सितंबर के अपने पहले अंक में आरएसएस के मुखपत्र पाञ्चजन्य ने लव जिहाद को लेकर कवर स्टोरी छापी. यह कई झूठ, गलत सूचनाओं और कपोल कल्पनाओं से भरी हुई है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस के मुखपत्र पाञ्चजन्य ने सितंबर का शुरुआती अंक लव जिहाद पर छापा है.
'बात भारत की' पंच लाइन वाले पाञ्चजन्य ने 'प्यार का इस्लामी कत्ल' शीर्षक से प्रकाशित कवर स्टोरी में बताया है कि मुस्लिम समुदाय के लड़के एक साजिश के तहत अपना नाम बदलकर हिन्दू लड़कियों से प्रेम करते हैं. उनका धर्म बदल शादी करते हैं और आगे चलकर वे किसी और लड़की को अपना शिकार बनाते हैं और पहली को अपने रास्ते से हटाने के लिए उसका कत्ल कर देते हैं. छल, कन्वर्जन, निकाह और कत्ल की प्रेरणा इन युवाओं को वे मज़हबी संगठन देते हैं जो भारत को गजवा ए हिन्द यानी इस्लामिक राष्ट्र बनाना चाहते हैं.
हमने पाया कि यह यह कवर स्टोरी कई तरह की गलत सूचनाओं, झूठ और कपोल कल्पनाओं से भरी हुई है.
कानून की निगाह में लव जिहाद जैसी कोई चीज नहीं है. फरवरी 2020 में गृहराज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने लोकसभा में लव जिहाद को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में बताया था, ‘‘मौजूदा कानूनों में 'लव जिहाद' शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है. वहीं किसी भी केंद्रीय एजेंसी द्वारा 'लव जिहाद' का कोई मामला सूचित नहीं किया गया है.’’
जिस लव जिहाद का कोई मामला केंद्रीय एजेंसियों के सामने नहीं आया उसको पाञ्चजन्य ने पहली बार मुद्दा नहीं बनाया है. पाञ्चजन्य अक्सर इसको लेकर ख़बरें करता रहा है. साल 2017 के सितंबर में भी पाञ्चजन्य ने 'लव जिहाद, मामला दिल का नहीं है' शीर्षक से कवर स्टोरी छपा था. दरअसल यह आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों का बहुत पुराना प्रेम है, जिसे लेकर वे अक्सर सड़कों पर भी उतरे हैं.
पाञ्चजन्य के हालिया अंक में दावा किया गया है कि उत्तर प्रदेश में लगातार लव जिहाद के मामले बढ़ रहे हैं. कहानी कहती है कि प्रदेश में मेरठ, कानपुर, बागपत, शामली और मुज़फ़्फरनगर आदि जिले विगत दो दशक से 'लव जिहाद' में लगे कटटर मज़हबी तत्वों के निशाने पर हैं. पिछले कुछ महीने में इन जनपदों में लव जिहाद के प्रकरण तेजी से सामने आए हैं. रिपोर्टर सुनील राय अपने दावे की पुष्टि करने के लिए कुछ मामलों का जिक्र करते हैं. ऐसा ही एक मामला राजधानी लखनऊ के मोहम्मद क़तील का है.
पत्रिका का दावा है कि मोहम्मद क़तील ने एक लड़की को नौकरी देने की बात कहकर बलात्कार किया जो कि लव जिहाद का मामला है. खुद को मान्यता प्राप्त पत्रकार बताने वाले क़तील को लखनऊ में शायद ही कोई पत्रकार जानता हो. बीते महीने जब लड़की ने गोमती नगर में थाने में मामला दर्ज कराया तब से वह जेल में है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने इस मामले में दर्ज एफआईआर हासिल की जिसमें 24 वर्षीय लड़की ने बताया है कि एक साल पहले मैं जॉब की तलाश में मोहम्मद क़तील से उसके गोमतीनगर स्थित आवास पर गई. इसने कहा कि मैं तुम्हें अच्छी जॉब दिला दूंगा. उसके बाद इनसे मेरी बातचीत शुरू हो गई. तीन-चार दिन बाद मैं इनसे मिलने इनके घर पर गई तो वहां उन्होंने कॉफी पिलाई. जिसे पीते ही मैं अपना होश खो बैठी. फिर उन्होंने मुझसे शारीरिक संबंध बनाए. होश में आने के बाद मैंने एफआईआर करना चाहा तो इन्होंने रोते हुए माफ़ी मांगते हुए मुझसे शादी करने का वादा किया. उसके बाद शादी करने के नाम पर मुझे लगातार गुमराह करके शारीरिक संबंध बनाते रहे. बाद में मुझे पता चला कि ये शादीशुदा और दो बच्चों के पिता हैं. फिर मैं इससे दूर होने लगी तो मुझे मारने धमकी देने लगे.
