ताहिर हुसैन: एक ही कबूलनामे पर मीडिया दूसरी बार क्यों उछल रहा है?

ताहिर हुसैन द्वारा दिल्ली दंगों के मास्टरमाइंड होने का कथित कबूलनामा जून के पहले हफ्ते में ही आ चुका था, अब दोबारा मीडिया उसे क्यों ले उड़ा है?

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2-3 अगस्त को कुछ मीडिया संस्थानों ने दिल्ली दंगों में ताहिर हुसैन से संबंधित पुलिस की पूछताछ पर एक रिपोर्ट प्रकाशित किया. आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद हुसैन फरवरी महीने में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगे की साजिश रचने और उसमें शामिल होने के आरोपी हैं. इस दंगे में 52 लोगों की हत्या हुई थी, वहीं सैकड़ों घरों और दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया था.

मीडिया संस्थानों ने दावा किया की पुलिस की पूछताछ से संबंधित ‘दस्तावेज़’ उनके हाथ लगे हैं. इसमें कथित तौर पर ताहिर हुसैन दंगे में अपनी भूमिका कबूल कर रहे हैं. इसपर द प्रिंट, ज़ी न्यूज़ और एशियन न्यूज़ इंटरनेशनल (एएनआई) ने रिपोर्ट किया. द प्रिंट और एएनआई ने पूछताछ का दस्तावेज़ हासिल करने का दावा किया वहीं ज़ी न्यूज़ ने बताया कि एसआईटी की टीम से उन्हें यह सब जानकारी हासिल हुई है.

ज़ी न्यूज़ ने अपनी रिपोर्ट में बताया एसआईटी टीम ने रविवार, 2 अगस्त को बताया कि ताहिर हुसैन फरवरी महीने में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे का मास्टरमाइंड था, उसने यह बात स्वीकार कर ली है.

एजेंसी से ख़बर आने के बाद के एनडीटीवी, नवभारत टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदुस्तान टाइम्स समेत कई मीडिया संस्थानों ने इसको लेकर रिपोर्ट प्रकाशित की.

ताहिर हुसैन का घर भजनपुरा से करावल नगर को जानेवाले मुख्य मार्ग पर खजुरी खास में है. 23 से 25 फरवरी के बीच इस मार्ग पर हिंदू और मुस्लिम दंगाइयों के बीच हिंसा भड़क गई थी. एक तरफ हिंदू दंगाई थे तो दूसरी तरफ मुस्लिम दंगाई. दंगाइयों ने कई दुकानों में आग लगा दी. पेट्रोल बम और गोलियों से एक दूसरे पर हमला किया. जिसमें कई लोग घायल हुए. इसी हिंसा के दौरान इंटेलिजेंस ब्यूरो में प्रशिक्षण ले रहे 26 वर्षीय अंकित शर्मा की 25 फरवरी की शाम हत्या कर दी गई और उनकी लाश अगले दिन 27 फरवरी की सुबह चांदबाग के नाले से मिली. दिल्ली दंगे के दौरान कई लोगों की हत्या करके नाले में फेंक दिया गया था.

खबर का दोहराव, पर क्यों?

जिस दस्तावेज़ के आधार पर इन मीडिया संस्थानों ने यह एक्सक्लूसिव खबर चलाई असल में उस ख़बर में कुछ भी नया नहीं है. पुलिस विभाग की लीक से निकली यह ख़बर दो महीना पहले, जून महीने में दिल्ली पुलिस द्वारा दाखिल की गई चार्जशीट का एक हिस्सा है और उस वक्त तमाम मीडिया में यह ख़बर चल चुकी है.

जून महीने में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने जब एफआईआर नम्बर 101/20 की चार्जशीट कोर्ट में जमा किया तब इससे जुड़ी तमाम खबरें चली. उस समय के टीवी और अखबारों को देखा जा सकता है. इस चार्जशीट से संबंधित एक संक्षिप्त सूचना खुद पुलिस ने साझा किया था जिसमें ताहिर हुसैन की दंगे में भूमिका के कथित कबूलनामे का जिक्र है.

लिहाजा यह चौंकाने वाली बात है कि दो महीने बाद एक बार फिर से वही जानकारी एक्सक्लूसिव, सूत्रों के आधार पर क्यों दिखाई जा रही है?

हाल के दिनों में आई रिपोर्टों में पुलिस की इस कथित पूछताछ की कानूनी स्थिति को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं किया गया है. मसलन एक बार चार्जशीट जमा हो जाने के बाद इस पूछताछ का क्या मतलब है?

2 जून को न्यूज़ 18 ने इसी चार्जशीट के आधार पर बताया, ‘‘चार्जशीट के मुताबिक, हुसैन ने पूछताछ में दंगों में अपनी भूमिका स्वीकार की और यह भी माना कि वह घटना के समय अपने घर की छत पर मौजूद था.’’

