सरकार के “तथाकथित किसान हितैषी कानूनों” से खुद “किसान” नाराज

"कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग आने से बड़े किसानों को तो फायदा हो सकता है लेकिन छोटे किसान बड़े उद्योगपतियों के चंगुल में फंस जाएंगे."

Article image

नए कृषि बिलों पर हुए विवाद और सड़क से संसद तक जबरदस्त विरोध के बीच रविवार 27 सितम्बर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस बिल पर मुहर लगा दी. इसके बाद अब ये कानून बन गए हैं. ये बिल, किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 हैं.

इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से कृषि सुधार के बिल बताए जा रहे इन तीन में से दो विधेयक 20 सितम्बर को राज्यसभा में विपक्ष के भारी विरोध के बीच ध्वनिमत से पारित हो गए थे. संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद से ही इनका जबरदस्त विरोध देखने को मिल रहा था. 25 सितम्बर को किसान संगठनों ने देशभर में चक्का जाम किया था जिसका पूरे देश में भारी असर हुआ. इन विधेयकों के ख़िलाफ सबसे व्यापक प्रदर्शन पंजाब और हरियाणा में हो रहे हैं जो आज भी जारी हैं.

विपक्षी दलों ने जहां इन्हें काला कानून बताया है वहीं सरकार को भी इस कानून की कीमत अपने सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी शिरोमणी अकाली दल को खोकर चुकानी पड़ी. मोदी सरकार में मंत्री रहीं हरसिमरत कौर बादल ने इस बिल के विरोध में केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. साथ ही शिरोमणी अकाली दल ने भी एनडीए से समर्थन वापसी का ऐलान कर दिया.

बिल को लेकर किसानों और विपक्ष का मुख्य आरोप है कि यह विधेयक धीरे- धीरे एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी) यानी मंडियों को खत्म कर देगा और फिर निजी कंपनियां मनमानी कीमत पर किसानों से उनकी उपज खरीदने को आजाद होंगी. मंडी खत्म होने की सूरत में किसानों को फसल का एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल पायेगा. इसी तरह कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग आने से बड़े किसानों को तो फायदा हो सकता है लेकिन छोटे किसान
बड़े उद्योगपतियों के चंगुल में फंस जाएंगे.

हालांकि सरकार और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह चुके हैं कि मंडी व्यवस्था और एमएसपी बरकरार रहेगा. विपक्षी किसानों को गुमराह कर रहे हैं. इस बारे में जानने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री ने हरियाणा के सोनीपत और पानीपत की कुछ मंडियों का दौरा किया और किसान-आढ़ती संबंध, मंडी सिस्टम और नए बिल पर किसानों और आढ़तियों से बातचीत की. गौरतलब है कि देश में लगभग 80 प्रतिशत छोटे किसान हैं. और कानून वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अनुसार, भारत में करीब 58 प्रतिशत जनता कृषि उद्योग पर निर्भर है.

मड़ी में पड़ा अनाज

गन्नौर (सोनीपत)

सबसे पहले हम सोनीपत जिले के जीटी रोड़ स्थित गन्नौर नगरपालिका मंडी पहुंचे. धान का सीजन होने के कारण बड़ी मात्रा में किसान धान की फसल को मंडी में बेचने आ रहे थे. चारों तरफ धान के ढ़ेर लगे आ रहे थे. किसान आढ़तियों के जरिए अपनी फसल बेच रहे थे. यहां हमारी मुलाकात किसान रविंद्र से हुई. जो पास ही रेवली गांव से ट्रैक्टर- ट्रॉली में अपनी धान की फसल बेचने आए थे. रविंद्र, सरकार के इस बिल के खिलाफ हैं. उनका कहना है, “हमारा (किसान) और आढ़ती का मां- बेटी का रिश्ता है, सरकार उसे क्यूं तोड़ना चाहती है. जब भी हमें पैसों की जरूरत होती है, हम सीधे चले आते हैं और अगर मिल पर जाएंगे तो वह 15 दिन का समय देगा फिर पांच दिन के लिए और कहेगा, तब तक हमारा काम कैसे चलेगा. 90 प्रतिशत किसान आढ़ती को बेचना चाहते हैं तो सरकार को क्या परेशानी है. सरकार एमएसपी की गारंटी क्यूं नहीं देती. ये बस पब्लिक को गुमराह कर रहे हैं. ये काला कानून है और काली सरकार है.”