लड़की की शिकायत के बाद मोहम्मद क़तील के खिलाफ पुलिस ने आईपीसी की विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज किया. अब इसमें एसी/एसटी एक्ट भी जुड़ गया है.
कई स्थानीय पत्रकारों से इस संबंध में हमने बात की. किसी ने भी इस मामले 'लव जिहाद' जैसा कुछ होने की बात नहीं बताई. दक्षिणपंथी समूह या फिर पाञ्चजन्य की ही माने तो कथित लव जिहाद की परिभाषा के मुताबिक मुस्लिम लड़के अपना नाम छुपाकर लड़की से संपर्क करते हैं. लेकिन कतील के मामले में बात एकदम साफ है कि लड़की खुद उनके घर आती-जाती थी, उनके नाम-धर्म से वाकिफ थी. यानि पहले ही पायदान पर पाञ्चजन्य की कहानी ध्वस्त हो जाती है. यह बात एफआईआर में भी दर्ज है.
इस मामले की शुरुआत में जांच करने वाले गोमती नगर थाने के सब-इंस्पेक्टर अमरनाथ यादव भी 'लव जिहाद' जैसा कुछ होने से इंकार करते हैं. वे बताते हैं, ‘‘लड़की को मोहम्मद क़तील के बारे में पहले से सारी जानकारी थी. क़तील की पहली पत्नी भी हिन्दू ही हैं. दोनों के बीच मन मुटाव चल रहा था तो क़तील अलग रहता था. जहां ये दोनों साथ रहते थे. ये बीते एक-डेढ़ साल से साथ रह रहे थे. पत्नी और ये लड़की भी एक-दूसरे को आपस में जानते थे. पत्नी को भी पता था कि दोनों दोस्त हैं. लेकिन जब उसकी पहली पत्नी को इनके साथ रहने और शारीरिक संबंधों के बारे में पता चल रहा तब स्थिति बदल गई. पत्नी की उस लड़की के साथ बहस हुई और उसके बाद एफ़आईआर हुआ.’’
एसी/एसटी एक्ट लगने के बाद यह मामला सीनियर अधिकारी श्वेता श्रीवास्तव को सौंपा गया. श्वेता ने न्यूज़लाउंड्री से लव जिहाद की बात को गलत बताया. वो कहती हैं, ‘‘लव जिहाद से जुड़ी कोई शिकायत अब तक सामने नहीं आयी है. यह व्यक्तिगत रिश्ते में खटास का मामला है. उन्होंने (क़तील) ने भी कोर्ट में कुछ कागज दिए है जो व्यक्तिगत रिश्ते की ही बात करता है. कोर्ट से हमारे पास वो कागज आया है. हम उसे भी विवेचना में शामिल करेंगे. जहां तक रही लव जिहाद की बात तो ऐसा नहीं है. अगर ऐसा कुछ होता तो शुरूआत में ही बताया जाता न.’’
हमने इस मामले में शिकायत करने वाली लड़की से भी संपर्क किया, लेकिन उन्होंने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया. वहीं इस सम्बन्ध में क़तील की पत्नी बताती है, ‘‘मैं खुद हिन्दू हूं. चौदह साल पहले हमारी शादी हुई. 13 साल की हमारी बेटी है तो यह कैसे लव जिहाद हो जाएगा.’’ इतना कहने के बाद वो पत्रकारों पर नाराज़गी जाहिर करने लगी.
इन तमाम लोगों से बातचीत करने के बाद यह साफ़ हो जाता है कि यह मामला दक्षिणपंथी समुदाय द्वारा खुद ही ईजाद किया गया है, कथित लव जिहाद का नहीं था. यह दो लोगों के बीच का संबंध था. जिसे सिर्फ इसलिए लव जिहाद का रूप दिया गया क्योंकि दोनों अलग-अलग मज़हब के थे.
