है, और पपनियां (सिलिया) की तरंगें उन्हें दूर फेंक देतीं हैं. बाह्य-जीवाणुं खांसी और छींकने, पसीने, आंसू और मूत्र के माध्यम से मारे जाते हैं. जीवाणुरोधी रसायन त्वचा, लार, आंसू, स्तन के दूध और योनि में पाए जाते हैं. पेट में हमारी आंतें गैस्ट्रिक एसिड से रोगाणुओं को मार देतीं है. आंतों में पाए जाने वाले लाभकारी जीवाणु रोगजनक प्रजातियों को वहां बसने नहीं देते हैं. यहां तक ​​कि वीर्य डिफेंसिंन प्रोटीन और जस्ता (ज़िंक) धातु की मदद से रोगाणुओं को मार देता है.

पैटर्न को पहचानने वाली कोशिकायें : इनमें मैक्रोफेज, डेंड्रिटिक कोशिकाएं, मास्ट कोशिकाएं, हिस्टियोसाइट्स, लैंगरहैंस कोशिकाएं और कुफर कोशिकाएं शामिल हैं. इन सब के ऊपरी कवच पर ऐसे रिसेप्टर्स पाए जाते हैं जो उन अणुओं के बीच अंतर कर सकते हैं, जो हमारे शरीर से संबंधित हैं और जो नहीं हैं. ये रिसेप्टर ही सूजन की प्रक्रिया (इंफ्लेमेटोरी रिस्पांस) को शुरू करते हैं, जो श्वेत रक्त कोशिकाओं और दूरी फागोसाइट्स कोशिकाओं को संक्रमण के स्थान पर आकर्षित करता हैं फिर ये कोशिकाएं वहां पहुंच कर रोगजनकों को निगलती और नष्ट करती हैं. शरीर साइटोकाइन्स नामक प्रोटीन का उत्पादन करता है जो

टीएनएफ़ (TNF), एचएमजीबी-1(HMGB1), आईएल-1(IL-1) और इंटरफेरॉन के साथ प्रतिरक्षा को उत्प्रेरित करने में मध्यस्थता करतें हैं. उत्प्रेणना प्रतिक्रिया को बढ़ाने के लिए पूरक प्रणाली (कॉम्प्लीमेंट सिस्टम) भी सक्रिय हो जाती है. इसमें तीस से अधिक छोटे प्रोटीन और प्रोटीन अंश होते हैं जो एक सुनियोजित बहु-चरण प्रक्रिया में एक साथ काम करते हैं. इसी तरह की एक और सुनियोजित बहु-चरण प्रतिक्रिया लेक्टिन मार्ग (पाथवे) है. और फिर कम से कम दस टोल-जैसे रिसेप्टर्स (टीएलआर), साथ ही इनफ़्लेमोसोम्स और साइटोसोम्स हैं. प्राकृतिक किलर (नेचुरल किलर या एनके) कोशिकाओं जैसे जन्मजात लिम्फोइड कोशिकायें भी इस तंत्र का हिस्सा हैं.

मैंने पहले ही गिनना छोड़ दिया, और ये अभी केवल जन्मजात प्रतिरक्षा के भाग है. अब हम शर्तिया कह सकते हैं कि प्रतिरक्षा प्रणाली कितनी जटिल है, और नीम-हकीम वैद्याचार्य द्वारा प्रतिपादित एक साधारण हस्तक्षेप के प्रभावी होने की संभावना क्यों नहीं है? लेकिन रुकिए, हमारे प्रतिरक्षा तंत्र में अभी और भी अस्त्र-शस्त्र हैं.

