रिपब्लिक भारत या झूठ का गणतंत्र ?

दूसरे झूठ को समर्पित रहा रिपब्लिक भारत के लॉन्च का दूसरा दिन.

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स्पेनी कहावत है- ‘चालाक लोग बेवकूफों की मेहनत पर पलते हैं और बेवकूफ लोग अपनी मेहनत पर.’ आज की दुनिया में चालाक आदमी अगर स्टिंग ऑपरेशन को अपनी चालाकी का हथियार बना ले तो ख़तरा सिर्फ बेवकूफों पर नहीं बल्कि देश के लोकतंत्र, पत्रकारिता और संविधान सबके सम्मुख खड़ा हो जाता है.

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पत्रकारिता की विश्वसनीयता को हाल के कुछ सालों में रसातल में पहुंचाने वाली इसकी कुछेक विधाओं में एक विधा है स्टिंग ऑपरेशन. स्टिंग ऑपरेशन अपने आप में पत्रकारिता का जरूरी हरबा है. लेकिन इन दिनों जिस गैरजिम्मेदाराना तरीके से इसका प्रयोग हो रहा है उसने इसकी विश्वसनीयता को खत्म कर दिया है. स्टिंग ऑपरेशन परिस्थिति विशेष में जरूरी हथियार है लेकिन इसे इस्तेमाल करने का शऊर न हो तो बात बिगड़ जाती है. इससे भी ज्यादा चिंता की बात है कि अगर कोई आदमी इसका इस्तेमाल अपनी निजी महत्वाकांक्षा या छद्म हितों की पूर्ति के लिए करने लगे तो इसके ख़तरे कई गुना बढ़ जाते हैं.

बात रिपब्लिक भारत के नाम से शुरू हुए नए चैनल के संदर्भ में कही जा रही है. यह चैनल टेलीविजन पत्रकारिता के ही-मैन अर्नब गोस्वामी के नेतृत्व में शुरू हुआ है, जी हां रिपब्लिक टीवी वाले अर्नब गोस्वामी. हिंदी का यह चैनल अर्नब ने देश की बहुमत हिंदी भाषी आबादी को ध्यान में रखकर शुरू किया है. सोमवार चैनल की लॉन्चिंग का सिर्फ दूसरा दिन था. पूरे दिन रिपब्लिक भारत, ममता बनर्जी से जुड़ा सबसे बड़ा खुलासा करने का दावा करता रहा. हालांकि अर्नब गोस्वामी ने अपनी विश्वसनीयता और दर्शनीयता बीते दो सालों में इतनी खो दी है कि बहुतेरे लोगों को अहसास था कि यह दावा भी रिपब्लिक टीवी के ज्यादातर दावों की तरह ही खोखला साबित होगा. इन दिनों अर्नब के शब्दों में देश का सबसे बड़ा खुलासा वह होता है जिसे वो आए दिन अपने चैनल पर रात 9 बजे प्रसारित करते हैं और अगले दिन सुबह कोई उसका नामलेवा नहीं मिलता. कोई दूसरा मीडिया संस्थान उसे फॉलोअप करने की जहमत तक नहीं उठाता.

खैर रिपब्लिक भारत ताज़ा-ताज़ा चैनल है इसलिए जिज्ञासावश इसे देखा गया. अर्नब और उनकी रिपब्लिकन टीम हमारी उम्मीदों पर पूरी तरह से खरा उतरी. अर्नब और रिपब्लिक भारत के इस कारनामे के लिए हिंदी के विख्यात लेखक श्रीलाल शुक्ल ने अपनी कालजयी कृति राग दरबारी में लिखा है- “जिसकी पूंछ उठाई, वही मादा निकला.” रिपब्लिक की जो ख़बर देखी, वही प्रोपगैंडा निकली.