दूसरी बात पाञ्चजन्य ने अपने लव जिहाद की स्टोरी में इनकी कहानी को शामिल करते हुए ना ही जांच कर रहे पुलिस अधिकारियों से बात करना ज़रूरी समझा और ना ही पीड़िता से.
कानपुर और लव जिहाद
पाञ्चजन्य ने अपने इसी एकतरफा लेख में कानपुर में लव जिहाद के तेजी से फैलने का जिक्र भी किया है. इसके लिए उन्होंने कुछ खबरों का सहारा लिया है. जिसमें सबसे प्रमुख है शालिनी यादव और फैज़ल की कहानी है. जो इन दिनों काफी चर्चा में हैं.
'फैज़ल का जाल' उप शीर्षक से पत्रिका लिखता है कि शालिनी परीक्षा देने की बात कहकर घर से निकली और फिर लौटकर नहीं आई. उन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी करके बताया कि उन्होंने अपनी इच्छा से मोहम्मद फैज़ल से शादी कर ली है. शालिनी के भाई विकास यादव ने पत्रिका को बताया है कि वो घर से दस लाख रुपए लेकर गई है. रुपए की लालच में फैज़ल उसे डरा धमकाकर बयान दिला रहा है. कानपुर में लव जिहादी गैंग काफी सक्रिय है.
कानपुर में लव जिहाद के मामले को स्थानीय पत्रकार बजरंग दल और आरएसएस के मन की उपज बताते हैं. पत्रकारों की माने तो अलग-अलग समुदाय के युवक और युवतियों के बीच प्रेम का जैसे ही मामला सामने आता है, तो समान्यत: लड़की पक्ष इसका विरोध करता है क्योंकि लड़की के साथ परिवार का सामाजिक लोक लाज और प्रतिष्ठा जुड़ी होती है. ऐसे में अगर लड़की हिन्दू धर्म की हुई और लड़का मुस्लिम धर्म का तो उसे लव जिहाद का मामला बता दिया जाता है. बजरंग दल और वीएचपी के लोग सड़कों पर उतर आते हैं, जिसका दबाव पुलिस पर भी पड़ता है. कानपुर में बीते दिनों जब ऐसे मामले आए तो सरकार ने एसआईटी का गठन कर दिया जो 'लव जिहाद' के मामलों की जांच करेगी.
शालिनी यादव का मामला भी कुछ ऐसा ही है. एक स्थानीय अख़बार के संवाददाता नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, ‘‘दोनों का परिवार एक दूसरे को पहले से जानता है. फैज़ल लड़की के घर अक्सर जाया करता था. उनके बीच प्रेम हुआ और दोनों शादी कर लिए. परिवार इससे नाराज़ हुआ. इस मामले को लव जिहाद बताया जाने लगा. इसके बाद लड़की ने वीडियो जारी करके अपनी सहमति से शादी करने की बात कही और इस मामले को लव जिहाद नहीं कहने की अपील की. फिर परिवार के लोगों ने कहना शुरू किया लड़की पर दबाव बनाया जा रहा है. मामला बढ़ता देख लड़की दिल्ली के कोर्ट में अपना बयान दर्ज कराने पहुंची. उसने बताया कि उसने अपनी मर्जी से शादी की है. इतना सब होने के बाद भी बवाल कम नहीं हुआ.’’
हालांकि शालिनी के बड़े भाई विकास यादव इस बात से इंकार करते हैं कि आरोपी और उनके परिवार में पूर्व से कोई संबंध था. उनको क्यों लगता है कि यह मामला लव जिहाद का है. इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, ‘‘जब शालिनी का मामला सामने आया उसके बाद से कानपुर में 11 ऐसे मामले सामने आ चुके हैं. जहां खास समुदाय के लोगों ने हिन्दू लड़कियों का धर्म परिवर्तन कराकर शादी किया. अगर सच में प्रेम था तो क्या ज़रूरत थी धर्म परिवर्तन कराने की.’’
जब से शालिनी घर से गई हैं तब से परिवार का उससे को संपर्क नहीं है. वे कहते हैं, ‘‘मेरी बहन को कानपुर लाया जाए और उस लड़के से अलग रखा जाए तभी जाकर यह पता चल पाएगा कि हकीक़त क्या है.’’