रविवार 2 अगस्त को प्रकाशित खबरों की तरह तब भी न्यूज़ 18 ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि ताहिर हुसैन 23 फरवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान दंगे की तैयारी के लिए शाहीनबाग़ में ख़ालिद सैफ़ी और उमर ख़ालिद से मिला था. उसने पुलिस के सामने साजिश रचने की बात कबूल की थी. रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि इस दंगे का खर्च पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) वहन करेगा. यह बात भी ताहिर हुसैन ने कबूल की है.

न्यूज़ 18 ने ही नहीं नवभारत टाइम्स ने भी 3 जून को इस पर एक रिपोर्ट किया था जिसका शीर्षक था- ‘नॉर्थ ईस्ट दिल्ली दंगे: दिल्ली पुलिस ने ताहिर हुसैन को बताया मास्टरमाइंड, बताया कैसे रची साजिश’. इसमें चार्जशीट के हवाले से बताया गया था कि ताहिर इस दंगे का मास्टरमाइंड था. दो महीने बाद 3 अगस्त को एनबीटी ने दोबारा रिपोर्ट किया जिसका शीर्षक है- ‘Delhi Violence News: पुलिस पूछताछ में ताहिर हुसैन का खुलासा, दिल्ली में कुछ बड़ा करना था’.

चार्जशीट जमा होने के बाद यह नई पूछताछ कौन कर रहा था, क्यों कर रहा था, इस पर पूरी रिपोर्ट कोई बात नहीं करती है.

न्यूज़ 18 या एनबीटी की तरह प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई), द वीक और द ट्रिब्यून ने भी जून की शुरुआत में ताहिर हुसैन के कथित कबूलनामे पर रिपोर्ट किया. इतना ही नहीं ज़ी न्यूज़ के प्रधान संपादक सुधीर चौधरी ने 3 जून को हुसैन के कबूलनामे पर आधे घंटे का शो किया था. वे लगातार यह कहते नज़र आए थे कि दंगे के समय जो ज़ी न्यूज़ ने बताया था वहीं बात दिल्ली पुलिस ने अपनी चार्जशीट में बताई है. हुसैन दंगे का मास्टरमाइंड है. 3 जून को सुधीर चौधरी अपने हाथ में चार्जशीट की कॉपी लेकर पढ़ रहे थे.

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जी द्वारा 2 जून और 2 अगस्त द्वारा दिखाया गया वीडियो

पुलिस द्वारा दो महीने पहले एफ़आईआर संख्या101/20 को लेकर दायर चार्जशीट कई पत्रकारों करे पास पहुंची. उसपर खबरें हुई. इस चार्जशीट के 37 वें पैराग्राफ में ताहिर हुसैन से पूछताछ में क्या सामने आया वो विस्तार से दर्ज है. इस चार्जशीट में सिर्फ ताहिर हुसैन का ही नहीं बल्कि बाकी आरोपियों से पूछताछ और उनके जवाब दर्ज हैं. जिस पूछताछ के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंची थी कि ताहिर हुसैन दंगे का मास्टरमाइंड था.

चार्जशीट में दर्ज ताहिर हुसैन से पूछताछ

पुलिस और मीडिया द्वारा किए गए इस नए खुलासे में सबकुछ बासी नहीं है. अगस्त में जो रिपोर्ट आई है उसमें बताया गया है कि हुसैन जम्मू-कश्मीर से 370, रामजन्भूमि-बाबरी मस्जिद पर आए फैसले से खफा था और हिन्दुओं को सबक सिखाना चाहता था.

हालांकि जून और अगस्त में आई रिपोर्टों में एक बदलाव जरूर नज़र आता है. पुलिस ने पहले दावा किया था कि हुसैन और बाकियों ने 8 जनवरी को बैठक कर ट्रंप की यात्रा के दौरान दंगों को अंजाम देने की योजना बनाई थी. पुलिस द्वारा यह दावा अंकित शर्मा की हत्या के मामले में दायर चार्जशीट में किया गया था. हालांकि ‘द क्विंट’ अपनी रिपोर्ट में पुलिस की इस थ्योरी की ख़ामियों का खुलासा करते हुए बताता है कि ट्रंप के भारत आने की सूचना 13 जनवरी को पहली बार मीडिया में आई थी. फिर कैसे मुमकिन है कि हुसैन और उमर ख़ालिद समेत बाकी लोगों ने आठ जनवरी को ट्रंप के आने के बाद दंगा करने का प्लान बना लिया.