तो चैनल ममता बनर्जी से जुड़े सबसे बड़े खुलासे के तहत पूर्व तृणमूल सांसद कुणाल घोष का एक स्टिंग परेशन लेकर हाजिर हुआ. कुणाल घोष 2012 से 2018 तक तृणमूल कांग्रेस के सांसद रहे हैं. हालांकि टीएमसी ने उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते 2013 से ही अनिश्चितकाल के लिए पार्टी से बाहर कर दिया है. रिपब्लिक भारत के स्टिंग ऑपरेशन में- जिसे शवन सेन नामक रिपोर्टर ने किया है- कुणाल दो-तीन बातें कहते हैं. पहली बात वो कहते हैं कि शारदा चिटफंड घोटाले का तार ममता बनर्जी से जुड़े हैं. दूसरी महत्वपूर्ण बात वो कहते हैं कि शारदा चिटफंड घोटाले के सारे सबूत मिटा दिए गए हैं. तीसरी बात वो कहते हैं कि इस मामले में बंगाल के पुलिस प्रमुख राजीव कुमार ममता बनर्जी के साथ मिले हुए हैं लिहाजा अब शारदा घोटाले का कोई सबूत नहीं मिलेगा.

अब हम रिपब्लिक भारत के इन कथित सुपर एक्सक्लूज़िव ख़बर के दावों की पड़ताल करते हैं. गूगल पर ज्यादा नहीं सिर्फ “कुणाल घोष अगेन्स्ट ममता बनर्जी” टाइप करने की जरूरत है. अर्नब गोस्वामी की पेनस्टेकिंग यानी थका देने वाली राष्ट्रहित की पत्रकारिता का सारा कच्चा चिट्ठा आपके सामने हाजिर हो जाएगा. 2014 यानि ठीक 4 साल पहले का कुणाल घोष का एक वीडियो तब का है जब वे शारदा घोटाले के मामले में न्यायिक हिरासत में थे. उस समय भी वो यही बातें मीडिया से कह रहे थे कि ममता बनर्जी कायर हैं. उन्हें शारदा घोटाले की के बारे में पूरी जानकारी थी. बल्कि कुणाल पांच साल पहले से यह भी कहते रहे हैं कि शारदा घोटाला ममता बनर्जी की जानकारी में हो रहा था. पांच साल पुराना कुणाल घोष का यह वीडियो देखने के बाद आप भी हमारी तरह रिपब्लिक भारत के इस मेगा एक्सक्लूज़िव खबर पर हंसे बिना नहीं रह पाएंगे.

इतना ही नहीं. साल 2013 में शारदा चिटफंड मामले में गिरफ्तारी के बाद कुणाल घोष अनगिनत मौकों पर ममता बनर्जी के ऊपर बिल्कुल वही आरोप लगाते आए हैं जिन्हें रिपब्लिक भारत स्टिंग के जरिए पहली बार देश के सामने लाने का दावा कर रहा है. बल्कि कुणाल घोष तो खुद की सीडी बनाकर मीडिया में बंटवाते रहे हैं.

गूगल पर 2013 के बाद से विभिन्न मीडिया प्लेटफॉर्म पर उनके ममता विरोधी बयान आसानी से उपलब्ध हैं. कुछ उदाहरण देखिए-

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तो फिर रिपब्लिक के सनसनीखेज दावे को क्या कहा जाय? सनसनीखेज पत्रकारिता, यलो जर्नालिज्म, प्रोपगैंडा या कुछ और. जाहिर सी बात है 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले सियासी दलों के बीच तलवारें खिंची हुई हैं. बहुत से मीडिया समूहों ने भी इसमें अपने पाले तय कर लिए हैं. अर्नब और रिपब्लिक इस पूरे खेल में खुले तौर पर सत्ताधारी दल के पक्ष में खड़े हैं. जिस तरीके से एक सतही ख़बर को धार देने के लिए सत्ताधारी दल के नेता जिनमें केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह भी शामिल थे, तत्परता से अर्नब के चैनल पर हाजिर हुए वह भी इस आशंका को पुख्ता करती है.