रविंद्र के साथ ही कई अन्य किसान भी थे जो ऑफिसियली तो बात नहीं करना चाहते थे लेकिन सभी सरकार के इस कदम से नाराजगी जता रहे थे. हमारी मुलाकात आकाश आढ़ती से हुई. जिनका 10 साल से ज्यादा से मंड़ी में आढ़त का काम है. आकाश ने बताया, “जिस भी देश में पहले इस तरह के बिल आ चुके हैं, वहां फसलों के रेट आज आधे हो गए हैं. ये किसान और आढ़ती दोनों के लिए गलत है. हम (आढ़ती) तो खत्म हो जाएंगे. दरअसल इस कानून का नुकसान ये है कि पहले तो प्राइवेट वाले अच्छे दाम में खरीद लेंगे लेकिन बाद में रूलाएंगे. जैसे- सेंपल टेस्ट करेंगे, फसल में कमी निकालेंगे. यहां तो सब तरह की खरीद लेते हैं वे नहीं खरीदेंगे.”

डीयू से एमकॉम (ओपन) की पढ़ाई कर रहे आकाश ने बताया, “हरियाणा में मुख्यत: दो फसलों गेंहूं और धान की खेती की जाती है. हमें सरकार से ढ़ाई प्रतिशत कमीशन मिलता है. उसके बदले हम काफी रिस्क भी लेते हैं जैसे- अपनी लेबर की तनख्वाह और फसल का रखरखाव. साथ ही इन्हें हम तीन दिन में पैसा दे देते हैं जबकि हमें सरकार 15- 20 दिन में देती है. दरअसल बाहर तो पहले भी बेच सकते थे लेकिन पहले टैक्स लगता था, अब वह नहीं लगेगा. सरकार ने इस लेन-देन का ठेका पूरे हरियाणा में एचडीएफसी बैंको दिया है जिसमें एक घोटाले की बू आती है.”

गन्नौर मंडी में ही हमारी मुलाकात कुछ और किसानों से हुई जो इस बिल के विरोध में ही नजर आए. उन्होंने भी कहा कि रात-बिरात कोई मुसीबत आ जाए तो आढ़ती ही हमारे काम आते हैं. साथ ही ये भी कहा कि अब कुछ होने वाला नहीं है, क्योंकि जो मोदी ने कर दिया वह वापस नहीं होगा भले ही कितना भी विरोध कर लें. संजय ने भी कहा कि बिना आढ़ती के कुछ नहीं है. पहले पैसा आढ़ती से लेकर ही खेती में लगाते हैं. मंडी के दूसरे छोर पर हमारी मुलाकात राजेश जैन से हुई जिनका रामेश्वर दास, संजय कुमार नाम से इस मंडी में आढ़ती का पुश्तैनी काम है.

43 वर्षीय राजेश जैन ने हमें बताया, इस बिल से जमींदार और आढ़ती दोनों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा. क्योंकि सरकार ने एक तो एमएसपी की गारंटी नहीं दी और दूसरे धान का भाव 1900 रूपए का है लेकिन 1600 के आस-पास बिक रही है, इस बात की गारंटी लेने के लिए कोई तैयार क्यूं नहीं है. जहां तक आढ़ती के शोषण की बात है तो आज तक किसी किसान ने किसी आढ़ती के खिलाफ कोई शिकायत क्यों नहीं की, कि मेरे पैसे आढ़ती ने नहीं दिए. व्यापारी को ये डर है कि उसका काम खत्म हो जाएगा और किसान को एमएसपी खत्म होने का डर लगा हुआ है.”

समालखा मंडी इसके बाद हम जीटीरोड पर ही स्थित समालखा मंडी पहुंचें. यहां भी किसान बड़ी मात्रा में अपना धान बेचने आए थे.