अनुकूली प्रतिरक्षा तंत्र

जन्मजात प्रणाली मनुष्यों समेत सभी जीवों में मिलती-जुलती पायी जाती है, लेकिन अनुकूली प्रतिरक्षा तंत्र जैव-विकास के इतिहास में बाद के समय में विकसित हुआ है, जो शरीर को विशिष्ट रोगाणुओं जिनका वो पहले सामना कर चुके हैं, को याद रखने और प्रतिक्रिया देने में माहिर होता है. ये तंत्र केवल कशेरुकी जंतुओं में पाया जाता है. टीकाकरण की सफलता इसी स्मृति पर निर्भर करती है. रोगाणुओं पर पाए जाने वाले एंटीजन को एक विशेष प्रकार की श्वेत रक्त कोशिका द्वारा पहचाना जाता है जिसे लिम्फोसाइट्स कहते हैं. उनकी ऊपरी सतह पर रिसेप्टर होते हैं, जो एक रोगाणुं के छोटे टुकड़ों (एंटीजन) से जुड़ जाते हैं, और फिर उन्हें अन्य कोशिकाओं की सतह पर पाए जाने वाले मेजर हिस्टोकोम्पैटिबिलिटी कॉम्प्लेक्स अणुओं से मिलाते हैं जो अंततः शरीर में पाए जाने वाले सभी प्रकार के अणुओं और बाहरी रोगाणुओं पर पाए जाने वाले अणुओं (एंटीजन) में विभेद करते हैं.

लिम्फोसाइट्स को दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है: बी-कोशिकाएं और टी-कोशिकाएं. टी-कोशिकाओं को हत्यारी टी- कोशिकाओं, सहायक-टी कोशिकाओं और नियामक टी-कोशिकाओं में विभाजित किया गया है. सक्रिय होने पर ये टी-कोशिकाएं ऐसे रसायनों (साइटोटोक्सिन) का उत्पादन करती हैं, जो शरीर के बाहर से आये रोगाणुओं को मार देते हैं. और इसके बाद एक और विभिन्न रिसेप्टर्स वाली गामा-डेल्टा टी-कोशिकाएं भी होती हैं. बी-कोशिकाएं एंटीजन को प्रस्तुत करती हैं, और एंटीबॉडी का स्राव करती हैं. उनकी सक्रियता इस तंत्र में बनने वाले रसायनों की एक श्रृंखला से बढ़ाई और घटाई जा सकती है. बी-कोशिकाएं भी कई प्रकार की होती हैं: प्लास्माबलास्ट्स, प्लाज़्मा कोशिकाएं, मेमोरी बी-कोशिकाएं, लिम्फोप्लाज़मासिसटॉइड-कोशिकाएं, बी-2 कोशिकाएं, बी-1 कोशिकाएं और रेग्युलेटरी बी-कोशिकाएं.

एंटीबॉडी प्रोटीन की दो भारी श्रृंखलाओं और दो हल्की श्रृंखलाओं से मिल कर बनी होती हैं, जिसमें एक एंटीजन से टकराने के लिए विशिष्ट भाग होता है. एंटीबॉडी के पांच प्रमुख प्रकार हैं: आईजीजी (IgG), आईजीए (IgA), आईजीएम (IgM), आईजीई (IgE) और आईजीडी (IgD). ज़रूरत पड़ने पर हमारे प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा, बहुत कम समय में लाखों एंटीबॉडी अणुओं का उत्पादन किया जा सकता है. क्या आप अब तक अभिभूत हो चुके हैं? या सटपटा गए हैं? जैसा कि आप देख सकते हैं, प्रतिरक्षा प्रणाली पूरी तरह से जटिलता का एक उलझा हुआ मकड़जाल है. यहां सिर्फ बहुत प्रमुख घटकों को सूचीबद्ध किया गया है, जो मिलकर प्रतिरक्षा तंत्र को बनाते हैं, और ऐसे और भी हैं जिनका यहां उल्लेख नहीं किया गया है; यह सूची संपूर्ण नहीं है. कोई अनुसंधान यह दिखा सकता है कि एक हस्तक्षेप इन घटकों में से एक या अधिक की मात्रा में वृद्धि या कमीं कर सकता है, लेकिन किसी भी शोध ने यह नहीं

दिखाया है, कि इस तरह के अधकचरे फॉर्मूले से युक्त हस्तक्षेपों (वैकल्पिक चिकित्सीय) के परिणामस्वरूप संक्रमण के कम होने जैसे क्लिनिकल परिणाम हासिल हुए हों. जब कोई तंत्र इतना जटिल है, तो उस मकड़जाल में एक एकल धागे का हेरफेर करना कोई समझदारी नहीं. ज़्यादातर ऐसे हस्तक्षेपों का इस अति जटिल तंत्र के समग्र कामकाज पर या तो कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ता या अप्रत्याशित प्रभाव पड़ता है जो फायदे से अधिक नुकसान देता है.