इसको लेकर क्विंट के सवालों का जवाब दिल्ली पुलिस ने तो नहीं दिया, लेकिन नए रिपोर्ट में 8 जनवरी वाली तारीख आगे बढ़ाकर 4 फरवरी कर दिया गया है.

क्या इस पूछताछ का कोई मतलब है?

जिस बयान को मीडिया द्वारा प्रमुखता से दिखाया जा रहा है क्या कोर्ट में इसका कोई मायने है. इसका जवाब है नहीं. अगस्त के पहले सप्ताह में आई मीडिया रिपोर्ट्स में यह नहीं बताया गया है कि हुसैन ने दंगे में अपनी भूमिका मजिस्ट्रेट के सामने कबूल किया है या पुलिस के सामने. पुलिस के सामने सीआरपीसी के सेक्शन 161 के तहत दर्ज किया गया कोई बयान कोर्ट में वैध साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल नहीं होता है.

इसको लेकर इंडियन एविडेंस एक्ट (1872) के सेक्शन 26 में कहा गया है कि किसी भी आरोपी द्वारा पुलिस को हिरासत के दौरान दिया गया बयान तब तक मायने नहीं रखता जबतक वह मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में न दिया गया हो.

हिंदुस्तान टाइम्स ने मंगलवार को अपनी दूसरी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया है कि पुलिस के सामने दिया गया बयान कोर्ट में मायने नहीं रखता है.

ताहिर हुसैन के वकील जावेद अली न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘पुलिस के लोग शायद सीआरपीसी नहीं पढ़ पाए हैं. अगर पढ़े होते तो अपना मज़ाक नहीं बनवाते. पुलिस के सामने किसी भी आरोपी का दिया बयान मायने नहीं रखता है. मायने वो बयान रखता है जो उसने मजिस्ट्रेट के सामने दिया हो. पुलिस और मीडिया के लोग जिस तरह से यह ख़बर कर रहे हैं. अगर कोई जानकर या वकील यह पढ़ेगा और देखेगा तो हंसेगा.’’

जावेद अली आगे कहते हैं, ‘‘सुप्रीम कोर्ट का ‘कश्मीरा सिंह बनाम स्टेट ऑफ़ मध्य प्रदेश’का जजमेंट है. उसमें पुलिस के सामने दिए गए बयान को लेकर विस्तार से बात की गई. उसके बाद भी हजारों जजमेंट इसी से जुड़े आए हैं. आरोपी का बयान खुद पुलिस लिखती है. उसमें कोई स्वतंत्र गवाह नहीं होता है. ऐसे में उसका कोई मतलब नहीं होता है.’’

दिल्ली दंगा, पुलिस और उसपर आरोप

दिल्ली दंगे को लेकर अपनी खास सिरीज़ में न्यूज़लॉन्ड्री ने 25 फरवरी को मारुफ़ अली और शाहिद आलम की हत्या के मामले पर रिपोर्ट किया था. बुलंदशहर का रहने शाहीद आलम दिल्ली में ऑटो चलाता था. 24 वर्षीय आलम को मोहन नर्सिंग होम के सामने सप्तऋषि बिल्डिंग पर गोली लगी थी.

मारूफ अली की हत्या के समय उनके पड़ोसी शमशाद को भी गोली भी लगी थी. इस पूरे मामले की तहकीकात के दौरान न्यूजलॉन्ड्री पीड़ितों, कई गवाहों और एक आरोपी से मिला था. इन सबने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए हमसे कहा था कि पुलिस ने हर पूछताछ के दौरान उनसे खाली कागजों पर हस्ताक्षर कराया और अपने मन का बयान दर्ज किया. जो उन्होंने ने कहा भी नहीं वह सब लिख दिया गया.

पीड़ित शमशाद, मारुफ़ और खुद को गोली मारने वाले दंगाइयों को पहचानने का बारबार दावा करते हैं. पुलिस द्वारा केस डायरी में दर्ज अपने बयान को पढ़कर वे हैरान रह गए. उनके बयान में लिखा है कि उन्होंने अपने पड़ोसियों को दंगा करते हुए देखा और उनकी पहचान की थी. शमशाद कहते हैं, ‘‘यह पुलिस ने गलत लिखा है. मैंने इनमें से किसी की पहचान नहीं की. मैंने हर बार मारुफ़ की हत्या करने वाले और मेरे पेट में गोली मारने वाले का नाम पुलिस को दिया है, लेकिन पुलिस उन्हें गिरफ्तार नहीं कर रही है. वे आजाद घूम रहे हैं. मुझे जहां देखते हैं. गाली देते हैं. धमकाते हैं.’’

शमशाद ने हमें जो कुछ बताया वो पुलिस द्वारा चार्जशीट और केस डायरी में दर्ज उनके बयान से बिलकुल विपरीत है.