मंडी

पास ही गांव से धान बेचने आए रामकिशन ने हमें बताया, “सरकार एमएसपी की लिख कर गारंटी दे दे, बस. फिर हमें इन बिलों से कोई परेशानी नहीं है. किसान-आढ़ती का मेल खत्म नहीं होना चाहिए. क्योंकि आढ़ती हमारे लिए बैंक से भी बढ़िया है, कभी भी आओ और पैसे ले जाओ. साथ ही सरकार चावल का एक्सपोर्ट भी खोले और अमेरिका को छोड़, इराक से तेल लेना शुरू करे, जिससे की हमारा चावल खाड़ी देशों में एक्सपोर्ट हो जाए.” मोदी के एमएसपी को न हटाने के सवाल पर रामकिशन ने कहा, “पीएम मोदी तो पता नहीं क्या -क्या कहे. लिख कर दो ना. जब से मोदी आए हैं किसान डूब रहा है. 2022 में दोगुनी आय का जो वादा किया था, वह दोगुनी नहीं बल्कि आधी रह जाएगी.” नई अनाज मंडी समालखा के प्रधान रामजीदास ने कहा कि विरोध के बाद हरियाणा सरकार ने मंडी टैक्स चार प्रतिशत से घटाकर तीन प्रतिशत कर दिया है. जिस कारण अब खास फर्क नहीं पड़ेगा.

पानीपत मंडी में घुसते ही हमारी मुलाकात 64 साल के पहल सिंह से हुई जो 40 एकड़ के बड़े किसान और पूर्व सरपंच हैं. वह भी मंडी में धान बेचने आए थे. पहल सिंह ने कहा, “माथे पर चिंता की लकीरें लिए पहल सिंह ने कहा कि बिना आढ़ती के हमारा कुछ नहीं है, आढ़ती का सिस्टम ही सही है. जमींदार तो मारा गया. पिछली साल के मुकाबले धान पर एक हजार रुपए क्विंटल कम दाम है. और इस बिल की कोई जरूरत नहीं थी.”

47 साल के जसमैर सिंह भी यहीं धान बेचने आए थे जो सरकार से बहुत नाराज थे. जसमैर सिंह ने कहा, “किसान बिल के हम बिल्कुल खिलाफ हैं. ये बिल सरकार ने दफ्तर में बैठकर बिना किसान और व्यापारी के राय के पास कर दिया है. ये पक्की मंडी है, अच्छा बंदोबस्त है ये मंडी भी बर्बाद हो जाएंगी. बाहर सेलर के पास जाऐंगे वह नुकस भी निकालेगा और किसान को ब्लैकमेल कर लेगा.” जसमैर आगे कहते हैं, “सरकार इस अध्यादेश को लाने की बजाय ईरान से संबंध सुधारे, जो हमारे चावल का सबसे बड़ा आयातक था. इससे हमें अच्छा भाव मिलेगा और सरकार को भी टैक्स का फायदा होगा. अमेरिका के चक्कर में ये उससे बात नहीं करता. पिछले साल हमारा धान 2700 के पास बिका था जो इस बार 1700 है. ये दोगुनी आय की बात करते हैं लेकिन ये तो आधी हो
गई.”

“पीएम मोदी तो ये भी कह रहे थे कि 15-15 लाख देंगे. इससे झूठा प्रधानमंत्री मैंने तो कहीं देखा नहीं. जुमलेबाज हैं. आप करोगे क्या उसकी बात पर यकीन! बस बोलने में माहिर है. बाकि यही कहना है कि अगर किसान का भला चाहते हो तो इस बिल को वापस लो,” जसमैर सिंह ने कहा. दूसरे छोर पर अपने साथियों के साथ बैठे 56 साल के किसान जगदीश ने भी इस बिल का कड़ा विरोध करते हुए और आढ़तियों को किसान की जरूरत बताते हुए कहा, “इस सरकार ने तो किसान और मजदूर सब परेशान कर दिए. हमें तो मनरेगा जैसी मजदूरी भी नहीं, उल्टा लट्ठ लग रहा है. सबसे पहले आढ़ती फिर मंडी और फिर किसान. इनका मेल रहेगा तो काम चलेगा.”