कानपुर लव जिहाद का जो मामला उठा और जांच के लिए सरकार ने जो एसआईटी बनाई इसके पीछे स्थानीय हिंदूवादी संगठनों का दबाव काम कर रहा था. विश्व हिन्दू परिषद के स्थानीय नेता दीनदयाल गौड इसे लेकर न सिर्फ मुखर थे बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों से भी मिले भी. हमने उनसे पूछा कि जब शालिनी यादव पुलिस को लिखे अपने पत्र में, कोर्ट के सामने और वीडियो जारी करके अपने मन से शादी की बात बता रही है तो आप लोग लव जिहाद क्यों कह रहे हैं. इस पर गौड़ कहते हैं, ‘‘यह हम नहीं लड़की का परिवार कह रहा है. शालिनी का मामला जैसे ही सामने आया उसके बाद से कई मामले सामने आ चुके हैं. अचानक से एक ही इलाके में ऐसा हो रहा तो कोई ना कोई बात होगी ही. धर्म परिवर्तन क्यों कराया जा रहा है? हमें किसी के प्रेम करने से ऐतराज नहीं, लेकिन साजिश के साथ ना हो. कानपुर में जो मामले आए उसमें से ज़्यादातर लड़कों की पारिवारिक पृष्ठभूमि बहुत अच्छी नहीं है, लेकिन वे महंगी गाड़ियों से घूमते हैं. लाखों खर्च करते हैं. यह कैसे मुमकिन है. कोई ना कोई इसके पीछे हैं. हमने प्रशासन से मांग की है कि सारे मामले को गंभीरता से देखा जाए और जो भी दोषी हो उसे कठोर सज़ा दी जाए.’’
हमने शालिनी यादव और उनके पति फैज़ल से भी बात करने की कोशिश की लेकिन उनका कोई संपर्क नंबर हमें नहीं मिल पाया.
इस मामले की जांच टीम का नेतृत्व कानपुर के गोविन्द नगर के सीओ विकास कुमार पांडेय कर रहे हैं. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, ‘‘जिले में बीते दो साल में इस तरह के 14 मामले सामने आए हैं जिसमें हिन्दू लड़कियां हैं और मुस्लिम लड़के हैं. इसमें से चार-पांच मामले जूही लाल कॉलोनी के हैं. इन पांचों लड़कों का आपस में कनेक्शन है. इन सबकी जांच हो रही है. इसमें कुछ ने सोशल मीडिया पर दूसरे नाम से प्रोफाइल बना रखी है. वो सारी छानबीन चल रही है. ये एक दूसरे के संपर्क में कैसे आए. इसके पीछे कोई और है क्या? हम सभी एंगल से जांच कर रहे हैं.’’
तो क्या इन मामलों को लव जिहाद कहा जाना चाहिए. इस सवाल के जवाब में पांडेय कहते हैं, ‘‘लव जिहाद का एंगल बहुत बड़ा हो जाएगा. अभी हमने कुछ फाइंडिंग भी लव जिहाद का नहीं किया है, लेकिन हम इस चीज को नकार भी नहीं रहे.’’
कानपुर के सामाजिक कार्यकर्ता धर्मेंद्र कुमार सिंह ने आज से पांच-छह साल पहले हुए कुछ अंतर धार्मिक शादियों का उदाहरण देते हुए बताया, ‘‘तब किसी ने उन शादियों को लव जिहाद का नाम नहीं दिया. बीते कुछ सालों से यह नया शब्द सामने आया है. कानपुर में लव जिहाद का मामला इसलिए उठा क्योंकि एक साथ कई ऐसे मामले सामने आए हैं. पर मुझे इसमें कोई चाल या साजिश नहीं दिखती. यह दो नौजवानों के बीच होने वाला समान्य प्रेम है.’’
प्रयागराज और लव जिहाद
पांचजञ्चय ने कानपुर, लखनऊ और मेरठ के अलावा प्रयागराज जिले से भी एक मामले का जिक्र किया है. 'इमरान बना आकाश' उपशीर्षक से लिखे गए इस संक्षिप्त रिपोर्ट में पीड़िता के हवाले से लिखा गया है, ‘‘सोशल मीडिया पर आकाश नाम के लड़के से मेरी दोस्ती हुई. लड़के ने शादी का वादा किया. इस दौरान मैं दो बार गर्भवती भी हुई. जब मैंने शादी का दबाव बनाया तो लड़के ने अपनी असलियत बताई. उसने बताया कि उसका नाम इमरान है और अगर शादी करनी है तो इस्लाम कबूल करना होगा.''