बिना ख़बर की ख़बर को महत्वपूर्ण ख़बर बनाना अर्नब गोस्वामी की चिरपरिचित शैली है. ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब रिपब्लिक टीवी के लॉन्चिंग के समय भी उन्होंने इसी तरह की सतही ख़बर चलाई थी. उसमें लालू यादव अपनी पार्टी के नेता शहाबुद्दीन से फोन पर बात कर रहे थे. यह रिकॉर्डिंग अर्नब की सबसे जरूरी ख़बर थी. इसके बाद उन्होंने शशि थरूर से जुड़ी इसी तरह की सतही खबरें चलाई. उनकी हर हवाई खबर को भारी करने के लिए सत्ताधारी दल के तमाम नेता चैलन पर दिन रात तैनात रहते थे.

कौन है कुणाल घोष?

कुणाल घोष एक व्यापारी हैं. जिन्हें 2012 में तृणमूल कांग्रेस ने राज्यसभा में भेजा था. उस समय घोष चैनल-10 नाम के एक टीवी चैनल के सीईओ थे साथ ही संवाद प्रतिदिन और शकालबेला नाम के दो दैनिक अखबारों के संपादक भी थे. चैनल 10 के पूर्व मालिक सुदीप्ता सेन ने सीबीआई को एक पत्र लिखकर उस समय बताया था कि कुणाल घोष ने चैनल-10 न्यूज़ चैनल बेचने के लिए उनसे जबर्दस्ती कागजात पर दस्तखत करवाए थे. इसके अलावा भी कुणाल घोष के ऊपर कई तरह के आरोपों में एफआईआर दर्ज है. इनमें से सबसे अहम है सीबीआई द्वारा दर्ज शारदा चिटफंड का मामला.

फिर से रिपब्लिक भारत के मुद्दे पर लौटते हैं. जिस मामले में कुणाल के सारे बयान पहले से सार्वजनिक हैं उसे विशिष्ट ख़बर बनाकर, सनसनी पैदा करने की अर्नब गोस्वामी की कोशिश को क्या कहा जाना चाहिए. या तो ऐसी हिम्मत कोई बेहद मूर्ख व्यक्ति कर सकता है फिर कोई शातिर व्यक्ति. हम मानते हैं कि ऑक्सफोर्ड रिटर्न अर्नब दूसरी श्रेणी में आते हैं. शातिर इसलिए कि चैनल पर बैठे एक नेता ने जब ख़बर की खामी को पकड़ा और उसकी तरफ पैनल का ध्यान खींचने की कोशिश को तो अर्नब ने बेतहाशा चिल्लाते ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी कि किसी को दूसरे व्यक्ति की बात समझ ही नहीं आई. इस चिल्लपों वाली स्थिति के लिए बनारस में एक शब्द प्रचलित है “श्वान सभा”. बीते कुछ सालों से यह सभा बनारस से शिफ्ट होकर अर्नब के चैनल पर आ गई है.

जो बयान सब जगह उपलब्ध हैं उन्हें स्टिंग ऑपरेशन के रूप में पेश करने के पीछे संभव है अर्नब और कुणाल घोष के बीच आपसी मिलीभगत भी हो पर ये अटकल की बातें हैं और अटकलों का जिक्र करने की यहां जरूरत नहीं. प्रत्यक्षम किम् प्रमाणम- प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या जरूरत.

एक हिंदुस्तानी कहावत भी है- “कर्म का फल मीठा होता है.” अर्नब को पता है कि यह बेमतलब की कहावत है, असली रस स्पेनी कहावत में है. चैनल की टैगलाइन ‘राष्ट्र के नाम’ रख लेने का अर्थ यह कतई नहीं है कि राष्ट्र की कहावतों को भी मान लिया जाय.

अरे हां… रिपब्लिक भारत के पहले दिन का पहला झूठ आप यहां पढ़ सकते हैं.

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