दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
संस्कृति और सभ्यता किसी मुल्क के नज़रिए से पूरी दुनिया में उसकी पहचान का सबब होती है. जाहिरन भारत सरकार ने हिंदुस्तान की संस्कृति और सभ्यता का प्रतिनिधित्व करने के लिए ऐसे ही एक नायाब हीरे को ढूंढ़ा है. नाम है विवेक अग्निहोत्री. भारत सरकार ने विवेक को भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद यानि इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशन्स का कल्चरल रिप्रेसेंटेटिव बोले तो सांस्कृतिक प्रतिनिधि नियुक्त किया है. यह संस्था दीगर मुल्कों के साथ भारत के सांस्कृतिक संबंधों से जुड़ी नीतियों और योजनाओं पर काम करती है.
उधर कुछ दिन पहले एक विदूषकने यूपीएससी में मुसलमानों की घुसपैठ से जुड़ा एक शगूफा छोड़ा था. चूंकी समूचा जंबुद्वीप इन दिनों सर्कस बन चुका है तो विदूषक का यह शगूफा अभिव्यक्ति की आज़ादी और मीडिया की स्वतंत्रता जैसे गंभीर बहस में बदल गया. मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा, इस मामले में सरकार भी एक पक्ष है. और सरकार के बारे में हम जानते ही हैं कि इन दिनों वह आपदा में अवसर खोज रही है. तो इस आपदा में भी उसने अपने लिए अवसर खोज लिया. 33 पन्नों का एक हलफनामा देकर सूचना प्रसारण मंत्रालय ने कहा है कि अगर कोर्ट मीडिया के लिए कोई रेगुलेशन तय करती है तो यह मुख्यधारा के प्रिंट और टेलिविज़न मीडिया के लिए नहीं बल्कि डिजिटल मीडिया के लिए होना चाहिए. इसमें तमाम वेबसाइटें और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म शामिल हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि उसकी पहुंच और गति टीवी चैनलों और अखबारों के मुकाबले बहुत ज्यादा है.
सरकार का यह कहना कि टीवी के मुकाबले डिजिटल मीडिया की पहुंच, प्रभाव और स्पीड बहुत ज्यादा है न सिर्फ गलतबयानी है बल्कि उसकी नीयत पर भी सवाल खड़ा करता है. ले-देकर डिजिटल मीडिया ही बचा है जहां सरकार से सवाल करने की संस्कृति बची हुई है. लिहाजा इस आपदा को सरकार अपने लिए अवसर में बदलना चाहती है. सरकार मीडिया के नियमन से दूर रहे, देश के लोकतंत्र के लिए यही सबसे बेहतर तरीका होगा. इन्हीं तमाम मुद्दों पर आधारित है इस हफ्ते की टिप्पणी.
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