इतनी गंभीर, कथित लव जिहाद की यह स्टोरी महज सौ शब्दों में लिखी गई है. जिसमें किसी अधिकारी, किसी अन्य पक्ष से बातचीत नहीं है.
प्रयागराज में रहकर एक नेशनल मीडिया के लिए रिपोर्टिंग करने वाले एक पत्रकार बताते हैं, ‘‘महिला ने आरोपी पर नाम छुपाकर उसके साथ रहने का आरोप लगाया है. महिला ने मीडिया में बयान भी दिया है. हमने उसकी शिकायत के आधार पर रिपोर्ट भी किया. लेकिन मेरी जो जानकरी है उसके मुताबिक उस महिला की दो शादियां पहले ही टूट चुकी हैं. उनकी एक बेटी है. महिला के परिजन उसके रवैयेे से आजिज आकर बहुत पहले घर से निकाल चुके थे. पता चला है कि उस हालत में आरोपी लड़के ने उसकी मदद की और किराये का कमरा दिलाया. दोनों बीते डेढ़ साल से साथ रह रहे थे. लड़का कभी-कभार आता था क्योंकि वो खुद भी शादी शुदा था. लेकिन दोनों यह बात छुपाए हुए थे. बाद में इनमें कुछ अनबन हुई और फिर मामला थाने पहुंचा. आरोपी अब गिरफ्तार हो चुका है. जहां तक महिला की बात है तो वह अब मीडिया से कोई बात नहीं कर रही है. उसे हमारे चैनल ने डिबेट में बैठने के लिए बुलाया था, लेकिन उन्होंने आने से मना कर दिया.’’
हमने कई दूसरे पत्रकारों ने भी इस तथ्य की पुष्टि की. लगभग सबने एक जैसी ही कहानी साझा की कि महिला और आरोपी एक दूसरे को जानते थे. इनमें अनबन हुई जिसके बाद मामला पुलिस के पास पहुंच गया.
प्रयागराज मामले की जांच कर रहे अधिकारी राम आशीष यादव बताते हैं, ‘‘कोई लव जिहाद का मामला नहीं है. दोनों एक दूसरे को बहुत दिन से जानते थे. आस-पड़ोस में घर था, कोई लव जिहाद का मामला नहीं है.’’
हमने उनसे और कई सवाल पूछा तो उन्होंने बोला, ‘‘मैं छुट्टी पर हूं और लौटकर आपको जानकारी दे सकता हूं. आप बस यह जान लें कि मामला लव जिहाद का नहीं है.’’
वहीं एसएचओ नैनी इस मामले में ज़्यादा जानकारी देने से बचते नज़र आए. वे कहते हैं, ‘‘मामला दर्ज हो चुका है. आरोपी जेल में है. विवेचना जारी है. जो भी होगा चार्जशीट में हम लिखेंगे.’’
पाञ्चजन्य ने छापा लव जिहाद का फेंक रेट लिस्ट
लव जिहाद के पीछे किसी शक्ति के शामिल होने को साबित करने के लिए पाञ्चजन्य ने एक रेट लिस्ट भी प्रकाशित की है. उन्होंने बताया है कि हिन्दू समुदाय के अलग-अलग धर्म और जातियों से जुड़ी लड़कियों को फंसाने और उनका धर्म परिवर्तन पर इनाम दिए जाते हैं.
कवर स्टोरी में 'लव जिहाद का ईनाम' से लिखे हिस्से में पत्रिका लिखता है, ‘‘स्टूडेंट ऑफ़ मुस्लिम यूथ फॉर्म द्वारा यह पोस्टर व्ह्ट्सएप के जरिए साझा किए गया. जिसमें हिन्दू, सिख, ईसाई और अन्य मतों की लड़कियों को फंसाने के अलग-अलग दाम बताये गए थे. इस रेट लिस्ट के वायरल होने पर पुलिस ने जब छानबीन की तो पता चला कि यह बड़ोदरा से साझा किया गया है. लव जिहाद में सफल होने वालों के ईनाम पाने के लिए इस संदेश में गुजरात के अलग-अलग शहरों के पत्ते और फोन नंबर दिए गए थे.’’
