रूस द्वारा निर्मित स्पूतनिक-5 कोरोना वायरस वैक्सीन स्वास्थ्य संबंधी कुछ अहम चरणों की अनदेखी कर रहा है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जनवरी, 2019, में वैश्विक स्वास्थ्य के लिए शीर्ष दस खतरों में 'टीकाकरण के प्रति संकोच' को बड़े खचरे के तौर पर सूचीबद्ध किया है. इसने टीकाकरण के संकोच को टीके की उपलब्धता के बावजूद "अनिच्छा या इनकार" के रूप में परिभाषित किया था. सनोफी के डेंगू वैक्सीन (डेंगवाक्सिया) का मामला इससे सम्बंधित है. जो कोई भी दूसरी बार डेंगू से संक्रमित होता है, उसे पहली बार संक्रमित होने की तुलना में साधारण बीमारी के छह गुना अधिक गंभीर लक्षणों का अनुभव होता है.
डेंगवाक्सिया को विकसित होने में एक बिलियन डॉलर और 20 साल से अधिक का समय लगा था. मनुष्यों में पूर्ण क्लीनिकल परीक्षणों के बाद इस टीके का व्यवसायीकरण किया गया था. डब्ल्यूएचओ ने 2016 के अप्रैल में इसके उपयोग की मंजूरी दे दी थी. 2016 में, फिलीपींस पहला देश था जिसने डेंगू के टीके के साथ 0.8 मिलियन से अधिक बच्चों का टीकाकरण शुरू किया था. लेकिन टीकाकरण के बाद, जिन लोगों को वायरस से कोई पूर्व संक्रमण नहीं था, वे वायरस के संपर्क में आने पर गंभीर रूप से बीमार हो गए. टीका पहले प्राकृतिक संक्रमण की तरह ही प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करने वाला था, इससे टीकाकरण के बाद व्यक्ति को गंभीर बीमारी का अधिक खतरा हो सकता है. फिलीपींस ने जल्द ही इस टीके को वापस ले लिया.
इसके बाद सनोफी ने अपने टीके के पैकेट-लेबल पर एक डिस्क्लेमर लिख दिया: "यह टीका ऐसे व्यक्तियों, जो पहले कभी डेंगू वायरस से संक्रमित नहीं हुए हैं, उनको नहीं दिया जाना चाहिए." लेकिन सनोफी की ये चेतावनी देर से आई तब तक लोगों का विश्वास पूरी तरह से टूट चुकाथा. इसके कारण फिलीपींस में वैक्सीन को लेकर लोगों में झिझक पैदा हो गई, जिससे इस देश में लोग खसरा और पोलियो जैसे टीके भी लेने में संकोच करने लगे हैं. जबकिये टीके पूरी तरह से सुरक्षित और प्रभावी हैं.
समोआ में, मीसल्स (खसरा), मम्प्स और रूबेला (एमएमआर) इंजेक्शन तैयार करने में हुई गलतियों से दो शिशुओं की मृत्यु हो गई थी. इसके बाद लोगों का उत्साह टीकों के प्रति तेज़ी से कम हुआ, नतीजतन वहां तेज़ी से खसरे का प्रकोप बढ़ गया.
रूस का टीका-अधिनायकवाद और वर्चस्वता की होड़
अब इसकी तुलना रूस के कोरोनावायरस के टीके, स्पुतनिक-5 से करें, जिसका परीक्षण केवल पहले चरण में 18 वॉलंटियर्स और जून में दूसरे चरण में 20 वॉलंटियर्स पर किया गया है. लेकिन इस टीके को आने वाले हफ्तों में सार्वजनिक उपयोग के लिए उपलब्ध कराया जाना है, इससे पहले कि तीसरे चरण के परीक्षण में हजारों वॉलंटियर्स पर इसका व्यापक पैमाने पर परीक्षण किया जाता, और वैक्सीन के दीर्घकालिक प्रभाव और सुरक्षा को पूर्ण रूप से आकलन किया जाता, वैक्सीन को 11 अगस्त को ही पंजीकृत करवा दिया गया. अब तीसरे चरण का वैक्सीन ट्रायल जल्द शुरू होने की बात रही जा रही है.