पानीपत की इस मंड़ी में किसान ही नहीं आढ़ती भी सरकार से बहुत नाराज नजर आए. उन्होंने पीएम और कृषि मंत्री के आढ़तियों को लेकर दिए बयान की भी कड़ी निंदा की. हम मंडी में एक जगह बैठे ताश खेल रहे कुछ आढ़तियों से मिले. आढ़ती तेजबीर जागलान कहते हैं, “हर चीज में खुद बिचौलिये ला रहे हैं और कह रहे हैं कि हम बिचौलिये खत्म कर रहे हैं. हर बात में झूठ बोला है.”

आढ़ती के शोषण पर जागलान ने कहा, “आप हमसे मत पूछो. जाकर पूरी मंडी में किसानों से पूछ लो. अगर कोई भी बोल दे. और इस बिल की मांग किसने की थी.” आढ़ती दिनेश सिंह कहते हैं, “इस किसान बिल का सबसे अधिक प्रभाव जमींदार पर पड़ेगा. कम से कम हरियाणा-पंजाब में इस बिल की कोई जरूरत नहीं है. सरकार को एमएसपी खत्म करना है, इस बहाने से. अभी मंडी में सैंकड़ों व्यापारी होते हैं. अगर किसान को एक जगह दाम न लगे तो दूसरे को बेच देते हैं, प्रतिस्पर्धा होती है. बाहर ऐसा नहीं होगा. और एमएसपी नहीं होगा तो जमींदार खत्म हो जाएगा. साथ ही कहा कि अभी तो मोदी को ‘कमीशन एजेंट’ और ‘कमीशन खोर’ में अंतर ही नहीं पता. हम कमीशन खोर नहीं बल्कि एजेंट हैं जो अपनी 2.5 परसेंट मजदूरी लेते हैं.”

पानीपत मंडी आढ़ती एसोसिएशन के प्रधान धर्मवीर मलिक ने कहा, ये तीनों बिल किसानों के लिए बहुत बड़ी आफत हैं. किसान को बेवकूफ बना रहे हैं, बस. मंडी में टैक्स लगता है, बाहर वह नहीं लगेगा तो मंडी तो खुद ही खत्म हो जाएंगी. क्या बिल में ऐसा कोई प्रावधान है कि अगर कोई एमएसपी से नीचे खरीदे तो 5-10 साल की सजा होगी. और अनलिमिटेड भंडारण से उद्योगपति माल को बड़े पैमाने पर खरीद कर रख लेगा और जब मंहगा होगा तो बेचेगा.”

पीएम नरेंद्र मोदी को झूठा बताते हुए धर्मवीर ने कहा, “उन पर कैसे यकीन करें. वे पहले भी 15 लाख जैसे वादे कर चुके हैं, जो पूरे नहीं हुए. वो तो सारे दिन झूठ बोले. पीएम मोदी तो झूठ का पुलिंदा है. इलेक्शन के समय कुछ नया शिगुफा छोड़ कर पब्लिक को बेवकूफ बना दे. बाकि बीएसएनएल, एयरपोर्ट आदि सारे सरकारी उपक्रम बेच ही दिए. जिस तरह ईस्ट इंडिया कम्पनी आई थी आज उसी तरह अडानी और अंबानी हैं, जो मोदी जी को दिखाई देते हैं.”

सभी मंडियों में किसान और आढ़ती मीडिया से भी काफी नाराज दिखे. उनका कहना था कि मीडिया कंगना, रिया की इतनी कवरेज कर रहा है लेकिन किसानों की नहीं करता. असल मुद्दों से ध्यान भटकाता है. और गोदी मीडिया ने पत्रकारिता की इमेज इतनी गिरा दी है कि एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि मीडियावालों को अपनी नौकरी बचाने के चक्कर में जूते न खाने पड़ जाएं.

Also see
article imageकृषि बिल: किसानों के भारत बंद पर चैनलों ने बंद की अपनी आंख
article imageपीएम किसान सम्मान निधि से वंचित रह गए यूपी के 14 लाख किसान

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like