मारुफ़ के हत्या के मामले में सुभाष मुहल्ले के ही रहने वाले मोहम्मद दिलशाद को आरोपी बनाया गया है. जेल में रहने के बाद बीमारी के कारण वे आजकल जमानत पर है. चार्जशीट में दर्ज है कि दिलशाद ने अपने कबूलनामे में स्वीकार किया की उसकी दंगे में भूमिका थी. वो सीएए प्रोटेस्ट में जाता था.

लेकिन न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए वे इससे साफ़ इनकार कर देते हैं. वे कहते हैं,‘‘मैंने ऐसा कोई बयान दिया ही नहीं है. दंगों में मेरी कोई भूमिका नहीं थी, इसलिए मैं इसे स्वीकार क्यों करूंगा. 24 और 25 फरवरी को हमारे इलाके में एक भीड़ घुस आई थी. जिसके बाद हमने पुलिस को कई बार फोन किया, लेकिन कोई भी यहां नहीं आया. मुझे गलत तरीके से पुलिस फंसा रही है.’’

ताहिर हुसैन: पुलिस ने पहले बचाने का दावा किया फिर बताया मास्टरमाइंड

अंकित शर्मा के हत्या के मामले में पुलिस ने ताहिर हुसैन को आरोपी बनाया है. जिस हुसैन को पुलिस अब दंगे का मास्टरमाइंड बता रही है उसे कभी ‘बचाने’ का दावा पुलिस के सीनियर अधिकारी ने किया था.

अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अजीत कुमार सिंगला ने3 मार्च को एक प्रेस कांफ्रेस में बताया था, ‘‘24-25 की रात कुछ लोगों ने हमें बताया कि एक पार्षद फंसा हुआ है और असुरक्षित महसूस कर रहा है. इसके बाद उन्हें बचाया गया.’’ हुसैन का 24 फरवरी को अपने घर की छत पर बनाया गया वीडियो इसकी पुष्टि करता है.

सिंगला के ताहिर हुसैन को बचाने के बयान के कुछ समय बाद इस मामले में एक नया मोड़ आया. समाचार एजेंसी एएनआई ने दिल्ली पुलिस के सूत्रों के हवाले से ट्वीट करके बताया कि उस रात हुसैन को पुलिस ने नहीं बचाया.

हैरान करने बात यह थी कि जो बात दिल्ली पुलिस के एक सीनियर अधिकारी ने कही थी उसका खंडन सूत्रों के हवाले से एक न्यूज़ एजेंसी ने किया, कोई अधिकारिक बयान अब तक सामने नहीं आया है.

दो महीने बाद ख़बर क्यों?

जो चार्जशीट जून में जमा हुई.जिस पर दो महीने पहले रिपोर्ट हो चुकी है उसे दोबारा से मिडिया का एक हिस्सा क्यों ले उड़ा? इसके पीछे हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिल्ली पुलिस की लगाई गई फटकार तो नहीं है?

दरअसल बीते सप्ताह हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस के स्पेशल सीपी ( अपराध ) प्रवीर रंजन द्वारा चांदबाग़ और खजुरी खास के हिंदुओं में गिरफ्तारी को लेकर नाराज़गी बताते हुए गिरफ्तारी में एहतियात बरतने को लेकर दिए गए आदेश को ‘शरारतपूर्ण’ बताया था. और कोर्ट ने नाराजगी दर्ज करते हुए कहा था कि किसी समुदाय द्वारा शिकायत मिलने पर आप (दिल्ली पुलिस) आदेश दे देते हैं? अगर ऐसा है तो पांच ऐसे आदेश हाईकोर्ट में जमा कराएं.

हाईकोर्ट के इस आदेश और फटकार के बाद दिल्ली पुलिस को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था. इस मामले की अगली सुनवाई सात अगस्त को है.

दिल्ली दंगे के दौरान और अब जांच के समय पुलिस पर कई तरह के आरोप लग रहे हैं. हाल ही में ताहिर हुसैन को लेकर पुलिस और मीडिया के इस कथित खुलासे से भले ही कोर्ट में पुलिस को कोई फायदा न हो. उसका केस भले ही मजबूत न हुआ हो लेकिन मीडिया मैनेजमेट के जरिए आम लोगों में वह सूचना पहुंच रही जो पुलिस अपनी छवि प्रबंधन के लिए पहुंचाना चाहती है. भले ही क़ानूनी रूप से इसका कोई मतलब न हो.

इस कथित नए खुलासे के संबंध में न्यूजलॉन्ड्री ने सवालों की एक लिस्ट दिल्ली पुलिस को भेजी है. उनका जवाब आने पर उसे ख़बर में जोड़ दिया जाएगा.

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