पत्रिका यह नहीं बताता कि यह पोस्ट सबसे पहले कब सामने आया, लेकिन यह ज़रूर लिखा है कि साल 2016 में ऐसे प्रकरण आए जिससे साफ़ होता है कि लव जिहाद के लिए ईनाम दिया जाता था. हैरानी की बात है कि कवर स्टोरी लिख रहे रिपोर्टर और संपादक ने इस कथित रेट लिस्ट की सत्यता स्थापित करने की कोशिश तक नहीं की. मुखपत्र होने की मजबूरी यह है कुछ भी अनर्गल छाप दो और आसानी यह है कि तथ्यात्मक पुष्टि की जरूरत नहीं है. गूगल पर सर्च करने पर आसानी से कई स्टोरी मिल जाती है जिनमें इस रेट लिस्ट को भ्रामक और गलत बताया गया है. पाञ्चजन्य ने अपनी पत्रिका में असली पोस्टर का एक हिस्सा प्रकाशित किया है.
जिस तस्वीर को पांचजन्य ने छापा उसी को एक्सक्लूसिव बताकर टाइम्स नाउ ने साल 2017 में रिपोर्ट किया था. तब टाइम्स नाउ के एडिटर-इन-चीफ राहुल शिवशंकर ने प्राइम टाइम में इस कथित रेट लिस्ट को दिखाया था. टाइम्स नाउ अपने शो में इस पोस्टर के जरिए बताया कि केरल में आईएसआईएस यह सब कर रहा है. उसी वक़्त ऑल्ट न्यूज़ के सहसंस्थापक प्रतीक सिन्हा ने 'टाइम्स नाउ ने 7 साल पहले की फोटोशॉप तस्वीर के आधार पर चलाई प्राइम टाइम' शीर्षक से रिपोर्ट लिखी थी.
अपनी रिपोर्ट में सिन्हा इस रेट लिस्ट को लेकर लिखते हैं, ‘‘टाइम्स नाउ द्वारा जो रेट कार्ड दिखलाया गया है, वह व्हाट्सएप और सोशल मीडिया के विभिन्न रूपों में काफी समय से चल रहा है. वो आगे बताते हैं, ‘‘अहमदाबाद मिरर ने फरवरी 2016 में ही इस पोस्टर के आधार पर “वड़ोदरा में लव जिहाद एक मूल्य टैग के साथ आया” शीर्षक से एक खबर चलाई थी. इसके बाद, अहमदाबाद मिरर की कहानी को ज़ी न्यूज़, वन इंडिया, दैनिक भास्कर (मराठी), इंडिया डॉट कॉम और सहारा समय जैसे कई अन्य मीडिया संगठनों द्वारा चलाया गया. टाइम्स नाउ ने उस रेट कार्ड की तस्वीर को लेकर अपने प्राइम टाइम में कहीं कोई संदेह नहीं जताया, जबकि फरवरी 2016 में ही इस कहानी को चलाने वाले अधिकांश मीडिया संगठनों ने स्पष्ट रूप से कह दिया था कि लोगों को भड़काने के लिए व्हाट्सएप पर फॉरवर्ड करके उसे वायरल किया जा रहा था.
ऑल्ट न्यूज़ ने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया है कि शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ ने 2010 के अंतिम दिनों में अपने अखबार के पेज छह पर यह कहानी प्रकाशित की थी.
तमाम तथ्यों को देखने के बाद ऑल्ट न्यूज़ इस नतीजे पर पहुंचा कि यह सब, इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि यह तस्वीर एडोब फोटोशॉप जैसे सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके प्रचार के लिए बनाई गई है और इसमें कुछ भी तथ्यपरक नहीं है.
ऑल्ट न्यूज़ से पहले एबीपी न्यूज़ ने साल 2014 में इस पोस्टर का फैक्ट चेक किया था. पोस्ट में दिए गए पते और फोन नंबर पर संपर्क करने के बाद एबीपी इस नतीजे पर पहुंचा था कि पोस्टर में जो दावा किया गया है, जो पते दिए गए हैं वो फर्जी हैं.
यह पोस्टर हर कुछ दिनों बाद सोशल मीडिया पर दिख जाता है. इसी साल फरवरी महीने में बूम नाम के मीडिया संस्थान ने इस तस्वीर की पड़ताल की थी और इसे फेक बताया था. बूम के लिए इस रिपोर्ट को करने वाले अनमोल अल्फोंसो ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, ‘‘यह तस्वीर हर कुछ दिन में वायरल हो जाती है. हमने अपने फैक्ट में इसे गलत पाया. यह साल 2012 से ही सोशल मीडिया पर दिखता रहता है. अलग-अलग समय पर अलग-अलग मैसेज के साथ इसे साझा किया गया है.’’