इस टीके से संबंधित किसी भी सार्वजनिक डेटाबेस में टीका सुरक्षा और प्रभावपर कोई डेटा उपलब्ध नहीं कराया गया है.11 अगस्त को, गामालेया नेशनल रिसर्च सेंटर द्वारा टीके के बारे में विस्तृत विवरण पोस्ट किया गया था, इसी संस्थान ने ये वैक्सीन विकसित की थी. वेबसाइट के अनुसार, "1 अगस्त, 2020 को टीके के पहले और दूसरे चरण के क्लीनिकल परीक्षणों को पूरा कर लिया गया है. सभी वॉलंटियर्स अच्छा महसूस कर रहे हैं, कोई अप्रत्याशित या अवांछित दुष्प्रभाव नहीं देखा गया. टीके ने प्रचुर मात्रा में वॉलंटियर्स के शरीर में एंटीबॉडी और सेलुलर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को प्रेरित किया. वर्तमान क्लीनिकल परीक्षणों का एक भी वॉलंटियर टीका दिए जाने के बाद कोविड-19 से संक्रमित नहीं हुआ. सभी वॉलंटियर्स के रक्त-सीरम में एंटीबॉडी के लिए उच्च परिशुद्धता परीक्षणों द्वारा टीके की उच्च प्रभावकारिता की पुष्टि की गई है. एंटीबॉडी पर ये जांच भी की गयी है, की वो कोरोनोवायरस को नष्ट कर रही है या नहीं.”
इनकी योजना में 2,000 से अधिक लोगों पर रूस, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, ब्राजील और मैक्सिको जैसे अन्य देशों में 12 अगस्त से तीसरे चरण का परीक्षण करने की है."जहां तक मुझे पता है, ये दुनिया का पहला नए-कोरोनो वायरस संक्रमण के खिलाफ विकसित किया गया टीका है," रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सरकार के सदस्यों के साथ एक बैठक में यह बात कही.
रूस की न्यूज़ एजेंसी आरआईए नोवोत्सी ने बताया, "हालांकि मुझे पता है कि यह टीका काफी प्रभावी ढंग से काम करता है, यह एक स्थिर प्रतिरक्षा स्थापित करता है और, मैं दोहराता हूं, सभी आवश्यक जांचों को पूर्ण किया गया है." पुतिन ने दोहराया
"हम रूसी स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ निकट संपर्क में हैं, और टीका के संभावित पूर्व-योग्यता के संबंध में चर्चा चल रही है," डब्ल्यूएचओ के प्रवक्ता तारिक जसारेविक ने जिनेवा में एक यूएन ब्रीफिंग में कहा "किसी भी टीके की पूर्व योग्यता के लिए कठोर समीक्षा और मूल्यांकन की आवश्यकता होती है," रायटर कि रिपोर्ट.
चिकत्सीय सुरक्षा के मुद्दे और वैश्विक राजनीति
संक्रामक रोगों के इलाज के लिए दवाओं के विपरीत, टीकों को एक बेहतर उपाय माना जाता है, क्योंकि वे संक्रमण को रोकने के लिए स्वस्थ लोगों को दिए जाते हैं. इसलिए ये नैतिकता कि मांग है कि लोगों को देने से पहले टीकों की सुरक्षा और प्रभाव का अच्छी तरह से अध्ययन किया जाए और टीकों को आवश्यक रूप से एक उच्च सुरक्षा प्रक्रिया से गुजरना चाहिए. जबकि किसी भी टीके का क्लीनिकल परिष्करण के पहले चरण में कुछ दर्जन वॉलेंटियर्स पर ही ये टेस्ट किया जाता है, और प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को भी देखा जाता है, दूसरे चरण में टीका की सुरक्षा, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया और सबसे अच्छी और प्रभावी खुराक और खुराक की संख्या का अध्ययन किया जाता है. टीके के दीर्घकालिक सुरक्षा और प्रभावकारिता का परीक्षण तीसरे चरण के परीक्षण के दौरान किया जाता है, जिसके लिए हजारों वॉलंटियर्स की आवश्यकता होती है, और इसको करने में कई महीनों का समय लगता है.
पहले चरण और दूसरे चरण में क्लीनिकल परीक्षणों में भर्ती होने वाले वॉलंटियर्स की संख्या में जनसंख्या स्तर पर वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभावशीलता निर्धारित करने के लिए सांख्यिकीय रूप से सुदृढ़ नहीं होते है. इसी लिए, ये अनुमोदन एजेंसियों के लिए आवेदन करने से पहले तीसरे चरण को और अधिक महत्वपूर्ण बनाता है. ऐसे कई उदाहरण हैं, जब कई टीकों को मनुष्यों पर होने वाले क्लीनिकल परीक्षणों के शुरुआती चरण में बेहतरीन पाया गया, लेकिन तीसरे चरण के परीक्षणों में वे फेल हो गए.