प्रतिरक्षा तंत्र के विकार

प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में कमी या अधिकता हो सकती है. अमूमन प्रतिरक्षा की कमी गंभीर कुपोषण के कारण होती है, आनुवंशिक विकार जैसे कि सीवियर कंबाइंड इम्यूनो डेफिशियेंसी (एससीआईडी) के साथ-साथ एचआईवी / एड्स संक्रमण, या इम्यूनोसप्रेसेरिव दवाइयों के इस्तेमाल से भी इसकी कमीं हो सकती है। कुछ लोगों में ज़रुरत से अधिक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया भी हो सकती है, जैसे :

● ऑटोइम्यून विकार जो शरीर की स्वयं की कोशिकाओं पर ही हमला करते हैं, जैसे कि गठिया (रुमेटाइड अर्थराइटिस) और टाइप-1 मधुमेह.

● एलर्जी और अतिसंवेदनशीलता संबंधी विकार (बहती नाक से लेकर छींकने और बुख़ार आने तक से लेकर संभावित घातक एनाफिलेक्टिक प्रतिक्रियाएं जैसे मधुमक्खी/बर्रैया के डंक से होने वाली स्थिति तक).

● सूजन से होने वाले रोग (इंफ्लामैटोरी बीमारियां) जैसे सीलिएक रोग, सूजन आंत्र रोग, अस्थमा, अंग प्रत्यारोपण अस्वीकृति, इत्यादि.

● क्रोनिक संक्रमण और सूजन से संबंधित कैंसर, जैसे हेपेटाइटिस-बी और ह्यूमन पैपिलोमावायरस (एचपीवी) के संक्रमण से होने वाला सर्वाइकल कैंसर.

सूजन (इंफ्लेमेटरी रिस्पांस): शरीर के लिए अच्छा और बुरा दोनों

जब आप निमोनिया होने पर खांसते हैं, ठंड लग जाने से छींकते हैं, फोड़ा-फुंसी निकलने पर दर्द का अनुभव करते हैं, या शरीर में बुखार का अनुभव करते हैं, तो यह रोगाणुं-सूक्ष्मजीव अकेला ऐसा करने में सक्षम नहीं है, जो उन लक्षणों का कारण बनता है; यह आपके शरीर की अपनी प्रतिक्रिया है - उस परजीवी से निपटने के लिए प्रतिरक्षा तंत्र का प्रयास. हमें शरीर में सूजन वाली प्रतिक्रिया की आवश्यकता है; यह रोग का उपचार शुरू करता है और बीमारियों और चोटों से हमें उबारता है. लेकिन इससे बहुत नुकसान भी होता है। सूजन को होना, एथेरोस्क्लेरोसिस, रक्त के थक्कों के जमने, फुफ्फुसीय एम्बोलस (फेफड़ों की धमनियों का ब्लॉक होना), दिल के दौरे, स्ट्रोक और अन्य समस्याओं का कारण है. जैसा कि मार्क क्रिस्लिप ने लिखा, "यदि कुछ केमिकल उत्पाद (प्रतिरक्षा तंत्र के) आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ा रहे हैं, तो यह वास्तव में आपकी उत्प्रेरक प्रतिक्रिया (प्रतिरक्षा तंत्र को सक्रिय कर रहें हैं." और अगर ये आवश्यकता से अधिक बढ़ जाएं तो एक बुरी बात हो सकती है. प्रतिरक्षा प्रणाली को ज़रूरत से ज़्यादा उत्प्रेणा देने से मृत्यु तक हो सकती है.