इस मामले में हमने पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर से बात की. उन्होंने वक़्त की कमी बताकर फोन काट दिया.
लव जिहाद को लेकर अध्यादेश
द वायर पर छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश सरकार 'लव जिहाद' रोकने के लिए एक अध्यादेश लाने पर विचार कर रही है. रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में धर्मांतरण रोकने के लिए अधिकारियों से रणनीति बनाने और जरूरत पड़ने पर अध्यादेश लाने को कहा है. धर्म परिवर्तन की घटनाओं पर संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री ने इस तरह की घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए ठोस रणनीति तैयार करने के निर्देश दिए हैं.’’
वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान इसको लेकर कहते हैं कि प्रदेश के मुख्यमंत्री की अब तक राजनीति नाम बदलने, लव जिहादी, घर वापसी और मुसलमान-हिन्दू करने की रही है. यही करने से इन्हें वोट मिला और ये बढ़ते गए हैं. जिसके बाद इनको लगता है कि यहीं सबसे सही रास्ता है. तो थोड़े-थोड़े दिन पर यह ऐसा कुछ-कुछ करते रहते हैं. जब इनको लगा कि आजकल कुछ नहीं हो पा रहा है तो प्रेस नोट जारी करके बोल दिए की 'लव जिहाद' कम करेंगे. ज़्यादातर मामलों में लड़की कहती है कि हमने अपने मन से शादी की है. हम अपने पति के साथ रहना चाहते हैं. तो क्या आज़ाद भारत में इतनी भी आज़ादी नहीं की आदमी यह तय करे कि वह किसके साथ शादी करेगा और रहेगा. इनकी चले तो हर अंतर-धार्मिक विवाह को लव जिहाद बता दें.
सिर्फ दक्षिणपंथी संगठन ही नहीं बल्कि मीडिया का एक बड़ा हिस्सा भी ऐसे मामलों में आरोप लगते ही दोषी मान लेता है. कानपुर की शालिनी यादव लगातार कहती रही कि उनकी शादी को लव जिहाद न बोला जाए लेकिन मीडिया लगातार उसे लव जिहाद लिखता रहा. इसको लेकर शरद प्रधान कहते हैं, ‘‘प्रदेश में कुछ पत्रकार डरे हुए और कुछ सरकार की चापलूसी कर रहे हैं. मीडिया और खबरों में लगातार गिरावट आ रही है. क्या कर सकते हैं. दुर्भाग्य है.’’
उत्तर प्रदेश के आईजी रहे एसआर दारापुरी बताते हैं, ‘‘1977-78 में मैं लखीमपुर खीरी में एसपी था. वहां एक हिन्दू लड़के ने अपना धर्म बदलकर मुस्लिम लड़की से शादी कर ली तो कुछ हिंदूवादी नेता मेरे पास आए. उन्होंने मुझसे बोला कि ऐसा-ऐसा हुआ है. मैंने उनसे पूछा की लड़का बालिक है. उन्होंने बोला- हां. फिर मैंने पूछा उसके मां-बाप हैं. उन्होंने कहा-नहीं. तो मैंने उनसे बोला कि आपने उसका ख्याल नहीं रखा और जब वो खुद शादी कर लिया तो फिर आपको क्या परेशानी है. आप लोग बवाल मत कीजिए. मैंने लड़के को बुलाकर पूछताछ की और उसे सलाह दिया कि कुछ दिन के लिए कहीं और चले जाए और अगर कोई परेशानी हो तो बताना. तो ऐसा नहीं था कि पहले ऐसे मामले नहीं आते थे, लेकिन बवाल नहीं होता था. जब से बीजेपी सत्ता में आई तब से ऐसे मामलों को हवा दी जा रही है, क्योंकि इससे उन्हें हिन्दू-मुस्लिम करने में आसानी होती है.''
एसआर दारापुरी आगे कहते हैं, ''आज तक मेरी नज़र में ऐसा मामला सामने नहीं जिसमें यह तय हो जाए की मामला लव जिहाद का था.’’