तीसरे चरण के परीक्षणों को छोड़ देना या उनके दौरान ही वैक्सीन को जनता के लिए उपलब्ध कराना, जैसा कि स्पुतनिक-5 टीके के मामले में दिख रहा है, न केवल एक खतरनाक विचार है, बल्कि हद दरजे तक अनैतिक भी है. यह लोगों को गंभीर जोखिम में डालता है. इससे पहले कभी भी टीकों को इस तरह से बिना पूरी प्रक्रिया के बाजार में नहीं लाया गया. आम तौर पर पहले जानवरों पर परीक्षण किया जाता हैऔर 5-7 महीने के भीतर क्लिनिकल परीक्षण के तीनों चरण पूरे किये जाते हैं. राजनीति के अलावा, रूस इसे एक दौड़ के रूप में देख रहा है, और सार्वजनिक उपयोग के लिए कोविड-19 वैक्सीन उपलब्ध कराने वाला पहला देश होने का श्रेय लेना चाहता है.
स्पुतनिक-5 वैक्सीन का निर्माण एक रेकॉम्बीनैंट एडेनोवायरस (सामान्य जुकाम पैदा करने वाले वायरस) का उपयोग करके किया जा रहा है जो मनुष्य के शरीर में इंजेक्ट करने पर स्पाइक प्रोटीन के जीन से प्रोटीन बनाएगा. उपयोग किए जाने वाले जीन को कृत्रिम रूप से उत्पादित किया जाएगा. ये तकनीक बिलकुल ऑक्सफ़ोर्ड-अस्ट्रज़ेनेका द्वारा बनाई जा रही वैक्सीन जैसा ही है. यह चित्र बताता है, बिलकुल सरल तरीके से, यह कैसे बनाया गया है.
इसमें चिंपांज़ी को इन्फेक्ट करने वाले एडेनोवाइरस को एक कैरियर की तरह इस्तेमाल किया गया है जैसे साइकिल का कैरियर होता है.वो वायरस मनुष्यों को नुक्सान नहीं पहुंचता है, उसी पर कोरोना वायरस का एक जीन जो उसके बाहरी कवच पर पाई जाने वाली स्पाइक प्रोटीन को कोड करता है, उस जीन को लगाया गया है. अब यही चिंपांज़ी के एडेनोवाइरस पर सवार कोरोना वायरस का जीन जब मनुष्यों के शरीर में इंजेक्शन के ज़रिये डाल दिया जाता है, तो वहां पर कोरोना वायरस का स्पाइक प्रोटीन बनना शुरू हो जाता है. हमारा इम्यून सिस्टम इसके रिस्पांस में एंटीबाडीज बनाना शुरू कर देता है, और अंतत: जब वायरस इन्फेक्शन होगा तो यही एंटीबाडीज कोरोना वाइरस के कवच पर पायी जाने वाली स्पाइक प्रोटीन को पहचान लेंगी और उसे अपने साथ बांध कर नष्ट कर देंगी.
तकनीकी रूप से, यह ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के समान है, जो क्लीनिकल परीक्षण के अग्रिम चरण में भी है.“एडेनोवायरस की सुरक्षा सर्वविदित है. इसलिए मैं तीसरे चरण के परीक्षणों से पहले भी वैक्सीन को जनता के लिए उपलब्ध करने पर किसी भी तरह कि असुरक्षा महसूस नहीं करता हूं,”तमिलनाडु के क्रिस्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर के डॉ. जैकब जॉन कहते हैं.
केवल समस्या यह है कि रूसी संस्थान ने सार्वजनिक डोमेन में डेटा साझा नहीं किया है, हो सकता है कि उन्होंने सुरक्षा को सुनिश्चित किया हो. हालांकि, जब डेटा सार्वजनिक डोमेन में नहीं होगा, तो कोई उनके दावे का मूल्यांकन कैसे कर सकता है, यह एक बड़ा सवाल है.
(लेखक बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर विश्विद्यालय (केंद्रीय विश्विद्यालय), लखनऊ, में बायोटेक्नोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.)