प्रतिरक्षा तंत्र को ‘बूस्ट’ करने वाले नकली और खोखले दावे

इन दावों में से कुछ के प्रस्तावकों का कहना है, कि उनका अधकचरा ज्ञान वाला फार्मूला प्रतिरक्षा तंत्र को मज़बूत करेगा, लेकिन वो ऐसा कर नहीं पाता. सिर्फ व्यायाम, संतुलित आहार और पर्याप्त नींद जैसी चीजें हैं, जो पूरे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अच्छी सलाह हो सकती है. यदि प्रतिरक्षा प्रणाली पहले से ही पर्याप्त रूप से काम कर रही है, तो वे इसे और बेहतर नहीं बना सकते हैं. लगभग सभी वैकल्पिक स्वास्थ्य चिकित्सकों का दावा है, कि उनके उपचार से प्रतिरक्षा तंत्र में सुधार होगा. पश्चिमी दुनिया में, चीरोप्रैक्टिसर्स (हड्डी बैठाने वाले) का दावा है, कि रीढ़ की हड्डी को समायोजित करने का काम करेगा. एक्यूपंक्चर चिकित्सकों की कल्पना है, कि वे अस्तित्वहीन एक्यू-पॉइंट्स में सुइयों को घुसा कर इसे पूरा कर सकते हैं, ताकि आपके शरीर में समान रूप से ‘क्यूआई’ (एक तरह का काल्पनिक आवेश) के प्रवाह को सुचारु किया जा सके. होम्योपैथी के पास बहुत कुछ है: उनके शीर्ष तीन "इम्यूनोथेरेपी" उपचार एलियम सेपा, जेल्सीमियम और ऑसिलोकोकिनम हैं. ओस्सिलोकोकिनम तो एक मज़ाक लगता है. यदि हम इसके इतिहास में जाएं तो यह एक आदमी का भ्रम था जो कभी अस्तित्व में था ही नहीं. होम्योपैथी के पहले दो सिद्धांत, एक ये कि स्वस्थ आदमी के किसी दवा के खाने पर जिस तरह के लक्षण उत्पन्न होते हैं, यदि किसी बीमरी में वैसे ही लक्षण हों, तो वो दवा उस बीमारी को सही करने में सक्षम होगी. और दूसरा सिद्धांत कि दवा को जितना ज़्यादा द्रव मिला कर पतला किया जाये उसकी ताकत उतनी ही बढ़ जाएगी, मानो एक चम्मच दवा अगर हिन्द महासागर में मिला दी जाये तो ये बिलकुल संजीवनी बूटी बन जाएगी। ये सब बिल्कुल ही कपोल-कल्पित और अवैज्ञानिक सिद्धांत हैं जिनको कभी भी किसी भी प्रयोग से सिद्ध नहीं किया जा सका.

डॉ सीड्स कंपनी हल्दी पाउडर को इस दावे के साथ बेच रही है, कि यह प्रतिरक्षा तंत्र को बढ़ाता है. सबूत कहां है? हल्दी के होने वाले लाभ को दशकों पूर्व इसमें मौजूद केमिकल, करक्यूमिन की वजह से बताया गया था. लेकिन, हजारों शोध पत्रों और 120 क्लिनिकल परीक्षण के परिणाम उपलब्ध हैं, फिर भी करक्यूमिन का दावा पूरी तरह से सिद्ध होता नहीं दिखता. रासायनिक सबूतों की एक समीक्षा में, वैज्ञानिक लिखते हैं कि करक्यूमिन एक "अस्थिर, प्रतिक्रियाशील, गैर-जैवउपलब्ध यौगिक है, और इसलिए, ये किसी भी नयी दवा को विकसित करने के लिए एक अत्यधिक अनुचित पदार्थ है."

इसी तरह से योग गुरु बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद ने कोविड -19 के लिए कोरोनिल नामक एक आयुर्वेदिक उपचार किट को इलाज के रूप में लॉन्च किया. भारतीय मीडिया ने कोरोनोवायरस उपचार में इसे सफलता के रूप में संदर्भित करते हुए ‘किट’ पर शो चलाया. बाबा रामदेव, ने कहा कि इस किट को "क्लिनिकल रूप से नियंत्रित परीक्षण का उपयोग करके विकसित किया गया है" और दावा किया कि यह "कोविड -19 के लिए 100% इलाज है." ‘कोरोनिल’ संबंधित दस्तावेज़ों और पतंजलि आयुर्वेद द्वारा दी गयी जानकारियों और आंकड़ों के आधार पर जब सेंट जूडस चिल्ड्रन रिसर्च हॉस्पिटल, मेम्फिस, संयुक्त राज्य अमेरिका के रोगाणुं एवं प्रतिरक्षा विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिक डॉ. संदीप कुमार धंदा ने इसकी समीक्षा की तो पतंजलि आयुर्वेद के सारे दावे औंधे मुंह गिर गए. इसके बाद, भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने एक बयान जारी किया कि पतंजलि आयुर्वेद को प्रभावकारिता के प्रमाण के अभाव के कारण कोविड -19 के इलाज के रूप में दवा का विज्ञापन नहीं करना चाहिए. देश की कई अदालतों में पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ भ्रामक प्रचार के लिए मुक़दमे भी दायर हुए. इसके बाद उन्होंने अपने शर्तिया इलाज के अपने सारे दावे वापिस ले लिए और कोरोनिल किट को प्रतिरक्षा तंत्र को बूस्ट करने वाला बता कर बेचना प्रारम्भ कर दिया, ऊपर की गयी व्याख्या से स्पष्ट है कि ये भी तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है.

हालांकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि औषधीय पौधों से प्राप्त अर्कों में कोई चिकत्सीय गुण न होते हों, लेकिन वैज्ञानिक तथ्यों केनअनुसार इनका काम करने का तरीका कुछ और है, जो कि इन नीम-हकीम वैद्याचारों द्वारा किये जाने वाले दावों से बिलकुलनभिन्न है. असल में हमारे शरीर की कोशिकाओं में एक साथ हज़ारों की संख्या में नियोजित ढंग से जैव-रासायनिक प्रतिक्रियाएं चलती रहती हैं. इन्ही प्रतिक्रियाों के फलस्वरूप हज़ारों की संख्या में रसायन बनते और टूटते हैं. इन्हीं में शरीर में कुछ बुरे रसायन जिन्हे ‘टोक्सिन’ (विष) कहते हैं, वो भी बनते हैं, ऐसे विष-पदार्थ, ख़राब जीवन शैली, बीमारियां, संक्रमण, अवसाद इत्यादि होने पर शरीर में बहुत अधिक बनने लगते हैं. ये पदार्थ हमारे शरीर को भयंकर नुक्सान पहुंचाते हैं. औषधीय पौधों के अर्कों में बहुत सारे ऐसे पदार्थ पाए जाते हैं जो इन विष-पदार्थों, ख़ास करके इनके कुछ महत्वपूर्ण प्रकार, जिन्हें हम ऑक्सीडेटिव, नाइट्रोसेटिव और फ्री रेडिकल्स को सोख लेने और शरीर से बाहर निकाल फेंकने की क्षमता रखते हैं. अर्कों में मिलने वाले इन पदार्थों में इस क्षमता के कारणों में से एक, उनमें पाए जाने वाली बेंज़ीन-चक्र की बहुतायत है.

प्रतिरक्षा प्रणाली को ‘बूस्ट’ करने वाला वाक्य उन लोगों के लिए अर्थहीन है, जो वास्तव में प्रतिरक्षा प्रणाली को समझते हैं. नीम- हकीम वैद्याचार्यों के लिए तो यह केवल ग्राहकों को धोखा देने में मदद करने के लिए उपयोगी एक जुमला भर है. यहां पर नक़्क़ालों से सावधान वाला सिद्धांत लागू होता हैं.

वास्तविक प्रतिरक्षा बूस्टर क्या हो सकता है

वैज्ञानिक आधार पर सिर्फ एक तरीका है, जिससे आप वास्तव में अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को कृत्रिम रूप से बढ़ा सकते हैं: और वो है टीककरण. ये विशिष्ट रोगों को पहचानने और उनसे लड़ने के लिए आपके प्रतिरक्षा तंत्र को अभ्यास कराते हैं. टीके सामान्यीकृत सूजन का कारण नहीं बनते हैं. वे अनुकूली प्रतिरक्षा तंत्र के शस्त्रागार को अधिक हथियारों से लैस करते हैं. यदि आप उस विशिष्ट संक्रामक जीवाणुं (जिसका टीका लिया था) से फिर से सामना करते हैं, तो वे बड़ी संख्या में एंटीबॉडी का उत्पादन करने के लिए शरीर को पहले से प्रशिक्षित रखते हैं. कई टीके शरीर की प्रतिरक्षा तंत्र को अभिभूत नहीं करते हैं; वे सिर्फ इसका कुशल उपयोग करते हैं. अंतिम सत्य : टीकाकरण के अलावा "प्रतिरक्षा प्रणाली को बूस्ट करने का कोई अन्य कृत्रिम तरीका नहीं हैं.

(लेखक बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर विश्विद्यालय, (केंद्रीय विश्विद्यालय), लखनऊ, में बायोटेक्नोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.)

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